समाजकैंपस देश की शिक्षा व्यवस्था को कैसे नयी राह देगा चार साल का शिक्षण कार्यक्रम ITEP

देश की शिक्षा व्यवस्था को कैसे नयी राह देगा चार साल का शिक्षण कार्यक्रम ITEP

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ काॅलेज जिनमें कार्यक्रम लागू हो रहा है वहां के शिक्षक इस बात से चिंता में है की ITEP से 1994 से चले आ रहे प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1 से 8) प्रदान करने वाले B.EI.Ed कार्यक्रम को समाप्त कर दिया जाएगा। हालांकि, यह कार्यक्रम दिल्ली विश्वविद्यालय के आठ काॅलेजों में सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है।

साल 2020 में नयी शिक्षा नीति (NEP) ने स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव के कई दावे किए जिनपर देश के तमाम शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालयों की नज़रें बनी हुई हैं। इनमें से एक है, चार सालों एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (Integrated Teacher Education Programme – ITEP) जिससे जुड़ी योजना को आनेवाले वर्षों में देशभर में शुरू किया जाएगा। कार्यक्रम को प्राइमरी स्तर के लिए इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ काॅलेजों में पायलट मोड पर शुरू किया जा रहा है। इसमें माता सुंदरी कॉलेज फॉर वुमन, जीसस एंड मैरी कॉलेज और श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) ने इस साल 2023-24 के लिए ITEP को शुरू करने के लिए मंजूरी दे दी है। यह एक ऐसी डिग्री मानी जा रही है जो नए और बेहतर पाठ्यक्रम के साथ देश के भावी शिक्षकों को तैयार और प्रशिक्षित करेगी।

अभी तक भविष्य में शिक्षक बनने के सपने को साकार करने के लिए ऐसे कई युवा हैं जो अपनी ग्रैजुएशन पूरी करने के बाद दो वर्षीय B.Ed और बाहरवीं पूरी करने के बाद चार साल के (बैचलर ऑफ एलीमेंट्री एजुकेशन) B.EI.Ed. जैसे पाठ्यक्रम में एडमिशन लेते हैं। संभावना है कि ITEP कार्यक्रम शिक्षा के इन परंपरागत पाठ्यक्रमों को प्रतिस्थापित कर लेगा। इस संबंध में NEP 2020 का कहना है कि सालर 2030 तक शिक्षण संस्थानों में चलाया जाने वाला चार साल का एकीकृत B.Ed कार्यक्रम स्कूली शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री की योग्यता बन जाएगा। कहने का मलतब है कि शिक्षण के पेशे में भर्तियां केवल ITEP की डिग्री के माध्यम से ही होगी।

यह युवाओं के लिए ऐसी दोहरी डिग्री होगी जो दोहरे लक्ष्य को पूरा करेगी जिसमें तीन साल की बैचलर डिग्री (BA.B.Ed., B.Com.B.Ed. और  B.Sc.B.Ed. के साथ एक साल की प्रोफेशनल टीचिंग डिग्री शामिल होगी। विशेषज्ञ इस नये पाठ्यक्रम को लेकर दावा कर रहे हैं कि यह कोर्स शिक्षाशास्त्र (टीचिंग पेडागाॅजी) के विषयों जैसे ह्यूमैनिटीज़, विज्ञान और गणित में उच्च गुणवत्ता के शिक्षकों को तैयार करेगा जो कि आज की शैक्षिक ज़रूरतों और कौशल से युक्त होंगे। शिक्षा में ऐसे पाठ्यक्रम की संरचना आम तौर पर होती है जिसके ज़रिये भावी शिक्षकों को विषयों के सभी ज़रूरी कंटेंट के शिक्षाशास्त्र और शिक्षण के मॉडलों का साथ-साथ अभ्यास करवाया जाता है। इसी तरह से दो अध्ययन के क्षेत्रों के बीच इंटिग्रेशन होता है जो B.A.B.Ed., B.Com.B.Ed. और B.Sc.B.Ed. कहलाते हैं।

