अमरजोत कौर एक पंजाबी गायक थीं। वह अमर सिंह चमकीला के बैंड की प्रमुख महिला गायक थीं। 1980 के दशक में जब पंजाब में अस्थिरता और अलगाववादियों का दौर चरम पर था तब अमरजोत कौर अपने बैंड के साथ मिलकर उन गानों को पेश करती थी जो पितृसत्तात्मक समाज की वास्तविकता थी। अमरजोत कौर और अमर सिंह चमकीला ने मिलकर अपने गानों से पूरे प्रांत में क्रांति कर दी थी। एक तरफ़ तो इनकी जोड़ी की आलोचना होती थी वहीं दूसरी तरफ इन दोनों की जोड़ी को दर्शकों ने पंजाब में ही नहीं विदेशों में भी पसंद किया। अमरजोत कौर उन दिनों लाइव संगीत प्रस्तुति देती थी जिसे पंजाब में ‘अखाड़ा’ कहा जाता है।
पंजाब के आज तक के इतिहास में चमकीला एकमात्र गायक है जिसके नाम न केवल साल के 365 दिनों में 366 लाइव कार्यक्रम करने का रिकॉर्ड है बल्कि वह पंजाबी म्यूजिक के इतिहास में सबसे ज्यादा बिकने वाला कलाकार भी है, अर्थात चमकीला को सबसे ज्यादा सुना गया है और उसके गाए गानों को सबसे ज्यादा खरीदा गया है। अमर सिंह चमकीला की सफलता का बखान करते समय हम इस तथ्य को नहीं नकार सकते कि चमकीला अकेले इस जादुई मुकाम पर कभी भी नहीं पहुंच पाते यदि उनके साथ उनकी जोड़ीदार अमरजोत कौर ना होती, क्योंकि पंजाबी गायन में यह दौर जुगलबंदी का था और अमर सिंह की अमरजोत कौर के साथ ऐसी सफल जुगलबंदी बनी कि फिर आज तक वैसी जुगलबंदी कोई भी दूसरा कलाकार नहीं बना पाया।
अमरजोत कौर जो एक जट्ट सिख परिवार से संबंध रखती थी, (पंजाब में जट्ट वो जाति है जिसका प्रांत की भूमि, साहित्य और राजनीति पर नियंत्रण है) ने एक दलित युवक अमर सिंह चमकीला के साथ गाना शुरू किया और बहुत कम समय में दोनों की जोड़ी पूरे पंजाब में सुपर हिट हो गई। इस जोड़ी ने उस दौर में सामंती और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती देने वाले गाने गाए और पारिवारिक रिश्तों में जैसे जीजा-साली, देवर-भाभी या ससुर-बहू के अवैध संबंधों को अपने गानों के माध्यम से समाज के सामने पेश किया जिसे समाज के एक बड़े हिस्से ने सराहा भी परंतु कुछ सामंती जमींदारों ने इनके गानों को अश्लील करार देते हुए विरोध किया। इसके बावजूद ये जोड़ी अपने अंतिम समय तक समाज की असली तस्वीर आम जन के सामने लाती रही।
जब अमरजीत कौर और चमकीला की जोड़ी बनी
अमर सिंह चमकीला का नाम तो प्रसिद्धि पाता रहा परंतु पुरुष प्रधान समाज द्वारा अमरजोत कौर का नाम छुपा दिया गया। 23 वर्षीय अमरजोत कौर ने आज से 41 वर्ष पूर्व एक दलित लड़के से अंतरजातीय शादी करके समाज में एक मिसाल पेश की और ये दिखाया कि यदि उसके इरादों के सामने जाति जैसी बड़ी रुकावट भी आएगी तो वो उसे भी तोड़ते हुए बिना रुके आगे बढ़ेगी। हालांकि दलित लड़के से शादी न करने और उसके साथ गाने ना गाने के लिए समाज द्वारा उस पर बहुत दबाव बनाया गया था परंतु क्रांतिकारी अमरजोत कौर ने समाज के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया। उन्होंने शादी से लेकर अपनी अंतिम सांस तक चमकीला का साथ दिया और एक ऐसा मुकाम हासिल किया जिसे कोई दूसरा आज तक हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाया है। उन्होंने कुलदीप मानक के सुझाव पर बैंड के साथ काम करने का सुझाव दिया। चमकीला उन दिनों बैंड के लिए एक महिला गायिका को ढूढ़ रहा था। दोनों की एक साथ हिट जोड़ी बन गई और इतिहास में नाम दर्ज करा लिया।
अपने फैसलों के ज़रिये पितृसत्तात्मक समाज को दी चुनौती
सवाल ये उठता है कि आज से साढ़े चार दशक पहले जब उत्कृष्ट हौंसले वाली अमरजोत कौर जातिवाद को चुनौती देते हुए दलित लड़के से शादी करने और पितृसत्तात्मक समाज में फैली कुरीतियों पर अपने निर्भीक गायन के माध्यम से प्रहार करने का साहस जुटाती है तो उसे समाज द्वारा दुत्कार दिया जाता है। अमरजोत ने जो कुछ उस पिछड़ेपन और कठिन दौर में कर दिखाया वो आज भी कर पाना लड़कियों के लिए मुश्किल है परंतु इसके बावजूद अमरजोत के संघर्ष और मेहनत को भुला दिया गया। इस धरती पर जिस पहचान और सम्मान की वो हकदार थी उसे वो नहीं दिया गया और उसके विपरीत उनके योगदान और उपलब्धियो को छुपाया गया।
