समाजराजनीति सागरिका घोष: पत्रकारिता से राज्यसभा उम्मीदवार तक का सफर

सागरिका घोष: पत्रकारिता से राज्यसभा उम्मीदवार तक का सफर

बीते फ़रवरी को तृणमूल कांग्रेस द्वारा सागरिका घोष के नाम की घोषणा बाद से लगता है  निष्पक्ष पत्रकारिता और पत्रकारों के राजनीतिक में प्रेवेश को लेकर बहस तेज़ हो गई है।

राज्यसभा चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस के चार सदस्यों के नाम चुनकर आए हैं जिनमें सागरिका घोष भी शामिल हैं। वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार और लेखिका सागरिका घोष का राजनीति में प्रवेश आश्चर्यजनक रूप से  हुआ है, जो लगातार चर्चा का विषय बनी हुई हैं। सागरिका घोष एक मुखर पत्रकार रहीं हैं। वो इससे पहले मीडिया पर सरकार के बढ़ते हस्तक्षेप की खुलकर आलोचना करती रही हैं। सागरिका घोष  का जन्म 8 नवंबर 1964 को एक भारतीय राजनीतिक परिवार में हुआ। वह भारतीय प्रशासनिक सेवा 1960 बैच के पूर्व महानिदेशक और दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक, भास्कर घोष की बेटी हैं। उनकी दो मौसी पूर्व राजदूत और राजनयिक अरुंधति घोष और भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रूमा पाल हैं। उन्होंने पत्रकार राजदीप सरदेसाई से शादी की है, जो पूर्व भारतीय टेस्ट क्रिकेटर दिलीप सरदेसाई के बेटे हैं। सागरिका की माँ का नाम चित्रलेखा घोष था। राजदीप और सागरिका के दो बच्चे हैं, बेटा इशान और बेटी तारिणी।

शुरुआती पढ़ाई और जीवन

सागरिका घोष की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली पब्लिक स्कूल, आरके पुरम से हुई। फिर उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से बीए इतिहास की डिग्री प्राप्त की। 1987 में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रोड्स छात्रवृत्ति मिली, जहां उन्होंने आधुनिक इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद सेंट एंटनी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से एमफिल की डिग्री ली। 1991 में सागरिका घोष ने अपनी पत्रकारिता की शुरूआत की और द टाइम्स ऑफ इंडिया, आउटलुक और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रमुख प्रकाशनों में अपना योगदान दिया। उन्होंने बीबीसी वर्ल्ड के लिए ‘क्वेश्चन टाइम इंडिया’ पर प्राइम-टाइम एंकर के रूप में काम किया और सीएनएन-आईबीएन के लिए डिप्टी एडिटर और प्राइम-टाइम न्यूज़ एंकर के रूप में काम किया।

साल 2012 में, मुकेश अंबानी की रिलायंस ने नेटवर्क 18 का अधिग्रहण कर लिया। चूंकि घोष लगातार मौजूदा भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करती थी, इसलिए उनपर कथित तौर पर दबाव पड़ने लगा। 

सागरिका का काम

सीएनएन-आईबीएन में सागरिका घोष का समय उनके करियर के लिए शानदार समय था।  इसमें उन्हें भारतीय टेलीविजन अकादमी से सर्वश्रेष्ठ एंकर पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक डिबेट शो के लिए राष्ट्रीय टेलीविजन पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते।  यहीं पर उनकी पहली प्रमुख बातचीत तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और नेता, और तत्काल पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के साथ ‘क्वेश्चन टाइम ममता’ नामक एक विशेष कार्यक्रम के दौरान हुई थी, जिसमें सत्ता में उनके पहले वर्ष की बात की गई थी। दो साल बाद, उन्होंने टाउन हॉल में  इसी तरह के एक और कार्यक्रम ‘क्वेश्चन टाइम दीदी‘ के लिए फिर ममता बनर्जी से बात की, जिसके दौरान एक दर्शक द्वारा पूछे गए सवाल से आहत होकर बनर्जी साक्षात्कार से बाहर चली गईं थी।

