समाजविज्ञान और तकनीक साल 2023 में विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में योगदान देने वाली महिलाएं

साल 2023 में विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में योगदान देने वाली महिलाएं

जानकी अम्माल, असीमा चटर्जी, अन्ना मणि जैसी कई महिला वैज्ञानिकों ने भी विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्ण योगदान दिए हैं। लेकिन यह रास्ता इनके लिए आसान नहीं रहा है। आज भी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के नाम इस तरह प्रचलित नहीं हुए हैं, जैसेकि पुरुषों के नाम। समाज के पितृसत्तात्मक रवैये के कारण न उन्हें उस तरह की पहचान मिल पाई और न ही वैसा सम्मान जिसके ये हकदार थे।

जब भी हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में विज्ञान और प्रौद्योगिकी या वैज्ञानिकों की बात करते हैं, तो महिलाओं का नाम बहुत कम ही हमारे जेहन में आते हैं। अक्सर जाने-पहचाने नामों में पुरुषों के नाम ही याद आते हैं। लेकिन जानकी अम्माल, असीमा चटर्जी, अन्ना मणि जैसी कई महिला वैज्ञानिकों ने भी विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्ण योगदान दिए हैं। लेकिन यह रास्ता इनके लिए आसान नहीं रहा है। आज भी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के नाम इस तरह प्रचलित नहीं हुए हैं, जैसेकि पुरुषों के नाम। समाज के पितृसत्तात्मक रवैये के कारण न उन्हें उस तरह की पहचान मिल पाई और न ही वैसा सम्मान जिसके ये हकदार थे। साल 2023 में भी भारत में स्टेम (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और चिकित्सा) के क्षेत्रों में मात्र 27 फीसद महिलाएं ही काम कर रही हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारतीय उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों में वैज्ञानिकों और विज्ञान संकाय में केवल 13 प्रतिशत महिलाएं हैं। इससे यह चिंता बढ़ गई है कि जेन्डर गैप में सुधार के लिए कमियां नजर आ रही है। इसके अलावा, इससे वर्षों से की जा रही कोशिशें विफल हो सकती हैं।

हालांकि इस जेन्डर गैप को सरकार और अनुसंधान संस्थान दोनों ही स्वीकार कर रहे हैं। समाज में रूढ़िवादी सोच के कारण विज्ञान में रुचि लेने वली महिलाओं को बढ़ावा नहीं दिया जाता। विज्ञान में रुचि लेने वाली महिलाओं और लड़कियों को प्रेरित नहीं किया जाता है। एक और कारण यह भी है कि आम तौर पर रोजमर्रा में महिला वैज्ञानिकों की चर्चा होती ही नहीं है, जिससे महिलाओं के सामने बहुत कम प्रेरणास्रोत हैं। इसलिए आज हम ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में बात करेंगे जिन्होंने सभी रूढ़िवादी धारणाओं को तोड़ा और विज्ञान के क्षेत्र में नाम किया। साधारण परिवेश से आईं ये सभी भारतीय महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। अपने काम के जरिए न केवल लैंगिक रूढ़िवाद को चुनौती दे रही हैं बल्कि लड़कियों को विज्ञान में रुचि लेने और आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित कर रही हैं। 

1. अनुराधा टी.के. 

तस्वीर साभारः Wikipedia

अनुराधा टी.के. इसरो की सबसे वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक हैं, जो 1982 में अंतरिक्ष एजेंसी में शामिल हुईं, और इसरो में उपग्रह परियोजना निदेशक बनने वाली पहली महिला भी थीं। अनुराधा ने हसन में नियंत्रण सुविधा से चलने वाले जटिल ऑपरेशनों के माध्यम से जीसैट-12 को उसकी अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचाया। यह उनकी सोच और खोज का नतीजा था जिसने जीसैट-12 को सफल बनाया। उनकी पद्धति का प्रयोग आज भी जारी है। पहली बार, एक महिला टीम ने हसन में यह काम किया। अंतरिक्ष एजेंसी ने अब उनके लिए कई और काम निर्धारित किए हैं। परियोजना निदेशक के रूप में, उन्होंने जीसैट-9, जीसैट-17 और जीसैट-18 संचार उपग्रहों के लॉन्च का भी निरीक्षण किया। अपनी काबिलियत के ज़रिए उन्होंने महिलाओं की अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति महिलाओं को लेकर जो आम धारणाएं हैं, उन्हें बहुत हद तक तोड़ा। अनुराधा इसरो सैटेलाइट सेंटर के ‘जियोसैट’ कार्यक्रम की निदेशक हैं और भारत को अंतरिक्ष ले जाने वाली वैज्ञानिक के रूप में भी मशहूर हैं। 

