हिमाचल प्रदेश के मंडी से अभिनेत्री कंगना रनौत के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नामांकन हासिल करने की खबर ने बॉलीवुड के कुछ दिग्गजों समेत कई लोगों को परेशान कर दिया है। एक समय में बॉलीवुड की सफल फिल्मी सितारों में से एक, कंगना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कट्टर समर्थक होने के अलावा, हिंदुत्व विचारधारा की प्रबल समर्थक हैं और अब मंडी लोकसभा सीट से राजनीति के क्षेत्र में उतरने के लिए तैयार हैं। ऐसा लगता है कि कंगना ने अपने करियर की दूसरी पारी खेलने के लिए अपने पत्ते अच्छे से खेले और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं को मात दी, जहां दशकों से पार्टी के लिए काम करने के अनुभव के बावजूद पार्टी टिकट कंगना ने बखूबी बटोरा।
हालांकि कंगना विभिन्न कारणों से चर्चा और खबरों की सुर्खियों में रही हैं। लेकिन हालिया दिनों में उनका वह वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह सुभाषचंद्र बोस को देश का पहला प्रधान मंत्री बता रही थीं। कंगना असल में सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या से मौत के बाद से अपने बयानों ने कारण चर्चा का विषय रहीं और अबतक बनी हुई हैं। साल 2020 में सुशांत की आत्महत्या से मौत होती है। इसके बाद जो हुआ, वो शायद बॉलीवुड और राजनीति का खेल था, जिसे कथित मेनस्ट्रीम मीडिया ने काफी तूल दी और लोग एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नज़र आए। सुशांत की आत्महत्या से मौत के बाद, शुरुआत में इसे मुंबई पुलिस ने आत्महत्या घोषित किया था।
कुछ ही दिनों में हैशटैग ‘जस्टिस फॉर एसएसआर’ ट्रेंड करने लगा और अचानक सोशल मीडिया पर बॉलीवुड पर ‘भाई-भतीजावाद’ के लिए आरोप लगाए गए, जिसने कथित रूप से एक प्रतिभाशाली अभिनेता को ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया था। इस पूरे घटना में सोशल मीडिया पर ‘बॉलीवुड का बहिष्कार’ एक प्रमुख विषय था। सुशांत के आत्महत्या से मौत के बारे में लगातार ट्वीट्स के साथ, इस अभियान में एक प्रमुख नाम के रूप में कंगना रनौत भी उभरीं।
मोदी से लेकर नेपोटिज़म पर बेबाकी
कंगना हमेशा से विभिन्न विषयों पर मुखर रही हैं। पर जनता जिस बात के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद रखी है, वह है उनकी बेबाकी। चाहे करण जौहर के शो पर नेपोटिज़म की बात हो, नरेंद्र मोदी की खुलकर तारीफ़ या अपने साथी अभिनेता या अभिनेत्री को पलट कर जवाब देना हो, सोशल मीडिया पर इनकी मौजूदगी भूली नहीं जा सकती।
वह एक छोटे शहर से हिंदी सिनेमा में आईं और एक समय में शीर्ष पर पहुंचीं। वह न केवल बॉलीवुड के लिए, बल्कि अंग्रेजी बोलने वाले अभिजात्य वर्ग के लिए भी एक बाहरी व्यक्ति हैं। वह तब भी सुर्खियों में रहीं जब अभिनेता रितिक रोशन के साथ उनका झगड़ा फिल्मी उद्योग के इतिहास में दर्ज किया गया, जिसने कई शक्तिशाली फिल्मी परिवारों को प्रभावित किया था।
राजनीतिक रुझान, बेतुके बयान और मोदी की फैन
कई बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के बीच, कंगना न केवल अपने हिंदुत्ववादी विचारधारा के लिए लोकप्रिय नहीं बन पाई, बल्कि उनके अंग्रेजी उच्चारण और फैशन सेंस का लगातार मजाक उड़ाया जाता रहा है। वह उन लोगों पर हमेशा पलटवार की हैं, जो मानते थे कि बाहरी लोग बॉलीवुड में नहीं टिकते हैं। 2019 के बाद से, कंगना को ज्यादा ‘राजनीतिक’ पाया गया, जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर टिप्पणी और बयान देना शुरू कर दिया। कंगना के एक इंटरव्यू ने तब हंगामा खड़ा कर दिया, जब उन्होंने कहा कि भारत को 2014 में आजादी मिली, जब मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई और 1947 में देश की आजादी को ‘भीख’ में मिली थी।
बीजेपी के पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी समेत कई बड़े नेताओं ने इस बयान पर आपत्ति जताई थी। वरुण ने कहा था कि यह एक राष्ट्र-विरोधी काम है और इसे ऐसे ही कहा जाना चाहिए। ऐसा न करना उन सभी लोगों के साथ विश्वासघात होगा, जिन्होंने खून बहाया ताकि आज हम एक राष्ट्र के रूप में मजबूती से खड़े रह सकें और स्वतंत्र रह सकें। वहीं 17वीं लोकसभा चुनाव से पहले कंगना ने कहा था कि मुझे लगता है कि भारत आज सही मायने में अपनी आजादी हासिल कर रहा है क्योंकि इससे पहले हम मुगल, ब्रिटिश और इटालियन सरकार के नौकर थे। इसलिए, कृपया अपने अधिकार का प्रयोग करें और मतदान करें। तब भी, बॉलीवुड में कुछ राजनीतिक रुझान वाले लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया था और कहा था कि उन्हें इतिहास और राजनीति में बुनियादी जानकारी की सख्त ज़रूरत है।
