इजरायल-फ़िलिस्तीनी संघर्ष अब तक चल रहा एक सैन्य और राजनीतिक संघर्ष है। इजरायल-फ़िलिस्तीनी संघर्ष ने हजारों लोगों की जान ले ली है और लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया है। अक्टूबर 2023 में सशस्त्र फ़िलिस्तीनी समूह हमास द्वारा हमले के बाद, इज़राइल ने ग़ज़ा पट्टी पर युद्ध की घोषणा कर दी और तब से महिलाओं और बच्चों समेत हजारों फ़िलिस्तीनी की जान जा चुकी है। इससे पहले भी इजरायल ने चार बार ग़ज़ा पट्टी पर सशस्त्र हमले किए हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 7 अक्टूबर 2023 की सुबह हमास के बंदूकधारियों ने ग़ज़ा की सीमा पार करके इज़रायल में धावा बोल दिया, जिसमें करीब 1,200 लोग मारे गए थे।
मारे गए लोगों में से लगभग 72 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे
जवाब में, इज़राइल ने घनी आबादी वाले ग़ज़ा पट्टी पर जमीनी आक्रामक और हवाई बमबारी शुरू की, जिसमें अबतक ग़ज़ा के 2.3 मिलियन लोगों में से लगभग 85 प्रतिशत लोग विस्थापित हो गए हैं और इस आक्रमण में 14,000 से अधिक बच्चे मारे गए हैं, जिसे आलोचकों ने प्रतिशोध का युद्ध कहा है। ग़ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इजरायली हमलों में कम से कम 34,183 लोग मारे गए हैं और 77,084 घायल हुए हैं। ग़ज़ा के सरकारी मीडिया कार्यालय के अपडेट के अनुसार, मारे गए लोगों में से लगभग 72 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए समिति (सीपीजे) के अनुसार 10 जून 2024 तक, प्रारंभिक जांच से पता चला कि हमले में कम से कम 108 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए हैं। इजरायल के फ़िलिस्तीन में इस युद्ध की शुरुआत के बाद से सामूहिक कब्रें, बंद पड़े अस्पताल, हजारों नागरिकों की मौत और बुनियादी ढांचे का लगभग पूर्ण विनाश ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी लोगों परेशान कर रहा है।
इलाज, पानी, शिक्षा और खाद्य की गंभीर समस्या
मार्च में प्रकाशित यूरोपीय संघ, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की एक संयुक्त रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया कि जनवरी तक ग़ज़ा के बुनियादी ढांचे को प्रत्यक्ष क्षति 18.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी थी। इज़राइल द्वारा सैन्य अभियान शुरू करने के बाद से लगभग दो मिलियन ग़ज़ा के लोग, जो आबादी का 85 प्रतिशत से अधिक है, अपने घर छोड़कर चले गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के अनुसार मई 2024 तक ग़ज़ा के 36 अस्पतालों में से केवल 12 ही अभी भी काम कर पा रहे हैं, हालांकि संघर्ष के दौरान कुल 29 अस्पतालों को नुकसान पहुंचा है। कुल मिलाकर, 84 फीसद स्वास्थ्य सुविधाएं क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी हैं। डबल्यूएचओ ने हमले में मारे जा रहे लोगों के अलावा बीमारीयों के फैलने की चेतावनी दी है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग़ज़ा पर इजरायली युद्ध ने भोजन, साफ पानी और दवा की भारी कमी के बीच क्षेत्र की 85 फीसद आबादी को आंतरिक विस्थापन में धकेल दिया है, जबकि एन्क्लेव का 60 फीसद बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गया है। ग़ज़ा के 80 फीसद से अधिक