मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा मुद्दा है, जिसपर लोगों में बहुत कम जागरूकता है या बातचीत होती है। खासकर, बात जब महिलाओं की आती है, तो और भी ज्यादा झिझक देखने को मिलता है। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के साथ चिकित्सा तक पहुँच ही नहीं, आप किस क्षेत्र, किस समुदाय से हैं, कामकाजी स्थिति जैसे कारक भी मायने रखते हैं। मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का एक महत्वपूर्ण निर्धारक जेन्डर है। महिलाओं में मनोवैज्ञानिक संकट और मानसिक विकार के पैटर्न पुरुषों में देखे जाने वाले पैटर्न से अलग होते हैं। कुछ शोध के मुताबिक लैंगिक अंतर विशेष रूप से सामान्य मानसिक विकारों की दरों में होता है जिसमें महिलाएं प्रमुख हैं। लक्षणों की शुरुआत की उम्र, नैदानिक विशेषताएं, मनोवैज्ञानिक लक्षणों की आवृत्ति, सामाजिक तौर पर सामंजस्य बैठाना और गंभीर मानसिक विकारों के दीर्घकालिक परिणाम में लैंगिक अंतर मौजूद है।
लेकिन अगर भारतीय समाज की बात करूँ, तो महिलाएं भी एक विषम समूह है। कामकाजी और गैर कामकाजी महिलाओं, शादीशुदा और एकल महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थिति बिल्कुल अलग हो सकती है। मानसिक स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर जागरूकता शैक्षिक स्थिति पर भी निर्भर करती है। परंपरागत रूप से, मध्यम वर्ग की महिलाएं आमतौर पर घर, परिवार और बच्चों की देखभाल और घरेलू कामों में बहुत ज्यादा शामिल होती हैं। निम्न और गरीब महिलाओं के लिए, आर्थिक ज़रूरतें उन्हें घर से बाहर काम करने के लिए मजबूर करती हैं। हालांकि उनके लिए उपलब्ध काम पुरुषों के मुक़ाबले कम वेतन वाले होते हैं, जहां उनका आर्थिक, मानसिक या शारीरिक तौर पर शोषण की संभावना होती है।
आज धीरे-धीरे ही सही, रोज़गार की उपलब्धता के मुताबिक वे ज़्यादा सम्मानजनक दफ़्तरों में काम करने की कोशिश कर रही हैं, जहां ज़्यादा शिक्षा की भी ज़रूरत होती है। इस तरह जबकि सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा घर से बाहर काम करती हैं, लेकिन इससे न तो उन्हें घरेलू कामों से राहत मिलती है और न ही बच्चों और बुजुर्गों के देखभाल से। ध्यान देने वाली बात ये है कि आमतौर पर महिलाओं की नौकरी या आर्थिक स्थिति से उनकी सामाजिक या परिवार में भूमिका या स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आता है।
महिलाओं की कई भूमिकाएं और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी
आज महिलाओं की पारिवारिक और सामाजिक भूमिकाओं में बहुत बदलाव आया है। महिलाएं करियर के प्रति ज्यादा रुझान रखती हैं और आगे बढ़ने के मौके ढूंढ रही हैं। आर्थिक जरूरतों के कारण वे परिवार के प्रति प्रतिबद्धता में अलग तरह से उभर रही हैं। इसलिए, यह कामकाजी महिलाओं के बीच तनाव और दबाव का कारण बनता है। कामकाजी शादीशुदा महिलाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या घर के काम और दफ्तर के काम की दोहरी जिम्मेदारी से पैदा होती है। भले ही आज परिवारों में महिलाओं का रोजगार स्वीकार किया जाता है, लेकिन उनके ससुराल और अधिकांश जीवनसाथियों ने अबतक उनकी बदलती जीवनशैली को स्वीकार नहीं किया है।
