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मातृत्व स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं में बजट की कमी क्या ले रही है महिलाओं की जान

देश में मातृत्व मृत्यु दर में 75% की गिरावट दर्ज की गई। भारत में असम में सबसे ज्यादा मातृत्व मृत्यु दर 195 है और केरल में सबसे कम 19 है।

उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर की रहनेवाली नीशू ने हाल ही में एक बच्ची को जन्म दिया है। यह उनका दूसरा बच्चा है। इससे पहले उन्होंने अपने पहले बच्चे को जन्म के तुरंत बाद खो दिया था। गर्भावस्था के समय को याद करते हुए उनका कहना था, “जैसे-जैसे दिन नज़दीक आते रहे मुझे डर लगता रहा। पिछली बार बस मरती-मरती बची थी। डॉक्टर ने साफ कह दिया था कि माँ की हालात खतरे में है और उसी का असर मेरे बच्चे पर पड़ा था। आखिर में प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। वैसे ऐसा लगता है कि पूरे समय ही ऐसा रहा। घर पर तो मशीन नहीं है जिस वजह से रोज चेक कर पाएं। वैसे भी घर में गर्भावस्था मे ये सब तो होता ही कहकर औरतों की हर छोटी-मोटी परेशानी को नकार भी दिया जाता है।”

आज नीशू और उनकी बच्ची स्वस्थ है लेकिन दुनिया में बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं जीवन में ऐसा समय नहीं देख पाती हैं। भारत वह देश है जहां हर दिन गर्भावस्था या प्रसव के दौरान लगभग 66 महिलाओं की मौत हो जाती है। देश में हर साल गर्भावस्था और प्रसव के दौरान 24,000 महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं। नाइजीरिया के बाद भारत दुनिया का दूसरा देश है जहां गर्भावस्था या प्रसव के दौरान इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं की मौत होती है। 

हर दो मिनट में होती है एक महिला की मौत 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ट्रेन्ड्स मैटरनल मोर्टेलिटी 2000-2020 के अनुसार दुनिया में हर दो मिनट में एक महिला की गर्भावस्था या चाइल्डबर्थ की वजह से मौत हो जाती है। साल 2020 में दुनियाभर में कुल 2,87,000 मातृत्व मृत्यु दर्ज की गई। इस रिपोर्ट में साल 2000 से लेकर 2020 तक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर होनेवाले मातृत्व मृत्यु से जुड़े आंकड़ों को ट्रैक किया गया है। मातृत्व मृत्यु की दर में कमी केवल साल 2016 के समय थोड़ी कमी देखी गई जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्य लागू हुए थे। सतत विकास लक्ष्यों के तहत दुनिया के सभी देशों में साल 2030 तक मातृ मृत्यु  को 70 पर लाने का लक्ष्य रखा गया था। रिपोर्ट में जारी आंकड़े दिखाते हैं कि दुनिया के गरीब हिस्सों में मातृत्व मृत्यु की दर अधिक है। ज्यादा मानवीय संकटों का सामना करने वाले नौ देशों में यह दर दुनिया के औसत से दोगुनी है। भारत में मातृत्व मृत्यु की यह दर 8.3 प्रतिशत है। 

तस्वीर साभारः Unicef

दो दशक में भारत में मातृत्व मृत्यु में गिरावट

अगर भारत सरकार के आंकड़े की बात करें तो देश में मातृत्व मृत्यु दर में पिछले दो दशक में सुधार हुआ है। मातृत्व मृत्यु दर 2014-16 में 130 प्रति लाख जीवित जन्म से घटकर 2018-20 में 97 पर पहुंच गई। जानकारी के लिए बता दें कि मातृ मृत्यु की गणना प्रति लाख जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु के आधार पर की जाती है। देश में मातृत्व मृत्यु दर में 75% की गिरावट दर्ज की गई। भारत में असम में सबसे ज्यादा मातृत्व मृत्यु दर 195 है और केरल में सबसे कम 19 है। यह आंकड़ा जारी करते समय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने इसका श्रेय केंद्र सरकार की मौजूदा नीतियों को दिया था। यहां गौर करने वाली बात यह है कि गिरावट दर्ज होने के बावजूद अभी भी भारत में होने वाली मातृ मृत्यु का आंकड़ा दुनिया में दूसरे नंबर पर है।