स्कूल लड़ाई के कारण बुरी तरह क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुके हैं। मार्च तक स्कूलों पर 212 ‘प्रत्यक्ष हमले’ हुए, जिनमें से कम से कम 53 स्कूल नष्ट हो गए। यूनिसेफ के अनुसार, ग़ज़ा में लगभग 90 प्रतिशत बच्चे पोषण की कमी से जूझ रहे हैं और उनके अस्तित्व, वृद्धि और विकास को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है। यूनिसेफ के अनुसार पिछले वर्ष दिसंबर से इस वर्ष अप्रैल के बीच 10 में से एक बच्चा प्रतिदिन दो या उससे कम खाद्य समूहों पर जीवित रहा है।
ग़ज़ा पट्टी पर युद्ध
इज़राइल ने ग़ज़ा पर चार लंबे सैन्य हमले किए हैं जो साल 2008, 2012, 2014 और 2021 में हुए। इनमें भी हज़ारों फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें कई बच्चे भी शामिल हैं, और हज़ारों घर, स्कूल और कार्यालय भवन नष्ट हो गए हैं। आज पुनर्निर्माण लगभग असंभव हो गया है क्योंकि घेराबंदी के कारण स्टील और सीमेंट जैसी निर्माण सामग्री ग़ज़ा तक नहीं पहुंच पा रही है। 2008 के हमले में फॉस्फोरस गैस जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित हथियारों का इस्तेमाल किया गया था।
2014 में, 50 दिनों की अवधि में, इज़राइल के हमले में 2,100 से अधिक फ़िलिस्तीनियों मारे गए थे जिनमें 1,462 नागरिक और लगभग 500 बच्चे शामिल थे। इस हमले के दौरान, जिसे इज़राइलियों द्वारा ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज कहा जाता है, लगभग 11,000 फ़िलिस्तीनी घायल हुए, 20,000 घर नष्ट हो गए और पाँच लाख लोग विस्थापित हुए थे। फ़िलस्तीन इज़राइल संघर्ष के शुरुआत 1907-08 में फ़िलस्तीन में यहूदियों के आगमन के बाद शुरू हुआ जो अब तक जारी है।
फ़िलिस्तीन का बंटवारा
29 नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने रेजुलेशन 181 (II) के द्वारा फ़िलिस्तीन को दो स्टेट में विभाजित कर दिया गया, जिसमें मात्र 7 फीसद ज़मीन पर कब्ज़ा रखने और 30 फीसद आबादी वाले इज़राइल को 55 फीसद ज़मीन दी गई। वहीं 93 फीसद भूभाग पर हक़ रखने वाले फ़िलस्तानियों को 45 फीसद भूभाग में समेट दिया गया। जहां इस प्लैन को इज़राइल ने अपनी सहमति दे दी, वहीं इस फ़ैसले को अरब ने स्वीकार नहीं किया। उस समय भारत ने भी इस फैसले को अपना समर्थन नहीं दिया। 30 नवंबर को फ़िलस्तानियों ने इसका विरोध किया पर इज़रिलियों ने इस विरोध का दमन कर दिया और 14 मई 1948 को इज़राइल ने ख़ुद को आज़ाद देश घोषित कर दिया। फिर 1947-49 के मध्य पहला अरब- इज़राइल युद्ध हुआ।
फ़िलस्तीन मुक्ति संगठन का गठन
मई 1964 में इसी इस्राइली निति के विरोध में फ़िलस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) का गठन हुआ। 1967 में द्वितीय अरब-इज़राइल युद्ध हुआ, जिसे सिक्स डे वॉर या अल-नक़्सा या जून युद्ध के नाम से जाना जाता है। इसमें इज़राइल ने जीत दर्ज़ की और जोर्डन से वेस्ट बैंक, सीरिया से गोलन हाइट और मिस्र से ग़ज़ा पट्टी और सीनाई प्रयद्वीप छीन लिया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने मामले में फिर से हस्तक्षेप करते हुए चार्टर 194 (III) में जीती हुए ज़मीन वापस करने और शरणार्थी समस्या को न्याय पूर्वक सुलझाने की बात कही। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मध्यासता से कोई फ़र्क नहीं पड़ा।
