समाजकानून और नीति असफल विवाह में पत्नी को ‘भूत’ और ‘पिशाच’ कहना क्रूरता नहीं: पटना उच्च न्यायालय

असफल विवाह में पत्नी को ‘भूत’ और ‘पिशाच’ कहना क्रूरता नहीं: पटना उच्च न्यायालय

भारत में, ऐसा कोई सामान्य केंद्रीय कानून नहीं है जो जादू-टोना में विश्वास को आगे बढ़ाने वाले कार्यों को अपराध मानता हो, लेकिन इस पर राज्य कानून मौजूद हैं। इस मामले पर कानून लाने वाला पहला राज्य बिहार था जिसने 1999 में इसके खिलाफ एक कानून पारित किया।

पिछले दिनों एक मामले में पटना उच्च न्यायालय ने टिप्पणी दी कि असफल विवाह में पत्नी को ‘भूत’ और ‘पिशाच’ कहना क्रूरता नहीं है। न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी की एकल-न्यायाधीश पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गंदी भाषा का इस्तेमाल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत ‘क्रूरता’ नहीं है। पीठ झारखंड के बोकारो निवासी सहदेव गुप्ता और उनके बेटे नरेश कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

उच्च न्यायालय की ओर से यह टिप्पणी तब आई जब अदालत सहदेव गुप्ता और उनके बेटे नरेश कुमार गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने बिहार की नालंदा अदालत द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें दोनों को एक साल की कैद हुई थी। मामले के तथ्यों के अनुसार नरेश गुप्ता की पत्नी ने 1994 में नवादा कोर्ट में शिकायत दर्ज करायी थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके पति और ससुर ने दहेज में कार की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए उसे शारीरिक और भौतिक यातनाएं दीं।

न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी की एकल-न्यायाधीश पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गंदी भाषा का इस्तेमाल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत ‘क्रूरता’ नहीं है।

पिता-पुत्र के अनुरोध पर केस को नालंदा ट्रांसफर कर दिया गया था। हालांकि, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पिता-पुत्र को एक साल कैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा, अतिरिक्त सत्र न्यायालय में उनकी अपील 10 साल पहले रद्द कर दी गई थी। इस बीच, झारखंड हाई कोर्ट ने जोड़े को तलाक दे दिया था। लेकिन अब पिता-पुत्र ने नालंदा कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए पटना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

पत्नी के वकील ने अभद्र भाषा पर सवाल उठाए

महिला के वकील ने कहा कि 21वीं सदी में एक महिला को उसके ससुराल वालों द्वारा ‘भूत’ और ‘पिशाच’ कहा जाता था, जो ‘अत्यधिक क्रूरता का एक रूप’ था। लेकिन जस्टिस बिबेक चौधरी की सिंगल जज बेंच ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि, वैवाहिक संबंधों में, विशेष रूप से असफल वैवाहिक संबंधों में पति और पत्नी दोनों के द्वारा ‘गंदी भाषा’ के साथ ‘एक-दूसरे को गाली देने’ के उदाहरण सामने आए हैं। हालांकि, ऐसे सभी आरोप क्रूरता के दायरे में नहीं आते हैं। अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा पत्नी को क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित और परेशान किया गया था। 

महिला के वकील ने कहा कि 21वीं सदी में एक महिला को उसके ससुराल वालों द्वारा ‘भूत’ और ‘पिशाच’ कहा जाता था, जो ‘अत्यधिक क्रूरता का एक रूप’ था। लेकिन जस्टिस बिबेक चौधरी की सिंगल जज बेंच ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया।

अदालत का यह फैसला परेशान करने वाला क्यों है?

