संस्कृतिख़ास बात ख़ास बातः दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले ट्रांसजेंडर उम्मीदवार राजन सिंह

ख़ास बातः दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले ट्रांसजेंडर उम्मीदवार राजन सिंह

मेरा परिवार मूलतः बिहार के छपरा का रहने वाला है। पिता जी बिजली का काम करते हैं, जबकि माँ गृहणी हैं। परिवार में मेरे अलावा तीन बहन भी हैं। उनकी शादी हो चुकी है। मेरी शुरुआती पढ़ाई गर्वमेंट बॉयज सीनियर सेकंडरी स्कूल डॉ. अंबेडकर नगर से हुई है। उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कॉलेज से मैंने ग्रेजुएशन की शिक्षा हासिल की।

लोकसभा चुनाव के चार चरण का मतदान पूरा हो चुका है। दिल्ली में मतदान की प्रक्रिया अभी होनी बाकी है। दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट से पहले ट्रांसजेंडर उम्मीदवार के तौर पर राजन सिंह ने तीन मई को अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। राजन सिंह ने साकेत स्थित दक्षिणी दिल्ली के रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय में अपना नामाकंन पत्र दाखिल किया। उनका चुनाव चिह्न बाल्टी है। फिलहाल वे अपनी लोकसभा उम्मीदवारी के लिए घर-घर जाकर लोगों के बीच प्रचार कर रहे हैं। चुनाव में उतरने से लेकर बतौर नेता वे किन मुद्दों पर प्राथमिकता देंगे और आगे की उनकी क्या योजनाएं हैं इसे जानने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने राजन सिंह से बात की। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश।

फेमिनिज़म इन इंडियाः पहले आप अपने बारे में हमें बताइए?

राजन सिंहः मेरा परिवार मूलतः बिहार के छपरा का रहने वाला है। पिता जी बिजली का काम करते हैं, जबकि माँ गृहणी हैं। परिवार में मेरे अलावा तीन बहन भी हैं। उनकी शादी हो चुकी है। मेरी शुरुआती पढ़ाई गर्वमेंट बॉयज सीनियर सेकंडरी स्कूल डॉ. अंबेडकर नगर से हुई है। उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कॉलेज से मैंने ग्रेजुएशन की शिक्षा हासिल की। हिंदी साहित्य में मैंने मास्टर्स डिग्री हासिल की हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में ही मुझे ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में जानकारी मिली। मेरे एचओडी से बातचीत करने के दौरान मुझे पता चला और उसी दौरान मैं जो महसूस करता था उससे खुद को जोड़ पा रहा था। मनोवैज्ञानिक की सलाह ली हालांकि वहां पर डॉक्टर का व्यवहार बहुत अच्छा नहीं था लेकिन मुझे समझ में आ गया था कि मेरा जन्म जिस रूप में हुआ है मैं उससे जुड़ाव महसूस नहीं करता हूं। कॉलेज के दौरान ही मैंने खुलकर खुद को स्वीकार करना शुरू किया और लोगों के सामने अपनी पहचान रखनी शुरू कर दी थी। 

मैं चुनाव कभी नहीं लड़ना चाहता था लेकिन कही से तो शुरुआत होनी है तो बस ये वहीं है। इस चुनाव से मैं भले ही कुछ नहीं पाऊंगा। लेकिन एक बदलाव तो आएगा ही अगले चुनाव में हमारे और लोग सामने आएगें। हमारे मुद्दों पर बात होगी।

फेमिनिज़म इन इंडियाः चुनाव लड़ने का फैसला आपने कब किया?

राजन सिंहः राजनीति से मेरा जुड़ाव कॉलेज के दिनों में होना शुरू हो गया था। मेरी आइडेंटटिटी का लोग मजाक उड़ाते थे लेकिन मैंने खुद को समझना शुरू कर दिया था। उसी दौरान में विश्वविद्यालय में होने वाले चुनाव लड़ने का फैसला किया। क्योंकि हम लोगों की बहुत मजाक उड़ाई जाती थी और मुझे ऐसा लगा कि मेरे जैसे और भी स्टूडेंट्स होंगे तो उनको भी जानकारी मिलेगी। उस समय मैंने खुद के बारे में बात की। मुझे कॉलेज में लड़कियों से काफी सहानुभूति और सहयोग मिला। साल 2016 में मैंने यूनिवर्सिटी में चुनाव लड़ा और जीता। लेकिन जब हमारे प्रिंसिपल को मेरी पहचान के बारे में पता चला तो वे मेरे साथ भेदभाव करते थे। उसी समय मैंने सबसे पहले सुना था कि केरल में कही जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट बने है तो मैंने यूनिवर्सिटी में भी जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट बनाने का प्रस्ताव रखा था। वहां उन्होंने पूरी काउंसलिंग की मीटिंग में मुझे सबके सामने डांटा। मैंने उन्हें कहा कि सर ये गलत है मैं किसी गलत चीज की मांग थोड़ा ही कर रहा हूं तो उन्होंने कहा कि तुम ऐसी फालतू की बात क्यों करते हो। एक लड़के हो और लड़के की तरह ही बर्ताव करो। बाद में उन्होंने मेरे पिता को बुलाया और वहां उन्होंने उनको अपमानित किया।