ITEP जिसके आने से पूरी शिक्षक शिक्षा की व्यवस्था बदलाव के दौर को अनुभव कर रही है। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि बदलाव चाहे किसी भी क्षेत्र में क्यों आए, वे बिना चुनौतियों के नहीं आता। ऐसे में शुरुआती चरण में ही प्रशासन और सरकार द्वारा चुनौतियों को संबोधित किया जाना जरूरी हो जाता है ताकि पूरी व्यवस्था बदलने की नौबत न सके।

NEP-2020 शिक्षक शिक्षा की स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहती है कि आज भी देश के शिक्षकों की शिक्षा की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं है जिसके कारण शिक्षण का पेशा वांछित मानकों में पीछे रह गया है। चार साल के एकीकृत B.Ed कार्यक्रम को इस गुणवत्ता को पूरा करने की संभावना के तौर पर देखा जा रहा है। यह शिक्षण के पेशे में बाहरवीं के बाद गंभीर कैंडिडेट्स का स्वागत करता है। भारत में अक्सर टीचिंग जैसे पेशे को ‘फॉर ग्रांटेड’ लिया जाता है वह भी तब ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद जब स्टूडेंट्स को कोई ऑप्शन नहीं सूझे तो वे बेरोज़गारी से बचने का आसान रास्ता समझ कर टीचिंग प्रोफेशन को गले लगा लेते हैं। जहां कई केस में ‘इंटरेस्ट कम मज़बूरी ज़्यादा’ दिखाई देने लगती है।

इस मज़बूरी के विकल्पों का रास्ता और आसान करने का काम देश में ऐसी शैक्षिक संस्थाएं करती हैं जो विकासशील देश में शिक्षक बनने के मूल्यों को नहीं समझती हैं। संस्थानों की इस वास्तविक छवि के संबंध में NEP-2020 शिक्षक शिक्षा की स्थिति को उजागर करते हुए, अपने दस्तावेज में भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर आलोचनात्मक योगदान देनेवाली साल 2012 की न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा आयोग के एक अवलोकन का हवाला देती है। जे.एस. वर्मा आयोग का कहना था कि स्टैंड-अलोन शिक्षक शिक्षा की संस्थानें शिक्षकों की शिक्षा के प्रति लेशमात्र गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके स्थान पर वे ऊंचे दामों पर डिग्रियां बेच रहे हैं। 

पाठ्यक्रम का स्वरूप

NCTE की अक्टूबर 2021 की अधिसूचना के अनुसार, ITEP ‘बहुविषयक’ विश्वविद्यालयों और संस्थानों में शुरू किया जाएगा। अगर ‘बहुविषयक’ विश्वविद्यालय या संस्थान को जाने तो यह ऐसी शैक्षिक व्यवस्था को दर्शाता है जहां एक से अधिक अनुशासन/विषयों या अध्ययन क्षेत्रों को पढ़ाया जाता है और वहीं इन विषयों के अलग-अलग विभाग भी होते हैं। लेकिन देश में जो वर्तमान स्टैंड-अलोन शिक्षक शिक्षा संस्थान हैं, जो केवल एक ही अध्ययन के क्षेत्र में कोर्स चला रहे हैं। उन्हें ITEP को लागू करने के लिए लंबा इंतज़ार करने की ज़रुरत होगी क्योंकि ऐसी स्टैंड-अलोन संस्थानें ITEP को बहुविषयक माहौल में लागू करने की मांग में फिट बैठते नज़र नहीं आते। इसीलिए अधिसूचना अपने मानदंड में जोड़ती है कि इसे लागू करने के लिए सभी स्टैंड-अलोन शिक्षक शिक्षा संस्थानों को 2030 तक बहु-विषयक संस्थानों में परिवर्तित होना ज़रूरी है। 

बहुविषयक कारक के संबंध में अगर आगे बात की जाए तो NEP-2020 अपने दस्तावेज में, साल 1964-66 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठरी आयोग) के सुझाव को दोहराती नज़र आ रही है। इसके संबंध में कोठरी आयोग के अनुसार,’एकीकृत पाठ्यक्रम को स्टैंड-अलोन शिक्षण शिक्षा संस्थानों की बजाय मज़बूत विभागों वाले विश्वविद्यालयों में पेश किया जाना चाहिए। 

