भारत में महिलाओं का राजनीति में हिस्सेदारी एक तरह से समाज में जागरूकता का परिचय है क्योंकि घर के देहरी से निकल कर महिलाओं का कुछ करना ना कल आसान था न आज है। आज़ादी के इतने साल बाद भी समाज महिलाओं की हिस्सेदारी को जल्दी स्वीकार नहीं करना चाहता है। लेकिन इसके बावजूद भी महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। हालांकि भारतीय परिदृश्य में राजनीति किसी के लिए भी आसान नहीं लेकिन महिलाओं के लिए राजनीति में आना और भी मुश्किल है। राजनीति लोगों से मिलने-जुलने, समय और पैसे की मांग करती है जो महिलाओं के लिए और भी मुश्किल है।
भारत के राजनीति में जब हम महिलाओं के हिस्सेदारी को लेकर बात करते हैं, तब कई नेत्री का चेहरा उभर कर सामने आता है। इंदिरा गाँधी, सुषमा स्वराज, मायावती, सुमित्रा महाजन, ममता बनर्जी, जयललिता, प्रतिभा देवीसिंह पाटिल आदि जैसी प्रमुख नेत्री इसमें शामिल हैं। इन महिलाओं ने समाजिक रूढ़िवाद को तोड़ते हुए पुरुष तांत्रिक राजनीति में अपना परचम लहराया है जो हमेशा से पुरुषों के हिस्से थी। हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव रहा है लेकिन वो रूकी नहीं और आगे बढ़ती रहीं।
ऐसे ही एक नेत्री हैं उषा वर्मा जो समाजवादी पार्टी का उभरता हुआ चेहरा है। वो तीन बार हरदोई (उत्तरप्रदेश) से सांसद रह चुकी हैं। इसके साथ–साथ वह 2002 में विधानसभा का चुनाव भी जीत चुकी हैं। उस वक्त मुलायम सिंह यादव की सरकार थी जिसमें उन्हें राज्यमंत्री का पद सौंपा गया। लेकिन गत तीन चुनावों से उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा है। 2014 में 16 वें लोकसभा के लिए हुए चुनाव में उन्हें पहली बार हार का सामना करना पड़ा था दूसरी बार 2019 में 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भी उन्हें हार मिली। वहीं तीसरी बार 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सांडी विधानसभा से भी वह जीत नहीं पायी थी।
उषा वर्मा का जन्म और कामकाज
उषा का जन्म 5 मई 1963 को हरिद्वार, उत्तराखंड में हुआ था। वह उत्तर प्रदेश, रुड़की के एसडी डिग्री कॉलेज और बीएसएम डिग्री कॉलेज से अंग्रेजी विषय में मास्टर की डिग्री हासिल की हैं। वह गाना, खाना बनाने के साथ-साथ पेंटिग में भी अपनी रूचि रखती हैं। उषा राजनीति के साथ-साथ सामजिक कार्यों में रूचि रखती हैं। उनकी शादी हरदोई के बड़े नेता और दो बार सांसद और छः बार विधायक रह चुके परमाई लाल के बेटे लाल बिहारी के साथ हुआ था। उषा हमेशा एक आदर्श समाज के लिए काम करती रही हैं। उन्होंने दलित, गरीब, बच्चों और महिलाओं के उत्थान के लिए भी काम किया है।
वह 1999 में महिला सशक्तिकरण की संयुक्त समिति की सदस्य भी थीं। फिर 2004 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण समिति की सदस्य और 2004 से 2009 तक सामाजिक न्याय और अधिकारिता समिति की सदस्य भी रहीं। वह हमेशा लोगों की बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए तत्पर्य रही हैं। वह हमेशा ही समाज के पिछड़े हुए वर्ग के लिए काम करती रहीं हैं। सामाजिक कार्यकर्त्ता के साथ- साथ वह एक अच्छी नेत्री बनने के क्रम में दिखती हैं।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
उषा एक राजनीतिक परिवार से आती हैं। उनके ससुराल में लगभग सभी लोग राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उषा ने अपने राजनीति के सफर की शुरुआत शादी के बाद किया। वह पहली बार 1995 में ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक सफर की आगाज़ की। ऊषा वर्मा पहली बार साल 1998 में सपा के टिकट चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। उन्होंने बीजेपी के जीत के सिलसिले को तोड़ा था। 2002 में वह विधायक बनी थीं। सपा सरकार में राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं। ऊषा वर्मा ने 2004 और 2009 में सपा उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की। हालांकि 2014 में वह तीसरे स्थान पर खिसक गईं। वहीं 2019 में भी उनको बीजेपी प्रत्याशी जयप्रकाश रावत ने करीब 1 लाख 32 हजार वोटों से चुनाव हराया। 2022 विधानसभा चुनाव में सपा ने उनको सांडी से उम्मीदवार बनाया लेकिन उनको यहां भी हार का सामना करना पड़ा।
उषा वर्मा तीन बार हरदोई से सांसद रह चुकी हैं और एक बार विधायक भी रह चुकी हैं। पिछले तीन बार से उनके राजनीतिक जीवन में उतार–चढ़ाव आ रहे हैं। गत दो लोकसभा चुनाव और एक विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इतनी बार असफलता के बावजूद भी वह पीछे नहीं हटी हैं। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। सपा ने इस बार फिर 18 वीं लोकसभा चुनाव में हरदोई लोकसभा से इन्हें चुनावी मैदान में उतारा है।