इंटरसेक्शनलजेंडर समाज को पढ़ी-लिखी बहू नौकरी के लिए नहीं, ‘स्टेटस’ के लिए चाहिए!

समाज को पढ़ी-लिखी बहू नौकरी के लिए नहीं, ‘स्टेटस’ के लिए चाहिए!

शादी के बाजार में न सिर्फ शिक्षित बहु की मांग है, बल्कि एक शोध के अनुसार व्यवस्थित शादी और ‘डीसाइरेबल’ दुल्हनों की धारणा के आस-पास, लोग सामाजिक संरचनाओं का एक-दूसरे के सहयोग से सह-निर्माण करते हैं। आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसी बहूओं की उम्मीद की जाती है, जो पढ़ी-लिखी हो। हालांकि यह इच्छा उनके कामकाजी होने या आज़ादी से जुड़ी नहीं होती।  

बिहार की रहने वाली रानी कुमारी (नाम बदला हुआ) अंग्रेजी में स्नातक कर चुकी हूं और फिलहाल आंध्र प्रदेश में अपने पति और दो बच्चों के साथ पिछले कई सालों से रह रही हैं। बिहार के ही रहने वाले रमन कुमार (नाम बदला हुआ) जब अपने भाई के शादी के लिए लड़की की तलाश कर रहे थे, तो बतौर ‘टेस्ट’, उन्होंने लड़की से औपचारिक और अनौपचारिक पत्र और निबंध तक लिखवाया। शादी से पहले लड़कियों की शिक्षा की जांच कोई अनोखी बात नहीं है। लेकिन अमूमन महिलाओं की शिक्षा के बावजूद, महिलाएं उस तादाद में कार्यबल में दिखती नहीं है। देश में महिला सशक्तिकरण के नाम पर भले तेजी से महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया गया हो, लेकिन शिक्षा के बाद का सफर महिलाएं अबतक पूरी तरह तय नहीं कर पाई हैं। वहीं महिलाओं की शिक्षा भी अक्सर इसलिए लंबी खींची जाती है, ताकि शादी के बाजार में उनका ‘डिमांड’ रहे।  

समाज और परिवार शादी के बाद, जबकि पुरुषों से यही उम्मीद करता है कि वे अपना जीवन सामान्य रूप से जियेंगे, महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे अपने जीवन की जरूरतों को सभी कारकों के हिसाब से बदलेंगी। देश में पढ़ी-लिखी बहू की उम्मीद करना, नया नहीं है। लेकिन इसे समझने के लिए कुछ कारकों पर ध्यान देने की जरूरत है। शादी के बाजार में न सिर्फ शिक्षित बहू की मांग है, बल्कि एक शोध के अनुसार व्यवस्थित शादी और ‘डीसाइरेबल’ दुल्हनों की धारणा के आस-पास, लोग सामाजिक संरचनाओं का एक-दूसरे के सहयोग से सह-निर्माण करते हैं। आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसी बहुओं की उम्मीद की जाती है, जो पढ़ी-लिखी हो। हालांकि यह इच्छा उनके कामकाजी होने या आज़ादी से जुड़ी नहीं होती।  

बिहार के ही रहने वाले रमन कुमार (नाम बदला हुआ) जब अपने भाई के शादी के लिए लड़की की तलाश कर रहे थे, तो बतौर ‘टेस्ट’, उन्होंने लड़की से औपचारिक और अनौपचारिक पत्र और निबंध तक लिखवाया।

लड़कियां स्कूलों में रह रही हैं ज्यादा दिन

वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर) 2023 से पता चलता है कि आज देश में लड़कों की तुलना में लड़कियां 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई जारी रखने की ज्यादा इच्छा रखती हैं। यह रिपोर्ट एक सर्वेक्षण पर आधारित था, जहां हर राज्य के कम से कम एक ग्रामीण जिले को शामिल किया गया। इसमें पाया गया कि इस प्रवृत्ति के पीछे कारणों में, लड़कियों की पढ़ाई में रुचि के अलावा, लड़कियों का यह विश्वास था कि शिक्षा उन्हें बेहतर हाउसवाइफ बनने में सक्षम बनाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य तौर पर, लड़के इन निर्णयों को लेने या कम से कम आकार देने में सक्षम थे। यदि उन्हें आगे की पढ़ाई में रुचि नहीं है, तो वे अपने परिवार की प्राथमिकताओं की परवाह किए बिना, पढ़ाई छोड़ सकते थे। लेकिन, लड़कियों के मामले में अक्सर ये फैसले उनके हाथ में नहीं होते थे।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