2. एन वलरमठी 

तस्वीर साभारः The New Indian Express

वॉयस ऑफ इसरो लौंचेज़कहलाई जाने वाली वलरमठी इसरो में वैज्ञानिक थीं। एन. वलारमथी ने साल 2012 में भारत के पहले स्वदेशी रूप से विकसित रडार इमेजिंग उपग्रह RISAT-1 के परियोजना निदेशक हैं। वह पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के सम्मान में तमिलनाडु सरकार द्वारा 2015 में स्थापित अब्दुल कलाम पुरस्कार पाने वाली पहली व्यक्ति हैं। अनेक स्पेस मिशन लॉन्च में काउन्टडाउन के लिए भी उन्हें पहचाना गया। तमिलनाडु के अलियुर में जन्मी वलरमठी, इसरो में किसी प्रतिष्ठित परियोजना का निर्देशन करने वाली दूसरी महिला हैं। साल 1984 में, वलरमठी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में काम करना शुरू किया और इसके कई मिशनों में शामिल रहीं। इनमें इनसैट 2ए, आईआरएस आईसी, आईआरएस आईडी और टीईएस शामिल हैं। 9 सितंबर 2023 को चेन्नई में हार्ट-अटैक के कारण इनका निधन हो गया। चंद्रयान-3 के लॉन्च में इन्होंने आखिरी बार अपनी आवाज़ दी थी। 

3. कल्पना कालाहस्ती 

तस्वीर साभारः Dainik Bhaskar

चंद्रयान-3 मिशन की सह परियोजना निदेशक कल्पना कालाहस्ती मिशन के अन्य 5 वैज्ञानिकों में से एक हैं। इन्होंने इसरो के मिशन मंगलयान और चंद्रयान-2 में भी प्रमुख भूमिका निभाई। बतौर सैटेलाइट स्पेशलिस्ट कालाहस्ती ने अत्याधुनिक इमेजिंग डिवाइसेस से पृथ्वी की सतह की हाई-रेसोल्यूशन तस्वीरें लेने में योगदान दिया। कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मी, उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री के साथ आईआईटी-खड़गपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह साल 2000 में एक वैज्ञानिक के रूप में इसरो में शामिल हुईं। पहले रडार इंजीनियर और फिर 2005 से सैटेलाइट सिस्टम्स इंजीनियर की भूमिका में वह आगे बढ़ती रहीं और आज चंद्रयान-3 की सफलता में अग्रणी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रयान-3 के मिशन को पूरा करने में 54 महिला वैज्ञानिकों का योगदान है।

4. रितु करिधाल

तस्वीर साभारः Business Today

चंद्रयान-3 मिशन के प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक रितु करिधाल भारत की ‘रॉकेट वुमन’ के नाम से भी जानी जाती हैं। इन्होंने इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) समेत कई परियोजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लखनऊ के एक कस्बे से आई रितु ने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में स्नातक और फिर परीस्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बेंगलुरु से ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमटेक किया। पीएचडी में दाखिले के साथ ही 1997 में रितु इसरो से जुड़ीं और आज वहाँ वरिष्ट विज्ञानिकों में से एक हैं। 2007 में इन्हें को भारतीय राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा इसरो युवा वैज्ञानिक पुरस्कार दिया गया था और 2015 में इन्हें मंगलयान के लिए इसरो टीम पुरस्कार अवॉर्ड मिला। 2019 में रितु चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर रहीं। 

