समाजख़बर रोक के बावजूद क्यों देवदासी जैसी जातिवादी प्रथा के तहत जारी है औरतों का शोषण

रोक के बावजूद क्यों देवदासी जैसी जातिवादी प्रथा के तहत जारी है औरतों का शोषण

देवदासियों से मंदिर और उसके अधिकारियों के सामने नाचने-गाने का काम भी कराया जाता है। इस दौरान देवदासी लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न किया जाता है। मंदिरों में धार्मिक प्रथाओं के नाम पर यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के नाम पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हाल में एक नोटिस जारी किया है।

तमाम कानून और प्रावधानों के बावजूद धार्मिक प्रथाओं के नाम पर आज भी महिलाओं को गुलाम बनाकर उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन किया जा रहा है। रोक के बावजूद देश के कई हिस्सों में देवदासी प्रथा का अभी भी चलन बना हुआ है। देवदासी प्रथा के नाम पर छोटी लड़कियों को मंदिर में सौंप दिया जाता है। इस प्रथा में नाबालिग लड़कियों को देवदासी बनाने के लिए किसी भी मंदिर में देवता से उसकी शादी करवा दी जाती है। इसके बाद लड़की अपना पूरा जीवन मंदिर के काम और उत्पीड़न का सामना करते हुए बिताती हैं। देवदासियों से मंदिर और उसके अधिकारियों के सामने नाचने-गाने का काम भी कराया जाता है। इस दौरान देवदासी लड़कियों का पुजारियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। मंदिरों में धार्मिक प्रथाओं के नाम पर यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के नाम पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हाल में एक नोटिस जारी किया है।

द प्रिंट में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और छह राज्यों को नोटिस जारी कर विशेष रूप से भारत के दक्षिणी हिस्सों में देवदासी प्रथा को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है। एनएचआरसी ने कहा है कि इस मुद्दे पर उसने खुद मीडिया रिपोर्ट्स से संज्ञान में लिया है। आयोग ने कहा है कि देवदासी प्रथा को रोकने के लिए अतीत में कई कानून बनाए गए हैं लेकिन यह कुरीति अभी भी चलन में है।

आयोग ने कहा है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ देवदासी प्रथा की अधिकतर सर्वाइवर गरीब परिवार और अनुसूचित और अनुसूचित जनजाति से ही आती हैं। आयोग ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय समेत कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलगांना और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया है। आयोग ने इनसे छह हफ्तों में विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा है। साथ ही सरकारों से देवदासी प्रथा को रोकने और उनके पुनर्वास के लिए क्या कदम उठाए गए हैं इसकी जानकारी भी मांगी गई है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और छह राज्यों को नोटिस जारी कर विशेष रूप से भारत के दक्षिणी हिस्सों में देवदासी प्रथा को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है। आयोग ने कहा है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ देवदासी प्रथा की अधिकतर सर्वाइवर गरीब परिवार और अनुसूचित और अनुसूचित जनजाति से ही आती हैं।

देवदासियों की संख्या

भले ही भारत में देवदासी प्रथा पर रोक लगी हुई हो बावजूद इसके कई राज्यों में देवदासी की बहुत ज्यादा संख्या है। कथित तौर पर अकेले कर्नाटक में 70,000 महिलाएं देवदासी प्रथा में अपना जीवन जी रही हैं। यह स्थिति तब है जब कर्नाटक देवदासी (प्रोहिबेशन ऑफ डेडिकेशन) ऐक्ट, 1982 के तहत लड़कियों का मंदिर में समर्पण अवैध है। जस्टिस रघुनाथ राव की अध्यक्षता में गठित आयोग के अनुसार तेलगांना और आंध्र प्रदेश में 80,000 देवदासी हैं।

दलित सामाजिक कार्यकर्ता रूथ मनोरमा का कहती है, “देवदासी प्रथा दलित महिलाओं के ख़िलाफ़ एक संगठित अपराध है। धर्म, गरीबी और अशिक्षा की वजह से बड़ी संख्या में अनुसूचित और अनुसूचित जनजाति की लड़कियों को छोटी उम्र में देवदासी बना दिया जाता था।”

द स्क्रोल वेबसाइट के लेख में नैशनल कमीशन ऑफ वीमन के मुताबिक साल 2006 में 44,000 से 2,50,000 देवदासी भारत में थीं। साल 2015 की एक ग़ैर-सरकारी संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में लगभग 4,50,000 देवदासी थीं। सबसे ज्यादा देवदासियां कर्नाटक में उसके बाद आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में हैं। द गार्डियन के मुताबिक साल 1988 से संपूर्ण भारत में इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया गया था। मंदिर ने भी सार्वजनिक रूप से उन्हें खुद से अलग कर लिया था।

