समाजपर्यावरण पानी की किल्लत और उसके प्रबंधन के बीच गुज़रता महिलाओं का जीवन

पानी की किल्लत और उसके प्रबंधन के बीच गुज़रता महिलाओं का जीवन

विश्व में हर दिन महिलाएं पानी इकट्ठा करने में 200 मिलियन घंटे का समय लगाती हैं। दूर-दराज इलाके में महिलाएं लंबी दूरी तय करके पानी अपने सिर के ऊपर लादकर तय करती है। गांव-देहात हो या महानगर आम मध्यवर्गीय महिलाओं के जीवन में घर में पानी की व्यवस्था करने का पूरा भार रहता है भले ही घर में अन्य कितने ही लोग मौजूद क्यों न हो।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव कुटबी में रहने वाली कविता (बदला हुआ नाम) की दैनिक कामों में सबसे ज़रूरी काम है पड़ोसी के घर से पानी लाना। उनके घर और घेर (गांव में वह जगह जहां पशु रखे जाते हैं) एक लंबी दूरी है और पानी और शौचालय जैसी सुविधाएं केवल उनके घेर में है। इस वजह से वह रोज एक लंबी दूरी तय न करने की वजह से अपने पड़ोस के एक घर से बाल्टी से पानी ढोती हैं। ठीक इसी तरह बीती मार्च उत्तर-प्रदेश में बिजली कर्मचारियों की हड़लात पर चले जाने के बाद से समूचे प्रदेश में बिजली गायब रही थी। बिजली आपूर्ति की वजह से शहरी क्षेत्रों में लोग पानी का बंदोबस्त करते दिखे। यहां गौर करने वाली बात यह थी कि पानी की व्यवस्था में घर से बाहर निकलने वाली ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां थी। 

इससे यह स्पष्ट होता है कि बात कभी-कभार की हो या रोज की लेकिन घर में पानी की व्यवस्था के लिए किसी के कदम पहले उठेंगे तो वह एक महिला के होने की संभावना ज्यादा होती है। पानी का संकट महिलाओं के लिए निजी है। जेंडर के आधार पर काम के बंटवारे की वजह से घर के कामों के लिए पानी की व्यवस्था करना भी महिलाओं की ही जिम्मेदारी मानी जाती है। यही वजह है कि रेगिस्तान में पानी का घड़ा सिर पर लादती औरतें और महानगरों में पानी के टैंकरों से पानी की व्यवस्था करती ज्यादातर औरतें ही दिखती हैं। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित जानकारी के अनुसार नैशनल कमीशन फॉर वीमन के अनुसार ग्रामीण राजस्थान में महिलाएं लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी तय करके पानी के स्रोत तक पहुंचती हैं। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाँव की रहने वाली रीना एक गृहणी हैं। अपने काम के लिए पानी की व्यवस्था को लेकर उनका कहना है, “घर के काम और पशुओं के लिए पानी की व्यवस्था बनाने का सारा भार मेरे ऊपर है। एक टाइम घर के कामों को छोड़ा जा सकता है लेकिन आप अपने पशुओं को तो नहीं छोड़ सकते हैं। हमारे घर से एक गली छोड़ हमारे पशु बंधते हैं वहां पानी की व्यवस्था नहीं है घर के मोटर से पाइप के सहारे वहां हम बड़े टैंक में पानी इकट्ठा करते हैं।

पानी और जेंडर

पानी और जेंडर का आपस में गहरा संबंध है। पानी के लिए महिलाएं और बच्चियों को लैंगिक आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। सुरक्षित रूप से प्रबंधित पानी, साफ-सफाई (WASH) की सेवाओं के बिना, महिलाएं और लड़कियां को दुर्व्यवहार, यौन हिंसा, खराब स्वास्थ्य, शिक्षा, काम और गरिमा के साथ जीवन जीने की क्षमता प्रभावित होती है।

घर हो या बाहर दोनों जगह महिलाओं को पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लैंगिक समानता लाने के लिए  महिलाएं और लड़कियों को समाधान को डिजाइन करने और लागू करने के लिए केंद्रीय भूमिका निभानी होगी ताकि सेवाओं तक उनकी पहुंच सुनिश्चित हो सकें। इसलिए वाटर मैनेजमेंट के लिए महिलाओं को शामिल करना बेहद आवश्यक है।