वे घर की जिम्मेदारियों और बच्चों की देखभाल के लिए तैयार नहीं हैं। ये जिम्मेदारियां अभी भी केवल महिला की मानी जाती है। हमारे परिवारों में यह एक आम बात है कि महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं, नाश्ता बनाती हैं, दोपहर का खाना बनाती हैं, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं और तब जाकर दफ्तर जा पाती हैं। वहीं, जा वे शाम को लौटती हैं, तो घर के काम उनका इंतजार कर रहे होते हैं। वे सभी का देखभाल करती हैं, घर के बाकी काम निपटाती हैं और बुजुर्ग, बच्चों या अपने जीवनसाथी के लिए भी देखभाल करने वाली की भूमिका निभाती हैं। अगर संयुक्त परिवार है, तो वहां भी उनकी बहुत ज्यादा घरेलू जिम्मेदारी होती है। ऐसे में उनपर घर और काम संभालने की चिंता और ज्यादा होती है।
कामकाजी महिलाएं और तनाव और अवसाद
तनाव विशेष रूप से कामकाजी महिलाओं में सामाजिक और भावनात्मक परिवर्तन ला सकता है। कामकाजी महिलाओं को परिवार के सदस्यों और कामकाजी जीवन के साथ तालमेल बैठाना पड़ता है। इसलिए, यह कामकाजी महिलाओं में तनाव का अतिरिक्त कारण बनता है। मानसिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति के विभिन्न व्यवहार को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। मानसिक दबाव मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का एक अहम कारण है। इन्स्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स चंडीगढ़ ने जम्मू के कामकाजी और गैर-कामकाजी महिलाओं में तनाव और मानसिक स्वास्थ्य में अंतर का पता लगाने के लिए एक शोध किया। शोध से पता चलता है कि कामकाजी और गैर-कामकाजी महिलाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य और तनाव में महत्वपूर्ण अंतर है। कामकाजी महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य गैर-कामकाजी महिलाओं की तुलना में खराब है और कामकाजी महिलाओं में तनाव गैर-कामकाजी महिलाओं की तुलना में अधिक है।
अलग-अलग महिलाओं में तनाव और अवसाद के अलग कारण
कामकाजी और गैर कामकाजी दोनों ही महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ सकती हैं। लेकिन अक्सर, इन महिलाओं को प्रभावित करने वाले कारक अलग होते हैं। इनमें तनाव या अवसाद के अलग कारण दिखाई पड़ते हैं। टैगोर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल रथिनामंगलम; तमिलनाडु के सामुदायिक चिकित्सा विभाग ने कामकाजी और गैर-कामकाजी महिलाओं के बीच अवसाद पर एक तुलनात्मक अध्ययन किया, जहां गैर-कामकाजी महिलाओं में अवसाद का बोझ और इसके जोखिम कारकों का आकलन करने की कोशिश की गई। परिणामों से पता चलता है कि कामकाजी और गैर-कामकाजी महिलाओं दोनों में गंभीर अवसाद मौजूद था। जहां कामकाजी महिलाओं में अवसाद से जुड़े कारक आर्थिक समस्याएं, कार्यस्थल की समस्याएं, रिश्ते की समस्याएं और व्यक्तिगत जीवन से संतुष्टि न होना था, वहीं गैर-कामकाजी महिलाओं में आर्थिक समस्याएं, पारिवारिक समस्याएं, रिश्ते की समस्याएं और व्यक्तिगत जीवन से संतुष्टि न होना अवसाद के जोखिम कारक थे।
महिलाओं की बदलती सामाजिक स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य
हालांकि आज भी महिलाओं के लिए अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल मुश्किल होती है, पर शहरीकरण, औद्योगीकरण, शिक्षा के बढ़ते स्तर, अधिकारों के बारे में जागरूकता और मीडिया के प्रभाव जैसे कई कारकों के कारण, समाज में महिलाओं की स्थिति तेज़ी से बदल रही है। पहले की तुलना में आज ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं किसी न किसी तरह के रोजगार में लगे रहना पसंद करती हैं, ताकि वे अपने परिवार में आर्थिक रूप से योगदान दे सकें। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन में दिए गए एक शोध में विवाहित कामकाजी महिलाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति और उसके सहसंबंधों का आकलन करने की कोशिश की गई। अध्ययन के अनुसार 32.9 फीसद प्रतिभागियों का मानसिक स्वास्थ्य खराब था और इनमें से केवल 10 फीसद महिलाओं ने किसी भी तरह की मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की मांग की थी।
