2024 लोकसभा चुनाव की वोटिंग पूरी हो चुकी है। इस चुनाव में राजनीतिक पार्टियों द्वारा और आम मतदाताओं द्वारा अनेक मुद्दों पर बात की गई। इसी क्रम में चुनाव और आगामी सरकार से उम्मीदों को लेकर फेमिनिज़म इन इंडिया ने देश के आम चुनाव के दौरान महिलाओं और क्वीयर व्यक्तियों के अनुभवों की जानकारी हासिल करने के लिए #TheFeministBallot सर्वेक्षण किया। इस सर्वे को लोकतांत्रिक मूल्यों पर उनके दृष्टिकोण, चुनाव अभियानों और पार्टी घोषणापत्रों के बारे में उनकी जानकारी, उनका वोटिंग अनुभव और आने वाली सरकार से उनकी अपेक्षाओं का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
इसमें देश के कोने-कोने से 369 महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया। यह सर्वे मुख्य रूप से महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लोगों की राजनीतिक चेतना और लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने के लिए किया गया। इस सर्वे से प्राप्त डेटा से यह समझने की कोशिश की गई कि महिलाओं और क्वीयर समुदाय देश के आम चुनाव और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में खुद को कैसे देखते हैं। उनके मुद्दे क्या हैं, लोकतंत्र और चुनाव को लेकर उनकी क्या भावना है और बतौर नागरिक वे खुद की स्थिति को कैसे देखते हैं।
सर्वे में शामिल लोगों का विवरण
सर्वे में 85.4 प्रतिशत महिलाएं, 13 प्रतिशत नॉन बाइनरी और 1.6 प्रतिशत ट्रांसजेंडर ने भाग लिया। सर्वे में सबसे ज्यादा 42.3 फीसद प्रतिभागी 25-34 आयु वर्ग के शामिल हुए जबकि 32.5 फीसद 18-24 आयु वर्ग, 11.9 फीसद 35-44 आयु वर्ग और 7.3 फीसद 45-54 आयु वर्ग की महिलाएं और क्वीयर समुदाय के लोग शामिल हुए। सर्वे में सबसे ज्यादा 16 फीसद महाराष्ट्र से, 13 फीसद पश्चिम बंगाल, कर्नाटक से 12.5 फीसद, दिल्ली से 10.8 फीसद, उत्तर प्रदेश से 10.6 फीसद और बाकी अन्य राज्यों से लोग शामिल हुए।
हमारे सर्वे में शामिल प्रतिभागियों की शैक्षिक योग्यता की बात करें, तो 54.5 फीसद लोगों ने खुदको स्नातकोत्तर बताया, 29.8 फीसद ने ग्रेजुएट और 7.3 फीसद ने पीएचडी बताया। सर्वे में शामिल 50.9 फीसदी पेशेवर, 30.1 फीसदी विद्यार्थी, 6 फीसदी बेरोजगार और 2.2 फीसद हाउसवाइफ शामिल हुए। सर्वे में शामिल 82.7 फीसद लोगों ने कहा कि वे देश-दुनिया की ख़बरों पर नज़र रखते हैं। इनमें से 83.2 फीसद प्रतिभागी मोबाईल के माध्यम से डिजिटल रूप में और 79 फीसद सोशल मीडिया के माध्यम से ख़बरों पर नज़र रखते हैं।
महिलाओं और क्वीयर लोगों के अनुसार देश में लोकतंत्र की स्थिति
भारत जैसे देश को उसका लोकतंत्र ही खास बनाता है। लेकिन देश में पिछले कई सालों से ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं, जो देश के लोकतंत्र होने पर कई सवाल खड़े करता हैं। बात सर्वे में शामिल लोगों के मत की करें, तो 81.8 फीसद लोगों का मानना है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। 50.9 फीसद सर्वे में शामिल लोगों का मानना है देश में लोकतंत्र की स्थिति बहुत खराब है। वहीं 26.8 फीसद प्रतिभागी मानते है कि लोकतंत्र की स्थिति बहुत खराब है। ग्लोबल स्तर पर लोकतंत्र की स्थिति पर जारी रिपोर्ट में भी भारत की रैंक में भी गिरावट दर्ज की गई है। स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट द्वारा जारी ‘लोकतंत्र रिपोर्ट 2024’ के अनुसार, भारत में तेजी से निरंकुशता बढ़ती जा रही है। 179 देशों में से 104 रैंक के साथ भारत को निचले 40-50 प्रतिशत देशों में स्थान दिया गया है। 179 देशों में से 104 रैंक के साथ, कई मानदंडों पर और भी नीचे गिर गया है और ‘सबसे खराब निरंकुश’ देशों में से एक का स्थान दिया गया है।
