पितृसत्ता ने मातृत्व को आदर्शवाद, कर्तव्य, त्याग की अवधारणा में स्थापित किया है जिसके अनुसार एक अच्छी माँ तभी बना जा सकता है जब वह समर्पित, आत्म-बलिदानी होती है। एक स्त्री के अस्तिव को पूर्ण देने की मान्यता तक उसके माँ बनने से जोड़ी गई है। यह वास्तविकता है कि पारंपरिक रूप से महिलाओं पर हावी होने और लैंगिक भेदभाव की जड़ को गहरा करने के लिए मातृत्व का इस्तेमाल किया गया है। असमानता की नींव पर टिकी परंपराओं और मातृत्व से जुड़े अधिकारों के लिए नारीवादी आंदोलनों के तहत इस विषय को भी महिला अधिकार और स्वायत्ता से जोड़ा गया।
नारीवादी विचारधारा ने पितृसत्तात्मक मातृत्व की आलोचनाओं से आगे बढ़कर नारीवादी मातृ प्रथाओं की बात की और महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तनों की बात की। ‘नारीवादी मातृत्व’ माँ होने के उस रूप में देखते हैं जो पितृसत्ता के द्वारा माँ की तय की गई भूमिका और मानदंडों को चुनौती देने और बदलने की कोशिश करते हैं। पारंपरिक रूप से मातृत्व महिलाओं के लिए दमनकारी है जो उनके अस्तित्व को दायरों में सीमित करता है। इसलिए, नारीवादी मातृत्व पीढ़ी दर पीढ़ी लैंगिक और पितृसत्तात्मक मूल्यों को बाधित करने का एक तरीका है।
मातृकेंद्रित नारीवाद की शुरुआत
मातृकेंद्रित नारीवाद, माँओं और मातृत्व को सबसे आगे लाता है। नारीवादी आंदोलनों की शुरुआती मान्यता है कि माँ और देखभाल करने वाली महिलाओं की सामाजिक स्थिति और राजनीति महजबूत हो। सामान अधिकार आंदोलनों में नारीवाद के विचारों में मातृत्व को जोड़ते हुए इसमें नारीवादी अवधारणा को शामिल किया गया। मातृकेंद्रित नारीवाद के सिद्धांत, राजनीति और इतिहास को समझने के लिए हमें सांस्कृतिक नारीवाद को देखने की ज़रूरत है जो 1970 से 1980 के अंत तक लोकप्रिय था। नारीवाद की यह विधा मातृत्व के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाती है।
19वीं सदी के अंत से लेकर शुरुआत तक प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य, मुख्य रूप से कनाडा की समृद्ध महिलाओं के बीच यह एक व्यापक दर्शन था। नारीवादियों ने पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को स्वीकार न करने और असमानता के बारे आवाज़ उठायी। ब्रिटिश दार्शनिक और महिला अधिकारों की पैरवी करने वाली मैरी वोल्स्टनक्राफ्ट का मानना था कि पुरुष और महिलाएं मूल रूप अपने अपने ज़ज्बे और आत्माओं से समान है और समान अधिकारों के पात्र है। शुरुआती कुछ नारीवादियों जैसे उपन्यासकार फैनी फर्न और लेटिटिया यूमैन्स के लिए मातृ नारीवाद एक रणनीति थी जिसके माध्यम से महिलाएं समान अधिकारों के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती थीं।
द वॉयर में प्रकाशित लेख के अनुसार दार्शनिक सारा रूडिक ने सांस्कृतिक नारीवाद के दिनों में ‘मातृ सोच’ को विकसित किया। वह उस सोच का वर्णन करती है जो माँ बनने से विकसित होती है, जिसे एक स्वैच्छिक और सामाजिक रूप से परिभाषित किया गया है और बिना किसी लैंगिक पहचान की परवाह किए बगैर अपनाया जा सकता है। रूडिक मातृत्व की बारीकियों को गहराई से समझते हुए और मातृ संबंधी सोच को देखभाल और शांति की राजनीति की नैतिकता का आधार बनाती है। इतना ही नहीं रूडिक के काम ने मातृत्व अध्ययन के क्षेत्र को आगे बढ़ाने में मदद की जो मातृकेंद्रित नारीवाद में विकसित हुआ।
मातृकेंद्रित नारीवाद के सहारे असमानता की बात
