इंटरसेक्शनलजेंडर महिला नेताओं के खिलाफ़ आपत्तिजनक और स्त्रीद्वेषी टिप्पणियां आखिर ‘सामान्य’ क्यों है?

महिला नेताओं के खिलाफ़ आपत्तिजनक और स्त्रीद्वेषी टिप्पणियां आखिर ‘सामान्य’ क्यों है?

राजनीति में सक्रिय महिलाओं के खिलाफ़ होनेवाली स्त्रीद्वेषी टिप्पणियों के पीछे कहीं न कहीं समाज में व्यापक स्तर पर मौजूद यह रूढ़िवादी सोच ज़िम्मेदार है कि ‘महिलाएं राजनीति के लिए नहीं बनी हैं’ या ‘उन्हें राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’

2024 के लोकसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं। ऐसे में नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर टीका-टिप्पणी किया जाना आम बात है। लेकिन बात जब महिला नेताओं की आती है, तो उनके खिलाफ़ की जानेवाली टिप्पणियां हमारे समाज में व्यापक स्तर पर व्याप्त स्त्रीद्वेषिता, लैंगिक भेदभाव और रूढ़िवादी मानसिकता दिखाती है जो महिलाओं को आम तौर पर लीडर के तौर कल्पना नहीं कर सकता। अलग-अलग समय पर अलग-अलग पार्टियों के नेताओं के महिला नेताओं के लिए किस तरह से बयान और भाषा का इस्तेमाल किया है, इसे देखना इसलिए भी जरूरी है ताकि इसपर रोक लगाया जा सके और संबंधित व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जा सके।

हाल ही में हरियाणा के कैथल में एक चुनावी रैली में कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भारतीय जनता पार्टी की सांसद और मथुरा से उम्मीदवार हेमा मालिनी के खिलाफ़ की। उन्होंने कहा, “एमएलए/ एमपी क्यों बनाते हैं? ताकि वो हमारी आवाज़ उठा सके, हमारी बात मनवाए, इसलिए बनाते होंगे। कोई हेमा मालिनी तो नहीं, जो चाटने के लिए बनाते हैं?” उनकी इस टिप्पणी पर निर्वाचन आयोग ने शो कॉज़ नोटिस जारी किया। इसपर उन्होंने सफ़ाई देते हुए कहा कि उन्होंने उसी वीडियो में यह भी कहा था कि हेमा मालिनी का बहुत सम्मान किया जाता है क्योंकि उनकी शादी ‘धर्मेंद्र’ से हुई है और वह हमारी बहू हैं। सुरजेवाला ने जो सफाई दी वो अपनेआप में समस्याजनक है क्योंकि ऐसा कहकर वे हेमा मालिनी की पहचान को किसी की पत्नी और बहू तक सीमित कर रहे हैं। यह उस मानसिकता को दर्शाता है कि एक महिला की कितना भी उपलब्धियां क्यों न हो, उसकी पहचान किसी पुरुष के माध्यम से हो होगी। 

ढाका विश्वविद्यालय में एक भाषण के दौरान उन्होंने बांग्लादेश की मुख्यमंत्री शेख हसीना पर तंज कसते हुए कहा, “मुझे खुशी है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री एक महिला होने के बावजूद भी, डंके की चोट पर कह रही हैं कि टेररिज़्म के खिलाफ़ मेरा जीरो टॉलरेन्स है।” मोदी का यह बयान बेनोवेलन्ट सेक्सिस्म का शानदार उदाहरण है, जो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है।


पश्चिम बंगाल के बर्धमान, दुर्गापुर से बीजेपी के उम्मीदवार दिलीप घोष ने तृणमूल कांग्रेस की नेता और मुख्य मंत्री ममता बैनर्जी पर विभिन्न समय आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उन्होंने विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस के चुनावी नारे, ‘बंगाल अपनी बेटी चाहता है’ के जवाब में ममता बैनर्जी पर टिप्पणी करते हुए कहा, “ममता जब गोवा जाती हैं, तो खुद को गोवा की बेटी कहती हैं। त्रिपुरा में खुद को वहां की बेटी बताती हैं। वे तय करें कि उनके पिता कौन है।”

तसवीर साभार: Mint

28 मार्च, 2019 को समाजवादी पार्टी के नेता फिरोज खान, ने पूर्व सांसद जया प्रदा के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा “रामपुर में जया प्रदा के आने से शामें रंगीन होंगी।” शिवसेना-यूबीटी नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत अमरावती में एक अभियान रैली को संबोधित कर रहे थे, जब उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार अभिनेत्री रह चुकी नवनीत राणा के बारे में कहा, “लोकसभा चुनाव एक नर्तकी या ‘बबली’ (हिंदी फिल्म में एक ठग का किरदार) के खिलाफ नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र और मोदी के बीच की लड़ाई है। वह एक नर्तकी है, स्क्रीन पर एक अभिनेत्री है जो स्नेहपूर्ण इशारे करेगी, लेकिन उस जाल में मत फंसो।”

