समाजराजनीति पश्चिम बंगाल में बढ़ती महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा चिंताजनक

पश्चिम बंगाल में बढ़ती महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा चिंताजनक

राष्ट्रीय महिला आयोग के साल 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक शिकायतों वाले दस राज्यों में से पश्चिम बंगाल आठवें पायदान पर था। साल 2018-19 के दौरान आयोग द्वारा विचार किए गए विशेष मामलों में बंगाल के कई मामले शामिल थे। पिछले दिनों मालदा और बर्धमान जिले में आदिवासी महिलाओं की बलात्कार की घटनाएं राज्य के सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर दोहरा सवाल खड़ा करती हैं। द हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय महिला आयोग ने पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध और मानव तस्करी के मामलों में वृद्धि और बलात्कार पीड़ितों को पुलिस से मदद मिलने में कमी जैसे कई मुद्दों का संज्ञान लेते हुए चिंता व्यक्त की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय महिला आयोग ने राज्य से सुओ मोटो मामले सहित 267 से अधिक शिकायतें पाई जिन पर राज्य पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।

पश्चिम बंगाल, विशेषकर राजधानी कोलकाता की गिनती सबसे सुरक्षित शहरों में से एक के रूप में होती आई है। हम अक्सर किसी शहर को वहां की सुविधाओं और समस्याओं से आंकते हैं। दिल्ली जैसा शहर हो तो महिलाओं की सुरक्षा की बात होती है, वहीं बंगाल की बात हो तो यहां की संस्कृति, शिक्षा और सुरक्षित माहौल की। पश्चिम बंगाल को आज़ादी के समय से ही एक प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है, जो आम जनता की समस्याओं के लिए उनके साथ खड़ा होता है।

द टाइम्स ऑफ इंडिया में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट आधारित खबर के अनुसार, साल 2020 में कोलकाता देश के सबसे सुरक्षित शहरों में पहले पायदान पर था। राज्य में आईपीसी मामले और राज्य कानून के तहत अन्य मामले सबसे कम दर्ज हुए। हालांकि, पश्चिम बंगाल में अपराध दर कई राज्यों से कम है लेकिन द टाइम्स ऑफ इंडिया में ही छपी एनसीआरबी के आंकडों पर आधारित खबर के अनुसार साल 2019 की तुलना में साल 2020 में दूसरे राज्यों के मुक़ाबले पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। साथ ही, राज्य में पिछले तीन सालों में बच्चों के खिलाफ अपराध में सबसे तेज वृद्धि दर्ज हुई। यह जरूरी है कि सुरक्षा और कानून व्यवस्था को परखने के लिए किसी भी महानगर में हम सिर्फ राजधानी तक सीमित न रहे। कम अपराध दर के विपरीत पिछले कई सालों से पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के मामले में महाराष्ट्र के बाद दूसरे पायदान पर बना हुआ है।

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पिछले दिनों जब पूरा पश्चिम बंगाल विभिन्न त्योहारों के उल्लास में डूबा हुआ था, तो कोलकाता के सड़कों पर बौद्धिक विकलांगता की शिकार एक 62 वर्षीय महिला के बलात्कार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहा था। इस प्रदर्शन की जानकारी विकलांगता और लैंगिक अधिकार कार्यकर्ता, नेश्नल प्लैटफ़ार्म फॉर द राइट्स ऑफ द डिसेबेल्ड (एनपीआरडी) की संयुक्त सचिव और श्रुति विकलांगता अधिकार केंद्र की संस्थापक शम्पा सेनगुप्ता ने ट्वीट कर दी थी। हालांकि, राज्य में आए दिन अलग-अलग मुद्दों और समस्याओं के लिए बंद या प्रदर्शन कोई नई बात नहीं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ऐसी घटना को बंगाल के प्रमुख अखबारों में जगह मिलना तो दूर, प्रदर्शन में दूसरे सामाजिक संस्थानों के प्रतिनिधि या बुद्धिजीवी भी नजर नहीं आए।

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राज्य में बढ़ रही है महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं

राष्ट्रीय महिला आयोग के साल 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक शिकायतों वाले दस राज्यों में से पश्चिम बंगाल आठवें पायदान पर था। साल 2018-19 के दौरान आयोग द्वारा विचार किए गए विशेष मामलों में बंगाल के कई मामले शामिल थे। पिछले दिनों मालदा और बर्धमान जिले में आदिवासी महिलाओं की बलात्कार की घटनाएं राज्य के सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर दोहरा सवाल खड़ा करती हैं। द हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय महिला आयोग ने पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध और मानव तस्करी के मामलों में वृद्धि और बलात्कार पीड़ितों को पुलिस से मदद मिलने में कमी जैसे कई मुद्दों का संज्ञान लेते हुए चिंता व्यक्त की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय महिला आयोग ने राज्य से सुओ मोटो मामले सहित 267 से अधिक शिकायतें पाई जिन पर राज्य पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।

