छत्तीसगढ़ के कई गांव आज भी तमाम बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं। यह कहानी मदघुसरी गांव के एक आम महिला सुमन मेरावी की कहानी है जो अपने बलबूते पर आगे बढ़ते गईं। छत्तीसगढ़ के मदघुसरी गांव की सुमन से हमें एक विज़िट के दौरान मिलने और उनके बारे में जानने का मौका मिला। उनके गांव में 302 घर हैं और यहां की आबादी मुख्य रूप से आदिवासी श्रेणी में आती है। सुमन एक संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती हैं। आर्थिक तंगी के कारण वह केवल प्राथमिक शिक्षा ही पूरी कर पाई थीं। सामाजिक मानक उनके समुदाय में महिलाओं की शिक्षा को सीमित करते हैं। इसके बावजूद उन्होंने बड़े होने पर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का दृढ़ संकल्प लिया।
खुद में नेतृत्व की खोज
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साल 2021 में वह अपने गांव में एक स्थानीय स्वयं सहायता समूह ‘जय मां की गुडा’ में शामिल हुईं। सुमन हमेशा से बातों से ज़्यादा काम करने में विश्वास करती थीं। उन्होंने अपने परिवार और गांव के समुदाय के सामने अपने नेतृत्व कौशल का प्रदर्शन किया। स्वयं सहायता समूह की शुरुआत समुदाय में महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से की गई थी। इसका लक्ष्य महिलाओं को आय-उत्पादक गतिविधियां शुरू करने के लिए आवश्यक ज्ञान और संसाधन तैयार करना था। हालांकि, उन्हें लगा कि समूह का संचालन केवल नाममात्र का है। जब वह सही अवसर की प्रतीक्षा कर रही थी, तो एक स्थानीय संस्था समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट ने समूह के लिए गांव में एक अवसर प्रस्तुत किया। सुमन ने इसे नेतृत्व के मौके के रूप में देखा।
सुमन अभी भी सामाजिक बंधनों से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन कोई भी रुकावट उन्हें साथी महिलाओं का समर्थन करने से नहीं रोकती। उनका विज़न महिलाओं के बीच सामाजिक सामंजस्य को बेहतर बनाने और उन्हें अपने समुदाय के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करने पर आधारित है।
महिलाओं के लिए आजीविका और वित्तीय जागरूकता पर काम
सुमन ने कृषि-आधारित आजीविका के प्रति स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को संगठित किया और इस विषय पर उनकी समझ बनाने के काम में मार्गदर्शन किया। उन्होंने आस-पास के गांवों में अन्य महिला समूहों को साथ लाने और उन्हें एकजुट करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका ध्यान वित्तीय समावेशन और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर था, जो इस पहल के विचारों के साथ मेल खाता था। बचत और ऋण गतिविधियों से महिलाओं में अधिक आत्मविश्वास पैदा हुआ। सुमन ने ज़मीनी स्तर पर प्रोजेक्ट टीम के साथ सहयोग करते हुए गांव के संगठन के लिए विज़न तय करने की प्रक्रिया में सहायता की। उन्होंने आजीविका को मज़बूत करने, आय बढ़ाने, संपत्ति बनाने, पोषण संबंधी पर्याप्तता सुनिश्चित करने, और समुदाय के लिए जीवन की गुणवत्ता में समग्र सुधार पर ध्यान केंद्रित किया।
गांव में नेतृत्व की भूमिका निभाती सुमन
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वह उत्साहपूर्वक विविध आजीविका गतिविधियों, जैसे बीज उपचार, वैज्ञानिक खेती तकनीक और मछली पालन पर आधारित विभिन्न प्रशिक्षण सत्रों में शामिल हुईं। टीम और समूह के सदस्यों और गांववासियों के साथ निरंतर भागीदारी और बातचीत के माध्यम से उन्होंने न केवल अपने कौशल को निखारा बल्कि बाकी लोगों में भी आत्मविश्वास की भावना विकसित करी। दो वर्षों के अंदर सुमन अपने गांव के समूहों में एक सक्रिय सदस्य के रूप में उभरी। उन्होंने लोगों को विभिन्न आजीविका योजनाओं के फायदे दिलाने की ज़िम्मेदारी ली और समूह के जो सदस्य निष्क्रिय थे, उन्हें वापस प्रेरित किया।