उसके बाद मैंने कॉलेज में प्रदर्शन किया और सवाल पूछा कि “मैं कौन हूं” बाद में कॉलेज में एक आवाज़ उठी कि जो मेरे पिता के साथ किया गया है वह गलत है। इतना ही नहीं मुझ पर फाइन तक लगाया गया था। यहां से मुझे समझ आ गया था। हमें अपनी आवाज उठानी होगी। बतौर ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट काम करना शुरू किया साथ में अपनी पढ़ाई भी पूरी की। इस तरह से तब से ही मेरी राजनीति में रूचि शुरू हो गई। आप देखिए हर जगह हमारे लिए कोई लाइन या रिजर्व सीट नहीं है। हर जगह मेल और फीमेल दो ही विकल्प दिखते हैं इस तरह से मैंने ट्रांसजेंडर मुद्दों पर काम करना शुरू किया। राजधानी दिल्ली में ट्रांसजेंडर टॉयलेट की मांग उठाई। इस तरह से हमारी लड़ाई शुरू हुई। 

फेमिनिज़म इन इंडियाः राजनीति में प्रतिनिधित्व को लेकर आप क्या सोचते हैं?

राजन सिंहः ट्रांस अधिकारों के लिए काम करने के दौरान ही मुझे समझ में आया कि आम लोगों को जो अधिकार मिलता है वो संसद से मिलता है। लेकिन उस संसद में आजादी के 75 वर्ष के समय के बाद एक भी ट्रांसजेंडर वहां नहीं पहुंचा है। आजादी के इतने समय बाद एक भी ट्रांसजेंडर ने प्रतिनिधित्व नहीं किया। एक मध्य प्रदेश में शबनम मौसी एमएलए बनीं लेकिन यह केवल इकलौता उदाहरण हमारे सामने है। लेकिन दिल्ली जहां संसद भवन है और जिसे लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है वहां भी तो हम लोगों का होना ज़रूरी है। किसी भी पार्टी, समुदाय और नेता ने इस दिशा में नहीं सोचा है। यह बहुत बड़ा सवाल है कि किसी भी सरकार ने यह नहीं सोचा है कि ट्रांस समुदाय का प्रतिनिधित्व हो। मैं पहला ट्रांसजेंडर उम्मीदवार हूं जो संसद में पहुंचने के लिए इस चुनाव लड़ रहा हूं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेकर लोगों में जागरूकता आएगी। आगे मेरे जैसे और लोग आएंगे इस तरह से हमारा प्रतिनिधित्व करने के लिए नेतृत्व तैयार होगा जो हमारे मुद्दों को उठाएगा और ट्रांसजेंडर अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेगा। 

समुदाय के विकास के उसका संसद में प्रतिनिधित्व बहुत मायने रखता है। हम लोगों की वोट की ताकत को अभी उस तरह से नहीं देखा जाता है। मेरे नॉमिनेशन के बाद हाईकोर्ट ने मुझे सिक्योरिटी प्रदान की है लेकिन अदालत के फैसले के बाद अबतक इस दिशा में कुछ काम नहीं हुआ है। अगर किसी ओर पार्टी का नेता या उम्मीदवार होता तो क्या उसके साथ ऐसा होता। हमारा कोई रिप्रेंजटेटिव नहीं है इसलिए एक हफ्ते से ज्यादा हो गया ऑर्डर को आए लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ है। आजादी के इतने समय बाद हमारी पहचान सुनिश्चित नहीं हुई है। जब मुझे डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट ने सर्टिफिकेट दिया तो उसमें ट्रांसजेंडर लिखा है। जब चुनाव आयोग ने मुझे सर्टिफिकेट दिया तो उसमें थर्ड जेंडर लिखा है। जो मेरी जन्मपत्री है उसमें पुरुष लिखा है और जब मैं किसी सरकारी नौकरी के लिए आवदेन करता हूं तो उसमें अन्य लिखा है। अब आप देखिए एक आदमी को आप कितने रंगों से पहचानोंगे तो ये पहचान की लड़ाई है। 

