स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य पीरियड्स की समस्या पर घरवाले कहते हैं, “अपने आप ठीक हो जाओगी”

पीरियड्स की समस्या पर घरवाले कहते हैं, “अपने आप ठीक हो जाओगी”

हमारे घरों में आज भी पीरियड्स और उससे जुड़ी बातों को एक राज के तौर पर रखा जाता है जैसे कि वो खुल गया तो आपके बारे में क्या सोचा जाएगा। इसके बारे में ना कोई बात की जाती है और ना ही कोई समझ बनाई जाती है। कुछ पूछने पर मम्मी बताती है कि ये हर महीने होता है, सभी लड़कियों को होता है और कपड़ा/पैड लगा लेने की बात कहती हैं।

हमारे घरों में बच्चे के जन्म लेते ही जेंडर रोल के आधार पर घरेलू, बाहरी और कई अन्य कामों का बंटवारा कर दिया जाता है। इन्हीं के आधार पर कई सुविधाओं, जरूरतों में भी जेंडर आधारित बंटवारा और असमानता एक आम सी बात हो गई है। जैसे अगर लड़का हुआ तो उसके स्वास्थ्य, शिक्षा, काम, सपने, पसंद आदि को लेकर सोच और प्रयास बढ़ जाते हैं। वहीं इसी का ठीक उल्टा लड़की होने पर किया जाता है। इतना ही नहीं, अभी अन्य समुदायों और पहचान वाले लोगों को तो समाज और घरों ने कहीं स्थान दिया ही नहीं है।

कितना अलग है लड़का और लड़की होना

जेंडर के आधार पर खान-पान, रहन सहन, तौर-तरीके, शिक्षा, काम की सुविधा, जरूरतों आदि में एक ही परिवार के सदस्यों में लड़का और लडकी होने के नाते कितना अंतर होता है। यही अंतर है जो लड़कियों के स्वास्थ्य संबधी सुविधाओं तक पहुँच के लिए उत्तरदायी होता है, तो कभी सही चिकित्सा या स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने पर कई बार जानलेवा भी बन जाता है। ग्रामीण समुदाय में किशोरियों से जब उनके स्वास्थ्य पर मैंने बात की, तो आरती (बदला हुआ नाम) ने जवाब दिया, “लड़कियों पर कौन ध्यान देता है? लड़के का काम कमाना है, बाहर की दुनिया में घूमना है, लड़के बड़ी मेहनत करते हैं और थक जाते हैं। इसलिए उनपर ध्यान देना जरूरी है। उनके खान-पान पर, तबीयत पर क्योंकि लड़के बढ़ते हैं।

जब डॉक्टर के लिए मैंने बोला तो कहा कि ठीक हो जाएगा, इतना भी गंभीर नहीं है। घर का काम करोगी, चलोगी-फिरोगी तो ठीक हो जाएगा। वहीं जब मेरा भाई बीमार हुआ तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास दिखाने के लिए ले गए और उसका इलाज करवाया। लड़कियों को डॉक्टर के पास जब ज्यादा तबीयत खराब होती है तब ही ले जाते हैं। यही कहानी हर घर की लड़की की है।

लिंग के आधार पर खान-पान में भेदभाव

लड़की का क्या है, घर में रहती है। कहां बाहर जाएगी, कौन सा निहाल करेंगी। अगर करेंगी भी तो अगले घर को निहाल करेंगी। हमारा तो बस खर्चा करवाएगी।” आरती बताती है कि उनके यहां लड़कियों के बारे में इसी प्रकार की धारणा है क्योंकि लड़कियों को पराया धन माना जाता है और ससुराल में ही उनका दाना-पानी होता है। आरती कहती हैं, “रोज हम देखते हैं कि मम्मी भाई को तो ग्लास भर कर दूध पीने को देती है और हमें चाय और दूध मिलावट करके।” हमने कहा कि हमको भी दूध दो तो वह कहती है कि भाई ज्यादा काम करता है। इसलिए उसे दूध की जरूरत है। मुझे कौन सा काम करना है। लड़कों का ही पसंद का खाना बनता है घर में। 