स्वयं सहायता समूह की शुरुआत समुदाय में महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से की गई थी। इसका लक्ष्य महिलाओं को आय-उत्पादक गतिविधियां शुरू करने के लिए आवश्यक ज्ञान और संसाधन तैयार करना था।
उल्लेखनीय रूप से, वह एक स्वयंसेवक की भूमिका में संगठनात्मक हस्तक्षेप में लगी हुई थी। प्रशिक्षण, कार्यशालाओं और अन्य अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को सुमन ने बढ़-चढ़ कर उन ग्रामीणों तक पहुंचाया जिन्हें अभी तक ऐसे संसाधनों तक पहुंचने का अवसर नहीं मिला था। फैसिलिटेटर्स के मार्गदर्शन से उन्होंने अपने घर पर एक छोटा सा पौष्टिक किचन गार्डन स्थापित किया, जिसमें उन्होंने अपने परिवार के उपभोग के लिए आवश्यक सब्जियां उगाईं। साथ ही उन्होंने समूह के साथी सदस्यों को अपने-अपने घरों में सब्ज़ियों के बगीचे बनाने के लिए प्रेरित किया।
पर्यावरण की रक्षा के लिए कोशिश करती सुमन
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इस क्षेत्र में जहां अनियमित वर्षा होती है, वनरोपण के पर्यावरणीय महत्व को पहचानने के बाद सुमन ने वृक्षारोपण अभियान में भाग लिया। उन्होंने अपने कृषि क्षेत्र में 200 आम के पेड़ और 25 नींबू के पेड़ लगाए। इसके अतिरिक्त लेआउट की योजना बनाने, गड्ढों को खोदने और भरने, उच्च गुणवत्ता वाले पौधों का चयन करने और वृक्षारोपण प्रक्रिया को क्रियान्वित करने में तकनीकी सहायता भी प्रदान की। उनकी सक्रिय भागीदारी के देखकर समूह के अन्य सदस्यों को अपने वृक्षारोपण स्थलों पर अंतर-फसल लगाने के लिए बढ़ावा मिला। आज, वह और उनका परिवार सीधे अपने बगीचे से ताज़ी सब्ज़ियां खाने का लाभ उठाते हैं और उससे जुड़े पोषण और स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभों का भी अनुभव करते हैं। उन्हें गर्व है कि वह अपने बच्चों को ऐसा आहार दे पा रही हैं और उन्हें बचपन से ही घर में उगाए गए खाने का महत्व भी सिखा रही हैं।
उन्होंने आस-पास के गांवों में अन्य महिला समूहों को साथ लाने और उन्हें एकजुट करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका ध्यान वित्तीय समावेशन और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर था, जो इस पहल के विचारों के साथ मेल खाता था। बचत और ऋण गतिविधियों से महिलाओं में अधिक आत्मविश्वास पैदा हुआ।
महिला नेतृत्व द्वारा सामुदायिक विकास
सुमन अभी भी सामाजिक बंधनों से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन कोई भी रुकावट उन्हें साथी महिलाओं का समर्थन करने से नहीं रोकती। उनका विज़न महिलाओं के बीच सामाजिक सामंजस्य को बेहतर बनाने और उन्हें अपने समुदाय के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करने पर आधारित है। उनके दृष्टिकोण और क्षमता को स्वीकार करने के बाद उनके पति एक समर्थन के स्तंभ के रूप में उनके साथ खड़े हुए हैं। उनकी यात्रा कई मायनों में प्रेरणादायक है और यह साबित करती है कि दृढ़ संकल्प और संसाधनों तक पहुंच सबसे वंचित व्यक्तियों को भी सशक्त बना सकती है। यह उनके जीवन में बदलाव ला सकता है और उनके परिवारों व समुदायों के विकास में योगदान दे सकता है। उनकी कहानी दिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति की रुचि उसकी क्षमता को प्रभावित करती है और उसके जीवन को बदल देती है। साथ ही, स्थानीय समुदायों में महिलाओं द्वारा नेतृत्व वाली मज़बूत संस्थाएं गांव को आवश्यक प्रगतिशील दिशा में ले जा सकती है।
नोट: यह लेख इंडिया फेलो लीना बेग़म ने लिखी है। इंडिया फ़ेलो युवा भारतीयों के लिए एक सामाजिक नेतृत्व कार्यक्रम है जिसमें सामाजिक मुद्दे पर 18 महीने तक पूर्णकालिक काम करना शामिल है। लीना समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ बोदला, छत्तीसगढ़ में बाएगा समुदाय की प्रभावी कहानियां बाहर लाने पर काम कर रही थी।