5. मुथय्या वनिता 

तस्वीर साभारः Forbes

मुथैया वनिता एक भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियर हैं जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में उपग्रहों पर परियोजनाओं का नेतृत्व किया है। वह इसरो के चंद्रयान-2 चंद्र मिशन की परियोजना निदेशक थीं। वनिता डेटा हैंडलिंग में एक्सपर्ट हैं। यह पहले अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 से आने वाले डेटा की व्याख्या कर चुकी हैं। अपने उत्कृष्ट समस्या-समाधान और टीम प्रबंधन कौशल के साथ, मुथय्या ने परियोजना निदेशक के रूप में चंद्रयान -2 मिशन का नेतृत्व किया। इन्होंने पहले कई अंतरिक्ष यान मिशनों जैसे कार्टोसैट-1, ओशनसैट-2 और कई अन्य में उप परियोजना निदेशक के रूप में काम किया है। चेन्नई में जन्मी वनिता को इसरो में बतौर वैज्ञानिक काम करते 30 साल से अधिक का समय हो गया। इन्होंने अपने करिअर की शुरुआत हार्डवेयर टेस्टिंग और डेवलपमेंट से की थी। मुथय्या ने 2006 में सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक का पुरस्कार समेत कई पुरस्कार जीते हैं।

6. नंदिनी हरीनाथ 

तस्वीर साभारः The Telegraph

नंदिनी हरिनाथ बेंगलुरु में इसरो सैटेलाइट सेंटर में एक वैज्ञानिक हैं। वह मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान का हिस्सा हैं। उन्होंने मिशन योजना, विश्लेषण और संचालन-प्रमुख घटकों की रूपरेखा पर एक शोध पत्र का सह-लेखन किया है। चंद्रयान-3 में प्रोजेक्ट मैनेजेर और मिशन डिजाइनर की भूमिका निभा चुकी नंदिनी हरीनाथ दो दशकों से इसरो में बतौर वैज्ञानिक कार्यरत हैं। 20 सालों के अपने बहतरीन कार्यकाल में ये मंगलयान, चंद्रयान समेत 14 अलग-अलग मिशनों का हिस्सा रही हैं। वनिता चार वर्षों तक एनआईटी, भोपाल (मैनिट) के निदेशक मंडल में रही हैं। इनके कुछ उल्लेखनीय पुरस्कार में स्पेस गोल्ड मेडल 2019, इंडिया टुडे वुमन इन साइंस अवार्ड 2015, दिल्ली महिला आयोग अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पुरस्कार 2023, मार्स ऑर्बिटर मिशन (2014) के लिए एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) टीम पुरस्कार, रडार इमेजिंग सैटेलाइट-1 रिसैट के लिए 2012 में इसरो की टीम उत्कृष्टता पुरस्कार-1, 2007 में सैटेलाइट रिकवरी एक्सपेरिमेंट के लिए टीम उत्कृष्टता पुरस्कार, 2017 में कन्नड़ साहित्य परिषद द्वारा ‘कन्नड़ महिला रत्न पुरस्कार’ शामिल है।

7. सुजाता रामदोरई

तस्वीर साभारः Global Indian

सुजाता रामदोराई एक बीजगणितीय संख्या सिद्धांतकार हैं जिन्हें ‘इवासावा’ सिद्धांत पर उनके काम के लिए जाना जाता है। वह कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में गणित की प्रोफेसर और कनाडा रिसर्च चेयर हैं। वह पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में प्रोफेसर थीं। सुजाता आईसीटीपी रामानुजन पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय हैं और 2004 में भारत का विज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान शांति स्वरूप भाटनागर पुरस्कार भी इन्हें प्राप्त हुआ है। यह कई अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान एजेंसियों जैसे कि इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ़ एडवांस्ड रिसर्च, बैन्फ इंटरनेशनल रिसर्च स्टेशन, इंटरनेशनल सेंटर फॉर प्यूर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स की वैज्ञानिक समिति की सदस्य हैं। रामदोरई राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सदस्य भी रही हैं और प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की सदस्य हैं। साल 2023 में इन्हें विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 