साथ ही, पिछले आठ महीनों में इनकी स्थिति के बारे में पैनल को सूचित नहीं किया गया था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार लापता महिलाओं के मामले में बंगाल साल 2016, 2017 और 2018 में दूसरे पायदान पर था। गायब हुए बच्चों के मामले में भी बंगाल साल 2016 से 2018 तक दूसरे नंबर पर था। लापता महिलाओं के मामले में राजधानी कोलकाता के अलावा बारासत, बैरकपुर और नादिया जैसी जगह सूची में सबसे ऊपर है।

पिछले दिनों मालदा और बर्धमान जिले में आदिवासी महिलाओं की बलात्कार की घटनाएं राज्य के सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर दोहरा सवाल खड़ा करती हैं। द हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय महिला आयोग ने पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध और मानव तस्करी के मामलों में वृद्धि और बलात्कार पीड़ितों को पुलिस से मदद मिलने में कमी जैसे कई मुद्दों का संज्ञान लेते हुए चिंता व्यक्त की थी।

बात सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा और सुविधा की    

बात सार्वजनिक जगहों और वाहनों पर यौन हिंसा या मौखिक रूप से बदसलूकी की करें, तो आज यह एक आम समस्या बन चुकी है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि पुरुषों को सार्वजनिक वाहनों में यातायात की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन ऑटो और टैक्सी ड्राईवरों के पुरुष प्रधान और पितृसत्तात्मक दुनिया में किसी महिला से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह बेबाक हो, अपने पसंद के कपड़े पहने, अपनी मर्जी से बाहर जाए, घूमे, काम करे या खुद अपने खर्चे उठाने में समर्थ हो। इसलिए उन्हें अपने यात्रा के दौरान अपनी सुरक्षा, अश्लील टिप्पणियों का सामना करने या सहयात्री की नीयत की चिंता रहती है।

पिछले दिनों फेसबुक पर बंगाल के लोकल ट्रेन में सफर कर रही कुछ महिलाओं से साथ हुए यौन हिंसा की घटना को साझा किया गया। फेसबुक पर जारी किए गए इस वीडियो में यौन हिंसा करने वाले का आत्मविश्वास और बेफिक्र रवैया चरमराते सामाजिक और कानून व्यवस्था को जाहिर करता है। द इंडियन एक्स्प्रेस में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि पश्चिम बंगाल के रेलवे के अधिकार के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में साल 2021 के अपराध दर में प्रसंशनीय कमी हुई। लेकिन दुर्भाग्य से यह कमी कोरोना महामारी के दौरान राज्य में बंद लोकल ट्रेन यातायात के कारण हुई।

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पश्चिम बंगाल सामाजिक और राजनीतिक रूप से हमेशा ही सक्रिय और सजग रहा है जिसमें महिलाओं ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 34 वर्षों तक लेफ्ट सरकार की सत्ता पर पकड़ के बाद, राज्य में महिला मुख्यमंत्री का लगातार बने रहना भी अपने आप में एक मिसाल है। लेकिन राज्य में राजनीतिक और सामाजिक लड़ाइयों में कई बार महिलाओं की सुरक्षा दांव पर लग जाना भी कोई नई बात नहीं। आज चुनावी हिंसा और राजनीतिक सरगर्मी इस राज्य का हिस्सा बन चुके हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम राज्य के दूसरे छोटे-बड़े जगहों को उतना ही महत्व दें जितना राजधानी कोलकाता को देते आए हैं।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोई नयी बात नहीं। लेकिन सबसे सुरक्षित राज्यों में से एक में कई बार ऐसी घटनाओं का सामने न आना, कमज़ोर मीडिया और बुनियादी समस्याओं की ओर इशारा करती है। महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा की स्थिति और भी भयानक तब हो जाती है जब लोगों को इसकी आदत पड़ जाए। इसके अलावा, हाशिए पर जी रहे समुदायों को भी सुरक्षा, शिक्षा या रोजगार जैसे सभी बुनियादी चीजों का अधिकार होना चाहिए। प्रगतिशील और सुरक्षित होने का दावा करता बंगाल आने वाले दिनों में प्रगतिशील और सुरक्षित तभी हो सकता है जब सभी समुदाय सही मायनों में अपना जीवन जीने के लिए आज़ाद और सुरक्षित हो।  

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तस्वीर साभार : फेमिनिज़म इन इंडिया

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