सर्वे में शामिल 76 .7 फीसद प्रतिभागियों को लगता है कि लोगों की मौलिक ज़रूरतों को पूरा करके लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है। वहीं 66.7 फीसद को लगता है कि न्याय व्यवस्था के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है। 35.2 फीसद प्रतिभागियों ने भारत में लोकतांत्रिक गिरावट से जुड़ी कोई रिपोर्ट या सर्वेक्षण पढ़ा है और वे इस बात से सहमत है कि देश में लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट हो रही है। सर्वे में शामिल प्रतिभागियों के मुताबिक़ लोकतंत्र को बनाने में सबसे अहम भूमिका संविधान, आम जनता और चुनाव की है।
अल्पसंख्यकों के अधिकार और बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी
लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है कि प्रत्येक नागरिक के पास बोलने का अधिकार हो। लेकिन, वर्तमान सरकार के शासनकाल में ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुए जहां अभिव्यक्ति की आजादी खत्म होती दिखी। पत्रकारों को रिपोर्ट करने पर जेल में डाला जा रहा है। संविधान को कमजोर करने वाले कानून पास किए जा रहे हैं। हमारे सर्वे में शामिल 71.3 फीसद प्रतिभागियों को लगता है कि भारत में बोलते की आजादी में कमी हो रही है। वहीं 18.4 फीसद को लगता है कि भारत में बोलने की आजादी नहीं है। इसी तरह भारत में प्रेस की स्थिति पर बात करें, तो 32.8 फीसद प्रतिभागियों का मानना है कि भारत में मीडिया स्वतंत्र नहीं है। 59.1 फीसद का कहना है कि इसमें कमी आ रही है। वैश्विक स्तर पर देश में प्रेस की स्थिति पर बात करें, तो भारत की रैंक में लगातार गिरावट देखी गई है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) द्वारा जारी 2024 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 159वां स्थान दिया गया है। भारत में खासकर पिछले कुछ सालों में पत्रकारों पर लगातार गैर-जमानती धाराएं लगाकर उन्हें जेल में डाला जा रहा है और काम में बधाएं डाली जा रही है।
अगर वर्तमान सरकार के कार्यकाल की बात करें, तो अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा और डर का माहौल बनाया गया है। बुलडोजर की कार्रवाई को न्याय का प्रतीक बताया गया है। महिलाओं, दलित और क्वीयर लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा पर सरकार की चुप्पी बनी हुई है। सर्वे में शामिल 50.7 फीसद प्रतिभागी मानते हैं कि देश में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार सुरक्षित नहीं है। 40.1 फीसद को लगता है कि देश में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार कुछ हद तक सुरक्षित है। अमूमन देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी आस्था प्रकट करने पर प्रताड़ित किया जा रहा है। गैर-हिंदु धर्म के लोगों को बाहरी और अलगाववादी कहा जा रहा है और हिंदुत्ववादी कंट्टरपंथी लोगों बढ़ावा दिया जा रहा है। हमारे सर्वे में भी शामिल 59.6 फीसद प्रतिभागियों को लगता है कि भारत में धार्मिक आज़ादी में कमी आ रही है।
“महिलाओं के लिए परिवहन की चर्चा हुई है। इसके अलावा और कुछ नहीं। घरेलू हिंसा का मुद्दा, सैनिटरी पैड तक पहुंच की जरूरत, महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित सार्वजनिक शौचालयों की जरूरत कभी नहीं उठाई गई।”
भारत में ख़ास तौर पर एक विचारधारा से अलग अपने राजनीतिक विचार जाहिर करने पर, अमूमन उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों जगह लोगों को हिंसा का सामना करना पड़ता है। अपने राजनीतिक विचार ऑनलाइन या ऑफलाइन व्यक्त करने के मामले में सर्वे में शामिल 35.8 फीसद लोगों ने कहा है कि वे केवल परिवार, दोस्तों या परिचित लोगों के साथ ही विचार साझा करते हैं। वहीं 18.4 फीसद ने कहा कि वे इसमें स्वतंत्र महसूस नहीं करते हैं। हाल ही में कई वैश्विक संस्थाओं जैसे एमनेस्टी इंटरनैशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच की ओर से जारी रिपोर्ट में भारत के लोकतांत्रिक स्थिति, अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कमी दर्ज की गई है।
