भारत में महिलाओं का किसी भी पेशे में आना आसान नहीं होता है। अगर महिलाएं किसी तरह लैंगिक असमानता को तोड़ किसी पेशे में आती हैं तो वहां पुरुष प्रधान वातावरण ही पाती हैं। ख़ासतौर पर विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को कई स्तर पर लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके हर क्षेत्र की तरह विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने वाली बहुत सी महिलाएं जो हैं वे वर्तमान पीढ़ी के लिए आदर्श हैं। इन्हीं महिलाओं में से एक नाम हैं डॉ. अदिति पंत। अदिति पंत एक समुद्र विज्ञानी हैं। वह पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने अंटार्कटिका की यात्रा की थीं।
प्रारंभिक जीवन
अदिति पंत का जन्म 5 जुलाई 1943 में नागपुर में स्थित एक मराठी परिवार में हुआ। उनके पिता अप्पा साहेब पंत राजनयिक थे। जिन्होंने भारत सरकार में अपनी सेवा 40 साल दी। उनकी माता का नाम डॉ. नलिनी देवी था जो रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन में फेलो थी। युवावस्था से ही उनकी विज्ञान में रूचि पैदा होनी शुरू हो गई थी। इसकी वजह उन्होंने हमेशा अपने माता-पिता को बताया जो उन्हें प्राकृतिक संसार को जानने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
जब अदिति दस साल की थी तब उनकी माता ने उन्हें चावल, दाल, आलू सब्ज़ी आदि बनाना सिखा दिया था। वह इन सबका उनसे लगातार अभ्यास कराती थी। इस पर वह कहती हैं कि वह अक्सर सोचती हैं कि विज्ञान में करियर होने की यह उनकी नींव थी, इससे उन्हें अपने काम करने के तरीके के पैटर्न समझ आते थे और एक काम को लगातार करके किस तरह से ज्ञान अर्जित किया जा सकता है।
शिक्षा और करियर
उन्होंने विज्ञान में स्नातक डिग्री पुणे विश्वविद्यालय से हासिल की। उसके बाद उन्हें यूएस सरकार से स्कॉलरशिप मिलीं जिससे वह मरीन साइंसेस में परस्नातक करने हवाई विश्वविद्यालय चली गईं। इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस में दिए विवरण के अनुसार अदिति का इतने अलग पेशे को चुनने का श्रेय वह अपने पिता के मित्र द्वारा भेंट की गई किताब “द ओपन सी” को देती है। यह किताब उन्हें स्नातक की पढ़ाई करने के दौरान मिली थी वह तब से ही उससे जुड़ गई। उन्होंने वेस्टफील्ड कॉलेज, लंदन विश्विद्यालय से डॉक्टरेट हासिल की थीं। उनकी थीसिस समुद्री शैवाल के शरीर विज्ञान से जुड़ी थी। वह अपनी शोध के लिए कई स्कॉलरशिप हासिल करने में सफल रही थीं। आगे उन्हें, साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च काउंसिल (एसईआरसी) ग्रांट प्राप्त हुआ।
पीएचडी के दौरान से ही पंत ने काम की तलाश करना शुरू कर दिया था। उन्होंने उस दौरान दो से तीन लैब भी देख ली थी जहां वह काम कर सके। साल 1971-72 में उनकी मुलाकात प्रो. एन. के. पाणिकर से हुई। वह एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, लेखक और नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (एनआईओ) गोवा के डायरेक्टर थे। वहां उनसे चर्चा में यह सवाल उठा कि क्या भारत में हमारी ज़रूरत है?” इस सवाल का जवाब अदिति के लिए प्रोत्साहन और चुनौती दोनों ही साबित हुआ। उन्होंने बड़ी गंभीरता के साथ जवाब देते हुए कहा “मुझे सिर्फ इतना पता है कि वहां उस इंसान के लिए बहुत काम है जिसमें इच्छा शक्ति और हिम्मत है। साथ ही आपको आपके काम के लिए बेहतर वेतन मिलेगा जैसा कही और मिलता।” इसके बाद, उन्होंने पोस्ट डॉक्टरेट और अन्य योजनाओं को छोड़ते हुए साल 1973 में पूल ऑफिसरशिप के लिए आवेदन किया और भारत लौट आईं। अपने फैसले पर उन्होंने कभी खेद नहीं जताया।
