हमारे देश में जैसे ही एक बच्ची का जन्म होता है, तभी से ही उस बच्ची का भेदभाव और हिंसा का सामना करने की आशंका होती है। ये और भी हैरान करने वाली बात है कि उसके साथ यह सब करने वाले अधिकतर उसके अपने होते हैं। अक्सर देश में बेटी के पैदा होने पर उसे खुशी के तरह नहीं देखा जाता। कन्या भ्रूण हत्याएं, दहेज़ के नाम पर हिंसा देश में आज भी आम है। अमूमन महिलाओं के अपने ही उनके साथ हिंसा करते हैं। इन अपनों के खिलाफ बोलना ही सबसे मुश्किल काम होता है। महिलाएं अपने साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ कम ही आवाज़ उठा पाती हैं। उसके पीछे बहुत सारे कारण हैं। लेकिन जो सबसे मुख्य कारण है वह है, वो किससे कहें ? हिंसा करने वाले भी अधिकतर पुरुष हैं और सुनने वाली भी अधिकतर पुरुष हैं। थाने में शिकायत ले कर जाएं तो अधिकतर पुरुषों से सामना होता है। कोर्ट कचहरी में जाएं तो अधिकतर पुरुष होते हैं।
वर्षों से महिलाओं के साथ इसी प्रकार की हिंसा और भेदभाव किया जा रहा था। महिलाओं के केस बढ़ते जा रहे हैं और उन्हें समय पर इन्साफ नहीं मिल पाता है। आज भी देश की न्यायायिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक सोच से चल रही है। 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में, नारीवादियों ने न्यायिक सुधार के लिए सक्रिय रूप से दबाव डालना शुरू कर दिया। यह वह समय था जब महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे, जिनमें घरेलू हिंसा भी शामिल थी, सार्वजनिक चिंता बढ़ा रहे थे। उस समय, सामाजिक संघर्ष के कई मामले कानूनी विवादों में बदल गए, जो समस्याओं को हल करने के बजाय और बढ़ा रहे थे। विवाद बढ़ते जा रहे थे और लोग न्यायालयों की ओर बढ़ रहे थे। वादों की बढ़ती संख्या, लम्बे खिंचते मामले, परेशान सर्वाइवर सभी को जल्द से जल्द न्याय चाहिए था। इसलिए, विवाद निपटान के वैकल्पिक तरीकों को बढ़ावा देना और लोकप्रिय बनाना समय की मांग है। वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र न केवल त्वरित न्याय की सुविधा प्रदान करते हैं बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया भी है जिसमें शामिल पक्षों का अंतिम परिणाम पर नियंत्रण होता है।
महिला अदालतों का गठन
महिला न्यायालयों को त्वरित न्याय की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के रूप में 2013 में लाया गया। 2013 में दिल्ली गैंग रेप और मर्डर के बाद भारत में महिलाओं के खिलाफ चलने वाले मामलों की तेजी से सुनवाई की मांग उठी। उस समय के, भारत के मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने सभी उच्च न्यायालयों को ऐसी अदालतें स्थापित करने का निर्देश दिया जो महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटें और जिनमें महिला न्यायाधीश और कर्मचारी हों। इसके बाद, महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए भारत की पहली विशेष अदालत पश्चिम बंगाल राज्य में खोली गई थी। यह ऐसी अदालतों की श्रृंखला में पहली अदालत थी, जिसकी अध्यक्षता दो महिला न्यायाधीश करती थी। सारा स्टाफ और सरकारी वकील भी महिलाएं होती थीं।
महिला न्यायालय के गठन का उद्देश्य
महिला न्यायालय भारत में स्थापित एक विशेष न्यायालय है। वास्तव में, यह अदालत महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों से निपटती है। इसके अलावा, महिला न्यायालय का उद्देश्य महिलाओं को अपराधों की रिपोर्ट करने और न्याय पाने के लिए एक सुरक्षित और सहायक वातावरण प्रदान करना है। महिलाओं के खिलाफ चलने वाले सालों साल मामले सर्वाइवर महिलाओं को अपने हक़ के खिलाफ बोलने से रोक देते हैं। इसीलिए इन अदालतों को महिलाओं से जुड़े मामलों का जल्द से जल्द निपटान सुनिश्चित करने के लिए बनायी गयीं। जब आस-पास पुरुष होते हैं, तो सर्वाइवर महिला कई बार अपने साथ हुए अत्याचार की जानकारी देने में सहज नहीं होती, या नहीं दे पाती है।
इसीलिए, महिला न्यायालयों में सभी कर्मचारी, वकील और न्यायाधीश महिला रखी गयीं। कई बार पुरुष न्यायाधीश महिलाओं के खिलाफ अपराधों के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं और किसी महिला की याचिका सुनते समय पितृसत्तात्मक विचारधारा काम करती है। ऐसे में महिला न्यायाधीशों का होना सर्वाइवर महिलाओं को न्याय दिलवाने में मददगार होता है। महिला न्यायालय दहेज उत्पीड़न, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार और यौन हिंसा, मानव तस्करी, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या जैसे मामलों पर विचार करता है।