घर से काम करने वाली महिलाएं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
कामकाजी महिलाएं, घर से काम करने वाली महिलाएं और हाउसवाइव्स के बीच अध्ययनों में पाया गया है कि घर से काम करने वाली महिलाएं सबसे कम तनावग्रस्त, सबसे अच्छी तरह से समायोजित और अपने करियर से सबसे अधिक संतुष्ट हैं। तनाव को समझने और संभालने के उनके तरीके अन्य दो समूहों यानि कामकाजी महिलाएं और हाउसवाइव्स के इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों से ज़्यादा प्रभावी पाई गई। अध्ययन में महिलाओं के अनुकूल काम नीतियों जैसे लचीले नौकरी के घंटे और घर से काम करने के साथ-साथ एक घरेलू माहौल और घर के कामों में सहायता की बात कही गई है। साथ ही तनाव से राहत में विभिन्न उपाए जैसे योग, घर के काम के प्रति अन्य सदस्यों का नजरिया और भूमिका में बदलाव की ज़रूरत की बात कही गई है। इन अध्ययनों से समझ आता है कि जिस तरह कामकाज महिलाओं के लिए जरूरी है, वैसे ही उन्हें घर और समाज से कितनी मदद मिलती है, ये भी जरूरी है। बिना घर के सदस्यों के सहयोग और सहायता के महिलाओं को हर पेशेवर और घरेलू उम्मीदों पर खरा उतर पाना मुश्किल है।
कम आय वाली शहरी कामकाजी महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य
कम आय वाली शहरी कामकाजी ऐसी महिलाएं जो माँ बन चुकी हैं, उन्हें अपने घरेलू, पर्यावरण और कामकाजी परिस्थितियों जैसे कई चुनौतियों का एक साथ सामना करना पड़ता है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं। एक शोध के मुताबिक इन समूहों में प्रतिभागियों ने आत्महत्या के विचार और आत्महत्या के प्रयास सहित बहुत ज्यादा अवसाद की सूचना दी। शोध के अनुसार जिन महिलाओं का पति शराबी या दुर्व्यवहार करता है, जो अंतरंग साथी हिंसा का सामना करती हैं, जो विशेष जरूरतों वाले बच्चों की परवरिश कर रही हैं, और बच्चों की देखभाल के लिए जरूरी समर्थन नहीं पाती हैं, वे लंबे समय के लिए अवसाद से ग्रसित हो सकती हैं और आत्महत्या के प्रयास कर सकती हैं। चिंता और अवसाद में कमी लाने वाले कारकों में परिवार, मित्रों और सहकर्मियों से मिलने वाला सामाजिक समर्थन तथा काम से मिलने वाली संतुष्टि शामिल थे।
यह देखा गया है कि की बार कामकाजी महिलाओं को सिर्फ नौकरी पर अकेले जाने की छूट होती है। वे अक्सर लंबे घंटे या शहर से बाहर जाने की मांग को मना करती हैं। उन्हें अकेले घूमने जाने की भी अनुमति नहीं होती। ऐसी परिस्थितियां भी महिलाओं पर मानसिक रूप से दबाव डालते हैं। कामकाजी और गैर कामकाजी दोनों ही महिलाओं के लिए ये जरूरी है कि उन्हें परिवार और समाज का समर्थन मिले। उन्हें अपने शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर खुलकर सामने आने पर, उन्हें बुरी या लापरवाह या डिमांडिंग माँ, बहु या पत्नी का खिताब न दिया जाए। मानसिक स्वास्थ्य हर किसी के लिए जरूरी है। घर और बच्चों की जिम्मेदारियों को बांटने के लिए भी परिवार को तैयार रहना चाहिए।