साल 2012 में, मुकेश अंबानी की रिलायंस ने नेटवर्क 18 का अधिग्रहण कर लिया। चूंकि घोष लगातार मौजूदा भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करती थी, इसलिए उनपर कथित तौर पर दबाव पड़ने लगा। इसके साथ-साथ उन पर पार्टी के खिलाफ अपनी बात मुखरता से रखने के कारण भाजपा समर्थकों का ऑनलाइन ट्रोलिंग और दबाव भी झेलना पड़ा।  धीरे-धीरे यह स्थिति उनके स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए कठिन बन गई।  

उन्होंने कई किताबें भी लिखीं जिनमें 2017 में ‘इंदिरा: इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर’, 2018 में ‘व्हाई आई एम ए लिबरल: ए मेनिफेस्टो फॉर इंडियंस हू बिलीव इन इंडिविजुअल फ्रीडम’ और 2022 में अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी शामिल है। 

सीएनएन-आईबीएन से इस्तीफा

2013 में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल के साथ घोष का ट्विटर साक्षात्कार चुनावों से पहले किसी भारतीय राजनेता द्वारा सोशल मीडिया पर साक्षात्कार देने का पहला उदाहरण बन गया।  घोष ने 5 जुलाई 2014 को सीएनएन-आईबीएन से अपने पति, जो सीएनएन-आईबीएन में प्रधान संपादक थे, के साथ अपने पद से इस्तीफा दे दिया। कुछ ही समय बाद, वह एक परामर्श संपादक के रूप में फिर से टीओआई में शामिल हो गईं। वह वर्तमान में टाइम्स ऑफ इंडिया की सलाहकार संपादक हैं और ईटी नाओ पर एक राजनीतिक टिप्पणीकार भी हैं। पत्रकार होने के साथ-साथ सागरिका एक बेहतरीन लेखिका भी हैं। उन्होंने  दो उपन्यासों की लेखन की है। 1998 में द जिन ड्रिंकर्स,  और  2004 में ब्लाइंड फेथ, प्रकाशित हुई।  द जिन ड्रिंकर्स नीदरलैंड में भी प्रकाशित हुआ था।

पत्रकार के साथ-साथ लेखिका भी

उन्होंने कई किताबें भी लिखीं जिनमें 2017 में ‘इंदिरा: इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर’, 2018 में ‘व्हाई आई एम ए लिबरल: ए मेनिफेस्टो फॉर इंडियंस हू बिलीव इन इंडिविजुअल फ्रीडम’ और 2022 में अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी शामिल है। अपने शानदार काम के लिए उन्हें अपने जीवन में  पत्रकारिता में कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 2013 में सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक डिबेट शो के लिए नेशनल टेलीविजन पुरस्कार मिला। वहीं 2009 में पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए भारतीय टेलीविजन अकादमी से सर्वश्रेष्ठ एंकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। घोष को 2005 में फ़िक़्क़ी लेडीज ऑर्गनाइजेशन से पत्रकारिता में उत्कृष्टता पुरस्कार (अपराजिता पुरस्कार) से सम्मानित किया गया। 2012 में  सेंट स्टीफंस कॉलेज से प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों के लिए सीएफ एंड्रयूज पुरस्कार मिला। वहीं 2014 में, रोड्स प्रोजेक्ट ने घोष को 13 प्रसिद्ध महिला रोड्स स्कॉलर्स की सूची में शामिल किया। 2017 में उन्हें  पत्रकारिता के लिए सी एच मोहम्मद कोया राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनकी पहली प्रमुख बातचीत तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और नेता, और तत्काल पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के साथ ‘क्वेश्चन टाइम ममता’ नामक एक विशेष कार्यक्रम के दौरान हुई थी, जिसमें सत्ता में उनके पहले वर्ष की बात की गई थी। 