इसका मतलब है कि लड़कियां कितना और कौन से विषय लेकर पढ़ेंगी, इसका फैसला आम तौर पर परिवार करता है। ऑक्सफैम के इंडिया डिसक्रीमीनेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार महिलाओं की रोजगार स्थिति उनकी शैक्षणिक योग्यता पर निर्भर नहीं करती है। रिपोर्ट यह बताती है कि उच्च डिग्री के साथ योग्य महिलाएं, घरेलू जिम्मेदारियों या समुदाय के भीतर ‘सामाजिक स्थिति’ के कारण, श्रम बाजार में शामिल नहीं होती। ये मानदंड उनके श्रम बल भागीदारी को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। यहां जाति भी एक अहम भूमिका निभाती है। इस तरह पितृसत्ता महिलाओं के एक बड़े वर्ग को, जिनके पास पुरुषों की तुलना में समान या उससे भी ज्यादा योग्यता है, उन्हें ‘हाउसवाइव्स’ की भूमिका तक सीमित कर देता है और रोजगार से बाहर रखता है। वहीं विभिन्न रिपोर्ट बताती है कि समय के साथ इसमें कोई सुधार नहीं दिखा है।

वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर) 2023 से पता चलता है कि आज देश में लड़कों की तुलना में लड़कियां 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई जारी रखने की ज्यादा इच्छा रखती हैं। इस प्रवृत्ति के पीछे कारणों में, लड़कियों की पढ़ाई में रुचि के अलावा, लड़कियों का यह विश्वास था कि शिक्षा उन्हें बेहतर हाउसवाइफ बनने में सक्षम बनाएगा।

शिक्षा की जरूरत सिर्फ शादी तक

उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 के बाद से कुल नामांकन में महिला नामांकन की हिस्सेदारी 55 फीसद है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उच्च शिक्षा में महिला विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व 2021-22 में 2.07 करोड़ पर है और कुल नामांकन में 48 फीसद महिलाएं हैं। वहीं महिला नामांकन 2020-21 में 2.01 करोड़ और 2017-18 में 1.74 करोड़ से बढ़कर 2021-22 में 2.07 करोड़ हुआ है, यानि 5 सालों के दौरान नामांकन में 18.7 फीसद की वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नामांकन में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। आज चूंकि ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में महिलाएं कुछ हद तक नौकरी कर रही हैं, इसलिए उम्मीद की जाती है कि वे पढ़ी-लिखी होंगी। लेकिन शादी के बाजार में शिक्षा सिर्फ समाज में स्टेटस दिखाने भर के लिए होता है।

ऑक्सफैम के इंडिया डिसक्रीमीनेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार महिलाओं की रोजगार स्थिति उनकी शैक्षणिक योग्यता पर निर्भर नहीं करती है। रिपोर्ट यह बताती है कि उच्च डिग्री के साथ योग्य महिलाएं, घरेलू जिम्मेदारियों या समुदाय के भीतर ‘सामाजिक स्थिति’ के कारण, श्रम बाजार में शामिल नहीं होती।

असर रिपोर्ट के अनुसार शादी की उचित उम्र के लिए बदलते सामाजिक मानदंड, युवा महिलाओं की आगे की पढ़ाई करने के प्रमुख कारक के रूप में उभरे हैं। रिपोर्ट में ज्यादातर लड़कियों ने इस बारे में बात की कि कैसे वे केवल 21 या 22 साल की उम्र में शादी करने की उम्मीद करती हैं, जिससे उन्हें तब तक पढ़ाई जारी रखने का समय मिल सके। लेकिन अक्सर इस कथित छूट के बावजूद, महिलाओं की शिक्षा काम नहीं आती। शादी के बाद, जब घर संभालने की बात होती है, तो घर के काम के साथ, उच्च मध्यम वर्ग घर से काम कर सकता है क्योंकि वे घरेलू कामगार को काम पर रखने का खर्च उठा सकते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग की महिलाएं प्रभावित होती हैं।