पितृसत्तात्मक समाज द्वारा उसे ये सजा इसलिए दी गई क्योंकि उसने एक महिला होते हुए पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती देने का साहस दिखाया। इसके अलावा एक मुख्य कारण ये भी रहा है कि पंजाबी इतिहासकार ज्यादातर पुरुष हैं और जट्ट जाति से संबंध रखते हैं और यदि वो अमरजोत कौर की सफलताओं को लिखते तो निश्चित तौर पर उन्हें चमकीले के साथ लिखा जाता जो कि समाज को नापसंद था। क्योंकि इससे अमरजोत द्वारा दलित चमकीले से की गई शादी भी गौरवान्वित हो जाती और समाज को आईना दिखाते हुए उनके द्वारा गाए गए क्रांतिकारी गानों को भी प्रसिद्धि मिल जाती। इससे आने वाली पीढ़ियों की लड़कियों के लिए अमरजोत कौर एक आइकन बन जाती और संभव है कि पंजाब की धरती पर फिर असंख्य अमरजोत पैदा होती और समाज को चुनौती देते हुए आगे बढ़ती।
आज इंटरनेट क्रांति के दौर में भारत में शायद अमरजोत कौर एकमात्र हस्ती है जिनके बारे में इंटरनेट पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, अमरजोत कौर पर इंटरनेट मौन साधे हुए है। आज तक गूगल पर उनका कोई विकिपीडिया पेज तक नहीं बनाया गया जबकि गूगल और इंटरनेट पर साधारण से साधारण लोगों की जानकारी भरी पड़ी है। इतना ही नहीं इंटरनेट पर अमरजोत कौर के जन्मदिन तक के बारे में जानकारी नहीं है। अमरजोत कौर के बारे में उनके जन्मदिन जैसी बहुत ही साधारण जानकारी जुटाने के लिए आपको कड़ी जद्दोजहद का समाना करना पड़ेगा।
इसके अलावा पंजाब के हर तीसरे-चौथे गाने में चमकीला का जिक्र किया जाता है, मौजूदा पंजाब के तमाम बड़े गायक चमकीला को अपना प्रेरणास्त्रोत बताते हैं और उनका जिक्र अपने गानों में करते हैं, परंतु पंजाब या बाहर के किसी भी पुरुष या महिला गायक द्वारा कभी भी अमरजोत कौर का जिक्र नहीं किया गया। किसी ने उन पर ना तो गाने बनाए और ना ही फिल्म बनाई क्योंकि अमरजोत कौर ने रूढ़िवादी समाज और पितृसत्तात्मक सोच को कड़ी चुनौती दी इसलिए उसे गुमनामी के अंधेरे में रखा गया और अब भी रखा जा रहा है।
अमरसिंह चमकीला को तो लीजेंड माना गया परंतु उनके लीजेंड बनने के संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर उनका साथ देते हुए अंतिम सांस तक खड़ी रहने वाली अमरजोत कौर को लीजेंड मानना तो दूर बल्कि उनके नाम को ही अदृश्य कर दिया गया। और ये सच है कि यदि वो न होती तो चमकीला कभी लीजेंड चमकीला नहीं बन पाता। क्योंकि चमकीला जिस वोकल स्तर पर गाते थे उनके बराबर गाना हर किसी के बूते की बात नहीं थी, ये केवल अमरजोत कौर ही कर पायी थी। जहां अमर सिंह चमकीला को एल्विश ऑफ पंजाब जैसी उपाधियां दी गई वहीं अमरजोत कौर को उपाधि तो दूर उनके बारे में बातचीत भी न के बराबर हुई। उन्हें ऐसी कोई उपाधि क्यों नहीं दी गई, जबकि चमकीला की सफलता दोनों की जुगलबंदी पर आधारित थी।इतना ही नहीं चमकीला जोड़ी की हत्या के बाद सारी चर्चा में अमर सिंह चमकीला का जिक्र रहा, कभी भी किसी ने अमरजोत कौर का जिक्र नही किया कि अमरजोत कौर की हत्या क्यों हुई, हमेशा कहा गया कि अमर सिंह चमकीला की हत्या क्यों हुई।
अमरसिंह चमकीला के समानांतर प्रतिभाशाली अमरजोत कौर को भुलाना पितृसत्तात्मक और जातिवादी समाज के चेहरे को सामने लाता है ताकि उनका संघर्ष अन्य लड़कियों के लिए ताकत और प्रेरणा न बन सके। हमारे देश के सभी भागों में आमतौर पर सुनने को मिलता है कि ‘प्रत्येक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है’ अर्थात पुरुषों की सफलता में महिलाओं का भी अहम योगदान होता है, परंतु अमरजोत कौर जैसे लाखों उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि महिलाओं को वो पहचान कभी भी नहीं मिल पाती जिसकी वो हकदार होती हैं।
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