पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले का संदेशखाली गांव लगभग एक महीने से राजनीतिक उथल-पुथल के बाद अब तक चर्चा का विषय बना हुआ है। संदेशखाली 5 जनवरी को तब सुर्खियों में आया, जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली घोटाले के सिलसिले में तृणमूल काँग्रेस पार्टी (टीएमसी) के स्थानीय नेता शाहजहां शेख के घर पर छापा मारने पहुंची प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम पर भीड़ ने हमला कर दिया। इलाके में कथित रूप से टीएमसी नेता शाहजहां के लोगों ने न केवल ईडी अधिकारियों को उनके घर में प्रवेश करने से रोका, बल्कि केंद्रीय जांच एजेंसी के लोगों के साथ मारपीट भी की। ईडी के साथ हुए इस घटना के बाद, 7 फरवरी से क्षेत्र के ग्रामीण विशेषकर महिलाएं टीएमसी के कई नेताओं द्वारा कथित उनकी जमीन जबरन हड़प लेने और यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मीडिया की खबरों के अनुसार टीएमसी नेताओं के नामों में शाहजहां शेख, उत्तम सरदार और शिबाप्रसाद हाजरा के नाम प्रमुख हैं।
खबरों के अनुसार शाहजहां पर मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर उत्पीड़न तक के कई अपराधों का आरोप है। जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बढ़ते विवादों के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं भाजपा और कांग्रेस ने टीएमसी प्रमुख पर कथित रूप से यौन शोषण के आरोपियों का समर्थन करने का आरोप लगाया है। इंडिया टूडै की रिपोर्ट अनुसार संदेशखाली विरोध प्रदर्शन के बारे में बोलते हुए, भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कोई सरकार नहीं है और आरोप लगाया कि इलाके में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला किया जा रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि हम इसके खिलाफ अदालत जाएंगे और जनता लोकसभा चुनाव में इसका जवाब देगी। पश्चिम बंगाल में ‘जंगलराज’ है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) ने संदेशखाली में टीएमसी समर्थकों द्वारा महिलाओं के कथित उत्पीड़न पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट देते हुए पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति लगाने की शासन सिफारिश की थी। एनसीएससी के एक प्रतिनिधिमंडल ने संदेशखाली का दौरा किया था। इससे पहले 1962 से अब तक पश्चिम बंगाल में 5 बार राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है।
क्या है घटना और महिलाओं का आरोप
इंडिया टूडै की एक रिपोर्ट अनुसार संदेशखाली निवासी कनिका दास ने आजतक बांग्ला से कहा, “यहां महिलाएं सुरक्षित नहीं रह सकतीं। हम महिलाएं बाहर जाने से डरती हैं। हम सुरक्षा चाहते हैं।” कनिका दास उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने वर्षों की चुप्पी तोड़ी है और पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में कथित प्रणालीगत सामूहिक बलात्कार और यौन शोषण की भयावह घटनाओं के बारे में बताया है। यह रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं का आरोप है कि उनको कथित रूप से चुनकर तृणमूल पार्टी कार्यालय में ले जाया गया, उन्हें बंधक बनाया गया और यौन हिंसा की गई।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के नेता और नंदीग्राम विधायक सुवेंदु अधिकारी ने 11 फरवरी को संदेशखाली की घटना पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए एक्स पर अपने रैली का वीडियो देते हुए लिखा था, “शेख शाहजहां और उनके गिरोह ने ‘आतंक का शासन’ स्थापित किया, जहां एससी और एसटी समुदायों की महिलाओं की गरिमा और विनम्रता का बार-बार उल्लंघन किया गया।”
मीडिया में आई खबरों के अनुसार जिले के बशीरहाट उपमंडल में संदेशखाली में शाहजहां, जो जिला परिषद के सदस्य भी हैं, उनका दबदबा है। शाहजहां ने साल 2004 में ईंट भट्टों में यूनियन नेता के रूप में राजनीति में कदम रखा। बाद में वह स्थानीय सीपीआई(एम) इकाई में शामिल हो गए। प्रभावशाली भाषणों और संगठनात्मक कौशल के लिए लोकप्रिय शाहजहां ने 2012 में तृणमूल कांग्रेस का ध्यान आकर्षित किया। 42 वर्षीय शाहजहां ने तत्कालीन टीएमसी राष्ट्रीय महासचिव मुकुल रॉय और उत्तर 24 परगना टीएमसी जिला अध्यक्ष ज्योतिप्रियो मल्लिक के मार्गदर्शन में काम किया। 2018 में, शाहजहां सरबेरिया अगरहाटी ग्राम पंचायत के उप प्रमुख के रूप में प्रसिद्ध हुए।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कोर्ट ने क्या कहा
कलकत्ता उच्च न्यायालय के जस्टिस अपूर्ब सिन्हा रे की एकल पीठ ने संदेशखाली मामले पर 13 फरवरी को संदेशखाली घटना पर स्वत: संज्ञान लिया और राज्य प्रशासन द्वारा लगाए गए निषेधाज्ञा आदेशों को रद्द कर दिया था। अदालत ने एक वकील को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया और राज्य सरकार, पुलिस और जिला प्रशासन को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने 20 फरवरी को दोबारा सुनवाई करते हुए शाजहान शेख को गिरफ्तार करने में विफलता पर पश्चिम बंगाल सरकार से सवाल किया। इस मामले में यौन उत्पीड़न और आदिवासी भूमि पर जबरन कब्ज़ा करने के आरोप शामिल हैं।