मातृकेंद्रित नारीवाद जेंडर और मातृत्व के इंटरसेक्शनल संबंध को देखता है। यह महिलाओं के साथ माँ बनने के बाद होने वाले असमानता और भेदभाव को उजागर करता है। साथ ही उस पर चर्चा करता है कि माँ बनने के बाद किस तरह महिलाओं को कमजोर मान लिया जाता है। पितृसत्ता के द्वारा तय किए गए दायित्व के द्वारा किस तरह से माँ बनने के बाद एक स्त्री की गतिशीलता प्रभावित होती है। कार्यस्थल पर किस तरह कामकाजी माँओं के साथ भेदभाव होता है। वेतन संबंधी अंतर पुरुष और महिलाओं में साफ दिखता है। साथ ही अच्छी माँ बनने के लिए उस फुल टाइम इसी भूमिका को निभाने पर जोर दिया जाता है। यही कारण है कि अच्छी माँ बनने के लिए कुछ महिलाएं अपनी नौकरियां छोड़ देती हैं। मातृत्व नारीवाद के तहत इन्हीं स्थितियों पर चर्चा की गई कि किस तरह से कार्यस्थल को एक मातृत्व की जिम्मेदारी निभाने वाले व्यक्ति के अनुकूल बनाया जाए।
पितृसत्ता ने मातृत्व को जहां जिम्मेदारी, भार की तरह दर्शाया वहीं नारीवाद ने मातृत्व को महिलाओं का अधिकार नहीं बनाता है, बल्कि उसका उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना है और माँ बनने को भी सशक्तिकरण के रूप में स्थापित करना है। इसके अनुसार माँ बनने के रूप को ताकत समझा जाए ना कि किसी तरह की कमजोरी या जीवन में पीछे रखने का कदम साबित हो। अध्ययन के क्षेत्र में मैट्रिक्सेंट्रिक नारीवाद को जन्म देने वाली सिद्धांतकार एंड्रिया ओ’रेली का तर्क है कि दोनों सच हो सकते हैं कि जेंडर एक सामाजिक निर्माण है- जब माँ बनने की बात आती है तो महिलाएं प्राकृतिक नहीं होती हैं क्योंकि उनका बॉयोलाजिकल सेक्स और यह विचार कि माँ बनना मायने रखता है।
नारीवाद और मातृत्व का जटिल रिश्ता
मातृत्व की इसी बहस में नारीवाद ने इस दृष्टिकोण पर भी विचार किया है कि माँ बनने के संबंधित विचार और अपेक्षाएं सभी महिलाओं को प्रभावित करती हैं। चाहे उनके बच्चे हो या नहीं। जो माँ नहीं है उनसे लगातार यह पूछा जाता है। उनके प्रति हीनभावना जाहिर की जाती है। वहीं माँ बनने वाली महिलाओं के समर्थन और संवेदनशील सोच नहीं होने की वजह से बड़े पैमाने पर उन्हें अनदेखा बोझ उठाना पड़ता है। कार्यस्थ्ल में कामकाजी माँओं को प्रोत्साहित और समर्थन देने वाली समझ की कमी देखने को मिलती है वहीं बिना बच्चों वाली महिलाएं ओवरटाइम कर रही हैं, उनसे शाम और सप्ताह में काम करने की अपेक्षा की जाती है क्योंकि आखिर में उनके पास घर जाने के लिए बच्चे नहीं हैं। ये ऐसे मुद्दे है जिन पर उस तरह से चर्चा नहीं होती है जैसे होनी जाहिए बल्कि इन पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है।
नारीवाद और मातृत्व एक जटिल रिश्ता है। मातृत्व कितना महत्वपूर्ण है और निष्पक्ष पालन-पोषण की व्यवस्था के लिए नारीवाद ने समाज में बिना किसी जेंडर बाइनरी के इसकी वकालत की है। सदियों से माँओं के रूप को पितृसत्तात्मक मूल्यों के स्थापित किया गया है लेकिन नारीवाद ने माँओं से जुड़ी सोच, ज़रूरतों को जाहिर करने, अपनी आवाज़ को बढ़ाने और अपने फैसलों को महत्व देने पर जोर दिया है। हालांकि अभी भी माँओं और नारीवादियों के बीच अनेक तरह के विषयों पर विचार होने की आवश्यकता है। क्योंकि महिलाओं के अधिकारों और संस्कृति में उनके सामान्य मूल्यांकन के बावजूद अभी काफी काम करना बाकी है। मातृत्व के प्रति रवैये को सुधारने के लिए सांस्कृतिक बदलाव और नीति परिवर्तन दोनों की आवश्यकता है।