चुनाव में महिला और क्वीयर मुद्दों पर बातचीत की कमी
लोकतंत्र को बनाए रखने में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण ईकाई है। लोकतंत्र, राजनीतिक विभिन्नता को बनाए रखने के लिए, चुनाव ज़रूरी है। प्रत्येक राजनीतिक पार्टियां चुनाव के दौरान प्रचार में बड़े-बड़े दावे करती है। हमने सर्वे में महिलाओं और क्वीयर मतदाताओं द्वारा चुनाव को लेकर उनकी जागरूकता के बारे में पूछा। सर्वे में शामिल अधिकतर प्रतिभागियों ने बताया कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव की तारीख जानते हैं। अधिकतर प्रतिभागियों ने बताया कि उन्हें चुनाव घोषणापत्र की जानकारी है और कुछ हद तक इसे पढ़ा भी है। 37.1 फीसद प्रतिभागियों ने बताया कि उनके घरों पर विभिन्न पार्टियां अपने प्रचार के लिए आई हैं। लेकिन, 65 फीसद से अधिक प्रतिभागियों ने कहा कि पार्टी प्रचारकों ने प्रचार के दौरान उनके यहां परिवार की किसी महिला या क्वीयर व्यक्तियों से बात नहीं की।
घर-घर चुनावी प्रचार करने वालों में महिलाओं या अन्य जेंडर के प्रचारकों की बात करें, तो 63.3 फीसद प्रतिभागियों ने बताया कि प्रचार के दौरान कोई ऐसे प्रचारक मौजूद नहीं थे। 12.7 फीसद ने बताया कि घर-घर चुनावी प्रचार में एक महिला या अन्य जेंडर का व्यक्ति मौजूद था। वहीं 11.8 फीसद ने बताया कि घर-घर चुनावी प्रचार में 2 महिलाएं या अन्य जेंडर के व्यक्ति मौजूद थे। 57.7 फीसद लोगों ने चुनावी अभियानों में महिलाएं या क्वीयर समुदाय से वक्ता के शामिल न होने की जानकारी दी। बात इन चुनावी अभियानों में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की करें, तो 49 फीसद प्रतिभागियों ने कहा कि ऐसे मुद्दों पर हमारे नेताओं ने कोई बातचीत नहीं की। 28.1 फीसद प्रतिभागियों ने बताया कि इन मुद्दों का कुछ हद तक जिक्र हुआ। एक प्रतिभागी चुनावी मुद्दों पर कहते हैं, “महिलाओं के लिए परिवहन की चर्चा हुई है। इसके अलावा और कुछ नहीं। घरेलू हिंसा का मुद्दा, सैनिटरी पैड तक पहुंच की ज़रूरत, महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित सार्वजनिक शौचालयों की ज़रूरत कभी नहीं उठाई गई।”
वहीं एक और प्रतिभागी कहते हैं, “मैंने 12 सालों के चुनावी सफर में एक मतदाता होने के नाते कभी कोई सा भी मुद्दा महिलाओं के लिए नहीं सुना।” ये समझना ज़रूरी है कि महिलाओं का समग्र विकास और सशक्तिकरण किसी एक क्षेत्र में आगे बढ़ने से नहीं, बल्कि शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य जैसे सभी क्षेत्रों से हो सकती हैं। इस विषय पर एक प्रतिभागी कहते हैं, “महिला सशक्तिकरण, या महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर, महिलाओं के लिए आर्थिक स्वतंत्रता के संबंध में कभी बात नहीं हुई। कुछ भी हो, महिलाओं को मासिक अनुदान के लिए या तो सरकार पर या अपने परिवार के पुरुषों पर अधिक निर्भर बनाया जा रहा है।”
चुनावी मुद्दों की जानकारी और वोटिंग में महिलाओं की एजेंसी
82.9 फीसद प्रतिभागियों ने कहा कि वे वोट की ताकत में विश्वास करते हैं। 77.2 फीसद लोगों ने कहा कि अपने क्षेत्र के लोकसभा उम्मीदवार के विषय में जानते हैं। 25 फीसद लोगों ने कहा कि मतदान केंद्र उनके घरों से थोड़ा दूर है। 11 फीसद लोगों ने बताया कि मतदान केंद्र घर से 2 किलोमीटर से अधिक दूर है। बता दें कि सरकार के नियम अनुसार मतदान केंद्र किसी के घर से 2 किलोमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।