आज भी महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधाओं की सीमित पहुंच बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से कहा गया है कि सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर की सुविधाएं कम फंडिंग, प्रशिक्षित डॉक्टर की कमी और चिकित्सा उत्पादों की आपूर्ति में कमी लगातार बनी हुई है। इस वजह से बड़ी संख्या में गर्भावस्था के पूरे समय में उन तक सुविधाएं तक नहीं पहुंचती हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और उनको पूर्ण रूप से लागू करने की अनिच्छा हर दिन महिलाओं की मौत की वजह बन रहा है। 

मातृत्व कल्याणकारी योजनाएं और बजट की कमी

भारत में महिलाओं, बच्चों और किशोरों की स्वास्थ्य ज़रूरतों को बेहतर करने पर राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं चल रही है। इनमें से कुछ घोषणाएं शुरू होने के साथ से ही कम बजट की समस्या का सामना कर रही है। ओआरएफ में छपी जानकारी के मुताबिक़ प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) साल 2017 की शुरुआत से ही फंड की कमी का सामना कर रही है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ट्रेन्ड्स मैटरनल मोर्टेलिटी 2000-2020 के अनुसार दुनिया में हर दो मिनट में एक महिला की गर्भावस्था या स्टिलबर्थ की वजह से मौत हो जाती है। साल 2020 में दुनियाभर में कुल 2,87,000 मातृत्व मृत्यु दर्ज की गई। इस रिपोर्ट में साल 2000 से लेकर 2020 तक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर होनेवाले मातृत्व मृत्यु से जुड़े आंकड़ों को ट्रैक किया गया है।

ठीक इसी तरह हाल के बजट में पोषण से संबंधी योजनाओं में मामूली बढ़त हुई है। आंगनवाड़ी सेवा योजना, पोषण अभियान और किशोरियों से जुड़ी तीनो योजनाएं के लिए 20,554 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। ये योजनाएं किशोरी, गर्भवती महिलाओं के पोषण से जुड़ी हुई हैं। महिलाओं की स्वस्थ और सुरक्षित गर्भावस्था के लिए उसके लिए पोषण युक्त आहार मिलना बहुत आवश्यक है। गरीबी, निम्न आय की वजह से बड़ी संख्या में लोग इन योजनाओं पर आश्रित हैं। लेकिन जब सरकारी कल्याण की योजनाएं शुरुआत से ही बजट की कमी का सामना करेंगी तो ऐसे कैसे मातृत्व कल्याणकारी योजनाएं महिलाओं का कल्याण कर पाएंगी।

क्यों महिला स्वास्थ्य नीतियों में निवेश करना ज़रूरी

मातृत्व स्वास्थ्य और महिलाओं के जीवन को बचाने के लिए कई और कदम उठाने की ज़रूरत है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की इस साल की सालाना बैठक में कहा गया कि लंबे समय से महिलाओं और उनके परिवारों की अधूरी स्वास्थ्य और शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक ज़रूरतों को ऐसे ही छोड़ दिया जा रहा है। महिलाओं की ज़रूरतों को व्यक्तिगत विषय के तौर पर देखने की प्रवृति को बदलना होगा। पूरे समाज के कल्याण के लिए महिलाओं के स्वास्थ्य पर निवेश करना बहुत ज़रूरी है। महिलाओं के स्वास्थ्य पर निवेश करने का अर्थ है कि परिवार और उसके समुदाय पर निवेश करना।

एक अनुमान के अनुसार महिलाओं पर 300 मिलियन का निवेश 13 बिलियन का इकोनॉमिक रिटर्न दे सकता है। परिवार नियोजन की सुविधाओं पर खर्च की गई राशि का एक डॉलर भी समाज में स्वास्थ्य और आर्थिक लाभों में 120 डॉलर पैदा करता है। मातृत्व मृत्यु की अधिक दर सकल घरेल उत्पाद पर नकारात्मक असर डालती है। महिलाओं के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाले समाज में सबसे ज्यादा कल्याण होता है। मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए और महिलाओं के जीवन के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी भी बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है। ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों तक नीतियों के विस्तार करने और उसमें ज्यादा निवेश करने की ज़रूरत है। 


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