आज फूलन देवी का शहादत दिवस है। अभी मणिपुर बलात्कार के घाव ताजे हैं ऐसे में फूलन देवी की बरबस याद आना हमारे लिए और भी प्रसांगिक है। फूलन देवी के साथ जो अन्याय हुआ वह एक ऐसे समाज के सच की बानगी है जो स्त्रियों के साथ कितना क्रूर हो सकता है। अगर हाशिये के समुदाय की स्त्रियों की बात हो तो वह समाज अपनी क्रूरता के चरम पर जा सकता है।
फूलन देवी एक विद्रोही स्त्री थीं समाज में हो रहे अन्याय को लेकर वे बचपन से ही प्रतिरोध करती रहीं। फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के एक गाँव घूरा का पुरवा में दस अगस्त को हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। फूलन एक मेहनती और जुझारू बच्ची थीं। मेहनत-मजदूरी करते परिवार के साथ होते अन्याय के विरोध में वह बचपन से ही जूझ जाती थीं। गाँव में बाल विवाह की कुरीतियों के कारण उनका विवाह दस साल की उम्र में अपने से पैंतीस साल बड़े व्यक्ति से कर दिया जाता है। विवाह के बाद उन्होंने बहुत दिनों तक वैवाहिक बलात्कार की यातना को झेला। ऊपर से एक दस साल की बच्ची के ऊपर घर गृहस्थी के सारे काम का बोझ डाल दिया गया। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलते हुए फूलन बीमार हो गई और एकदम अपने मायके लौट आयीं। मायके में परिवार को फूलन का लौटना सबको नागवार गुजरा। फूलन फिर से ससुराल लौटती हैं। ससुराल पहुंचने पर देखती हैं पति ने दूसरा विवाह कर लिया है। फूलन के विरोध करने पर उसने पीटकर उनको घर से निकाल दिया। मायके और ससुराल दोनों से तिरस्कृत फूलन का जीवन निरूपाय हो गया था ऐसे में उन्होंने जंगल की राह पकड़ी।
वैवाहिक बलात्कार का विरोध और विद्रोह की शुरुआत
कहा जाता है कि इसी बीच, वह डकैतों के गैंग के संपर्क में आई। विद्रोह का वह जीवन उन्हें अच्छा लगने लगा फिर धीरे-धीरे वह बंदूक चलाना भी सीखने लगी। एक लड़की जिसने अब तक अन्याय और यातना का जीवन देखा था अब प्रतिकार की राह देख रही थीं। बताया जाता है कि जंगल में डाकुओं के साथ रहते हुए फूलन एक डाकू विक्रम मल्लाह के करीब आतीं हैं और यहीं से शुरू होता है जीवन का अगला पड़ाव। उनके गिरोह के एक अन्य डाकू की भी नज़र फूलन पर थी। स्त्री पर वर्चस्व को लेकर दोनों में ठन जाती है और बाबू गुर्जर नाम का डाकू मारा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि एक तथाकथित छोटी जाति की लड़की के लिए बाबू गुर्जर की हत्या होना, डाकुओं के एक गिरोह को नागवार गुजरा। वह ठाकुरों का गिरोह था वे इस हत्या के लिए फूलन को दोषी मानते थे। वह फूलन को सजा देना चाहते थे लिहाजा, पहले विक्रम मल्लाह की हत्या करते हैं फिर डाकुओं का वह गिरोह फूलन को अगवा कर लेता है। अपहरण के बाद फूलन को बेहमई गांव ले जाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बेहमई में कई दिनों तक ठाकुरों ने फूलन से बलात्कार किया।बाद में किसी तरह फूलन देवी वहां से भाग निकलती हैं और अपना गिरोह संगठित करके एक दिन बेहमई गाँव आती हैं और बाइस लोगों को एक साथ गोली मार देती हैं। इस घटना से पूरे प्रदेश और देश में हलचल मच गई।