8. नलिनी पार्थसारथी 

तस्वीर साभारः Hemophilia India South

पुदुचेरी की मदर टेरेसा‘ के नाम से लोकप्रिय डॉ. नलिनी पार्थसारथी को चिकित्सकीय शिक्षा, देखभाल और मानव कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। इन्होंने बाल कल्याण और हीमोफीलिया के क्षेत्र में सराहनीय सेवा की है। जेआईपीएमईआर में एक बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में वह सहजता से और दर्द रहित तरीकों से बाल रोगियों का इलाज करती थीं। लगभग 30 वर्षों तक इन्होंने पूर्ण समर्पण के साथ हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों का इलाज किया। हीमोफीलिया सोसाइटी ऑफ पुडुचेरी की स्थापना में इनकी अहम भूमिका रही और इसकी संस्थापक अध्यक्ष भी बनीं। यह सोसाइटी स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। डॉ. नलिनी ने हीमोफीलिया करिअर वुमन सेल्फ-हेल्प ग्रुप (हीमोफीलिया नलिनम) और यूथ ग्रुप की स्थापना भी की। इनके निरंतर प्रयासों के कारण अब पुडुचेरी में हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों के लिए चिकित्सा मुफ़्त मिलती है। 2023 में चिकित्सा के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारत सरकार ने डॉ. नलिनी को पद्म श्री भी से सम्मानित किया। 

9. वी आर ललिथाम्बिका

तस्वीर साभारः Timesnow Navbharat

इसरो के सबसे महत्वाकांक्षी मिशन ‘गगनयान’ के पीछे जिन तीन वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है, उनमें से एक डॉ. ललिताम्बिका भी हैं। इन्होंने भारतीय मानव स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम के डायरेक्टर के रूप में गगनयान मिशन को लीड किया। इसरो में लंबे समय से कार्यरत ललिताम्बिका एडवांस्ड लॉन्चर तकनीक की विशेषज्ञ हैं और 100 से अधिक मिशनों का हिस्सा रही हैं। इसरो से पहले इन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के नियंत्रण, सिमुलेशन और मार्गदर्शन को संभालने वाले उप निदेशक का पद संभाला था। ललिताम्बिका का जन्म तिरुवनंतपुरम, केरल में हुआ था। थुम्बा रॉकेट परीक्षण केंद्र उनके घर से पास होने के कारण यह बचपन से ही इसरो के प्रति आकर्षित थीं। 2001 में इन्हें स्पेस गोल्ड मेडल, इसरो व्यक्तिगत योग्यता पुरस्कार और 2013 में इसरो प्रदर्शन उत्कृष्टता पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 

10. निगार शाजी

तस्वीर साभारः The Hindu

निचली पृथ्वी कक्ष और प्लैनेटरी  मिशनों की कार्यक्रम निदेशक, निगार शाजी इसरो में भविष्य की सभी रोबोटिक अंतरिक्ष अन्वेषण परियोजनाओं की प्रभारी हैं। 2016 से, वह आदित्य-एल1 मिशन का नेतृत्व कर रही हैं, जो सूर्य की बाहरी परतों, प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्रों का अध्ययन कर रहा है। परियोजना निदेशक के रूप में अपनी भूमिका में, शाजी ने आदित्य-एल1 मिशन की योजना बनाने और निर्माण के लिए जिम्मेदार इसरो इंजीनियरों और अनुसंधान उद्देश्यों को तैयार करने और मिशन डेटा का विश्लेषण करने वाले अकादमिक वैज्ञानिकों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य किया। 2016 में इन्हें इसरो विशिष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2018 में डॉ. विक्रम साराभाई मेमोरियल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा, अंतरिक्ष विज्ञान में काम के लिए इन्हें कई पुरस्कार और मान्यता मिली। 

नोटः यह सूची अपनेआप में संपूर्ण नहीं है। ऐसी कई और महिला वैज्ञानिक हमारे देश में मौजूद हैं जो लगातार अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं।

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