खुद प्रधानमंत्री मोदी भी किसी से पीछे नहीं

महिला नेताओं के खिलाफ़ इस तरफ की बयानबाजी नई नहीं है। लेकिन ऐसे बयान खुद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार दे चुके हैं और उनके स्त्रीद्वेषी और आपत्तिजनक बयानों की लिस्ट बहुत लम्बी है। 29 अक्टूबर 2012 को प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा पुष्कर को 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड कहा। जून, 2015 को ढाका विश्वविद्यालय में एक भाषण के दौरान उन्होंने बांग्लादेश की मुख्यमंत्री शेख हसीना पर तंज कसते हुए कहा, “मुझे खुशी है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री एक महिला होने के बावजूद भी, डंके की चोट पर कह रही हैं कि टेररिज़्म के खिलाफ़ मेरा जीरो टॉलरेन्स है।” साफ तौर पर मोदी का यह बयान बेनोवेलन्ट सेक्सिस्म का शानदार उदाहरण है, जो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है।

4 दिसम्बर, 2018 को राजस्थान में एक चुनावी रैली को संबोधित करते समय उन्होंने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी को कांग्रेस की विधवा’ कहा। सोनिया गाँधी के लिए ही उन्होंने ‘जर्सी गाय’ शब्दों का भी इस्तेमाल किया था। इसी तरह मुख्य मंत्री ममता बैनर्जी के लिए ‘दीदी ओ दीदी’ का संबोधन व्यंग्य के रूप में करते हैं। इससे बड़ा दोहरापन क्या हो सकता है कि एक तरफ वे सार्वजनिक मंचों पर भारतीयों से स्त्रीद्वेष से लड़ने का आग्रह करते हैं, दूसरी तरफ़ महिलाओं के लिए उनके खुद के बयान स्त्रीद्वेषिता से भरपूर रहते हैं। प्रधानमंत्री चाहे किसी भी पार्टी के समर्थक हो, वे एक देश का प्रतिनिधत्व करते हैं। इसलिए, उनके लिए यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि वे इस पद की गरिमा को बनाए रखने का प्रयास करें। 

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भारतीय जनता पार्टी की सांसद और मथुरा से उम्मीदवार हेमा मालिनी के खिलाफ़ की। उन्होंने कहा, “एमएलए/ एमपी क्यों बनाते हैं? ताकि वो हमारी आवाज़ उठा सके, हमारी बात मनवाए, इसलिए बनाते होंगे। कोई हेमा मालिनी तो नहीं, जो चाटने के लिए बनाते हैं?” 

महिला नेताओं के खिलाफ़ दिए जाने वाले बयानों की प्रकृति 

महिला नेताओं के खिलाफ़ होनेवाले बयान एक खास प्रकृति के क्यों होते हैं, इसे समझने के लिए हमने नेत्री फाउंडेशन की संस्थापक कांक्षी अग्रवाल से बात की। वे कहती हैं, “राजनीति में महिलाओं और पुरुषों के लिए किए जानेवाले कमेंट्स आमतौर पर अलग होते हैं। आमतौर पर पुरुषों की काबिलियत पर, उनकी विचारधारा या उनके काम पर सवाल उठाए जाते हैं, पर जब इन्हीं मुद्दों को लेकर महिलाओं पर सवाल उठाए जाते हैं, तो उनके महिला होने को आगे ले आया जाता है, जिसे हम मिसोजिनी या स्त्रियों के प्रति द्वेष कहते हैं। पहले तो ये कहा जाएगा कि महिला हैं। इसलिए इनसे काम नहीं हो रहा। महिला हैं इसलिए आइडियोलॉजी समझती ही नहीं हैं। महिला हैं इसलिए राजनीति समझती ही नहीं हैं। तो पहले तो यह सब कहकर उन्हें दोयम दर्ज़े का साबित कर दिया जाता है। फिर उन्हें और नीचे लाने के लिए उनके चरित्र पर उंगली उठाई जाती है।”

तस्वीर साभार: India Today

आगे उन्होंने यह भी बताया कि ऐसा केवल हमारे देश में ही नहीं है। पूरी दुनिया का यही हाल है। समाज ऐसा मानता है कि महिलाओं को सबसे ज़्यादा क्षति उनके चरित्र पर उंगली उठाकर पहुंचाई जा सकती है और जब तक वे खुद की सफ़ाई में कुछ कहेंगी, तब तक तो लोग यह मान चुके होंगे उनका चरित्र खराब है। समाज यह मानता है कि महिलाओं की इज़्ज़त उनके चरित्र से जुड़ी है। कांक्षी ने महिलाओं के खिलाफ़ बढ़ती ट्रोलिंग की वजह ऑनलाइन प्रचार को भी बताया क्योंकि लोगों के लिए सोशल मीडिया पर विवादित टिप्पणी करना और फिर हटा देना बहुत आसान है। 