देवदासी और जातिवाद

मानवाधिकार आयोग ने अपने नोटिस में कहा है कि दलित महिलाएं इस कुरीति से बड़ी संख्या में प्रभावित है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में दलित सामाजिक कार्यकर्ता रूथ मनोरमा का कहना है, “देवदासी प्रथा दलित महिलाओं के ख़िलाफ़ एक संगठित अपराध है। धर्म, गरीबी और अशिक्षा की वजह से बड़ी संख्या में अनुसूचित और अनुसूचित जनजाति की लड़कियों को छोटी उम्र में देवदासी बना दिया जाता था।”

ग़ैर-सरकारी संगठन संपर्क की रिपोर्ट के मुताबिक देवदासी प्रथा में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रिपोर्ट में बैलगावी (कर्नाटक), महबूबनगर (तेलगांना) और सोलापुर (महाराष्ट्र) राज्यों के जाति के आधार पर किए अध्ययन के मुताबिक तीनों राज्यों में देवदासी प्रथा में अधिक संख्या दलित समुदाय की महिलाओं की है। बैलगावी में अध्ययन में शामिल 100 प्रतिशत महिलाएं दलित समुदाय से संबंध रखती थीं।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित ख़बर के अनुसार कर्नाटक के विजयनगर के हुडलिगे ताल्लुका में 120 गांव आते हैं। इन गांवों में ही करीब तीन हजार पूर्व देवदासियां हैं। 90 फीसदी देवदासी अनुसूचित जनजाति से ही आती हैं। ब्राह्मण और तथाकथित अन्य उच्च जातियों की लड़कियां देवदासी नहीं बनाई जाती। 

अधिकतर महिलाएं देवदासी बनने के बाद पहली रात में ही बलात्कार का सामना करती हैं। बड़ी संख्या में देवदासी महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं। बच्चे के जन्म के बाद उनके बच्चों को समाज में न ही स्वीकृति मिलती है और न ही उनके कल्याण के लिए कोई योजनाएं बनाई जाती हैं।   

यौन हिंसा की सर्वाइवर्स देवदासियों को कब मिलेगा न्याय

छोटी उम्र में भगवान से शादी के बाद मंदिर में रहना और पुजारी की सेवा करने के नाम पर देवदासी बनी लड़कियों को यौन हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के अनुसार देवदासी प्रथा में शामिल लड़कियों को कुपोषण, कठिन परिश्रम और एचआईवी तक का सामना करना पड़ता है। अधिकतर महिलाएं देवदासी बनने के बाद पहली रात में ही बलात्कार का सामना करती हैं। बड़ी संख्या में देवदासी महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं। बच्चे के जन्म के बाद उनके बच्चों को समाज में न ही स्वीकृति मिलती है और न ही उनके कल्याण के लिए कोई योजनाएं बनाई जाती हैं।   

भले ही भारत में देवदासी प्रथा पर रोक लगी हुई हो बावजूद इसके कई राज्यों में देवदासी की बहुत ज्यादा संख्या है। कथित तौर पर अकेले कर्नाटक में 70,000 महिलाएं देवदासी प्रथा में अपना जीवन जी रही हैं। यह स्थिति तब है जब कर्नाटक देवदासी (प्रोहिबेशन ऑफ डेडिकेशन) ऐक्ट, 1982 के तहत लड़कियों का मंदिर में समर्पण अवैध है। 

न्यूजक्लिक में प्रकाशित ख़बर के अनुसार नैशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) के 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक़ देवदासी परंपरा को कई राज्यों में परिवारों से प्रथागत मंजूरी मिल रही है और हर साल महिलाओं को मंजूरी के तहत इस प्रथा में शामिल किया जाता है। अध्ययन के अनुसार इसमें शामिल होने वाली 92 फीसदी लड़कियां नाबालिग थीं। 74 फीसदी महिलाओं ने 18 साल की उम्र से पहले पहला यौन संबंध बनाया था। 62 प्रतिभागियाों में से 41 उन परिवारों से ताल्लुक रखती हैं जिनके परिवार की अन्य महिला को भी प्रथा में शामिल किया गया था और 20 देवदासियों की बेटियां थीं। 

देवदासी प्रथा और कानून

साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को देवदासी प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए थे। भारत के कई राज्यों में देवदासी प्रथा की रोकथाम के लिए कानून का प्रावधान भी है जो इस निम्नलिखित हैं: 

  • बॉम्बे देवदासी प्रोटेक्शन ऐक्ट, 1934
  • मद्रास देवदासी (प्रिवेनशन ऑफ डेडीकेशन) ऐक्ट, 1947
  • कर्नाटक देवदासी (प्रोहिबेशशन ऑफ डेडीकेशन) ऐक्ट,1982
  • आंध्र प्रदेश देवदासी ((प्रोहिबेशशन ऑफ डेडीकेशन) ऐक्ट,1988
  • महाराष्ट्र देवदासी (ऐबलिशन ऑफ डेडीकेशन) ऐक्ट, 2006
  • जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट, 2015  

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