यात्रा वृतांत गैर-काल्पनिक गद्य साहित्य की प्रमुख विधा है। यात्रा करना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृति है। यात्रा करने से मनुष्य का विस्तार होता है। यात्रा मनुष्य की प्रगति का रास्ता माना जाता है। यात्रा वृतांत साहित्य की अन्य विधाओं से अलग है क्योंकि इस विधा को एक स्थान पर बैठे-बैठे कल्पना शक्ति के आधार पर सृजित नहीं किया जा सकता है। इस विधा को लिखने के लिए घुमक्कड़ बनकर देश-विदेश में घूमना जरूरी होता है।
यात्रा वृत्तांत क्या है, इसे लेकर कई धारणाएँ मौजूद हैं। कुछ लोगों के लिए यह आख्यान है, तो कुछ लोग इसे वृत्तांत कहते हैं। वहीं कुछ लोगों के लिए यह एक किस्म का संस्मरण है। इसके लिए यात्रा वृत्तांत, यात्रावृत्त, यात्रा संस्मरण, यात्रा निबंध, यात्रा लेख आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इन सबका मूल अर्थ यात्रा साहित्य ही है। यात्रा साहित्य की परिभाषाओं को लेकर विद्वान एकमत नहीं है। सभी ने इसे विविध दृष्टिकोणों से परिभाषित करने का प्रयास किया है। ‘हिन्दी साहित्य कोश’ में यात्रा साहित्य की परिभाषा इस प्रकार से दी गई है- “सौन्दर्य की दृष्टि से, उल्लास की भावना से प्रेरित होकर यात्रा करने वाले यायावर एक प्रकार से साहित्यिक मनोवृत्ति के माने जा सकते हैं और उनकी मुक्त अभिव्यक्ति को यात्रा साहित्य कहा जाता है।”
राहुल सांकृत्यायन ने यात्रा की परिभाषा बताते हुए लिखा है, “घुमक्कड़ी वह रस है जो काव्य रस से किसी तरह भी कम नहीं है। कठिन मार्गों को तय करने के बाद नए स्थानों पर पहुँचकर हृदय में जो भावोद्रेक पैदा होता है, वह एक अनुपम चीज है। कविता के रस से हम उसकी तुलना कर सकते हैं और यदि कोई ब्रह्मा पर विश्वास करता है, तो वह उसे ब्रह्म समझेगा।” राहुल सांकृत्यायन महान घुम्मकड़शास्त्री थे। उन्होंने घुमक्कड़ी को ब्रह्मानंद सहोदर और काव्य रस के समान माना है। उन्होंने इस संबध में काफी कुछ लिखा है। उनके ‘अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा’ निबंध में ख़्वाजा मीर द्वारा उदधृत शेर काफी प्रसिद्ध है- सैर कर दुनिया की गाफ़िल जिंदगानी फिर कहां?, जिदंगानी गर कुछ रही तो नौजवानी कहां?
यह शेर सुनने में तो काफी रोचक लग रहा है। लेकिन वर्तमान समय में भी अकेली महिला यात्रा करते वक्त सवालों के कटघरे में खड़ी कर दी जाती है। 21वीं शताब्दी में भी हमारा पितृसत्तामक समाज महिलाओं को यात्रा करने की आज़ादी नहीं देता है। अगर वह यात्रा करना भी चाहती है, तो बहुत सारे सवाल उसके सिर पर मढ़ दिये जाते हैं। उनके जेहन में स्वयं ही बहुत सवाल उपजने लगते है कि घरवाले जाने देगें या नहीं, अनजान जगह कितना सेफ है, अकेली जा पाऊंगी भी या नहीं, कैसे रहूंगी, कैसे सारी चीज़ों की व्यवस्था करूंगी। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हिंदी की पहली स्त्री यात्रा साहित्यकारों की समीक्षा करनेवाली एकमात्र लेखिका डॉ. सुमन राजे ने लिखा है, “मुझे लगता है, अब वह यात्रा साहित्य दुर्लभ है, जिसे राहुल सांकृत्यायन और अज्ञेय जैसे यायावरों ने लिखा। उस तरह की यात्राएं स्त्री के लिए तब भी सुलभ नहीं थी, आज भी सहज नहीं है।”