राजनीति में महिलाओं और पुरुषों के लिए किए जानेवाले कमेंट्स आमतौर पर अलग होते हैं। आमतौर पर पुरुषों की काबिलियत पर, उनकी विचारधारा या उनके काम पर सवाल उठाए जाते हैं, पर जब इन्हीं मुद्दों को लेकर महिलाओं पर सवाल उठाए जाते हैं, तो उनके महिला होने को आगे ले आया जाता है, जिसे हम मिसोजिनी या स्त्रियों के प्रति द्वेष कहते हैं।

महिला नेताओं पर होने वाली टिप्पणियों पर क्या सोचती हैं आम महिलाएं

कानपुर की पेशे से ट्यूटर 32 वर्षीय ऋचा कहती हैं “मुझे नहीं पता पहले यह सब कितना होता था। मैं सच कहूं तो मुझे भी वैचारिक तौर पर कुछ महिला नेताएं पसन्द नहीं। लेकिन विरोध जताने का एक तरीका होता है। आप किसी महिला के लिए केवल इस आधार पर कि वे विरोधी पार्टी की हैं, किसी भी किस्म की भाषा कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?” चंडीगढ़ की रहनेवाली एक गैर सरकारी संस्था में काम कर रही 33 वर्षीय ममता मोदी के ‘दीदी ओ दीदी’ वाले वीडियो का सन्दर्भ देते हुए कहती हैं, “वो न अभद्रता की हद हो जाती है। प्रधानमंत्री की जो छवि होती है और जिस तरह आजकल तो उन्हें भगवान ही मान लिया गया है, तो सोचिए इस तरह की शब्दावली कितनी बुरी लगती है।”

तस्वीर साभार: NDTV

वह आगे बताती हैं, “मैं देखती हूँ कि विरोधी पार्टियां जब भी महिलाओं के खिलाफ कुछ बोलती हैं, तो वो सीधा हमला उनके चरित्र पर ही करती हैं। यह बहुत हद तक पितृसत्तात्मक व्यवस्था की उपज है कि जब आपके पास किसी महिला से लड़ने के लिए कोई हथियार न बचे तो सीधा उसके चरित्र पर उंगली उठा दो, ये सबसे आसान है।” ममता बताती हैं कि ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठे लोगों द्वारा इस किस्म की भाषा के इस्तेमाल से आम लोगों में यह सन्देश जाता है कि यह सामान्य सी बात है। वहीं पॉलिटिकल पार्टीज को इस तरह से बयानों का जिस तरह से विरोध करना चाहिए वो भी नहीं हो रहा है।

मुझे नहीं पता पहले यह सब कितना होता था। मैं सच कहूं तो मुझे भी वैचारिक तौर पर कुछ महिला नेताएं पसन्द नहीं। लेकिन विरोध जताने का एक तरीका होता है। आप किसी महिला के लिए केवल इस आधार पर कि वे विरोधी पार्टी की हैं, किसी भी किस्म की भाषा कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?

राजनीति में व्याप्त स्त्रीद्वेषी संस्कृति में बदलाव है ज़रूरी 

राजनीति में सक्रिय महिलाओं के खिलाफ़ होनेवाली स्त्रीद्वेषी टिप्पणियों के पीछे कहीं न कहीं समाज में व्यापक स्तर पर मौजूद यह रूढ़िवादी सोच ज़िम्मेदार है कि ‘महिलाएं राजनीति के लिए नहीं बनी हैं’ या ‘उन्हें राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’ यही वजह है कि राजनीतिक तौर पर सक्रिय महिलाओं को या इसमें भागीदारी की इच्छुक महिलाओं को निरन्तर हताश किया जाता है। वर्तमान समय में राजनीति में सक्रिय महिलाओं की संख्या पहले की तुलना में थोड़ी बढ़ी है, जो एक अच्छा संकेत है। लेकिन, इसके साथ ही यह स्वीकार करना भी ज़रूरी है कि राजनीतिक संस्कृति में लैंगिक भेदभाव, स्त्रीद्वेष मौजूद है, तभी इस दिशा में समाधान सोचे जा सकते हैं। राजनीति में एक ऐसी संस्कृति का निर्माण ज़रूरी है जहां नेताओं को उनकी अमर्यादित भाषा और स्त्रीद्वेषी टिप्पणियों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए। ऐसा करके ही एक राजनीति में समावेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सकता है। 

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