पूरी दुनिया में भी इस घटना पर बात होने लगीं। एक स्त्री के साथ हुई सामूहिक यौन हिंसा पर समाज उस तरह से उद्देलित नहीं होता जिस तरह से उस सामूहिक नरसंहार से हुआ लेकिन एक सवाल वहां से भी उठा कि क्या ये इतनी हत्याएं महज बलात्कार के कारण हुई। बकौल अरुंधति रॉय, “अगर बलात्कार के कारण फूलन देवी का जन्म होता तो देश में हजारों फूलन देवियां घूम रही होतीं। यह वास्तव में ‘पुरुषवादी संस्कृति’ की पैदाइश है। जाति, जमीन, औरत, मर्द सब कुछ समेटे हुए है फूलन देवी की कहानी।”
लेकिन बलात्कार का अपराध भी इस नरसंहार का कारण हो सकता है क्योंकि अगर तथ्यों की माने तो एक बच्ची जिसने बचपन से बलात्कार झेला हो और देख रही हो कि समाज किस तरह से बलात्कार की पीड़ा को नजरअंदाज करता है तो उसका गुस्सा उसका प्रतिरोध सब कहीं न कहीं अवचेतन में जम गया होगा और जब उसे ताकत मिलती है तो वह एकबार साहस कर सकती है कि समाज मे ये संदेश जाए कि स्त्रियों को बलात्कार से कितनी घृणा है। अरुंधती राय के सवाल को मैं एकदम खारिज नहीं कर रही हूं लेकिन बलात्कार के अपराध के विरोध में स्त्रियों ने दुनिया भर में बहुत अलग-अलग तरह से प्रतिरोध किया है। खासकर हाशिये के वर्ग की स्त्रियों ने जनजातीय और आदिवासी स्त्रियों ने कपड़े उतार कर इस बलात्कार के जघन्य अपराध का विरोध किया है।
समाजशास्त्री या चिंतक फूलन देवी के इस हिंसक कदम को वर्चस्व की लड़ाई भी कह सकते हैं लेकिन यौनिकता के दमन का प्रश्न इतना सपाट नहीं है। ऐसा भी देखा जाता है कि ज्यादातर स्त्रियां अपने साथ हुए ब्लात्कार की घटना को लेकर उस तरह विरोध नहीं कर पातीं लेकिन वह एक दूसरी ज़मीन होती हैं जहां भूख की यातना सारी संवेदना पर भारी हो जाती है। कई बार हाशिये के जीवन में मनुष्य की संवेदना को इतना तहस-नहस किया जाता है कि संवेदना के बहुत से नाजु़क तंतु टूटकर नष्ट हो जाते हैं। लेकिन फूलन जिस समुदाय और जमीन से आतीं थी वहां जीवन की गरिमा थीं बचपन से उस गरिमा को भले मलिन किया गया लेकिन उस गरिमा की समझ और मनुष्य होने की समझ उनमें जरूर थी।
मैं फूलन देवी के जीवन का अध्ययन करते हुए देख पाती हूं कि शायद विक्रम मल्लाह वह पहला पुरुष रहा होगा जिसे फूलन ने प्रेम किया होगा क्योंकि इसके पहले सारे पुरुष उसे मनुष्य न समझकर एक वस्तु समझते थे। जिस पुरूष ने उसे मनुष्य समझा, अपना साथी बनाया, प्रेम किया तो उसकी हत्या की पीड़ा भी फूलन की आत्मा में धंसी होगी। फिर लंबे समय तक सामूहिक बलात्कार की पीड़ा का दंश था ही। सब मिलकर एक अपार क्रोध की आग भी बन गये थे तो ऐसे में अगर चेतना चैतन्यता भी सक्रिय हो जाए तो इसी तरह का वीभत्स प्रतिकार जन्म ले लेता है।
आत्मसमर्पण और राजनीतिक सफ़र की शुरुआत
फूलन देवी के पूरे जीवन के घटना क्रम का अवलोकन किया जाए तो वह एक जीवन से भरी हुई हंसती-मुस्कुराती संवेदनशील स्त्री का जीवन था। एक सामान्य जीवन जीने की चाह थी उनमें और बाद में आत्मसमर्पण करने की वजह भी वही बना। ग्यारह साल की सजा झेलने के बाद उनकी राजनीतिक जीवन की शानदार पारी शुरू होती है और बाद में उनकी हत्या हो जाती है। लेकिन उस हत्या का भी संबंध कहीं न कहीं बलात्कार के अपराध से जुड़ा था। फूलन देवी ने बरसों पहले जिन बलात्कारियों की हत्या की थी उनकी हत्या करने वाला शेर सिंह राणा उन्हीं बलात्कारियों के लिए बदला लेने आया था।