तस्वीर साभारः Down To Earth

गाँव और छोटे शहरों में पानी के प्रबंधन में लगी महिलाएं

विश्व में हर दिन महिलाएं पानी इकट्ठा करने में 200 मिलियन घंटे का समय लगाती हैं। दूर-दराज इलाके में महिलाएं लंबी दूरी तय करके पानी अपने सिर के ऊपर लादकर तय करती है। गांव-देहात हो या महानगर आम मध्यवर्गीय महिलाओं के जीवन में घर में पानी की व्यवस्था करने का पूरा भार रहता है भले ही घर में अन्य कितने ही लोग मौजूद क्यों न हो। पानी इकट्ठा करने का भार 80 प्रतिशत घरों में महिलाओं पर पड़ता है जिनके पास पानी की सीधी पहुंच नहीं है। पानी को इकट्ठा करने की गतिविधि महिलाओं को शिक्षा हासिल करने और रोजगार प्राप्त करने से रोकती है।  

पानी इकट्ठा करना मेरी जिम्मेदारी है

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाँव की रहने वाली रीना एक गृहणी हैं। अपने काम के लिए पानी की व्यवस्था को लेकर उनका कहना है, “हमारे गाँव में पानी का लेवल बहुत नीचे चला गया है तो नल ने तो काम ही करना बंद कर दिया है। अब हर घर मोटर लगने लगे है, टंकियां लग गई है लेकिन बिजली भी एक समस्या है। अगर बिजली नहीं होगी तो मोटर कैसे चलेगा इस वजह से पानी का मैनेजमेंट हमें देखना होता है। घर के काम और पशुओं के लिए पानी की व्यवस्था बनाने का सारा भार मेरे ऊपर है। एक टाइम घर के कामों को छोड़ा जा सकता है लेकिन आप अपने पशुओं को तो नहीं छोड़ सकते हैं। हमारे घर से एक गली छोड़ हमारे पशु बंधते हैं वहां पानी की व्यवस्था नहीं है घर के मोटर से पाइप के सहारे वहां हम बड़े टैंक में पानी इकट्ठा करते हैं। इस व्यवस्था के लिए हमेशा मुझे ही ध्यान रखना पड़ता है। हमेशा मुझे ही याद दिलाना होता है कि पानी भरना है। घर के आदमियों को एक दिन पहले से कहना शुरू कर देती हूं कि पानी खत्म हो गया है तब भी कई बार टाइम पर पानी नहीं भरते हैं। अगर पशुओं के लिए पानी की बात करूं तो यह सबका काम है और सबको दिखता है बावजूद इसके समय पर पानी भरा जाए इसको मुझे ही याद दिलाना पड़ता है।” 

तस्वीर साभारः Social News XYZ

पानी की सप्लाई नहीं आने पर मुझे टेंशन होती है

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर की रहने वाली बबली के घर पानी का मुख्य स्रोत नगरपालिका टंकी है जो समय पर आती है। घर के काम, रसोई और अन्य परिवार के लोगों की आवश्यकता के लिए रोज वह घर में रखी बाल्टियों को भरती है। पानी की व्यवस्था पर उनका कहना है, “मेरी दिनचर्या, मेरे घर के काम करने का समय पानी आने पर निर्भर करता है। घर के खाना बनाने से लेकर साफ-सफाई के हर काम के लिए पानी की ज़रूरत होती है। जब पानी नहीं आता है तो पूरा समय बर्बाद होता है। ख़ासतौर पर सरकारी टंकी गर्मियों में परेशान करती है। पानी का प्रेशर भी कम रहता है जिस वजह से टैंक में भी पानी कभी पहुंचता है और कभी नहीं।”

उनका आगे कहना है, “दूसरी ओर जब पानी नहीं आता है तो मुझे तो बहुत टेंशन हो जाती है। मेरे बच्चे अक्सर कहते हैं कि पानी न आने की वजह से आप इतनी परेशान क्यों हो जाती है। घर में सबसे के लिए पानी अरेंज करना केवल आपका काम नहीं है लेकिन पूरी उम्र बीत गई हर काम समय पर और सही करते हुए तो लगता है कि क्यों ही किसी को कुछ कहने का मौका दें और वैसे भी खाना बनाने के लिए, बर्तन धोने, कपड़े धोने, साफ-सफाई सब कामों के लिए घर में मुझे सबसे पहले पानी चाहिए होता है बाकी को तो केवल अपने लिए और वो भी बाद में लेना होता है। अब तो समय बदल गया पानी की टंकी की सुविधा है वरना हमने तो बहुत-बहुत दूर-दूर से बाल्टी से पानी ढोया है।”  

