इतिहास लीज़ा माइटनरः 46 बार नामांकन के बावजूद जिन्हें कभी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला

लीज़ा माइटनरः 46 बार नामांकन के बावजूद जिन्हें कभी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला

डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के बाद बर्लिन पहुंची। साल 1907 में उन्होंने बर्लिन में मैक्स प्लांक लेक्चर का हिस्सा बनीं। उस समय मैक्स प्लांक अपने लेक्चर में महिलाओं को शामिल नहीं करते थे। वहां वह हेन के साथ रेडियोएक्टिविटी से जुड़े शोध का हिस्सा बनीं। लीज़ा के लिए यह सफ़र इतना आसान नहीं था।

लीज़ा माइटनर 20वीं सदी की उन शुरुआती महिला वैज्ञानिकों में से एक थीं जिन्होंने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में काम किया। विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक रूढ़िवाद और राजनीति के चलते उनके योगदान को नजरअंदाज किया गया। वह वियना की पहली महिला थीं जिसने विज्ञान की पढ़ाई की। न्यूक्लियर फिज़न, जिसके आधार पर परमाणु बम को बनाया गया, उसकी खोज लीज़ा माइटनर ने की थी। पितृसत्ता से जूझकर अपने लिए इन्होंने अपना वैज्ञानिक बनने का सपना पूरा किया और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान देने के साथ अपने आगे की पीढ़ियों में महिलाओं के लिए रास्ता बनाया। परमाणु बम बनाने में इनकी कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन फिर भी इन्हें “परमाणु बम की जननी” कहा गया जो इन्हें बिलकुल पसंद नहीं था।

हाल ही में इस साल के फिज़िक्स, केमिस्ट्री और साहित्य समेत कई क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नामों की घोषणा की गई। इसी बीच न्यू यॉर्क टाइम्स ने लीज़ा माइटनर पर एक लेख प्रकाशित किया। लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि न्यूक्लियर फिज़न जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांत की खोज करने वाली लीज़ा माइटनर को एक महिला होने और अन्य पहचान के कारण 27 बार फिज़िक्स के क्षेत्र में और 19 बार केमिस्ट्री के क्षेत्र में नामाकंन के बावजूद नोबेल नहीं मिला। अपना पूरा जीवन विज्ञान को समर्पित करने के बाद भी उन्हें कोई ख़ास पहचान या मान्यता नहीं मिली।

हान ने जल्द ही उन्हें अपने साथ काम करने के लिए कहा लेकिन एक महिला होने नाते उन्हें प्रयोगशाला में जाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए उन्होंने बिना वेतन के काम किया। उन्होंने बेसमेंट में अपना आगे का काम किया और जब भी उन्हें रेस्ट रूम में जाना होता तो वह सड़क पार करके जाना होता था।

बचपन और पढ़ाई

लीज़ा माइटनर का जन्म 7 नवंबर 1878 को ऑस्ट्रिया के वियना में हुआ था। वह अपने माता-पिता की आठ संतानों में से तीसरे नबंर की थी। इनके पिता फिलिप माइटनर और माता हैडविंग थी। उन्होंने भौतिक विज्ञान की पढ़ाई प्राइवेट करनी शुरू थी क्योंकि 1897 तक ऑस्ट्रिया में महिलाओं को कॉलेज जाने की अनुमति नहीं थी। साल 1901 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ वियना में ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया और पांच साल बाद उन्होंने भौतिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। वह अपनी यूनिवर्सिटी में ऐसा करने वाली दूसरी महिला थीं। डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के बाद बर्लिन पहुंची। साल 1907 में उन्होंने बर्लिन में मैक्स प्लांक लेक्चर का हिस्सा बनीं। उस समय मैक्स प्लांक अपने लेक्चर में महिलाओं को शामिल नहीं करते थे। वहां वह हान के साथ रेडियोएक्टिविटी से जुड़े शोध का हिस्सा बनीं। लीज़ा के लिए यह सफ़र इतना आसान नहीं था। पितृसत्तात्मक सोच की वजह से बर्लिन में महिलाओं के लिए विज्ञान के क्षेत्र में काम करने के योग्य नहीं माना जाता था।

