जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ पर ध्यान देना ज़रूरी है, बिल्कुल उसी तरह मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी बहुत ज़रूरी है। कई बार शारीरिक समस्याएं जल्दी दिखाई देती है। लेकिन अमूमन मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ उन व्यक्तियों को समझ आता है, जो ऐसी स्थिति से ख़ुद गुज़र रहे होते हैं। हमारे आस-पास जेन्डर विशेष स्वास्थ सेवाओं का काफ़ी बुरे हाल हैं। कई गांव और शहरों में आज भी डॉक्टर समाज के हाशिये पर रह रहे समुदायों, जेन्डर बाइनरी से भिन्न लोगों को जांचने में झिझकते हैं। इसी कारण कई बार ऐसे लोग भी डॉक्टरों के पास जाने से कतराते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त हो, तब वो पहले से ही मानसिक रूप से चिंता में होते हैं। जब उन्हें डॉक्टरों से उचित सलाह, सही बर्ताव और चिकित्सा नहीं मिलता, तब उनके मानसिक स्वास्थ पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है।
ट्रांस समुदाय एक ऐसे समूह हैं जो समाज में हर पल कई प्रकार के भेदभाव और ग़लत अनुभवों से गुजरते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जो इनके मुद्दों को समझ पाते हैं और मानसिक रूप से ट्रांस व्यक्तियों की मदद कर सकते हैं। अलग-अलग लोगों में अलग-अलग तरह के विकार ज्यादा होने की संभावना होती है। जैसे, ट्रांस व्यक्तियों में जेंडर डिसफोरिया देखने को मिलती हैं । जेंडर डिस्फोरिया उस बेचैनी की भावना का वर्णन करता है जो किसी व्यक्ति में उनके बायोलॉजीकल लिंग और उनकी लैंगिक पहचान के बीच बेमेल होने के कारण हो सकती है। बेचैनी या असंतोष की यह भावना इतनी तीव्र हो सकती है कि इससे अवसाद और चिंता हो सकती है और दैनिक जीवन पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
“ट्रांज़िशनिंग के कुछ महीने बाद किसी कारणवश मेरा रीमैसकुलिनीजेशन होना शुरू हो गया। मेरा शरीर फिर से पुरुषों के तरह बदलने लगा। जैसेकि चेहरे पर बालों का बढ़ना, शरीर का आकार पुरुषों जैसा बदलना, सर के बाल अधिक झड़ना आदि। इस कारण मैं काफ़ी ज़्यादा अवसाद में चली गई थी।”
जेन्डर डिस्फोरिया का ट्रांस-महिलाओं पर असर
मध्यप्रदेश के अशोकनगर में रहने वाली, 26 वर्षीय ट्रांस-महिला इवा यादव कहती हैं, “मैं अपने आप को शीशे में देख भी नहीं पाती थी। जब अपने आप को शारारिक रूप से महिला के समान नहीं देख पाती थी, तब बहुत रोना आता था। महसूस होता था कि मैं खुदके ही शरीर में क़ैद हूं। इसी डिस्फोरिया को दूर करने के लिए और महिला होने के कारण महिला जैसे दिखने के लिये मैंने सामाजिक रूप से भी और मेडिकली भी ट्रांज़िशनिंग शुरू किया। हर किसी के स्वास्थ से जुड़ी अलग-अलग समस्याएं होने के कारण हर किसी की ट्रांज़िशनिंग के अनुभव भी अलग होते हैं। जब मुझे मेरे हार्मोनल रिपलेसमेंट थेरेपी का असर दिखने लगा तो मैं काफ़ी ज़्यादा खुश थी।