स्कूली शिक्षा की संरचना और ITEP 

यह एक ऐसा विशेषीकृत कोर्स है जो कि शिक्षकों को NEP-2020 में तय की गई नई स्कूली संरचना के अनुसार तैयार करेगा। वर्तमान की मौजूदा 10+2 की स्कूली संरचना को नयी स्कूली संरचना 5+3+3+4 से बदला जाएगा। यह कारक ITEP को लागू करने में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि अभी की 10+2 की संरचना में 3-6 आयु वर्ग के बच्चे को शामिल नहीं किया जाता था। लेकिन नीति में 3 से 6 वर्ष की आयु वर्ग के छोटे बचे जो आंगनवाड़ी या बालवाटिका में दाखिला लेते हैं उन्हें भी नयी संरचना में स्थान दिया गया है। 

NCERT के शिक्षण संस्थानों में भी कुछ ऐसा ही एक शिक्षण पाठ्यक्रम 

अमरीकी माॅडल से प्रभावित होकर, साल 1960 के दशक से NCERT के चार क्षेत्रीय शिक्षण संस्थानों (RIEs) में पहले से चार साल का एकीकृत B.Ed पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है। NCERT के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थानों में भी ऐसा कोर्स विषयगत ज्ञान(डिग्री/स्नातक) के साथ व्यावसायिक ज्ञान(शिक्षण) का समावेशन करता है। हालांकि ITEP के पाठ्यक्रम जारी होने के बाद ही जान सकेंगे कि दोनों पाठ्यक्रमों के स्वरूप किस तरह से एक-दूसरे से अलग हैं। यह केवल दो विषयों B.A.B.Ed.और  B.Sc.B.Ed. में शिक्षण डिग्री प्रदान करता है। इसका उद्देश्य स्कूल के माध्यमिक स्तर के टीजीटी शिक्षकों को तैयार करना है। कोठरी आयोग(1964 – 66) ने इस माॅडल की कमियों को उजागर करते हुए इसे असफल प्रयास बताया था। 

क्या हैं समस्याएं 

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ काॅलेज जिनमें कार्यक्रम लागू हो रहा है वहां के शिक्षक इस बात से चिंता में है कि ITEP से साल 1994 से चले आ रहे प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1 से 8) प्रदान करने वाले B.EI.Ed. कार्यक्रम को समाप्त कर दिया जाएगा। हालांकि, यह कार्यक्रम दिल्ली विश्वविद्यालय के आठ काॅलेजों में सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। काॅलेज के अन्य विभाग के शिक्षकों को भी ITEP के कुछ विषय पढ़ाने का जिम्मा दिया जा रहा है। B.EI.Ed पढ़ा रहे शिक्षकों का मानना है कि इससे उनका शैक्षिक करियर खतरे में आ सकता है। यह समस्या कार्यक्रम के तहत पदों पर भर्ती से संबंधित नियमों कमियों को सामने लाता है।

फिलहाल ITEP की विस्तारपूर्वक पाठ्यक्रम संरचना को अभी NCTE के द्वारा जारी किया जाना बाकी है। NCTE के मुताबिक इसे मई के अंत तक साझा कर दिया जाएगा। लगभग दो वर्ष से ITEP कार्यक्रम का पाठ्यक्रम तमाम शैक्षिक विशेषज्ञों और शिक्षाविदों के समीक्षाओं और सुझावों के साथ तैयार किया जा रहा है। ITEP जिसके आने से पूरी शिक्षक शिक्षा की व्यवस्था बदलाव के दौर को अनुभव कर रही है। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि बदलाव चाहे किसी भी क्षेत्र में क्यों न आए, वे बिना चुनौतियों के नहीं आता। ऐसे में शुरुआती चरण में ही प्रशासन और सरकार द्वारा चुनौतियों को संबोधित किया जाना जरूरी हो जाता है ताकि पूरी व्यवस्था बदलने की नौबत न सके।


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