हेनरिक क्यूबन्स नामक एक प्रोफेसर से जब लीज़ा ने पूछा कि क्या वह किसी प्रयोगशाला में काम कर सकती हैं, तो क्यूबन्स ने उन्हें एक अस्थायी प्रयोगशाला में शोध करने का सुझाव दिया। ऑटो हान, जो एक रासायनिक वैज्ञानिक थे उनसे लीज़ा की पहली मुलाकात इसी प्रयोगशाला में हुई। जो एक उस समय के वैज्ञानिकों के मुकाबले प्रगतिशील सोच रखते थे और महिलाओं के साथ काम करते थे। हान ने जल्द ही उन्हें अपने साथ काम करने के लिए कहा लेकिन एक महिला होने नाते उन्हें प्रयोगशाला में जाने की अनुमति नहीं थी। इसलिए उन्होंने बिना वेतन के काम किया। उन्होंने बेसमेंट में अपना आगे का काम किया और जब भी उन्हें रेस्ट रूम में जाना होता तो वह सड़क पार करके जाना होता था।

तस्वीर साभारः Atomic Archive

1938 में ऑस्ट्रिया पर जर्मनी के शासन के बाद उन्हें वहां से जाना पड़ा। नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर ने उनके लिए वहां निकलने के लिए ट्रेन का इंतजाम किया था। इसके बाद वह स्वीडन चली गई वहां जाकर भी उन्होंने अपना काम जारी रखा। वह मेल के जरिये हान के संपर्क में रही। स्टॉकहोम में उनकी स्थायी नौकरी लग रही थी और वही सबसे अच्छा विकल्प लगा इसलिए उन्होंने इसे स्वीकार किया। उन्होंने स्टॉकहोम के मैने सीगबहन संस्थान के साथ अपने काम को जारी रखा। हालांकि विज्ञान में महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह के कारण वहां उन्हें कम समर्थन मिला।

न्यूक्लियर फ़िज़न की खोज

हान और माइटनर नवंबर में कोपेनहेगन में गुप्त रूप से मिले, जिसका उद्देश्य नए प्रयोग को प्लान करना था। न्यूक्लियर फिज़न का प्रमाण देने वाले प्रयोग हान के बर्लिन की प्रयोगशाला में किए गए और जनवरी 1939 में प्रकाशित हुए। फरवरी 1939 में, माइटनर ने उन अवलोकनों के भौतिक व्याख्यान को प्रकाशित किया और अपने भतीजे, भौतिक वैज्ञानिक ऑटो फ्रिश के साथ, इस प्रक्रिया को “न्यूक्लियर फिज़न” के रूप में नामांकित किया। यह खोज अन्य वैज्ञानिकों को प्रेरित करने के लिए बनी इसके आगे परिणाम को लेकर चेतावनी भी दी गई। इसके बाद मैनहटन प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। इस गुप्त परियोजना में परमाणु बम बनाने के लिए एक बड़ी टीम काम कर रही थी जिससे बहुत लोग जुड़े थे। बहुत कम समय में इन शोधकर्ताओं ने एक सिद्धांत को क्रियाशील बम में तब्दील कर दिया, जिसमें 21 किलोटन की विस्फोटक शक्ति थी।

1938 में ऑस्ट्रिया पर जर्मनी के शासन के बाद उन्हें वहां से जाना पड़ा। नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर ने उनके लिए वहां निकलने के लिए ट्रेन का इंतजाम किया था। इसके बाद वह स्वीडन चली गई वहां जाकर भी उन्होंने अपना काम जारी रखा।

1944 में, हान को केमिस्ट्री में फ़िज़न के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ, लेकिन माइटनर और उनकी भूमिका को अनदेखा किया गया। मूल रूप से इसलिए कि हान ने उसकी भूमिका को जर्मनी छोड़ने के बाद से हल्का किया था। हान को लिखे पत्र में उन्होंने परमाणु बम और उनको परमाणु बन की जननी के रूप पुकारने पर दुख जाहिर किया। उन्होंने लिखा था, “मैं ऐसा कभी नहीं चाहती थी। मुझे नहीं पता कि बम कैसा दिखता है, मैं यह भी नहीं जानती कि यह कैसे काम करता है।“

1945 में उनके काम की अमेरिका में सराहना की गई। राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के साथ होने भोज के लिए निमत्रंण मिला। महिला प्रेस क्लब में उनके काम के बारे में बात की गईं। लैंगिक भेदभाव की वजह से लीजा माइटनर को भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में हमेशा उस पहचान और सम्मान से दूर रखा गया जिसकी वह हकदार थी। लीज़ा माइटनर ने अपने 70 और 80 का दशक यात्रा में गुजारा और महिलाओं को विज्ञान से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। अपने जीवन के आखिर समय उन्होंने कैम्ब्रिज इंग्लैड में अपने भतीजे के साथ बिताया। 27 अक्टूबर 1968 में उनकी मृत्यु हुई। 


 

स्रोतः

  1. Wikipedia
  2. Britannica 
  3. Jwa.org
  4. The New York Times

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