शिव सेना, केंद्र सरकार और कंगना के बीच खींचा-तानी
लेकिन कंगना का राजनेताओं से खींचा-तानी मूल रूप से सुशांत के मौत के बाद से ही शुरू हो गई थी, जहां वो केंद्र सरकार और शिव सेना के बीच बयानों में घिरी रहीं। सुशांत के आत्महत्या से मौत के बाद, ट्विटर (एक्स) पर कंगना छाई रहीं, जहां ये हर तरह के बयान दे रही थीं। इस बीच वह एक शक्तिशाली भाजपा समर्थक के रूप में भी उभरीं। खासकर तब जब महाराष्ट्र विधानसभा में एक भाजपा विधायक ने उनके समर्थन में ट्वीट करते हुए कहा कि ‘बॉलीवुड-ड्रग माफिया’ सांठ-गांठ को उनके ‘बेनकाब’ करने के बाद, महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस को उन्हें सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
कंगना ने जवाब में ट्वीट किया था कि आपकी चिंता के लिए धन्यवाद सर, मैं वास्तव में अब मूवी माफिया के गुंडों से ज्यादा मुंबई पुलिस से डरती हूं…। इस पर, शिवसेना नेता, संजय राउत ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि हम उनसे विनम्र अनुरोध करते हैं कि वह मुंबई न आएं। यह मुंबई पुलिस के अपमान के अलावा कुछ नहीं है।
इसके बाद वह फिर से सोशल मीडिया में छाई रहीं जब उन्होंने मुंबई की तुलना ‘पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर’ से की। लगभग तुरंत ही, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें वाई प्लस सुरक्षा प्रदान की, जोकि मुंबई में उनकी सुरक्षा के संबंध में खुफिया एजेंसियों के आकलन पर आधारित थी।
शिवसेना के आधिकारिक समाचार पत्र ‘सामना’ के एक संपादकीय में कहा गया था कि ये सभी लोग हमेशा शहर और राज्य के आभारी रहे हैं जिन्होंने उन्हें अपने सपनों का पीछा करने और इसे बड़ा करने की अनुमति दी। उन्होंने कभी भी मुंबई को धोखा नहीं दिया बल्कि शहर के विकास में भी योगदान दिया है।
इस समय तक कंगना और बीजेपी ने सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के प्रति अपनी निष्ठा दिखा चुके थे। बता दें कि कंगना के दादा कांग्रेस विधायक रह चुके हैं। मई 2019 में भाजपा के चुनाव जीतने के बाद, चुनाव परिणामों का जश्न मनाते हुए अपने ‘टीम कंगना रनौत’ पेज पर उन्होंने कहा था कि मोदी जी जिस चीज़ के लिए खड़े हैं, वह विचारों का बहुत मजबूत समूह, दृष्टि और मानवीय महत्वाकांक्षा की ताकत है।
शिव सेना और कंगना के सीएए पर बयान
दिसंबर 2019 में शुरू हुए सीएए विरोधी विरोध प्रदर्शन के दौरान, जहां फिल्म उद्योग के कई जाने-माने नामों ने वास्तव में सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया था, और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस हिंसा की निंदा की थी, वहीं कंगना उन लोगों की निंदा कर रही थीं जो उनके शब्दों में लोकतंत्र के नाम पर हिंसा भड़का रहे थे। दूसरी ओर, शिवसेना सीएए को लेकर असमंजस में थी। उसने लोकसभा में इसके पक्ष में मतदान किया था, लेकिन राज्यसभा में कानून का समर्थन करने से परहेज किया था। उद्धव ठाकरे ने पहले कहा कि इससे भारत में ‘अदृश्य विभाजन’ होगा। लेकिन बाद में ‘सामना’ के एक संपादकीय में एनआरसी को खारिज करते हुए सीएए का समर्थन किया गया।
हालांकि अगस्त 2020 में ‘सामना’ के संपादकीय में दिल्ली में जामिया मिलिया के सीएए विरोधी छात्रों पर पुलिस हिंसा की कड़ी आलोचना की गई। कंगना ने स्क्रीन पर अभिनेत्रियों के कामुकता को फिर से नया रूप दिया और एक अलग नए अवतार में नजर आईं। एक छोटे शहर से ‘कमज़ोर’ महसूस करने वाली कंगना का आज इस मुकाम तक पहुंचना, उनके सटीक चुनौतीपूर्ण स्क्रिप्ट चुनने की समझ, सोशल मीडिया का चतुराई से इस्तेमाल और हिंदुत्ववादी राजनीति के लिए बिना किसी झिझक के झुकाव को दिखाता है। तनु वेड्स मनु और क्वीन जैसी फिल्मों से उन्होंने भारत की बदलती सामाजिक वास्तविकता को दिखाने की कोशिश की। इन मजबूत भूमिकाओं को निभाने में उनका विकसित व्यक्तित्व और क्षमता दिखाई देती है। आज उन्होंने अपने तमाम काम के लिए राष्ट्रीय और फिल्मफेयर पुरस्कार भी अर्जित किए हैं।
गोमांस का सेवन नहीं करने से लेकर, दशकों से योगिक जीवन शैली की बात तक, वह हर उस मानदंडों पर खरी उतरी हैं, जहां बीजेपी के शीर्ष नेताएं भी बयान नहीं दे पाएं हैं। मोदी अपने पूरे राजनीतिक करियर में हिंदुत्व के समर्थक रहे हैं और भाजपा के लिए कंगना एक मजबूत हिंदुत्ववादी उम्मीदवार के रूप में उभरीं हैं, जो मोदी की समर्थक हैं, महिलाओं का कथित तौर समर्थन करती हैं, लोगों की परवाह नहीं करती और कांग्रेस विरोधी हैं। आने वाले दिनों में चुनाव के परिणाम ही बताएंगे कि उनका राजनीतिक करियर किस ओर बढ़ता है।