इन सभी कठिनाइयों के बावजूद महिलाओं ने न सिर्फ देश-विदेश की यात्राएँ की, बल्कि ऊंचे स्तर के यात्रा साहित्य की रचना कर अदम्य साहस और प्रतिभा का परिचय दिया। ताजा उदाहरण समकालीन यायावर अनुराधा बेनीवाल हैं, जिनकी रचना ‘आजादी मेरा ब्रांड’ पढ़कर हिंदी के महान आलोचक नामवर सिंह ने उन्हें राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय और निर्मल वर्मा के समकक्ष बताया था। ‘आजादी मेरा ब्रांड’ किताब के संबंध में नामवर सिंह कहते हैं कि हिंदी साहित्य में अब तक तीन लेखकों के यात्रा-वृतांत मील के पत्थर साबित हुए हैं। राहुल सांकृत्यायन जिन्होंने ‘घुमक्कड़शास्त्र’ नाम की किताब ही लिख दी, अज्ञेय और फिर निर्मल वर्मा। इसी कड़ी में चौथा नाम अनुराधा का भी जुड़ रहा है।
हिंदी साहित्य में यात्रा वृतांत लिखने में महिला एवं पुरुष लेखकों के योगदान की बात की जाए तो संख्या के मामले में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। परंतु संख्या में कम होने के बावजूद यात्रा साहित्य में महिलाओं का बहुमूल्य योगदान प्रारंभ से वर्तमान तक निरंतर जारी है। यात्रा वृतांत लिखने वाली लेखिकाओं की लंबी फेहरिस्त है। इस लेख के माध्यम से हम हिंदी साहित्य में यात्रा वृतांत विधा मे योगदान देने वाली महिलाओं के बारे में चर्चा करेंगे।
यात्रा वृंत्तात और महिलाएं
राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक ‘घुमक्कड़शास्त्र’ में एक अध्याय ‘स्त्री घुमक्कड़’ नाम से लिखा है। उनका मानना है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को घुमक्कड़ी के कम अवसर प्रदान हुए और सामाजिक बंधनों के साथ-साथ प्रकृति भी स्त्री के प्रति बहुत कठोर रही है। भारतीय समाज में महिलाओं की परतंत्रता के संदर्भ में वह एक प्राचीन श्लोक (मनुस्मृति से) को बताते हैं, “पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने। रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति॥” यानि कि, एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती। शास्त्रों द्वारा समाज में उत्पन्न की गई ऐसी बाधाओं के बावजूद महिलाएं न सिर्फ पुरुषों के ‘संरक्षण’ से बाहर निकली बल्कि अपनी यात्रा के अनुभवों को साहित्य की शक्ल भी दी। स्त्रियों ने भाषा, शैली, संरचना इत्यादि की उत्कृष्टता बनाए रखते हुए संवेदना को भी अपने यात्रा वृतांत में प्रमुख स्थान दिया।
हिन्दी की पहली महिला यात्रा साहित्यकार हरदेवी
अब तक किए गए शोध से प्राप्त जानकारी के अनुसार हरदेवी हिंदी की पहली यात्रा साहित्यकार हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इन्होंने लंदन की यात्रा की थी। हरदेवी का संपन्न और प्रगतिशील परिवार से संबध था। उसके बावजूद ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरन एक स्त्री का उच्च शिक्षा के लिए लंदन जाना उस वक्त बड़ी ख़बर थी। उन दिनों कई अग्रेज़ी और हिन्दी पत्रों ने इस खबर को सुर्खियों में रखा। सन 1886 की ‘द इंडियन मैगजीन’ ने दादाभाई नौरोजी, रतन जी बनर्जी, लक्ष्मीनारायण तथा अपने भाई सेवाराम के परिवार के साथ हरदेवी के लंदन जाने की ख़बर प्रकाशित की थी। डॉ. सुरेंद्र माथुर लिखते है, “मुद्रित रूप में यात्रा साहित्य का सर्वप्रथम ग्रंथ जो हमें देखने को मिलता है वह लंदन यात्रा नाम से है। हरदेवी ने अपनी पढ़ाई लंदन में रहकर पूरी की। लंदन से पढकर जब वो भारत लौटी तो उनकी सोचने और समझने की दृष्टि में काफी विकास हुआ। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि उनके लंदन जाने और पढ़ने की व्यवस्था ‘नेशनल इंडियन एसोसिएशन’ ने की थी। वह इतने सालों पहले पुरुषों की दुनिया में अपनी उच्च शिक्षा के लिए कैसे स्पेस बनाया होगा, यह वास्तव में विचारणीय विषय है।
यात्राओं में देखी दुनिया की सामाजिक परिस्थितयों को बयां करती नासिरा शर्मा