लोकगीतों के ज़रिये फूलन की दास्तां
यहां एक स्त्री का सारा जीवन अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष करते खत्म होता है लेकिन उस लड़ाई की छाप जनमानस के मन में छप गयी थी। आज भी उत्तर प्रदेश के जिलों के गाँव-जवार में लोग फूलन देवी के जीवन को क़िस्सों की तरह कहते हैं। अपने गीतों में गाते हैं। गाँव में उनके जीवन-गाथा पर नौटंकी के खेल होते हैं। बिरहा के गीत उन पर खूब बने हैं। उसके कैसेट के गीत गाँव में बजाए जाते हैं। मंच पर फूलन देवी के जीवन को लेकर खूब जबाबी-बिरहा-लोकगीत गाए जाते हैं।
लोक के जनजीवन मे ख़ासकर अन्य पिछड़े वर्गों की जातियों में फूलन देवी के जीवन-गाथा को शौर्य गाथा की तरह सुना जाना जनमन में उस लड़ाई की स्वीकार्यता और सम्मान है। उस समाज ने तथाकथित ऊंची जाति के लोगों की क्रूरता को खूब झेला है और फूलन की लड़ाई को वह अपनी लड़ाई मानते हैं। वहां का जनमानस फूलन देवी के प्रतिकार को शहरी सभ्य समाज की तरह हिंसा नहीं मानता उसे न्याय की लड़ाई मानता है और ये एक स्वीकार्यता है फूलन देवी की उस लड़ी गई लड़ाई के लिए।
आज जब समाज में स्त्रियों के साथ एक से बढ़ कर एक हिंसा हो रही है तो फूलन देवी याद आती हैं। फूलन देवी ने उत्तर भारत में नारी सशक्तीकरण की जो एक बुनियाद बनाई वह अविस्मरणीय रहेगी। उन्होंने समाज में हमेशा से होते आ रहे अत्याचार का प्रतिकार किया और एक संदेश दिया कि स्त्री के साथ बलात्कार करना कितना भयावह हो सकता है। हाशिये के समुदाय के स्त्रियों के लिए ही नहीं आज वह सारी स्त्रियों के लिए महानायिका हैं।
यह बात कहते हुए यहां किसी हिंसा का महिमाण्डन नहीं है लेकिन उनकी लड़ाई या उनके उस गुस्से को जो घृणित कहते हैं वे मनुष्य खुद को फूलन की जीवन परिस्थितियों में रखकर नहीं देख पाते। फूलन के प्रतिशोध को लोक ने जिस तरह की स्वीकार्यता दी उसमें एक सांस्कृतिक न्याय का रूप भी दिखता है। अगर लोक के समाज की कलाओं में और अभिजात कलाओं जैसे सिनेमा साहित्य आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो मिलता है कि लोक ने ज्यादा अपनेपन से फूलन को अपनाया है। फूलन के जीवन को लेकर साहित्य कला सिनेमा और लोकगीतों की विधा में उत्कृष्ट कार्य हुए हैं।
अपने आत्मसमर्पण के बाद जेल से छूटने पर फूलन देवी का राजनीतिक जीवन शुरू होता है जिसमें रहकर उन्होंने कुछ बेहतर करने का प्रयास किया लेकिन जैसा कि हमेशा से होता आ रहा है लड़ाई की जमीन तो वहां जाकर उनसे छूट ही गई। लेकिन उनके उस जीवन का किया गया संघर्ष अकारथ नहीं गया। उनकी हत्या भी उन्हीं सामंती ताक़तों द्वारा होती है लेकिन फूलन की हत्या करके भी वह उस लड़ाई की राह को नहीं खत्म कर पाए। वो कहीं न कहीं लोगों के दिलों में जन्म ले लेती है। वहां से उठी चेतना नया मनुष्य पैदा कर देती है और न्याय की लड़ाई की मशाल किसी नयी जगहों पर किसी नये रूप में जलती है। वह लड़ाई इस लड़ाई से आगे की लड़ाई होती है। जब तक ये समाज जाति-वर्ग विहीन समाज नहीं बन जाता तब तक ये लड़ाई चलती रहेगी।