65.5 फीसद प्रतिभागियों ने जानकारी दी कि वोट डालने के लिए काम से छुट्टी मिलेगी। लेकिन 16.9 फीसद प्रतिभागियों ने बताया कि उन्हें छुट्टी नहीं मिलेगी। 24 फीसद प्रतिभागियों ने बताया कि उन्हें उनके परिवार के किसी पुरुष सदस्य ने बताया है कि किसे वोट देना है। 10.6 फीसद प्रतिभागियों ने बताया कि उन्हें पुरुष सदस्य ने कुछ हद तक बताया है। 91.6 फीसद प्रतिभागियों ने कहा कि स्थानीय स्तर पर अधिक महिलाओं और क्वीयर प्रतिनिधित्व की जरूरत है। गौरतलब है कि एक रिपोर्ट के अनुसार, इस चुनाव में 150 सीटों पर कोई भी महिला उम्मीदवार नहीं थी। इसका मतलब है कि 543 लोकसभा सीटों में से लगभग 27.6 प्रतिशत सीटों पर कोई भी महिला उम्मीदवार नहीं थी।
महिला सशक्तिकरण, या महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर, महिलाओं के लिए आर्थिक स्वतंत्रता के संबंध में कभी बात नहीं हुई। कुछ भी हो, महिलाओं को मासिक अनुदान के लिए या तो सरकार पर या अपने परिवार के पुरुषों पर अधिक निर्भर बनाया जा रहा है।
वोट देने की सुविधा, अनुभव और पहुंच
41.5 फीसद प्रतिभागियों के इलाके के वोटिंग सेंटर में महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रतीक्षा क्षेत्र नहीं है। 55.3 फीसद प्रतिभागियों के मतदान बूथ पर महिला चुनाव अधिकारी मौजूद होती है। 27.4 फीसद प्रतिभागियों के वोटिंग सेंटर में साफ-सुथरे शौचालय नहीं होते हैं। 52.6 फीसद प्रतिभागियों के मतदान केंद्रों में मौजूद शौचालय ट्रांस/मेंसट्रूएटर/विकलांग लोगों के अनुकूल नहीं होते हैं। बात फर्स्ट टाइम वोटर की करें, तो 52.9 प्रतिभागियों को बतौर फर्स्ट टाइम वोटर वोट डालने के लिए ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल करना नहीं बताया गया है। 17.4 फीसद प्रतिभागियों से वोट देने के बाद अनचाहे सवाल जैसेकि ‘उन्होंने किसे वोट दिया’, पूछा गया। कई महिलाओं और क्वीयर लोगों ने बताया कि उन्हें वोटिंग सेंटर पर उनके पहनावे, स्थानीय भाषा न जानने पर और शारीरिक बनावट की वजह से मौखिक हिंसा, धमकी और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
ऑनलाइन वोट देने वालों में ये पाया गया कि 59.8 फीसद से अधिक प्रतिभागियों के पास निजी स्थान पर बिना दखल वोट करने के लिए जरूरी उपकरण मौजूद नहीं हैं। इनमें से 8 फीसद से अधिक प्रतिभागियों के पास मजबूत इंटरनेट कनेक्शन नहीं है। सरकार के डिजिटल इंडिया के दावों के बावजूद, 69 फीसद प्रतिभागियों ने वोटिंग वेबसाइट को थोड़ा-बहुत या बिल्कुल भी यूजर फ्रेंडली नहीं बताया। कुल प्रतिभागियों में से 7.3 फीसद ने माना कि उन्हें वोटिंग के दौरान हिंसा या दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है। पोलिंग बूथ पर महिलाओं ने गर्भावस्था, हिजाब पहनकर वोट करने, विपक्ष पार्टी के लोगों के द्वारा देखकर हूटिंग, तलाशी लेते वक्त हिंसा और दुर्व्यवहार की बात कही है। केवल 44.8 फीसद प्रतिभागियों ने कहा है कि वोटिंग प्रक्रिया में उत्पीड़न से बचाने में स्थानीय पुलिस ने उनकी मदद की है और 24 फीसद प्रतिभागियों ने स्थानीय पुलिस की तरफ से कोई मदद नहीं मिलने की सूचना दी।
मैं केवल व्यक्तिगत तौर पर समस्याओं को बताने में अच्छा महसूस नहीं करता। मैं अपने एरिया में सबसे पहले महिलाओं की सुरक्षा कि बात करूंगा। मैं क़्वीर हूं। समाज में मेरी पहचान मुश्किल है। इसलिए, मैं रास्तों पर या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में टॉर्चर नहीं फेस करता। मगर, महिलाओं के लिए अपनी पहचान छुपाना मुश्किल है। वे हर दूसरे चौराहे पर प्रताड़ना का सामना करती हैं।
नई सरकार से क्या हैं उम्मीदें
आम महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लोगों को कौन से मुद्दे सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, इसके जवाब में सर्वे में शामिल 73.7 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि देश में लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक अधिकारों में कमी, 68 फीसद का मानना है कि देश में अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव, 66.4 ने अभिव्यक्ति की आजादी में कमी और 67.8 प्रतिभागी सड़क, सार्वजनिक क्षेत्रों में सुरक्षा के मुद्दों से प्रभावित है।