साल 1973-76 में एनआईओ में उन्होंने तटीय अध्ययन करने का मौका मिला। उनके साथियों और उन्होंने वाहनों और मछली पकड़ने वाले वाहन (फिशिंग क्रॉफ्ट) से वेरावल से कन्याकुमारी और मन्नार की खाड़ी का तटीय अध्ययन पूरा किया। पंत और उनके साथियों ने ये दौरे समुद्र किनारों पर सोकर गुजारे थे क्योंकि आवास की कोई व्यवस्था नहीं थी। फिर सभी साथी फिर चाहे वो विद्यार्थी हो, वाहन चालक हो, या वैज्ञानिक सभी लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपने काम में लगे रहे।
इसके साथ ही इंडियन अकेडमी ऑफ साइंसेस में दर्ज़ उनके अनुभव से आगे पता चलता है कि वह और उनके साथी कभी खाने और एकांत के लिए परेशान नहीं हुए। उन्होंने हर स्थिति में अपना काम जारी रखा। वह और उनके साथी वही खाते थे जो उन्हें स्थानीय चाय वाले देते थे। अधिकतर भजिया और गुड़ के चाय के सहारे उन्हें रहना पड़ता। इसी से जोड़कर आगे अदिति ने कहती है कि अधिकतर वह टीम में शामिल अकेली महिला हुआ करती थीं इसीलिए स्थानीय गांव वाले ख़ासकर औरतें अपने पतियों या भाईयों को मेरे पास यह पूछने के लिए भेजती कि कहीं कुछ मुझे ज़रूरत तो नहीं? जैसे उनके घरों में गरम पानी से स्नान आदि। यह ख़ास बर्ताव मेरे पुरुष साथियों द्वारा मेरा मज़ाक उड़ाने का भी कारण बनता था जो “महिला वैज्ञानिक” जैसे विषय पर आधारित था।
अंटार्कटिका पर जाने वाली पहली महिला ओशनोग्राफर
एनआइओ का उस समय दस वर्ष का अंटार्कटिक महासागर के अध्ययन का प्रोग्राम था। जिसमें कई विभिन्न विषयों पर काम किया जाना था। जब यह मौका पंत को प्राप्त हुआ उन्होंने दोनों हाथ से इस अवसर का स्वागत किया। दिसंबर 1983 और मार्च 1984 में अदिति पंत ने इतिहास रचा और इस अभियान में शामिल हुई। वह अंटार्कटिका जाने वाली पहली भारतीय महिला ओशनोग्राफर बनीं। पंत का कार्य अंटार्कटिका के खतरनाक और कठोर जलवायु में खाद्य श्रृंखला भौतिकी, रासायनिक और जीव विज्ञान की जानकारी एकत्रित करना था।
इस मिशन के दौरान टीम ने अंटार्कटिका में स्थित पहला भारतीय वैज्ञानिक रिसर्च बेस स्टेशन ‘दक्षिण गंगोत्री’ बनाया था। साल 1984 में समुद्र विज्ञान और भूविज्ञान में अनुसंधान करते हुए अंटार्कटिक के पांचवें अभियान में भी पंत ने हिस्सा लिया था। साल 1990 तक इन्होंने एनआईओ के साथ काम किया। 17 साल काम करने के बाद उन्होंने नैशनल केमिकल लेबोरिटी, पुणे के साथ काम किया।
उपलब्धियां और सम्मान
अदिति पंत की उपलब्धियों की लंबी और बड़ी सूची हैं। उनके नाम पांच पेटेंट दर्ज हैं और 67 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनका प्रकाशन हैं। भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा अंटार्कटिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने यह पुरस्कार अपने सहकर्मियों सुदीप्ता सेनगुप्ता, जया नैथानी और कंवल विल्कू के साथ साझा किया था। वह नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनग्राफी, नैशनल कैमिकल लेबोटरी, पुणे विश्वविद्यालय और महाराष्ट्र एकेडमी ऑफ साइंस में वरिष्ठ पदों पर अपनी सेवा दे चुकी हैं। अदिति पंत हमेशा अपने काम के ज़रिये बंदिशों व रूढ़ियों को तोड़ती हुई अपना नाम इतिहास में दर्ज कराती रहीं।
स्रोतः