नासिरा शर्मा ने ‘जहां फव्वारे लहू रोते हैं’ नाम से यात्रा वृतांत लिखा है। इसका प्रकाशन 2003 में वाणी प्रकाशन से हुआ था। यह वृतांत 18 खंडों में विभक्त (18वें खंड में साक्षात्कारों का संकलन) और मुख्य रूप से ईरान की यात्राओं पर आधारित है। ईरान के अलावा इसमें जापान, पेरिस, लंदन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईराक, फिलिस्तीन और ऐसी कई जगहों में की गई यात्राओं के बारे में लिखा है। उन्होंने दर्शाया है कि इन जगहों पर शांति और सुरक्षा को लेकर आम लोगों की क्या जिंदगी है, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवेश की गहराई का सजीव चित्रण किया है। इस किताब में लेखिका ने निष्पक्ष होते हुए अपनी बात लिखी है, किस तरह से ईरानी क्रांति के आतंक, अत्याचार और अमानवीय घटनाओं को अभिव्यक्त करना आसान नहीं है।
इन यात्राओं को लिखना लेखिका के लिए अंत्यत कष्टदायक रहा है। ईरानी क्रांति के आतंक, अत्याचार और अमानवीय घटनाओं को अभिव्यक्त करना इतना आसान कार्य नहीं था, क्योंकि एक बार देखी गई भयावह घटनाओं को लिखते समय उनसे फिर से गुजरना अत्यंत कष्टदायक है। कई बार तो लेखिका लिखते समय उत्तेजना से भर उठती है। वह लिखती है, “बदन में गर्म खून-गर्म खून दौड़ने लगता, आँखे तन-सी जातीं, नसें चिटखने-सी लगतीं और मैं कई-कई दिन तक मेज की तरफ जाने का हौसला नहीं बना पाती थी।” इसमें कपोल कल्पना को आधार न बनाकर यथार्थ रूप में परिस्थितियों को प्रस्तुत किया गया है। लेखिका ने जिन-जिन देशों की यात्राएं की हैं वहां के हालातों को जनता के बीच रहकर देखा और जाना परखा है।
हिंदी साहित्य का जाना-पहचाना नाम शिवानी
हिंदी साहित्य में शिवानी जाना-पहचाना नाम है। इन्होंने साहित्य लेखन की हर विधा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनका वास्तविक नाम गौरा पंत था लेकिन ये शिवानी नाम से लेखन कार्य किया करती थीं। साहित्य और संगीत के प्रति इनकी गहरी रूचि थी। शिवानी द्वारा लिखा ‘यात्रिक’ 2007 में प्रकाशित एक महत्त्वपूर्ण यात्रा वृत्तांत है। इस पुस्तक में चैखति और यात्रिक शीर्षक रचनाएं सम्मलित है। चैखति में माक्सवादी रूस तो यात्रिक में पश्चिमी विचारधार का केंद्र इंग्लैड को पृष्ठभूमि में रखा गया है।
लेखिका भारतीय संस्कृति की मूल्यवान विशेषता के कुछ अंश साझा करते हुए लिखती है, “हमारी संस्कृति ने सदा संस्कारों को ही महत्व दिया। व्यक्ति हो या समाज, उसे श्रेष्ठ बनाने में संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, यह हम सदा मानकर चलते हैं। आज अनेक पाश्चात्य विद्वान ‘यूजेनिक्स’ के शोध कार्य में संलग्न हैं। ‘यूजेनिक्स’ अर्थात सुसंतान शास्त्र। इसमें विवाह, परिवार, परंपरा आदि पर शोध कार्य कर विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि केवल भारतीय संस्कृति में ही उन सभी तथ्यों का समावेश है जो व्यक्ति एवं समाज को परिष्कृत रूप देते हैं।”
रमणिका गुप्ता की लहरों की लय
रमणिका गुप्ता ने ‘लहरों की लय’ नाम से यात्रा वृतांत लिखा है। इसमें अपनी विदेशी यात्राओं के बारे में लिखा है, जिसमें उन्होंने 30 वर्षों (1975 से 1994 तक) के दौरान किये गए यात्रा अनुभवों को अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है। इसमें उन्होंने बर्लिन, फ्रांस, हांगकांग, ज़र्मनी, नोर्वे, क्यूबा, फिलीपींस, रूस आदि देशों की भोगोलिक संस्कृति, राजनीतिक और सामाजिक परिवेश का लेखा-जोखा बेहद रोचक ढंग से बताया है।
