पुरुष और स्त्री की भूमिकाएं जैविक (बायोलॉजिकल) रूप से तय नहीं हैं बल्कि सामाजिक रूप से निर्मित की गई है। इसे सत्ता ने तय किया है क्योंकि सत्ता का रूप पितृसत्तात्मक है तो इसे एक पुरुष के हित में अधिक रखा गया है। पुरुष पहचान को हर स्तर पर विशेषाधिकार दिए गए हैं। पुरुषत्व को महत्व दिया गया है और उसके वर्चस्व को स्थापित करने का काम किया गया है। इसी से टॉक्सिक मर्दानगी की अवधारणा निकली है। टॉक्सिक मर्दानगी के ज़रिये ताकत, वर्चस्व और पितृसत्तात्मक स्थिति को बनाए रखना है। बीते कुछ समय से इसी तरह टॉक्सिक फेमिनिटी यानी स्त्रीत्व को लेकर भी बहस चल रही है। इसमें नारीवाद के आक्रामक रूप को बताया गया है। समय-समय पर टॉक्सिक फेमिनिटी को लेकर अलग-अलग तरह की बहस सामने आती है और इसके प्रारूप को अलग तरीके से बताने की कोशिश की जाती है।
दुनिया भर में जैसे ही ‘बार्बी’ फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे लहराने लगी वैसे ही कुछ लोगों की इसके विपक्ष में प्रतिक्रिया सामने रखनी शुरू की और कई तरह के बयान जारी किए। इसी चर्चा में टॉक्सिक फेमिनिटी शब्द फिर सुर्खियों में छा गया। कुछ लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हुए नारीवाद और समावेशी समाज की बहस को पीछे धकलेते दिखते है। वहीं कई जगह टॉक्सिक फेमिनिटी को टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के जवाब के तौर पर पेश किया गया है।
टॉक्सिक फेमिनिटी क्या है?
टॉक्सिक फेमिनिटी की अवधारणा ज्यादा प्रचलित साल 2010 के दशक में नारीवादी लेखकों और विद्वानों के द्वारा सामने आई जिसमें बताया गया कि यह महिलाओं के द्वारा महिलाओं को रूढ़िवादी और पारंपरिक व्यवहार में एक तरह से सीमित करती है। टॉक्सिक फेमिनिटी का चलन हाल के समय में कुछ रूढ़िवादियों के बीच ज्यादा देखा गया है। हालांकि अभी भी इसकी एक तय परिभाषा का अभाव है और अक्सर महिलाओं, पुरुषों और जेंडर के बारे में प्रतिस्पर्धी और विरोधी विचार रखने वाले लोगों द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता है।
टॉक्सिक फेमिनिटी की अवधारणा को समझने से पहले टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी को समझना बहुत ज़रूरी है। शिक्षाविदों और नारीवादी समर्थकों ने इस वाक्यांश का उपयोग मर्दानगी के एक खतरनाक रूप का वर्णन करने के लिए किया है जिसने सामाजिक व्यवस्था को बहुत नकुसान भी पहुंचाया है। समाजशात्री माइकल फ्लड के अनुसार यह अवधारणा रूढ़िवादी रूप से मर्दाना गुणों के सबसे खराब पहलुओं पर जोर देती है जिसमें हिंसा, प्रभुत्व, भावात्मक लगाव में कमी, यौन अधिकार और स्त्रीत्व के प्रति नफरत शामिल है। टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी की ही तरह टॉक्सिक फेमिनिटी उन महिलाओं को संदर्भित करता है जो समाज में पारंपरिक विचारों को बनाए रखने में विश्वास रखती है।
टॉक्सिक फेमिनिटी की अवधारणा की कई व्याख्याएं की गई हैं। नारीवादी दृष्टिकोण के अनुसार टॉक्सिक फेमिनिटी महिलाओं पर थोपी गई सामाजिक जेंडर अपेक्षाओं से निकलता है जो महिलाएं शांत, विनम्र और पुरुष वर्चस्व को स्वीकार करने के रूढ़िवाद को अपनानी हैं, वे टॉक्सिक फेमिनिटी का प्रतीक हैं। विशेष रूप से जो खुद के जीवन में पुरुषों की आक्रमकता को चुपचाप सहन करके उसे कायम करती है। यह एक तरह का स्त्रीद्वेष यानी मिसोजिनी है जो महिलाओं को ऐसे सामाजिक मानदंडो को अपनाने और उनके अधीन रखती है। इस चक्र में महिलाएं अगली पीढ़ी की महिलाओं के लिए लैंगिक भूमिकाएं बनाने पर जोर देती है। पुरुषों की अधीनता को स्वीकार करना और उनके अधीन रहकर जीवन जीने जैसे व्यहार को सही ठहराती है।
टॉक्सिक फेमिनिटी एक तरह से पितृसत्तात्मक सौदबाजी से इस व्यवस्था में अपनी जगह बताती है। वे पितृसत्ता के ख़िलाफ़ खड़े होकर अपना अस्तित्व नहीं बनाती है। खुद ऊपर रहकर बाकी सबको नियंत्रित करती है। इसी तरह टॉक्सिक फेमिनिटी को पितृसत्तात्मक संरचना के भीतर सत्ता हासिल करने के लिए महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले एक टूल के रूप में देखा जा सकता है। इस तरह से वे अपने अस्तिव को बनाने के लिए किसी अन्य पर अधीनता करने के लिए रणनीतियां बनाती है जो पितृसत्ता के प्रारूप को ही आगे बढ़ाता है।
द एंटी मैरी एक्सपोज्डः रेस्क्यूइंग द कल्चर फ्रॉम टॉक्सिक फेमिनिटी की लेखिका कैरी ग्रैस इसे आगे ले जाते हुए कहती है कि 1960 के दशक के प्रो-चॉइस रेडिकल नारीवाद ने एक संस्कृति और आध्यात्मिक बदलाव की शुरुआत की जिसके कारण टॉक्सिक फेमिनिटी ने बहुत से स्त्री, पुरुष और बच्चों के जीवन को प्रभावित किया। साथ ही टॉक्सिक फेमिनिटी में दक्षिणपंथी (राइट विंग) का इंटरवेंशन इस तर्क को भी बेअसर करता है कि पितृसत्ता उन महिलाओं और अन्य लोगों को व्यवस्थित रूप से नुकसान पहुंचाती है जो पारंपरिक लैंगिक मानदंडों से खुद को अलग रखते हैं। टॉक्सिक फेमिनिटी को पुरुषों के लिए भी उतना ही खतरनाक माना जाता है या उससे भी अधिक जितना कि महिलाओं के लिए टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी है।
क्या टॉक्सिक फेमिनिटी एंटी फेमिनिस्ट है?
