इतिहास प्रीतिलता वादेदारः अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन करने वाली क्रांतिकारी| #IndianWomenInHistory

प्रीतिलता वादेदारः अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन करने वाली क्रांतिकारी| #IndianWomenInHistory

प्रीतिलता स्वदेशी आंदोलन की पहली महिला क्रांतिकारी थीं। कर्तव्य की भावना, बहादुरी और दृढ़ता को साबित करते हुए उन्हें पहाड़ताली में यूरोपीय क्लब पर हमले के नेता के रूप में नियुक्त किया गया।

“इंकलाब जिंदाबाद”, “सभी बहनों से अपील है, महिलाओं ने आज दृढ़ संकल्प ले लिया है कि वे अब पर्दे के पीछे नहीं रहेगी। अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए वे अपने भाइयों के साथ हर कदम पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने को तैयार हैं, चाहे यह कितना भी कठिन या भयावह क्यों न हो। मैं साहसपूर्वक खुद को एक क्रांतिक्रारी घोषित करती हूं।” ये शब्द प्रीतिलता वादेदार के हैं जो उनके अंतिम समय उनके द्वारा लिखित एक पर्चे में दर्ज मिले थे। प्रीतिलता वादेदार एक भारतीय महिला क्रांतिकारी थीं। अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन में अपना बलिदान देने वाली पहली महिला थीं।

जन्म और शुरुआती जीवन

प्रीतिलता का जन्म 5 मई 1911 को चटगाँव जिले (वर्तमान में बांग्लादेश) के पाटिया के धालागाँव में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जगबंधु वादेदार था और वह चटगाँव नगर कार्यालय के अधिकारी थे। उनकी माता का नाम प्रतिभा था। वह अपने छह भाई-बहनों में दूसरे नंबर की संतान थीं। उन्हें घर में सब ‘रानी’ कहकर बुलाते थे। उनके माता-पिता अपने सभी बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने चाहते थे। प्रीतिलता की संस्थागत शिक्षा 1918 में डॉ. खस्तागिर गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल, चट्टोग्राम से शुरू हुई थी। वह एक मेधावी छात्रा थी। स्कूल के दौरान जब छात्रों को राष्ट्रवाद की प्रेरणा देने के लिए लक्ष्मीबाई और अन्य क्रांतिकारियों की कहानियां सुनाई जाती थी। इसी के बाद से उनके भीतर देश की सेवा का ज़ज्बा पैदा हुआ।  

तस्वीर साभारः The Business Standard

कला और साहित्य उनके पसंदीदा विषय के थे। साल 1929 में उन्होंने ईडन कॉलेज, ढाका में दाखिला लिया था। साल 1929 में संयुक्त योग्यता सूची में उन्होंने पांचवां और लड़कियों में पहला स्थान हासिल किया था। कॉलेज के दिनों में उन्होंने अलग-अलग सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। वह दीपाली संघ के बैनर तले लीला नाग की अध्यक्षता वाले समूह श्री संघ में शामिल हो गईं थी। यह संघ एक क्रांतिकारी संगठन था जो महिलाओं को राजनीतिक रूप से सजग होने के दिशा में ट्रेनिंग देता था। 

प्रीतिलता के नेतृत्व में यह अभियान 23 सितंबर 1932 में शुरू हुआ था। पहाड़ताली यूरोपीयन क्लब ( यूरोपियन का एक सोशल क्लब) था जो नस्ल के आधार पर भेदभाव करता था।

स्वदेशी आंदोलन से जुड़ी

बाद में आगे की पढ़ाई के लिए वह कलकत्ता चली गई। वहां उनकी जान पहचान सूर्य सेन से हुई। वह इंडियन रेव्यूलेशनरी आर्मी (आईआरए) से जुड़ी लेकिन पुरुष प्रभुत्व के कारण उन्हें कदम-कदम पर खुद को साबित करना पड़ा। प्रीतिलता स्वदेशी आंदोलन की पहली महिला क्रांतिकारी थीं। कर्तव्य की भावना, बहादुरी और दृढ़ता को साबित करते हुए उन्हें पहाड़ताली में यूरोपीय क्लब पर हमले के नेता के रूप में नियुक्त किया गया। टीम की तैयारी शुरू हो गई। अभियान को सफल बनाने के लिए उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। आठ सदस्यों के इस दल के नेता के रूप में प्रीतिलता को चुना गया था। उनके अलावा पार्टी के सात अन्य सदस्यों में कालिकिंकर डे, शांति चक्रवर्ती, भीरेश्वर रॉय, प्रफुल्ल दास, सुशील डे, महेंद्र चौधरी और पन्ना सेन शामिल थे।    