पटना उच्च न्यायालय का इस प्रकार का फैसला बहुत परेशान करने वाला है। इस फैसले ने वैवाहिक विवादों में महिलाओं के मौखिक दुर्व्यवहार को सामान्य रूप से और भी सामान्य बना दिया। सिर्फ यह कह देना कि जब पति-पत्नी के रिश्ते बिगड़ते हैं तो मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाना सामान्य है, यह धारणा महिलाओं के साथ होने वाले मौखिक शोषण को बढ़ावा ही देती है। क्या कोई भी रिश्ता बिगड़ने के बाद मौखिक दुर्व्यवहार होना आवश्यक है? क्या मौखिक दुर्व्यवहार करना किसी भी विधि या समाज में स्वीकार्य है? जब न्यायालय जैसा संस्थान इस प्रकार की टिप्पणियां महिलाओं के खिलाफ देता है तो हिंसा करने वालों की हौसला अफ़ज़ाई ही होती है।

बात महिलाओं के गरिमा और सम्मान की

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

भारतीय न्यायालय महिलाओं की गरिमा और सम्मान की बात करते हैं। समय- समय पर उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने वाले फैसले दिए हैं। एक केस में पति द्वारा महिला को मोटी, भैंस कहने पर एक फॅमिली कोर्ट ने एक जोड़े की तलाक़ की अर्ज़ी को मंज़ूर कर लिया था क्योंकि अदालत के अनुसार यह मानसिक क्रूरता थी। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि एक पति द्वारा अपनी पत्नी को दूसरों के सामने गंदी भाषा में गाली देना, पत्नी के खिलाफ मानसिक क्रूरता है क्योंकि इससे समाज में उसकी छवि खराब होती है। इसी प्रकार के और भी मामले देखने को मिलते हैं जहां अदालत पत्नी के साथ-साथ पति के गरिमा को भी ध्यान में रखते हुए उसके हक़ में फैसला सुनाती है।

भारतीय अदालतों ने बहुत सारे ऐसे फैसले दिए हैं जो महिलाओं की गरिमा को बढ़ाते हैं और उन्हें सम्मान दिलाते हैं। महिलाओं को अपने लिए लड़ने और अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सिखाते हैं। लेकिन पटना उच्च न्यायालय की ओर से की गयी इस प्रकार की टिप्पणी महिलाओं का मनोबल गिराने का काम करती है।

एक फैसले में पत्नी द्वारा पति को मोटा, हाथी, भैंसा कहने को पति के खिलाफ क्रूरता मानते हुए उनकी तलाक़ की अर्ज़ी को क़ुबूल कर लिया। ऐसे ही एक फैसले में पत्नी द्वारा पति को सबके सामने नामर्द कहने को भी क्रूरता माना। भारतीय अदालतों ने बहुत सारे ऐसे फैसले दिए हैं जो महिलाओं की गरिमा को बढ़ाते हैं और उन्हें सम्मान दिलाते हैं। महिलाओं को अपने लिए लड़ने और अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सिखाते हैं। लेकिन पटना उच्च न्यायालय की ओर से की गयी इस प्रकार की टिप्पणी महिलाओं का मनोबल गिराने का काम करती है।

महिलाओं को विच बुलाना और इसके पीछे की मानसिकता

तस्वीर साभार: Hindustan Times

गुस्से में कहा गया ‘विच’ जैसे केवल एक शब्द या गाली ही नहीं है बल्कि कई बार यह शब्द एक महिला की ज़िंदगी का फैसला कर देता है। कई बार विच हन्टिंग के कारण महिला को मौत की मुंह में भी पहुंचना पड़ जाता है। विश्व भर में किसी महिला को विच करार देने और परिवार में दुर्भाग्य के लिए उसे दोषी ठहराने की प्रथा सदियों पुरानी है। भारत में, विच हन्टिंग के कारणों में, महिलाओं पर विच होने का आरोप लगाने और घोषित करने के सबसे आम कारण व्यक्तिगत विवाद या दुश्मनी, कथित निचली जाति की महिलाओं के प्रति दुश्मनी, यौन हिंसा, एकल महिलाओं की संपत्ति के प्रति लालच शामिल हैं। आज, पूरे भारत में आम तौर पर कमजोर वित्तीय या सामाजिक स्थिति वाली महिलाओं को काले जादू में माहिर माना जाता है और उन्हें दुर्भाग्य, लंबी बीमारी या मृत्यु, घटती वित्तीय या कई अन्य पारिवारिक समस्याओं के लिए दोषी ठहराया जाता है। घरों में होने वाली ऊंच-नीच के लिए घर की बहु को ‘भूत’ और ‘डायन’ का नाम दे कर प्रताड़ित किया जाता है। 