क्या लड़कियों को चिकित्सा का अधिकार नहीं

एक बार जब मेरे पेट में दर्द हुआ तो घरवालों ने घरेलू उपचार किया और जब उससे भी ठीक नहीं हुआ तो महाराज (साधु जो भाव देखते हैं) के पास ले गए, और झाड़-फूँक करवाए। मैं चुपचाप दर्द सहती चली गई। जब डॉक्टर के लिए मैंने बोला तो कहा कि ठीक हो जाएगा, इतना भी गंभीर नहीं है। घर का काम करोगी, चलोगी-फिरोगी तो ठीक हो जाएगा। वहीं जब मेरा भाई बीमार हुआ तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास दिखाने के लिए ले गए और उसका इलाज करवाया। लड़कियों को डॉक्टर के पास जब ज्यादा तबीयत खराब होती है तब ही ले जाते हैं। यही कहानी हर घर की लड़की की है।

पीरियड्स से जुड़ी घरों में रूढ़िवाद

हमारे घरों में आज भी पीरियड्स और उससे जुड़ी बातों को एक राज के तौर पर रखा जाता है जैसे कि वो खुल गया तो आपके बारे में क्या सोचा जाएगा। इसके बारे में ना कोई बात की जाती है और ना ही कोई समझ बनाई जाती है। कुछ पूछने पर मम्मी बताती है कि ये हर महीने होता है, सभी लड़कियों को होता है और कपड़ा/पैड लगा लेने की बात कहती हैं। ना इससे आगे कोई जानकारी, ना ही प्रोसेस के बारे में बताया जाता है। घर के पुरूषों के सामने तो इस बात पर बात करने का मतलब आपने कोई शर्मिंदगी का काम कर दिया है। कोई पाप किया है और अशुभ बात कह दी है। वहीं स्कूलों में जहां विज्ञान की किताबों में पीरियड्स पर चैप्टर आते ही पूरे चैप्टर को पढ़ाने के बजाय खुद से पढ़ लो कहा जाता है। फिर चाहे टीचर महिला हो या पुरुष, इसे पढ़ाने में वे शर्मिंदगी महसूस करते हैं।

पीरियड्स को बीमारी समझती किशोरियाँ

तस्वीर साभारः Youth Ki Awaaz

किशोरियां पीरियड्स के बारे में जानकर नहीं है। कुछ किशोरियों का कहना था कि पीरियड्स एक रोग है और गंदा खून शरीर से बाहर निकलता है। ऐसे माहौल में और रूढ़िवादी सोच के साथ पीरियड्स और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्या, केयर को लेकर बात करना बहुत जरूरी है और यह समझना भी कि पीरियड्स ये कोई बीमारी नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और शारीरिक विकास से जुड़ा अहम हिस्सा है। इसके बारे में जानना और समझ बनाना सभी के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि बाकी हेल्थ प्रोसेस के बारे में जानना। सिर्फ महिलाओं को ही इसे समझना है, यह धारणा भी सही नहीं है।

स्वच्छता उत्पादों की कमी में जीती किशोरियाँ

जब पीरियड्स होते हैं तो आमतौर पर लड़कियां पैड का इस्तेमाल करती है। लेकिन वहीं ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी लड़कियां हैं जो पैड नहीं खरीद पाती है। इस कारण वे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। कितने समय में बदले या ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुआ है, तो कई घंटों तक एक ही पैड/कपड़े को लगाए रखना, कपड़ा सही से धुला और सूखा नहीं है, जननांगों की ठीक से सफाई नहीं हुई क्योंकि इस बारे में तो किसी ने बताया ही नहीं। ये सारी चीजें इंफेक्शन के खतरों को बढ़ाती है। लड़कियां इसके बारे में किसी को बता नहीं पाती क्योंकि पीरियड्स के बारे में बात करने को ही एक अलग नजरिया बना दिया है, तो वहीं जननांग में इन्फेक्शन की बात को लेकर शर्म महसूस करती है और बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। जहां पेट दर्द होने पर डॉक्टर को नहीं दिखाते, वहां इन सब के बारे में परिवार में बात रखना इतना मुश्किल है।