अपनेआप को काफ़ी सुंदर महसूस करती थी। महसूस होने लगा था कि अब सब ठीक हो रहा हैं। मेरी जो लैंगिक पहचान हैं उसी की तरह से दिखने भी लगी हूं। लोग भी अब मुझे ‘महिला’ के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन ट्रांज़िशनिंग के कुछ महीने बाद किसी कारणवश मेरा रीमैसकुलिनीजेशन होना शुरू हो गया। मेरा शरीर फिर से पुरुषों के तरह बदलने लगा। जैसेकि चेहरे पर बालों का बढ़ना, शरीर का आकार पुरुषों जैसा बदलना, सर के बाल अधिक झड़ना आदि। इस कारण मैं काफ़ी ज़्यादा अवसाद में चली गई थी।”
बाहर आने का झिझक और डर
वह आगे बताती हैं, “ये ऐसा लगता है कि जब कोई चीज़ को आप काफ़ी शिद्दत से चाहते हो, जिसके लिये आप कुछ भी करने लिए तैयार हो और कोई आपको वही चीज़ दे और कुछ दिन बाद आपसे उस चीज़ को बुरी तरह से छीन ले। अब फिर से मुझे अपनेआप को शीशे में देखना मुश्किल हो रहा था। घर से बाहर निकलना मुश्किल लग रहा था। ऐसी स्थिति में फंस गई थी जहां मैं न पूर्ण रूप से पुरुष जैसे दिख रही थी और ना ही पूर्ण रूप से महिलाओं जैसे दिख रही थी। अपनेआप को इस स्थिति में स्वीकार करना मेरे लिये बहुत मुश्किल था। इसी जेन्डर डिस्फोरिया के वजह से मैं घर से बाहर निकलते वक्त हमेशा मास्क पहनती हूं जिससे मेरा चेहरा ढका रहे और किसी और की नज़र मेरे चेहरे पर न जाये। जोशटॉक जैसे बड़े प्लेटफार्म पर मुझे अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन मेरे जेन्डर डिस्फोरिया की वजह से मैंने वहां जाने से मना कर दिया। हम ट्रांस महिलाओं के लिए डिप्रेशन में होना काफ़ी आम बात हैं और इन समस्यों से हम बाहर भी नहीं निकल पाते हैं।”
“उन्होंने मुझे केवल 10 मिनिट का समय दिया और महसूस कराया कि ये काफ़ी आम बात है। जब मैंने उनसे कहा कि मेरे ट्रांस होने की वजह से उसने मुझसे संबंध खत्म किए, जिससे अभी मेरा डिस्फोरिया बढ़ रहा है, तो उन्होंने कहा ये बस तुम्हें लग रहा है। इसके बाद उन्होंने कुछ भी न बोलकर कुछ दवाई लिखकर मुझे वहां से भेज दिया।”
क्यों ट्रांस समुदाय का रोमांटिक रिश्ते में जाना आसान नहीं
महाराष्ट्र के यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक ट्रांस छात्रा कहती हैं, “मैं किसी के साथ प्रेम संबंध में थी। वो एक ऐसा व्यक्ति था जो मेरे सुख-दुख में मेरे साथ था। मुझे अपने भविष्य की चिंता थी। अगर मुझे नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा? घर वाले भी आख़िर कितने साल संभालेंगे? मैं जेंडर डिस्फोरिया से गुजर रही थी। मुझे अपनेआप से घुटन हो रही थी। आर्थिक रूप से सशक्त नहीं थी और ना ही ट्रांज़िशनिंग के लिये परिवार से कोई भी स्वीकार्यता थी। उस समय मेरे साथी ने मेरा साथ देते हुए कहा कि वह मुझसे भविष्य में शादी करना चाहता है। वह मेरे ट्रांज़िशनिंग में आर्थिक और मानसिक रूप से मदद करेगा। उसने मेरे माँ से शादी के लिए मेरा हाथ भी मांगा। मैं काफ़ी खुश थी कि मुझे योग्य जीवन साथी मिला है जो मुझसे प्यार करता हैं। मैं भी आम लड़कियों की तरह घर बसाऊँगी। काफ़ी साल के क़ैद के बाद अब जाकर कहीं आज़ादी के सपने देखने लगी थी। जेंडर डिस्फोरिया होने के बावजूद मैं अपने आपसे खुश थी।
क्या मनोचिकित्सक ट्रांस समुदाय के विशिष्ट समस्याओं को समझते हैं