फेमिनिज़म इन इंडियाः एक नेता के तौर पर आपके लिए वे कौन से मुद्दे हैं जिनको आप प्राथमिकता देना चाहेंगे।

राजन सिंहः मैं चुनाव कभी नहीं लड़ना चाहता था लेकिन कही से तो शुरुआत होनी है तो बस ये वहीं है। इस चुनाव से मैं भले ही कुछ नहीं पाऊंगा। लेकिन एक बदलाव तो आएगा ही अगले चुनाव में हमारे और लोग सामने आएगें। हमारे मुद्दों पर बात होगी। चुनाव के नॉमिनेश के लिए जिस डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट के ऑफिस में हम जाते हैं वहां जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट नहीं था। मैंने यह मुद्दा उठाया और बदलाव यही से शुरू हो गया है कि अब वहां पर एक जेंडर न्यूट्रल टॉयलेट का निर्माण हो रहा है। तो ये हमारी एक जीत है कि अब हमारे लोग और आगे आएंगे। चुनाव में आना, हमें वोट मिलना तो यह सबका ध्यान हमारी ओर आकर्षित करेगा, सरकार भी हमें महत्व देगी इसे ट्रांस समुदाय के हितों काम होगा। प्रतिनिधित्व मजबूत होगा तो हमारी आवाज मजबूत होगी। जब लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में हमारे लोग होंगे हमारे अधिकार तभी मजबूत होंगे। यह अधिकार के साथ-साथ स्वाभिमान की भी लड़ाई है। 

फेमिनिज़म इन इंडियाः अब जब चुनाव प्रचार के लिए आप जनता के बीच जाते हैं तो वहां कैसा माहौल है? लोगों की प्रतिक्रियाओं को आप किस तरह से देखते हैं?

राजन सिंहः लोगों तो बहुत खुश है। हम लोग ही तो अच्छा कोई भी काम हो तो हमारे लोग ही सबसे पहले जाते हैं। आम लोग हमसे नफरत नहीं करते हैं। सत्ता में बैठे लोग हमसे नफरत करते है। जनता के अंदर हमारे लिए बहुत प्यार है लेकिन सत्ता में बैठे लोग हमें पसंद नहीं करते हैं। वे अपनी धारणाएं सब लोगों पर थोप देते हैं। मैं लोगों के घर-घर जा रहा हूं। मेरा चुनाव निशान बाल्टी है उसके साथ प्रचार कर रहा हूं। लोगों में बहुत खुशी है मुझे उनका बहुत प्यार मिल रहा है और मेरा बहुत हौसला बढ़ा रहे हैं। 

प्रचार के दौरान राजन सिंह।

फेमिनिज़म इन इंडियाः एक नेता के तौर पर आपके लिए वे कौन से मुद्दे हैं जिनको आप प्राथमिकता देना चाहेंगे।

राजन सिंहः मैं सबसे पहले संसद कोई कदम उठाउंगा तो एक प्राइवेट बिल लाउंगा और नैशनल ट्रांसजेंडर कमीशन की स्थापना करूंगा क्योंकि वहीं से हमारे लोग जुड़ पाएंगे। अपना दुख-दर्द बयां कर पाएंगे। वहीं से हम अपने लोगों को सुन पाएंगे। दूसरा जो हमारे ट्रासंजेंडर लोग हैं उन लोगों का स्कूल-कॉलेज में कोई रिजर्वेशन नहीं है और अगर समुदाय के लोग पढ़ेंगे नहीं तो उनका कल्याण कैसे होगा। उन लोगों के लिए शिक्षा में आरक्षण की बहुत तत्काल ज़रूरत है और स्थानीय स्तर पर मैंने कहा है कि दिल्ली में पानी की व्यवस्था को बहुत सुचारू रूप से करवाना चाहूंगा। साथ ही आज रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। देश के नेताओं को इस दिशा में बहुत काम करने की ज़रूरत है। देश में बेरोजगारी को दूर करने के लिए गंभीर रूप से सोचने की ज़रूरत है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। देश की आजादी के इतने लंबे समय बाद आज भी लोगों तक बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुचारू पहुंच नहीं है और बतौर नेता मेरा लक्ष्य इसी दिशा में काम करना होगा।