प्रीतिलता के नेतृत्व में यह अभियान 23 सितंबर 1932 में शुरू हुआ था। पहाड़ताली यूरोपीयन क्लब ( यूरोपियन का एक सोशल क्लब) था जो नस्ल के आधार पर भेदभाव करता था। विशेष रूप से इस क्लब के बाहर भारतीय के प्रवेश पर रोक से जुड़ा साइनबोर्ड लगा था जिसमें यह लिखा था कि इस क्लब में भारतीयों का प्रवेश निषेध है। उन्होंने खुद एक पुरुष का भेष धारण किया और क्लब पर हमले का अभियान का नेतृत्व किया। उस समय एक नियम के रूप में किसी सैन्य गठन में नेता हमला करने वाला पहला व्यक्ति होगा जिससे साथियों को सुरक्षित स्थान पर जाने की अनुमति मिल जाएगी। प्रीतिलता ने इस नियम का पूरे तरीके से पालन किया। ऑपरेशन सफल होने के बाद उन्होंने सीटी बजाकर सदस्यों को वापस जाने का इशारा किया। बाद में जब वह खुद लौटने की तैयारी कर रही थी तो उस वक्त उन पर एक छिपे हुए अंग्रेज सैनिक ने गोली मार दी। हालांकि उनकी टीम के अन्य सभी सदस्य सुरक्षित पहुंचने में कामयाब रहे। 

“इंकलाब जिंदाबाद”, “सभी बहनों से अपील है, महिलाओं ने आज दृढ़ संकल्प ले लिया है कि वे अब पर्दे के पीछे नहीं रहेगी। अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए वे अपने भाइयों के साथ हर कदम पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने को तैयार हैं, चाहे यह कितना भी कठिन या भयावह क्यों न हो। मैं साहसपूर्वक खुद को एक क्रांतिक्रारी घोषित करती हूं।”

प्रीतितला गोली लगने की वजह से उस जगह से बाहर निकलने में कामयाब न रही। आखिर में उन्होंने तय किया वह जीते जी किसी अंग्रेज की पकड़ में न आए। उनकी ट्रेनिंग का प्रमुख निर्देश यह था कि किसी भी स्थिति में अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आना है। ब्रिटिश साम्राज्यवादी ताकतों को उन्हें जीवित पकड़ने से रोकने के लिए उन्होंने साइनाइड खाकर अपनी जान गवां दी। अगले दिन 24 सिंतबर को सुबह ब्रिटिश पुलिस को प्रीतिलता का शव मिला। वे हमलावर के रूप में एक महिला की पहचान करने में हैरान थे। पुलिस को उसके शरीर पर जो पर्चा मिला था उसमें उन्होंने लिखा था, “हमारी बहनें अब यह विचार रखेंगी कि वे कमजोर नहीं हैं।” उन्होंने कल्पना की थी कि भारत की सशस्त्र महिलाएं हजारों बाधाओं को ध्वस्त कर देंगी और स्वतंत्रता के लिए विद्रोह और सशस्त्र संघर्ष में शामिल होंगी। 

प्रीतिलता ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान हंसते-हंसते गवां दी। इस घटना पर हिंदी सिनेमा में “खेले हम जी जान” से साल 2010 में फिल्म भी बन चुकी हैं। बांग्लादेशी लेखिका सेलिना हुसैन प्रीतिलता को हर महिला के लिए आदर्श बताती हैं। बाद में उनकी याद बिरकन्या प्रीतिलता ट्र्स्ट ( बहादुर महिला प्रीतिलता ट्रस्ट) नामक एक ट्रस्ट की स्थापना की गई है। ट्रस्ट द्वारा हर साल बांग्लादेश और भारत के विभिन्न स्थानों पर उनका जन्मदिन मनाया जाता है। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उनकी स्नातक डिग्री को ब्रिटिश शासन ने देने से मना कर दिया था। हालांकि क्रांतिकारी बनने से पहले वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक स्थानीय स्कूल में हेड टीचर के रूप में भी काम कर चुकी थीं। साल 2012 में उनके नाम का मरणोप्रांत स्नातक योग्यता का प्रमाण पत्र दिया गया। 


स्रोतः

  1. Wikipedia
  2. The Print
  3. Indian Culture
  4. The Business Standard
  5. Indiatimes

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