डॉक्टर को दिखाना ही है मुश्किल

डॉक्टर को दिखाना मतलब लोग क्या सोचेंगें वहां प्रेगनेंट औरतें ही आती है। महिला डॉक्टर ही होनी चाहिए। जब पीरियड्स में देरी होती है, तब तो शक के घेरे में देखा जाता है। “तुम्हारी किसी लडके से दोस्ती तो नहीं है, कहीं तुमने कुछ गलत किया है।” इन सभी चीजों का इतना डर होता है कि डॉक्टर को चेक करवाने से लड़कियां डरती हैं। “जब पायल को पेट दर्द हुआ और पीरियड आए तो 3 महीने तक लगातार पीरियड्स हो रहे थे। किसी को कहने से डर था तो संस्था की दीदी से अपनी बात कही और उन्होंने डॉक्टर को दिखाया, दवा दिलवाई।

कुछ किशोरियों का कहना था कि पीरियड्स एक रोग है और गंदा खून शरीर से बाहर निकलता है। ऐसे माहौल में और रूढ़िवादी सोच के साथ पीरियड्स और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्या, केयर को लेकर बात करना बहुत जरूरी है और यह समझना भी कि पीरियड्स ये कोई बीमारी नहीं है।

घरेलू काम के बीच पीरियड्स की चुनौतियाँ

कई लड़कियों को पीरियड्स आने में देरी होती है। एक ने बताया कि पहले तो खुशी हुई कि अभी नहीं आए तो अच्छा है। घरवालों को बताया नहीं, कभी चक्कर तो कभी पेट दर्द होता। शरीर जैसे काम नहीं कर रहा हो, घर और खेत के काम का दबाव। पर जब 3-4 महीने पीरियड नहीं आए तो डर भी लगा। जब दोस्तों से बात की और दीदी को बता कर डॉक्टर को दिखाया तो पौष्टिक खाना ना मिलने और शरीर में खून की कमी के कारण पीरियड्स में दिक्क्त बताई गई और खून चढ़वाया गया। दवाई मिली और खान-पान का ध्यान रखने के लिए कहा गया जब यह बात घर में बताई तब जाकर ध्यान दिया गया और हालत ठीक हुई।

पीरियड्स की समस्याओं को किया जा रहा है नजरंदाज

‘गर्ल्स नॉट ब्राइड्स’ ने जो ग्रामीण किशोरियों के साथ बाल विवाह रोकथाम और किशोरियों के मुद्दों पर काम करती है, कोविड के दौरान लॉकडाउन के स्थिति में लड़कियों के स्वास्थ्य पर एक सर्वे और रीसर्च किया था। इसमें यह सामने आया कि लड़कियों के खान-पान और स्वास्थ्य से परिवार लापरवाही, भेदभाव करता है जिससे लड़कियों को पीरियड्स के दौरान कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संतुलित आहार और पौष्टिक खाना ना मिलने से जहां आयरन की कमी से लड़कियों में खून की कमी हो रही है, तो वहीं उनका मासिक चक्र साल में 12 के बजाय घटकर 7 या 8 ही हो गया है और हार्मोन बैलेंस ना होने के कारण ज्यादातर लड़कियों में प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव आगे जाकर उनके प्रजनन पर तो होगा ही और जानलेवा भी हो सकता है। इस बात की जानकारी ना तो किशोरियों को होती है और न परिवार इस बात को समझता है। वे इसे समझने के बजाय अभी भी रूढिवादी विचारधाराओं में घिरे हैं। उनका मानना है कि लड़कियां घर का काम करे तो ठीक हो जाएगी। हमारे जमाने में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। 


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