इंटरसेक्शनलग्रामीण भारत लोकसभा चुनाव 2024ः पार्टियों के तमाम वादों से परे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के मुद्दे पर वोटर्स के सवाल

लोकसभा चुनाव 2024ः पार्टियों के तमाम वादों से परे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के मुद्दे पर वोटर्स के सवाल

आज बेरोजगारी की समस्या से सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही नहीं, हर तरह के लोग जूझ रहे हैं क्योंकि जब लोगों के पास काम ही नहीं है, तो बाजार में काम-धंधा करने वाले लोगों के पास भी काम की बहुत किल्लत हो जाती है। मील फैक्ट्रियों में छंटनी से गवईं इलाकों में बड़ा प्रभाव दिख रहा है क्योंकि ज्यादातर छोटे किसान और खेतिहर मजदूर मील फैक्टरी में काम करने जाते थे।

गाँवों में इस समय खेती में कटाई और मड़ाई का सीजन चल रहा है। लेकिन चुनाव का सीजन भी है और लोग अपने काम के साथ-साथ राजनीति में भी पूरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इस बार लोकसभा चुनावों में बेरोजगारी का मुद्दा मुख्य मुद्दे की तरह दिख रहा है। हालांकि धर्म और जाति के मुद्दे भी कम प्रभावी नही हैं लेकिन बेरोज़गारी का देश की अर्थव्यवस्था से सीधा संबंध होता है इसलिए बेरोजगारी के मुद्दे को यहाँ शायद ही कोई नकार पा रहा है। इसमें एक बात और आश्चर्यजनक तरीके से दिख रही है कि गवईं इलाकों में जो लोग सत्ता पक्ष में खड़े दिखते हैं वे भी देश में बेरोजगारी के हालात को खारिज नहीं कर पा रहे है। आज ग्रामीण इलाकों में युवा ही नहीं हर उम्र के लोग बेरोजगारी की समस्या से हलकान दिख रहे हैं।

उत्तरप्रदेश के बनारस जिले के अमाही गाँव की रहने वाली पूजा कहती हैं, “मेरा परिवार खेती-किसानी का काम करता है। मैं सात साल से इलाहाबाद में रहकर तैयारी कर रही हूँ लेकिन मेरी आजतक नौकरी नहीं लगी। मेरे घरवाले बहुत मुश्किल से मुझे पढ़ा रहे थे। बिहार में वेकेंसी निकली थी मैंने एक्ज़ाम दिया था लेकिन बाद में पता चला कि वहाँ भी पेपर लीक हो गया। घर में विवाह का अलग ही दबाव बना हुआ है। समझ में नहीं आता कि क्या करें।”

आज बेरोजगारी की समस्या से सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही नहीं, हर तरह के लोग जूझ रहे हैं क्योंकि जब लोगों के पास काम ही नहीं है, तो बाजार में काम-धंधा करने वाले लोगों के पास भी काम की बहुत किल्लत हो जाती है। मील फैक्ट्रियों में छंटनी से गवईं इलाकों में बड़ा प्रभाव दिख रहा है क्योंकि ज्यादातर छोटे किसान और खेतिहर मजदूर मील फैक्टरी में काम करने जाते थे। ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में बेरोजगारी का आलम ये हो गया है कि परिवार में किसी एक के पास काम है उसी की कमाई से परिवार के अन्य सदस्यों का पेट भर रहा है। उनके पास इतनी कम आमदनी है कि बचत का तो कोई सवाल ही नहीं है। रिजर्व बैंक के डेटा के अनुसार साल 2022 से लेकर 2023 के इन सालों पिछले पचास सालों से सबसे कम घरेलू बचत हुई है। 

गीतिका कहती हैं, “घर आयी हूँ तो गाँव में जो मिलता है वो मेरी नौकरी को लेकर सवाल करता है, फिर मेरी शादी के सवाल पर आ जाता है। जबकि अभी दूर-दूर तक मेरी नौकरी का कोई चांस ही नहीं दिखता क्योंकि सरकार कोई वैकेंसी निकाल ही नहीं रही है।”

हर कोई काम की तलाश में

गोरखपुर जिले में रहने वाली प्रमीला देवी से चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे पर बात की तो उन्होंने साफ कहा कि इस सरकार में पाँच किलो राशन तो मिल रहा है पर काम किसी को नहीं मिल रहा है। प्रमीला देवी बसोर समुदाय से आती हैं। उनके पति की मृत्यु हो गई है, उन्होंने किसी तरह मेनहत-मजदूरी करके अपने दोनों बच्चों को शिक्षा दिलवायी है लेकिन आज हालत ये है कि उनके दोनों बच्चे बेरोजगार हैं। वह कहती हैं, “मील फैक्ट्रियों में भी तेजी से छंटनी चल रही है जिन लोगों के पास काम था वे भी इस समय बेरोजगार हो गये हैं।”