वह आगे बताती हैं, “लेकिन कुछ महीनों बाद मेरे साथी ने ख़ुद ही दिखाए हुए सपनों को अपने ही पैरों तले खत्म कर दिया। उसकी माँ एक ट्रांस महिला को एक बहू के रूप में स्वीकार नहीं करेंगी ये सोच कर और कहकर उसने मुझसे संबंध समाप्त कर लिए। इस घटना के बाद मैंने अपना जीवन समाप्त करने का निर्णय ले लिया था। मैंने कुछ ऐसे कदम भी उठाये। लेकिन मेरे परिवार ने मुझे बचाया। अच्छी बात ये थी मेरे शरीर पर उस घटना का ज्यादा कुछ असर भी नहीं पड़ा। मेरी माँ मुझे मनोचिकित्सक के पास लेकर गई। जब मैंने उन्हें रोते हुए अपनी सारी बात बतायी, तब उनकी प्रतिक्रिया काफ़ी सामान्य थी। वह कह रहे थे कि ये कोई बड़ी बात नहीं हैं। उन्होंने मुझे केवल 10 मिनिट का समय दिया और महसूस कराया कि ये काफ़ी आम बात है। जब मैंने उनसे कहा कि मेरे ट्रांस होने की वजह से उसने मुझसे संबंध खत्म किए, जिससे अभी मेरा डिस्फोरिया बढ़ रहा है, तो उन्होंने कहा ये बस तुम्हें लग रहा है। इसके बाद उन्होंने कुछ भी न बोलकर कुछ दवाई लिखकर मुझे वहां से भेज दिया।”
थेरेपी के एक सेशन के दौरान जब इवा के गुप्तांग की जांच जरूरी थी, तब एक पुरुष डॉक्टर ने जांच की थी, जिसके लिए वह बिल्कुल भी सहज नहीं थी। इवा कहती हैं, “अगर पुरुष के जगह वहां कोई महिला डाक्टर होती तो शायद मैं सहज होती।”
क्या ट्रांस समुदाय की मदद के लिए उचित चिकित्सकीय व्यवस्था है
मध्यप्रदेश की इवा कहती हैं कि जब उन्हें हॉर्मोन रिपलेसमेंट थेरेपी के लिए जेंडर डिस्फोरिया सर्टिफिकेट चाहिए था, तो उन्हें अपने गांव अशोकनगर से इंदौर के एक अस्पताल में जाना पड़ा। वहां के मनोचिकित्सक ने कहा कि अगर आगे चलकर वह उस अस्पताल में सर्जरी करती है, तो ही उसे तुरंत जेंडर डिस्फोरिया सर्टिफिकेट दिया जाएगा। वरना उसे 8 से 9 महीने वहां काउन्सलिंग के लिए जाना होगा। तभी उसे जी.डी सर्टिफिकेट देंगे। थेरेपी के एक सेशन के दौरान जब इवा के गुप्तांग की जांच जरूरी थी, तब एक पुरुष डॉक्टर ने जांच की थी, जिसके लिए वह बिल्कुल भी सहज नहीं थी।
इवा कहती हैं, “अगर पुरुष के जगह वहां कोई महिला डाक्टर होती तो शायद मैं सहज होती।” वह बताती हैं, “मेरे गाँव में ट्रांज़िशनिंग से जुड़ी कोई सुविधाएं नहीं हैं। लेज़र हेयर रिमूवल और हार्मोन्स रिपलेसमेंट थेरेपी के लिए बार-बार 600 किलोमीटर दूर दिल्ली जाना पड़ता है।” यात्रा के संबंध में वह बताती हैं, “एक ट्रांस महिला का अकेले ट्रेन में सफ़र करना भी उतना आसान नहीं हैं। कई बार देर रात की वापसी की ट्रेन होने की वजह से रात तक स्टेशन पर ही रुकना पड़ता है।” ऐसे में यौन हिंसा का खतरा भी रहता है। अपने अनुभव साझा करते हुए वह बताती हैं कि एक बार कोई अंजान व्यक्ति उसका पीछा कर रहा था और उसे सेक्स वर्कर समझ रहा था।
जेंडर डिस्फोरिया दूर करने के लिए ट्रांस व्यक्ति मेडिकली ट्रांज़िशनिंग करवाते हैं, जिससे वे अपने शरीर में और ज़्यादा सहूलियत महसूस करे और उनकी समस्या दूर हो। वे अपना जीवन खुलकर जी सके। लेकिन यह परिवार, सरकार और समुदाय के मदद के बिना संभव नहीं। जरूरी है कि हम एक ऐसे समाज की नींव गढ़े जहां ट्रांस समुदाय को समाज में अलगाव का बोध न हो और तमाम सुविधाएं मिले जो किसी और नागरिक को मिलता है।