देश-विदेश यात्राओं की कहानी बताती मृदुला गर्ग
मृदुला गर्ग का हिन्दी साहित्य जगत में प्रतिनिधि नाम है। इन्होंने कई विधाओं में रचनाएं की हैं। इनमें कहानियां, उपन्यास, निबंध, व्यंग्य, यात्रा वृतांत और नाटक शामिल हैं। हिंदी साहित्य में विशेष योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है। मृदुला गर्ग ने अपनी रचना ‘कुछ अटके कुछ भटके’ में देश-विदेश की यात्राओं का वृतांत दिया है। यह किताब 2006 में पेंगुईन प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। इसमें सूरीनाम, जापान, सिक्किम, केरल, असम, तमिलनाडु और दिल्ली की यात्राओं के बारे में विस्तार से लिखा है। तेरह अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में पहले अध्याय ‘भटकते गुजरा जमाना’ में यात्रा के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए लेखिका कहती है कि यात्राएं प्रयोजनमूलक और प्रयोजनयुक्त दो प्रकार की होती हैं। मृदुला कहती हैं, “असल चीज, सफर है, मंजिल नहीं। भटकना है, पहुंचना नहीं।” इसी भटकाव की स्थितियों का चित्रण उन्होंने अपने यात्रा वृतांत लिखकर किया है।
आदिवासियों की स्थिति बताती मधु कांकरिया
मधु कांकरिया ने ‘बादलों में बारूद’ नाम से यात्रा वृतांत लिखा। इस किताब का प्रकाशन 2014 में हुआ था। यात्रा वृतांत में झारखंड के आदिवासियों की स्थिति को बेखूबी से दिखाया गया है। मधु कांकरियां अपने यात्रा वृतांत में लिखती है, “सदियों से लुटे-पिटे एवं दलित आदिवासियों को अनुभव ने आँख में अंगुली डालकर सिखा दिया था कि जब भी कोई शहरी यहां आता है तो उन्हें लूटकर ही जाता है। यह वह दौर था जब जमीदारों द्वारा आदिवासियों की जमीनें तेजी से हड़पी जा रही थीं। आदिवासी अपने परंपरागत धंधे-कृषि, ग्रामीण उद्योग, हस्त कारीगरी, ग्रामीण कला एवं शिल्प से दूर हटते हुए विकास के नाम पर तेजी से मजदूर में तब्दील होते जा रहे थे क्योंकि बाज़ार का चरित्र बदल रहा था। देश में उदारीकरण के खुलते दरवाजे ने विकास के देशजबोध को कुचल डाला था।”
अनुराधा बेनीवाल की यायावरी आवारगी
समकालीन लेखिका अनुराध बेनीवाला द्वारा लिखी पुस्तक आज़ादी मेरा ब्रांड काफी चर्चित यात्रा वृतांत है। हरियाणा रोहतक जिले में रहने वाली एक बेबाक लड़की अनुराध बेनीवाल की। इस यात्रा वृतांत के माध्यम से अनुराध बेनीवाल पितृसत्तामक समाज द्वारा गढ़ी गई ‘अच्छी लड़की’ की परिभाषा को खंडन करके अपना जीवन अपने मुताबिक जीते है। कम पैसों और साधन के साथ दूसरे देश में यात्रा करने के लिए निकल जाती है। अकेली बेफिक्र होकर लंदन, पेरिस, लील, ब्रसल्स, कौक्साइड, बर्लिन में जाती हैं और एकाकी यात्राओं का आनंद उठाती हैं। अनुराध बेनीवाल अपनी किताब में आखिर में महिलाओं के लिए एक संदेश लिखती है, “तुम चलना, अपने गांव में नहीं चल पा रही तो अपने शहर में चलना। अपने शहर में नहीं चल पा रही तो अपने देश में चलना। अपना देश भी मुश्किल करता है चलना तो यह दुनिया भी तेरी है, अपनी दुनिय में चलना। लेकिन तुम चलना। आज़ाद बेफ्रिक, बेपरवाह, बेकाम, बेहया होकर चलना। तुम दुपट्टे जला कर, खुले फ्रॉक पहनकर चलना। तुम चलना ज़रूर!”
महिलाओं ने भी साहित्य की यात्रा वृतांत विधा में विशेष योगदान दिया है, जो सभी को अवश्य पढ़ना चाहिए। महिलाओं ने देश ही नहीं, विदेशों में भी यात्राएं करके अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। एक महिला के तौर पर यात्रा के दौरान महसूस किए अपने अनुभवों को किताबों में अभिव्यक्त किया है।