जनसंपर्क कार्यक्रम के दौरान लोगों के साथ राजन सिंह।

फेमिनिज़म इन इंडियाः आप निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं क्या आपने दिल्ली में मुख्य जो तीन पार्टियां है भाजपा, कांग्रेस और आप उनसे टिकट के लिए संपर्क किया था या आप मानते है कि एलजीबीटी+ समुदाय के लोगों को ये पार्टियां कोई वरीयता नहीं देती है।

राजन सिंहः तीनों ही पार्टी ने एलजीबीटीक्यू+, ट्रांसजेंडर्स को कभी समर्थन नहीं किया है और अगर किया होता तो किसी को टिकट तो देना चाहिए था। हालांकि आम आदमी पार्टी ने बॉबी किन्नर को पार्षद का टिकट दिया था और वे जीती भी थीं। इससे साफ होता है कि अगर हमारे लोगों को टिकट दिया जाएगा तो वे जीतेंगे लेकिन ये बड़ी पार्टियां चाहती है कि हम लोगों को टिकट ही न मिलें। बीजेपी इतनी बड़ी पार्टी है तो क्या 543 सीटों में से एक-दो टिकट हम लोगों नहीं दिया जा सकता था। बड़ी पार्टी का इतना छोटा दिल है। कांग्रेस जिसने इस देश की आजादी की लड़ाई लड़ी लेकिन उसने हमारे समुदाय की आजादी के बारे में कभी नहीं सोचा। मेरी पिछले 6-7 महीने पहले गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई थी। उन्होंने कहा भी था कि आप हमारी पार्टी में शामिल होइए लेकिन मैंने यही बात कही कि मैं कौन से विंग में शामिल होऊं महिला मोर्चा, युवा मोर्चा। आज तक किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने एक ट्रांसजेंडर सेल नहीं बनाया। हमारी अपनी पहचान की लड़ाई हमें खुद लड़नी होगी। हमारे एलजीबीटीक्यू+ और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को साथ आकर खुद ही बढ़ना होगा।

बतौर ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट काम करना शुरू किया साथ में अपनी पढ़ाई भी पूरी की। इस तरह से तब से ही मेरी राजनीति में रूचि शुरू हो गई। आप देखिए हर जगह हमारे लिए कोई लाइन या रिजर्व सीट नहीं है। हर जगह मेल और फीमेल दो ही विकल्प दिखते हैं इस तरह से मैंने ट्रांस मुद्दों पर काम करना शुरू किया। राजधानी दिल्ली में ट्रांसजेंडर टॉयलेट की मांग उठाई। इस तरह से हमारी लड़ाई शुरू हुई। 

फेमिनिज़म इन इंडियाः बतौर नेता समुदाय के लिए क्या योजनाएं हैं आपके पास जिन पर आप काम करना चाहेंगे।

राजन सिंहः ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी कार्ड की जो प्रक्रिया है वो बहुत जटिल है। डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट ऑफिस में इससे जुड़ी कोई हेल्प डेस्क तक नहीं है। स्पष्ट आदेश है कि सुप्रीम कोर्ट का कि हमारे लोगों को रोजगार मिले, घर मिले, शिक्षा मिले और स्वास्थ्य की दिशा में काम करना है। सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश है उसके अनुसार सारी सुविधाएं और अधिकार सुनिश्चित करने ज़रूरी है।

फेमिनिज़म इन इंडियाः वर्तमान का जो राजनीतिक माहौल है उसे आप कैसे देखते हैं?

राजन सिंहः हमारा देश जिस संविधान से चलना चाहिए था वो उस संविधान से नहीं चल रहा है। हमारा देश एकमुखी सत्ता की ओर बढ़ रहा है। जहां पर जनता की राय और जनता की बात को सुनने वाला कोई नहीं है। आप लोकसभा चुनाव को देख लीजिए चुनाव में पैसा, ताकत चल रही है। इस भीड़ में मेरे जैसा तो कही नहीं दिख रहा है। जो एक ऐसे समुदाय से है जिसे लिए संविधान में बाबा साहब आंबेडरकर ने संविधान में प्रावधान बनाए। गांधी जी ने भी कहा था जबतक समाज के हाशिये के समुदाय के लोगों का उत्थान नहीं होगा तब तक हमारी स्वतंत्रता अधूरी है। आज हर तंत्र को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है। गरीब जनता का उस तंत्र से कोई वास्ता नहीं रहा है। और सच कहूं तो आजादी के इतने लंबे समय बाद इस देश के नागरिक को पांच किलो अनाज देना पड़ रहा है तो ये हमारी आजादी के ऊपर बहुत बड़ा सवाल है।


नोटः लेख में शामिल सारी तस्वीरें पूजा राठी ने उपलब्ध कराई है।

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content