तस्वीर साभारः People Dispatch

पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक शायद ही कोई चुनाव हुआ हो, जिसमें रोजगार मुद्दा न रहा हो। अहम सवाल यह है कि क्या यह स्थायी मुद्दा इस लोकसभा चुनाव में निर्णायक मुद्दा बनेगा। इलाहाबाद में रहकर तैयारी कर रही छात्रा गीतिका पटेल हमें गाँव में ही मिल गयीं। पता चला कि इस समय वह फसल की कटाई मड़ाई में परिवार का सहयोग करने के लिए गाँव आयी हैं। गीतिका कहती हैं, “घर आयी हूँ तो गाँव में जो मिलता है वो मेरी नौकरी को लेकर सवाल करता है, फिर मेरी शादी के सवाल पर आ जाता है। जबकि अभी दूर-दूर तक मेरी नौकरी का कोई चांस ही नहीं दिखता क्योंकि सरकार कोई वैकेंसी निकाल ही नहीं रही है।” RO/ARO की परीक्षा का पेपर लीक होने को लेकर वह काफी दुःखी हैं और कहती है कि RO/ARO की परीक्षा में मैंने बहुत अधिक मेहनत की थी लेकिन पेपर लीक हो गया और अभी तक उसकी भी नयी परीक्षा की कोई डेट नहीं आयी।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की हालत को वहाँ की बेरोजगारी बयां करती है। आज आम लोगों के पास, जो मेहनत मजदूरी करते थे, उनके भी पास भी कोई काम नही है। क्योंकि आर्थिक मंदी के दौरान जब नौकरी के अवसर कम हो जाते हैं, तो इन क्षेत्रों में भी उनका प्रभाव पड़ता है और बेरोजगारी बढ़ने लगती है। बेरोजगारी के कारण आर्थिक असमानता जितनी तेजी से बढ़ रही है वो बेहद चिंताजनक है। पेरिस स्कूल इन इकोनॉमिक्स का आंकड़ा कहता है कि आज भारत में दुनिया भर में सबसे ज्यादा आर्थिक असमानता है। देश का नब्बे प्रतिशत धन मात्र एक प्रतिशत लोगों के पास है ये स्थिति किसी भी देश के लिए भयावह है। नितिन भारती, लूकस चांसल, अनमोल सोमंची और थॉमस पिकेटी ने “इनकम इन वेल्थ इन इक्वालिटी इन इंडिया” नाम की एक रिपोर्ट तैयार की है। जिसके अनुसार भारत में आर्थिक असमानता की स्थिति बेहद चिंताजनक है।” हालांकि सत्तापक्ष के अर्थशास्त्री उस रिपोर्ट को खारिज करने की कोशिश करते रहे लेकिन आर्थिक असमानता, बेरोजगारी की बदहाली पर इतनी ठोस रिपोर्ट आ रही है कि अब उनकी कोई दलील मजबूत नहीं दिखती। भारत में आर्थिक बदहाली पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रिपोर्ट सामने आ चुकी है जिसमें भारत की आर्थिक स्थिति, बेरोजगारी को चिंताजनक बताया गया है।

गोरखपुर जिले में रहने वाली प्रमीला देवी से चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे पर बात की तो उन्होंने साफ कहा कि इस सरकार में पाँच किलो राशन तो मिल रहा है पर काम किसी को नहीं मिल रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र में खेतीहर मजदूरों की स्थिति

आज देश में बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवा बहुत कम सैलेरी में काम कर रहे हैं। लोगो से बातचीत के आधार पर इस आंकड़े को ऐसे देख सकते हैं हम कि पहले जिस सैलरी में लोग काम करते थे उसी जगह उसी पद पर अब उससे कम सैलरी में काम कर रहे हैं। जबकि समय और महंगाई को देखते हुए उनकी तनख्वाह बढ़नी चाहिए थी। आज युवाओं की रोजगार को लेकर बेचैनी उन्हें निराशा की ओर धकेल रही है। रोजगार के मुद्दे पर सत्तापक्ष महज अवसर की बात कर रहे हैं कोई आंकड़ा या आधार वे नही बता पा रहे हैं। रोजगार के सवाल को वर्तमान सत्ता लगातार गुमराह करने की कोशिश कर रही है।