भारत में, ऐसा कोई सामान्य केंद्रीय कानून नहीं है जो जादू-टोना में विश्वास को आगे बढ़ाने वाले कार्यों को अपराध मानता हो, लेकिन इस पर राज्य कानून मौजूद हैं।

क्या है कानून

भारत में, ऐसा कोई सामान्य केंद्रीय कानून नहीं है जो जादू-टोना में विश्वास को आगे बढ़ाने वाले कार्यों को अपराध मानता हो, लेकिन इस पर राज्य कानून मौजूद हैं। इस मामले पर कानून लाने वाला पहला राज्य बिहार था जिसने 1999 में इसके खिलाफ एक कानून पारित किया। उसके बाद  झारखंड, असम, राजस्थान आदि राज्यों ने भी इसके खिलाफ कानून लाए। राजस्थान में एक महिला को ‘डायन’ कहने पर 10 वर्ष तक की क़ैद का प्रावधान है। केंद्रीय स्तर पर इससे सम्बंधित एक बिल ‘द प्रिवेंशन एंड प्रोहिबिशन ऑफ़ विच-ब्रांडिंग एंड विच-हंटिंग एंड अदर हार्मफुल प्रैक्टिसेज बिल, 2022’ में राज्य सभा में पेश किया गया था। इस बिल में महिला को विच, डायन, आदि कोई भी नाम से पुकारने पर कम से कम तीन साल और अधिकतम सात वर्ष की सजा का प्रावधान है। अभी यह बिल अधिनियम के रूप में पारित नहीं किया गया है।  

महिलाओं का भावनात्मक शोषण  

शारीरिक शोषण लोगों को दिखाई देता है क्योंकि यह शरीर पर निशान छोड़ देता है। लेकिन भावनात्मक शोषण न किसी को दिखाई देता है और न ही इसके हानिकारक प्रभाव के बारे में लोगों को कोई समझ होती है। कई मामलों में तो भावनात्मक शोषण या मानसिक शोषण को गैरकानूनी भी नहीं माना जाता। मौखिक दुर्व्यवहार मानसिक तनाव का कारण बनते हैं। हालांकि, अदालत और लोगों को यह याद दिलाने की ज़रूरत है कि एक महिला के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना अब नए आपराधिक कानून संशोधन के तहत क्रूरता है। भारत सरकार ने नए आपराधिक विधेयक भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं के खिलाफ अपराध में दो नई धाराएं जोड़ी गई हैं। इसके अलावा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भी भावनात्मक शोषण को अपराध माना जाता है।

शारीरिक शोषण लोगों को दिखाई देता है क्योंकि यह शरीर पर निशान छोड़ देता है। लेकिन भावनात्मक शोषण न किसी को दिखाई देता है और न ही इसके हानिकारक प्रभाव के बारे में लोगों को कोई समझ होती है।

इसके अलावा, नाम-पुकारना तब गलत माना जाता है जब कोई अनजान व्यक्ति ऐसा करता है। फिर जब पति ऐसा करें तो यह सही कैसे हो जाता है? क्या स्त्रियों पर पतियों का अधिकार है? स्त्रियाँ अपने पतियों की सम्पत्ति होती हैं? असल में गलत नामों से पुकारना या मौखिक दुर्व्यवहार गलत और अपमानजनक है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। मजाक के रूप में कई बार परिवार में ऐसा होता है। लेकिन अंतर यह है कि ऐसे मामलों में, लक्षित व्यक्ति को दुर्व्यवहार महसूस नहीं होता है। बेशक शादी में विवाद होते रहते हैं लेकिन फिर भी एक-कोई दूसरे के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचाया जा सकता। पति को पत्नी के खिलाफ अपमानजनक शब्द के प्रयोग का लाइसेंस सिर्फ इस आधार पर नहीं मिल जाता कि दोनों के रिश्ते में खटास आई हुई है। किसी भी सूरत में पत्नी या पति के खिलाफ भी अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना आवश्यक नहीं होता है।

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