इससे पहले एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें एक महिला का दावा था कि गृहणियों को टीएमसी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के संदेशखाली हिंसा की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस घटना की मणिपुर से कोई तुलना नहीं की जा सकती है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने बयान में कहा है कि पश्चिम बंगाल के पुलिस प्रमुख को एक शिकायत पर नोटिस भेजा गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि संदेशखली मुद्दे को कवर करने वाले एक पत्रकार को ‘गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया’। आयोग ने पाया है कि ये आरोप उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन और प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध का गंभीर मुद्दा उठाते हैं। आयोग ने पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक (डीआईजी) को एक नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर मामले में एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। आयोग ने अपने डीआइजी (इंवेस्टिगेशन) को टेलीफोन पर तथ्यों का पता लगाने और एक सप्ताह के भीतर आयोग को अपने निष्कर्ष सौंपने को भी कहा है। इंडियन एक्स्प्रेस की खबर अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगाल के संदेशखाली दौरे के दौरान यहां की महिलाओं से 18 शिकायतें मिलीं, जिनमें दो बलात्कार की भी शामिल हैं।
आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंसी जनता
संदेशखाली की घटना पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी ‘हिंदुओं के नरसंहार’ के लिए जानी जाती हैं और अब अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को महिलाओं के साथ यौन हिंसा करने की अनुमति दे रही हैं। इंडिया टूडै की एक खबर अनुसार भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य अनिर्बान गांगुली ने कहा है कि पहले, स्थानीय गुंडों की भूमिका हाशिए पर थी। लेकिन 2011 में तृणमूल कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद, वाम समर्थित बाहुबलियों ने दल बदल ली है।
ऐसे तत्व फिर से केंद्र में आ गए हैं। महिलाओं के विरोध प्रदर्शन के बाद बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस संदेशखाली में स्थिति की समीक्षा करने के लिए दौरे पर थे। बोस ने इस घटना को भयानक और चौंकाने वाला बताया। वहीं ममता बनर्जी ने कहा है कि संदेशखाली हिंसा मामले में अबतक 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और संदेशखाली में हर घर का दौरा करने और महिलाओं की शिकायतों को सुनने के लिए एक महिला पुलिस टीम भी मौजूद है।
बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास
देश के अनेकों राज्यों में अक्सर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं। लेकिन राजनीतिक हिंसा एक जटिल विषय है जिसमें उद्देश्य, समय, सत्ता में सरकार की भूमिका, जगह के भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति और गतिविधियों के माध्यम से मापा जाना चाहिए। पश्चिम बंगाल के संदर्भ में हिंसा राज्य के राजनीतिक इतिहास और राजनीतिक संस्कृति से भी जुड़ी हुई है। हिंसा का उपयोग मुख्य रूप से राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने और पकड़ बनाए रखने के लिए किया जाता रहा है। यहां सामाजिक-सांस्कृतिक, वैचारिक या आर्थिक कारक बड़े पैमाने पर राजनीतिक वर्चस्व में भूमिका निभाते हैं। एनसीआरबी ने 1999 से 2016 तक पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं दर्ज की हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं की कम से कम 47 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, जिनमें से 38 दक्षिण बंगाल में हुईं।
जनसंख्या जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार संदेशखाली में अनुसूचित जाति (एससी) 30.9 फीसद है जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) कुल जनसंख्या का 25.9 फीसद है। यहां 69.19 फीसद हिन्दू और 30.42 फीसद मुस्लिम हैं। पश्चिम बंगाल में, पंचायतें पार्टियों को ग्रामीण समाज के लगभग हर पहलू पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती हैं। पार्टियों को राजनीतिक सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपनी संगठनात्मक मशीनरी को मजबूत करने में पंचायतों के माध्यम से मदद मिलती है। पिछले वर्षों में पंचायत चुनावों में बढ़ती हिंसा इस बात का गवाह है। गरीबी और बेरोजगारी में पार्टियों की छत्रछाया घर चलाने का ही नहीं, विरोधी पार्टी कर्मियों से खुद को बचाए रखने का तरीका है। वहीं महिलाओं के खिलाफ हिंसा राजनीति में वर्चस्व का आसान तरीका है जहां महिलाएं पहले से ही हाशिये का जीवन जी रही हों।