बेरोज़गारी यूं ही आ गई वाली स्थिति नहीं होती है। यह अराजक अर्थव्यवस्था और पूंजीवाद की अति मुनाफाखोरी से उपजी स्थिति है। आज ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे खेतिहर मजदूरों की हालत बदहाली की ओर बढ़ती जा रही है क्योंकि कृषि क्षेत्रों में मशीनों के आ जाने से उनको काम नहीं मिलता। पहले गेंहू की कटाई से मड़ाई तक मजदूरों के पास ढेरों काम होते थे लेकिन आज वे सारे कार्य बहुत कम मजदूरों के द्वारा कर लिये जाते हैं। खेतिहर मजदूर लालूराम से हमने आज के बेरोजगारी के संकट पर बात करते हुए कहते हैं, “मेरे घर में चैत की फसल के समय भी अनाज नहीं जुट पाता क्योंकि जिस समय कटिया शुरू होती है उसी समय गुजरात में आम के बागानों में आम तोड़ने का कार्य होता है। हमारे घर सब युवा आम तोड़ने के लिए गुजरात चले जाते हैं क्योंकि वहाँ ज्यादा मजदूरी मिल जाती है लेकिन पहले जो में घर में अनाज आ जाता था अब नहीं आ पाता।”

unemployment issue in election
तस्वीर साभारः Asia Today

ये ग्रामीण इलाकों के मजदूर कई तरह के आर्थिक संकट से जूझते हैं जिसका सीधा सम्बंध खेती में नुकसान से होता है। उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले के बहारा गाँव के 75 वर्षीय नन्हकू मझोले किसान हैं। वे आजीवन गाँव में रहकर खेती-किसानी ही करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव में रोजगार के मुद्दे पर बात करते हुए उन्होंने उल्टा हमसे सवाल पूछा कि इतनी महंगाई क्यों आ गयी है? क्या देश में कही युद्ध हो रहा है? हम उनके सवाल पर कुछ हैरान हुए फिर जब उन्होंने अपने भोलेपन में अपनी बात कही तो उनका दर्द और उनकी हैरानी समझ में आयी।

नन्हकू राम कहते हैं, “बेरोजगारी का हाल युवा जाने लेकिन महंगाई का हाल मुझे पता है। सिलेंडर इतना महंगा हो गया है कि मेरे घर में चूल्हे पर ही खाना बनता है। डीज़ल और पेट्रोल का दाम रोज बढ़ता जा रहा है। बाजार जाता हूँ घर का सामान लेने तो हर चीज महँगी।” वह आगे कहते हैं, “पहले इतनी मंहगाई तब होती थी तब पता चलता था कि देश में युद्ध हो रहा है। ये तो जाहिर सी बात है कि बेरोजगारी बढ़ेगी तो महंगाई बढ़ती जायेगी। लेकिन देश के नागरिक महंगाई बढ़ने और रोजगार घटने के कारणों को समझे बिना अगर धर्म और जाति की राजनीति में उलझेंगे तो हालात और भी बदतर हो सकते हैं।”

ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में बेरोजगारी का आलम ये हो गया है कि परिवार में किसी एक के पास काम है उसी की कमाई से परिवार के अन्य सदस्यों का पेट भर रहा है। उनके पास इतनी कम आमदनी है कि बचत का तो कोई सवाल ही नहीं है। रिजर्व बैंक के डेटा के अनुसार साल 2022 से लेकर 2023 के इन सालों पिछले पचास सालों से सबसे कम घरेलू बचत हुई है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के आंकड़े बता रहे कि हमारे देश में लगातार बेरोजगारी की दर बढ़ती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में यह बेरोजगारी दर 7.55 है। दूसरी तरफ केवल जून-जुलाई 2022 के महीने में ही लोगों को उद्योग जगत और सेवा क्षेत्र की 80 लाख नौकरियां से बाहर कर दिया गया। ऐसी स्थिति में घरेलू महिलाएं जो पहले से ही रोजगार से बाहर हैं और घरों तक सीमित है और तमाम दुखों के साथ जीने की कोशिश कर रही है उनके लिए परिवार पर आया बेरोजगारी का संकट  कितना यातना देने वाला होता है हम सोच सकते हैं। भारत में रोजगार के संकट को देखते हुए आज जरूरत है कि सारी राजनीतिक पार्टियां बेरोजगारी के प्रश्न को टालने, उलझाने की बजाय उसे गम्भीरता से लें और वर्तमान स्थिति से देश को उबारने का हल सोचें ।


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