पहले राजनीति में न जाने की थी बात

बीते फ़रवरी को तृणमूल कांग्रेस द्वारा सागरिका घोष के नाम की घोषणा बाद से लगता है  निष्पक्ष पत्रकारिता और पत्रकारों के राजनीतिक में प्रेवेश को लेकर बहस तेज़ हो गई है। 13 मार्च 2018 को सागरिका घोष का एक ट्विट वायरल होने लगा, जिसमें उन्होंने ने राजनीति में अपने प्रवेश की अटकलों को दरकिनार करते हुए लिखा था कि मैं कभी किसी पार्टी से राज्यसभा टिकट नहीं लूंगी। ये मैं आपको लिखकर दे सकती हूं, और आप मेरे ट्वीट को सेव कर सकते हैं।’

हालाँकि अब इस पोस्ट के सामने आने के बाद सागरिका ने जवाब देते हुए लिखा है कि उनका ट्वीट 6 साल पहले (2018) का है, जो व्यापक रूप से प्रसारित हो रहा है।  उस समय वे एक कामकाजी पत्रकार थी। उस समय मैं एक कामकाजी पत्रकार थी और हां, उस समय रातों-रात दलगत राजनीति में चले जाना मेरे लिए अनुचित होता। हालाँकि मैं 2020 मैंने पूर्णकालिक पत्रकारिता बंद कर दी है। मैं पिछले 3 वर्षों से फ्रीलांसर हूँ। विभिन्न समाचार पत्रों के लिए स्तंभकार की तरह लिख रही हूँ। इसलिए, सार्वजनिक जीवन में कदम रखने से पहले मुझे पूर्णकालिक पत्रकारिता से 3 साल की कूलिंग ऑफ अवधि मिली है।  आज जब बढ़ती सत्तावादी मोदी सरकार किसी भी संस्थागत प्रतिबंध को नहीं मानती है और लगभग पूरी तरह से मीडिया पर कब्जा कर लिया है, संवैधानिक लोकतंत्र के प्रति मेरी प्रतिबद्धता ने मुझे लोकतांत्रिक स्थानों और लोकतांत्रिक प्रतियोगिता को जीवित रखने के लिए तृणमूल काँग्रेस की साहसी लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है।’

खुदको बताती हैं लोकतांत्रिक विचारधारा की समर्थक

वहीं आपने नाम की घोषणा होने के बाद श्रीमती घोष ने पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री का धन्यवाद करते हुए कहा, वे राज्यसभा के लिए नामांकित होने पर प्रसन्न और सम्मानित महसूस कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि वे भारत की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अदम्य साहस से प्रेरित हैं।  संवैधानिक लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति मेरी प्रतिबद्धता अटल है। सागरिका घोष ने न्यूज़ लॉन्ड्री को दिए एक साक्षात्कार में पूछे गए वाला के जवाब में कहा था कि वो राजनीति की उदार लोकतांत्रिक विचारधारा की समर्थक हैं। लेकिन उनका किसी पार्टी से कोई संबंध नहीं। वहीं उसी साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि राहुल गांधी पर किए गए एक सर्वे के बाद उनपर लगातार सत्ता रूढ़ पार्टी की तरफ से बीजेपी के विरोधी और कांग्रेस के समर्थक जैसे आरोप लगते रहे हैं। उन पर तथाकथित हिंदू विरोधी और देशद्रोह होने के भी आरोप लगते रहें और ऑनलाइन उन्हें ट्रोलिंग और धमकियां मिलती रहीं हैं।

राज्यसभा में चुने जाने के बाद सागरिका घोष ने पश्चिम बंगाल में हुए हालिया संदेशखाली मुद्दे पर अपना बयान दिया है। यह आने वाले समय में देखने वाली बात होगी कि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं के राजनीति में आने से महिलाओं की आवाज़ को सदन तक पहुंचाने का उचित माध्यम मिलता है या नहीं।

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