महिला न्यायालय के क्या फायदे हैं
यह महिलाओं को अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए एक सुरक्षित और सहायक वातावरण प्रदान करता है। महिला अदालतों का माहौल अन्य अदालतों की तरह आक्रामक या आरोपित वाला नहीं होता, जहां महिला सर्वाइवर को बचाव पक्ष के वकील के सवालों का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर सामान्य अदालतों में किसी सर्वाइवर को न्याय दिलाने में कई साल लग जाते हैं। लेकिन महिला अदालत मामला जल्द खत्म होता है। यह त्वरित न्याय सुनिश्चित करता है और महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों के बैकलॉग को कम करता है। यह महिलाओं की जरूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील है और उन्हें अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। इसमें एक महिला जज और स्टाफ होती है, जिससे महिलाओं को अपने अनुभव साझा करने में अधिक आसानी होती है। यह उन महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करता है जो वकील का खर्च वहन नहीं कर सकतीं।
महिला अदालतें कैसे कार्य करती हैं
महिला अदालतें महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए स्थापित विशेष अदालतें हैं। वे वैवाहिक कलह के बाद कानूनी लड़ाई लड़ रही महिलाओं से संबंधित मामलों को तेजी से निपटाती हैं। महिला अदालतों को ऐसे मंचों के रूप में स्थापित किया गया है, जहां महिलाएं, अपने छोटे बच्चों के साथ या उनके बिना, आश्रय और वित्तीय सहायता के लिए विवादों में त्वरित राहत मांगती हैं। महिला अदालतों का नेतृत्व अनुभवी महिला न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों द्वारा किया जाता है और ऐसी अदालतों में कार्यरत कर्मचारी भी मुख्य रूप से महिलाएं होती हैं।
इनका नेतृत्व अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट सह सहायक सत्र न्यायाधीश के स्तर के न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जो एक महिला होती हैं। ये अदालतें विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों से निपटती हैं जैसे कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने से संबंधित मामले। आईपीसी की धारा 354 और 509 के तहत मामले, हमले या आपराधिक बल और किसी महिला का अपमान करने के इरादे से शब्दों या इशारों से संबंधित हैं। सत्र स्तर पर, महिला अदालतें अपहरण, नाबालिग बच्चियों का मानव तस्करी, बलात्कार और पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता के मामलों से निपटती हैं।
इन अदालतों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेटों को यौन हिंसा, बलात्कार, अपहरण और घरेलू हिंसा से संबंधित मामले सौंपे जाते हैं। ये अदालतें महिला सर्वाइवर से संबंधित आपराधिक मामलों में न्याय प्रदान करने के उद्देश्य को बड़ी संवेदनशीलता के साथ पूरा करती हैं। इन अदालतों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया महिलाओं के लिए अनौपचारिक और आरामदायक है। वे महिला न्यायाधीशों की उपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गवाही दे सकती हैं, जो महिलाओं और उनकी अंतर्निहित प्रकृति के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। ये अदालतें महिलाओं को एक मंच भी प्रदान करती हैं जहां वे अपने दावों पर बातचीत कर सकती हैं। महिला अदालतें आमतौर पर आपराधिक सुनवाई करती हैं। लेकिन कभी-कभी पारिवारिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए सुलह कार्यवाही भी आयोजित की जाती है।
महिला अदालत की स्थापना भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को न्याय तक पहुंच और अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण मिले। महिला न्यायालय महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों के बैकलॉग को कम करने और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने में काम करता है। यह महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और अधिक न्यायसंगत समाज बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।