इस मामले पर एक प्रतिभागी कहते हैं, “मैं केवल व्यक्तिगत तौर पर समस्याओं को बताने में अच्छा महसूस नहीं करता। मैं अपने एरिया में सबसे पहले महिलाओं की सुरक्षा कि बात करूंगा। मैं क्वीयर हूं। समाज में मेरी पहचान मुश्किल है। इसलिए, मैं रास्तों पर या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में टॉर्चर नहीं फेस करता। मगर, महिलाओं के लिए अपनी पहचान छुपाना मुश्किल है। वे हर दूसरे चौराहे पर प्रताड़ना का सामना करती हैं। मेरे घर के ठीक सामने पांच बार चैन स्नेचिंग और पर्स लूटने की घटना घटित हुई है। यहां आए दिन कोई न कोई मामला होता है। साथ ही सड़क की मरम्मत की बात कहूंगा।”
79.9 फीसद की मांग शादी में समानता पर कानून बने
सर्वे के माध्यम से हमने जानने की कोशिश की कि नई सरकार से लोगों की क्या मांगे हैं और वे नवगठित सरकार से किस दिशा में सबसे पहले काम चाहते हैं। 79.4 फीसद प्रतिभागियों ने कहा कि नई सरकार को समावेशी कानून बनाने की दिशा में पहला कदम उठाना चाहिए। 75 फीसद ने सुरक्षित पब्लिक ट्रांसपोर्ट, 74 फीसद प्रतिभागी पर्यावरण से संबंधित बेहतर नीतियों का निर्माण और रोजगार के मुद्दों पर तुरंत काम चाहते हैं। आने वाली सरकार कौन से नए कानून लाए, इसमें 84.6 फीसद से ज्यादा प्रतिभागी मेरिटल रेप को अपराध घोषित करने का कानून, 81.6 फीसद राजनीति में महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लोगों का राजनीति में निश्चित प्रतिनिधित्व, 81.3 फीसद सिंगल महिलाओं और क्वीयर जोड़ों के लिए बच्चा गोद लेने की आसान पॉलिसी और 79 फीसद से अधिक ने मैरिज इक्वीलिटी से जुड़े कानून बनाने की मांग की है।
सर्वे की कार्यप्रणाली
इस सर्वे में फेमिनिज़म इन इंडिया ने शहरी और अर्ध शहरी आबादी को लक्षित किया। सर्वेक्षण में अंग्रेजी और हिंदी दोनों में प्रतिक्रियाएं शामिल थीं। सर्वेक्षण में अलग-अलग उम्र, आय, शैक्षिक व्यवस्था, रोजगार की महिलाओं और क्वीयर लोगों के कामकाजी और सामाजिक स्थिति, राजनीतिक जागरूकता और रुझान को पता लगाने की कोशिश की गई। इस सर्वे में हमने पता लगाने की कोशिश कि वे वोट देते समय किन बातों का ख़याल रखते हैं। हमने विभिन्न पहलुओं जैसे ख़बरों में उनकी रुचि, ख़बरों का स्त्रोत, उनकी सरकार की योजनाओं के विषय में जानकारी और सरकार से उम्मीदें जानने की कोशिश की। हमने ये जानने की कोशिश की कि लोकतांत्रिक मूल्यों में हम कहां और किस तरह सुधार कर सकते हैं। देश के लोग अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के विषय में क्या सोचते हैं।
हमने जानना चाहा कि क्या वोटिंग सभी के लिए एक आसान और सुगम प्रक्रिया है। स्थानीय स्तर पर महिलाओं और क्वीयर लोगों के प्रतिनिधत्व की बात कर, हम आने वाले दिनों में सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में मूलभूत बदलाव चाहते हैं। महिलाओं के शैक्षिक स्थिति और कामकाज की जानकारी से ये पता लगाने की कोशिश की गई कि आखिर शिक्षित महिलाएं को रोजगार क्यों नहीं मिलता। सर्वेक्षण का प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक प्रक्रिया के बारे में महिलाओं और हाशिये के समुदायों की धारणाओं को जानना, राजनीतिक भागीदारी में बाधाओं की पहचान करना, मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था में कमियों, उनके रुझान और भागीदारी में सुधार कर सरकार के नीतियों और कार्यक्रमों के संभावित प्रभाव का मूल्यांकन और बातचीत की पहल करना था। यह सर्वे रिपोर्ट भारत के चुनाव में महिलाओं और क्वीयर समुदाय से संबंधित डेटा को समाने रखती है।