शादी के बाजार में कैसे हो रही है शिक्षित बहुओं की तलाश

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

महिलाओं के लिए शिक्षा का बढ़ता स्तर, काफी हद तक शादी के बाजार में अच्छी नौकरी करने वाले लड़कों से शादी होने से प्रेरित है, नौकरी की बेहतर संभावनाओं से नहीं। वाशिंगटन पोस्ट में छपी एक शोध आधारित खबर के अनुसार दूल्हे के परिवार तेजी से शिक्षित बहुओं की तलाश कर रहे हैं। लेकिन, ये इसलिए नहीं कि ऐसी महिलाएं नौकरी कर घर चलाने में मदद करें, बल्कि इसलिए है ताकि वे उच्च शिक्षित बच्चे पैदा और उनकी देखभाल कर सकें। घरों में शिक्षित बहू का होना, समाज को अपना अभिजात्य दिखाने का एक तरीका बन जाता है। आम तौर पर अर्ध-ग्रामीण, ग्रामीण या शहरी इलाकों में भी माँओं को एक उम्र तक बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी दे दी जाती है। ऐसे में घरों में पढ़ी-लिखी बहुओं का होना, न सिर्फ बच्चों के लिए शिक्षा की मजबूत नींव रखता है, बल्कि किफ़ायती भी है।

‘डीसाइरेबल’ बहू की इच्छा में, शिक्षा के माध्यम की प्रमुखता अपना असर दिखाती है, जहां अरेंज्ड विवाह में हिन्दी मिडीयम से पढ़ी-लिखी महिलाएं हाशिए पर हैं। कम उम्र में शादी का रूढ़िवादी सामाजिक मानदंड, स्कूल और कॉलेज की फीस का वित्तीय बोझ और शादी के बाद महिलाओं के लिए अच्छे अवसरों की कमी, लड़कियों की शिक्षा को प्रभावित करते हैं।

पढ़ने के लिए सिर्फ 18 साल तक की छूट

राजस्थानी महिलाएं आमतौर पर जल्दी स्कूल छोड़ देती हैं और कम उम्र में ही शादी कर लेती हैं। वित्तीय अध्ययन संस्थान (आईएफएस), लंदन ने राजस्थान में लड़की की शिक्षा और शादी की उम्र पर आम तौर पर माता-पिता की प्राथमिकताओं और उसकी शादी के बाजार की संभावनाओं के विकास के बारे में मान्यताओं को जानने के लिए एक शोध किया। शोध में पाया गया कि माता-पिता अपनी बेटी की शादी को अठारह साल तक टालने को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन इससे आगे नहीं। शादी के संबंध में शर्त रखते हुए, माता-पिता बेटी की शिक्षा पर स्वाभाविक रूप से बहुत कम अहमियत देते हैं। हालांकि उनका मानना है कि बेटी की शिक्षा के साथ, अच्छी शादी का प्रस्ताव मिलने की संभावना काफी बढ़ जाती है। लेकिन स्कूल छोड़ने की उम्र के साथ यह तेजी से कम होती जाती है।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

महिलाओं की शादी की उम्र और उनके श्रम बाजार में भागीदारी के परिणाम की जांच करने से कोई खास नतीजे नहीं निकलते हैं। इसके अलावा, ‘डीसाइरेबल’ बहू की इच्छा में, शिक्षा के माध्यम की प्रमुखता अपना असर दिखाती है, जहां अरेंज्ड विवाह में हिन्दी मिडीयम से पढ़ी-लिखी महिलाएं हाशिए पर हैं। कम उम्र में शादी का रूढ़िवादी सामाजिक मानदंड, स्कूल और कॉलेज की फीस का वित्तीय बोझ और शादी के बाद महिलाओं के लिए अच्छे अवसरों की कमी, लड़कियों की शिक्षा को प्रभावित करते हैं। शादीशुदा महिलाओं को अक्सर बच्चे पैदा करने और परिवार आगे बढ़ाने के लिए दबाव दिया जाता है। किसी तरह वे माँ-बाप को राजी कर स्कूल या कॉलेज की पढ़ाई खत्म भी कर ले, तो भी शादी उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है, जिसे वह नकार नहीं सकती। ये भी ध्यान देने वाली बात है कि महिलाएं बिना शादी के तभी रह सकती हैं, जब उसके परिवार का साथ और सहयोग हो और वह खुद वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हो। शिक्षित हाउसवाइव्स का निर्माण किसी भी देश, यहां ये लोग और अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं। जरूरी है कि हम घरों में शिक्षित महिलाओं को सिर्फ स्टेटस सिंबल तक सीमित कर न रखें।

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