मेलबर्न यूनिवर्सिटी में कल्चर स्टडीज की हन्ना मैक्कैन ने पहली बार सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड के पत्रकार जेन गिलमोर के 2018 के लेख में इस शब्द को सुना और 2020 में अकादमिक पत्रिका और साइकोलॉजी और सेक्सुअलिटी में इस विषय पर एक पेपर प्रकाशित किया था। वह लिखती है कि इस शब्द की ऑनलाइन चर्चा अक्सर नारी विरोधी हो सकती है और यह तर्क भी दिया जा सकता है कि महिलाएं टॉक्सिक हो सकती है। द वाइस में प्रकाशित रिपोर्ट में वह कहती है, “इस तरह कि एंटी फेमिनिस्ट परिभाषाएं हानिकारक स्त्रीत्व की अवधारणाओं को बढ़ाती है जैसे कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से गपशप करने वाली होती है और अक्सर सुझाव देती है कि पुरुष इसके शिकार है। मैक्कैन आगे तर्क देती है कि यह कुछ व्यक्तिगत दृष्टिकोण और लक्षणों के बजाय जेंडर के प्रति कुछ दृष्टिकोण कैसे टॉक्सिक हैं क्योंकि यह हमें बड़ी राजनीतिक तस्वीर देखने की ओर आगे बढ़ाती है।”
फिलॉसफ़र और जेंडर थिरोरिस्ट जूडिथ बटलर ने तर्क दिया है कि ये मुद्दे और विशेष रूप से नारीवाद लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए बहुत अच्छे रहे हैं जो उन्हें ऐसी एक्टिविटी और जुनून के लिए अपना रास्ता खोजने की अनुमति देते हैं जो पूरी तरह से व्यक्त करते हैं कि वे कौन हैं और उन्हें फलने-फूलने देते हैं। वास्तव में उनके जेंडर के लिए क्या उपयुक्त है, इसके बारे में किसी भी सामाजिक फैसले के अलावा, अधिकांश नारीवादी दृष्टिकोण लोगों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना, सभी लिंगों के लोगों की समानता को सम्मान करना, जेंडर विभिन्नता को स्वीकार करना और सभी तरह की हिंसा का विरोध करना है। लोगों के ख़िलाफ़ चाहे वे युवा हो, बूढ़े हो, उनका जेंडर और सेक्सुअलिटी कुछ भी हो।
अलग-अलग व्याख्याओं वाली अवधारणों में टॉक्सिक फेमिनिटी अलग-अलग तरीके से सामाजिक, लैंगिक पहलुओं पर नजर डालती है। जबकि नारीवादी दृष्टिकोण महिलाओं पर लैंगिक अपेक्षाओं के असर और अधीनता को खत्म करने पर जोर देता है। भले ही वैकल्पिक समझ टॉक्सिक फेमिनिटी को पितृसत्तात्मक संरचनाओं के भीतर महिलाओं के लिए शक्ति का उपकरण (पॉवर ऑफ टूल) होने का दावा करती है। टॉक्सिक फेमिनिटी हो या मेस्कुलिनिटी यह एक सांस्कृतिक कुरीति है। आस-पास के सभी लोग इससे पीड़ित है यह समस्या कभी भी पुरुषों की नहीं थी बल्कि यह जेंडर बाइनरी को स्थापित करने का एक तरीका रही है जिससे असमानता और भेदभाव पनपता रहे। टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी और टॉक्सिक फेमिनिटी दोनों ही एक अस्वस्थ परंपरा है क्योंकि वे व्यक्तियों के अपने उच्चतम और सर्वोत्तम व्यक्ति के रूप में सामने रखने और किसी दूसरे के जीवन को एक तय सांचे में फिट होने के दबाव डालते हैं।
स्रोतः
Very nice content I have done my PhD from Sociology…I am a sociologist you guys are doing great work to spread these awareness for the women of society