महिलाओं के जीवन में अनेक संघर्षो में से कुछ पानी के इर्द-गिर्द हैं। महज लैंगिक भूमिका की वजह से उनके लिए ये चुनौतियां बढ़ जाती है। पानी की समान पहुंच के लिए संयुक्त राष्ट्र के 2030 तक के विकास एंजेडा सतत टिकाऊ विकास लक्ष्य-6 में सभी के लिए सुरक्षित घरेलू जल, स्वच्छता और साफ-सफाई उपलब्ध कराना है। 

अलग-अलग डेटा संग्रह का अभाव

पानी के क्षेत्र में महिलाओं के मुद्दों को संबोधित करने के लिए अलग-अलग आंकड़ों की कमी की वजह से यह स्टीयरिंग प्रोग्रामिंग में एक प्रमुख बाधा बनती है। वर्तमान में एसडीजी लक्ष्यों की प्रगति के लिए आवश्यक डेटा का केवल 26 फीसदी ही उपलब्ध है। विकास कार्य महिलाओं तक पहुंच रहे है या नहीं इसके लिए एसडीजी लक्ष्यों और वॉश (डब्ल्यूएएसएच) कार्यक्रमों की सफलता के लिए यह आवश्यक है। इकट्ठा किया डेटा भी अक्सर महिलाओं की भौगोलिक स्थिति या आर्थिक स्थिति के आधार पर अंतर को ध्यान नहीं रखता है। 

तस्वीर साभारः Hindustan times

शहरी क्षेत्र के तुलना में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे गांव में महिलाओं को पानी के संसाधन तक पहुंचने के लिए एक लंबी दूरी का सामना करना पड़ता है। शहरी क्षेत्र में महिलाओं को घंटो लाइन में लगना होता है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के विभाजन से अलग उम्र, विकलांगता, वैवाहिक स्थिति, गर्भावस्था और स्वदेशी स्थिति महिलाओं की ज़रूरतों को प्रभावित करती है। इसलिए महिलाओं और पानी के आवश्यकता के लिए सांस्कृति संदर्भो पर भी ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। पारंपरिक लैंगिक मानदंड़ों को बदलकर ही सतत विकास लक्ष्यों में पानी की उपलब्धता को समावेशी तरीके से स्थापित किया जा सकता है। 

पानी इकट्ठा करने का भार 80 प्रतिशत घरों में महिलाओं पर पड़ता है जिनके पास पानी की सीधी पहुंच नहीं है। पानी को इकट्ठा करने की गतिविधि महिलाओं को शिक्षा हासिल करने और रोजगार प्राप्त करने से रोकती है।  

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में प्रभावी शासन के लिए महिलाओं की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। सतत संसाधन विकास लक्ष्य को हासिल करने के लिए जल प्रबंधन और सिंचाई कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए सबसे पहले और ज़रूरी महिलाओं को शामिल करना हैं। निर्णय लेने वाली मेज पर महिलाओं की गैरमौजूदगी के स्वास्थ्य और स्वच्छता सहित अन्य पर नकारात्मक असर पड़ता है। परंपरागत रूप से महिलाएं ही यह तय करती है कि घर का पानी पीने और नहाने के लिए साफ हो। साफ-सफाई की खराब स्थिति से डायरिया, हैजा और टाइफाइड जैसी पानी से संबंधित बीमारियां फैलती हैं पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है। 

लैंगिक भेदभाव की वजह से महिलाएं पानी की उपलब्ध्ता के लिए भेदभाव का सामना करती है। साथ ही जल उपयोगकर्ताओं संघों, सार्वजनिक जल प्रबंधन निकायों और जल समितियों में शामिल नहीं होती है। इस तरह का अंतर जल प्रबंधन के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करता है। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि पानी के क्षेत्र में लैंगिक असमानता को मिटाकर जमीनी स्तर पर बारीकियों के साथ आगे बढा जाए।


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