योम किपुर युद्ध की शुरुआत
6 अक्टूबर 1973 में 19 दिनों तक चले योम किपुर युद्ध की शुरुआत हुई। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र के सेक्युरिटी कॉन्सिल ने प्रस्ताव 338 पास किया, UNSC का रेसोलुशन 242 पास कर के तत्काल युद्ध विराम और मध्य पूर्व में दीर्घकालीन शांति बहाल करने की बात की। लेकिन नतीजा फिर से कुछ नहीं निकला। ऐसी छुटपुट घटनाएं होती रहीं और 1987 में फ़िलस्तानियों द्वारा पहला इंतेफ़ादा की घटना हुई। हालांकि ये विरोध शुरुआत में अहिंसक था परंतु बाद में इजरायलियों ने इसका हिंसक दमन किया। इसके बाद पूरी दुनिया की नज़र फ़िलिस्तीनियों के हालात पर पड़ी।
पीएलओ के शक्ति का विस्तार
1974 में संयुक्त राष्ट्र ने पीएलओ को मान्यता दे दी। उसी साल भारत ने भी पीएलओ को मान्यता दिया। 14 दिसंबर 1988 को पीएलओ ने इज़राइल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी। 1991 में मेड्रिड शांति सम्मेलन हुआ जिसमें पहली बार अरब- इज़राइल एक साथ एक मंच पर आए और इसका है नतीजा था कि 1993 में ओस्लो सम्मेलन में इज़राइल ने पीएलओ को मान्यता दे दी। वेस्ट बैंक और ग़ज़ा को सीमित ऑटोनोमी दे दी गई, और पीएलओ ने इज़राइल को 1967 के पहले वाली सीमा को मान्यता दे दिया और इंतेफ़ादा को समाप्त कर दिया गया।
लेकिन तमाम राजनीतिक नीतियों, संघर्षों के बावजूद आज भी स्थिति पर नज़र डालें, तो फ़िलिस्तीनी लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के अनंतिम फैसले का उल्लंघन करते हुए, इज़राइल ने ग़ज़ा पट्टी पर अपना हमला जारी रखा है। ग़ज़ा में आज करीब 23 लाख लोग अकाल के कगार पर हैं। डबल्यूएचओ के अनुसार ग़ज़ा में पांच साल से कम उम्र के कम से कम 90 प्रतिशत बच्चे एक या अधिक संक्रामक रोगों से प्रभावित हैं, जबकि क्षेत्र के उत्तरी हिस्सों में दो साल से कम उम्र के 15 प्रतिशत या छह में से एक बच्चे गंभीर रूप कुपोषण से प्रभावित है।
हमास प्रमुख इस्माइल हनियेह ने इस मई ग़ज़ा युद्ध विराम वार्ता में गतिरोध के लिए इजरायल को दोषी ठहराया और प्रमुख मांगों को दोहराया, जिसमें यह भी शामिल है कि कोई भी समझौता इस क्षेत्र में इजरायल के आक्रमण को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करे। बता दें कि आज 145 देश फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम का कहना है कि साधारण खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ग़ज़ा में प्रवेश करने और भोजन वितरित करने के लिए प्रतिदिन कम से कम 300 ट्रकों की आवश्यकता होगी। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग़ज़ा की 75 फीसद से अधिक आबादी, लगभग 1.7 मिलियन लोग, अक्टूबर 2023 से पहले ही शरणार्थी के रूप में पंजीकृत थे। ग़ज़ा के अधिकारियों के अनुसार पूरे ग़ज़ा पट्टी में कम से कम 160,000 इमारतों को नुकसान पहुंचा है। उत्तरी ग़ज़ाऔर ग़ज़ा शहर को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। माना जाता है कि दोनों उत्तरी क्षेत्रों में कम से कम 70 फीसद इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं, लेकिन अब उनके विश्लेषण से पता चलता है कि खान यूनिस क्षेत्र में भी 54 फीसद इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं।