इंटरसेक्शनलजेंडर शादी के बाद महिलाओं को क्यों अपना नाम बदलना पड़ता है?

शादी के बाद महिलाओं को क्यों अपना नाम बदलना पड़ता है?

शादी के बाद महिलाओं के नाम बदलने के लिए अलग-अलग समुदायों के अपने नियम होते हैं। ज्यादातर तथाकथित उच्च जाति के हिंदू समुदायों में, शादी के बाद महिलाओं को अपना नाम बदलना पड़ता है। यह उपनाम या पति का पहला नाम होता है जिसे वह अपने नाम में जोड़ती हैं। कई बार तो पहला नाम तक बदल दिया जाता है।

शादी हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और समाज में इससे जुड़ी परंपराएं भी तय की गई हैं। ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए। जैसे शादी का जोड़ा एक ख़ास रंग का ही होगा, लड़की को शादी के बाद श्रृंगार करना होगा और अपने पति का नाम तक अपना होगा। शादी के बाद महिलाओं के नाम बदलने के लिए अलग-अलग समुदायों के अपने नियम होते हैं। ज्यादातर तथाकथित उच्च जाति के हिंदू समुदायों में, शादी के बाद महिलाओं को अपना नाम बदलना पड़ता है। यह उपनाम या पति का पहला नाम होता है जिसे वह अपने नाम में जोड़ती हैं। कई बार तो पहला नाम तक बदल दिया जाता है जिसका महज एक कारण होता है कि ससुराल पक्ष को लड़की का नाम पसंद नहीं आ रहा है। अलग-अलग धर्म, समुदाय में अलग-अलग परंपराएं हैं। जिन समुदाय में शादी के बाद एक पत्नी को पति का नाम अपनाना होता है वहां महिलाओं पर एक किस्म का दबाव रहता है और अगर कोई ऐसा नहीं करती है तो उसे कई तरह के सवालों का सामना करना पड़ता हैं।

भारतीय समाज में ही नहीं दुनिया भर में शादी के बाद पति के नाम अपनाने का चलन है। आखिर शादी के बाद केवल महिलाओं को ही पुरुषों का उपनाम नाम क्यों अपनाना होता हैं? आज के दौर में भी शादी के लिए नाम बदलना या फिर पति के नाम को अपनाना एक ट्रेंड बन गया है। जहां कुछ महिलाएं अपनी पसंद से ऐसा करती हैं लेकिन सवाल यह है कि लंबे समय से चली आ रही ऐसी पंरपराओं में अपेक्षा हमेशा स्त्री से ही क्यों की जाती है और नाम बदलने से उन्हें किस तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता हैं।

त्रिशा का कहना है, “शादी के बाद आप वही होते है, आपकी शक्ल-सूरत सब वही होती है तो फिर नाम को क्यों बदलना है। अचानक से पति की पहचान से मेरी पहचान करनी शुरू कर दी जाती है। मेरी अपनी अलग पहचान है, मैं ऑफिस में काम करती हूं लेकिन मुझे लोगों का अचानक से मिसेज कहकर बुलाना कई बार बहुत अखरता है और अगर मैं इस पर किसी को टोक देती हूं अलग-अलग तरह की टीका-टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है।”

पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अनुसार एक स्त्री पर एक पुरुष का अधिकार होता है और उसे हमेशा उसके अधीन रहना चाहिए। गाजियाबाद जिले की रहने वाली वंशिका आज से आठ साल पहले इस नाम से नहीं जानी जाती थीं। लेकिन शादी से ठीक पहले उनके परिवार और ससुराल पक्ष ने उनकी सहमति न लेने हुए नाम बदलने का फैसला उनके सामने लिया। दरअसल उनके पहले नाम से उनकी शादी का शुभ मुहुर्त नहीं निकल रहा था और उनके पंडित ने सलाह दी कि लड़की का नाम बदल दो तो दोनों परिवार ने ऐसा किया। वंशिका का कहना हैं, “मेरा व्यक्तित्व, मेरी अपनी पहचान जैसे कुछ नहीं है और मेरा नाम बदल दिया गया। हमारी कंडीशनिंग भी ऐसी है कि हमें ये ज्यादा अजीब नहीं लगता हैं क्योंकि हम बचपन से इसी तरह के माहौल में बड़े होते हैं और अपने आसपास यही सब देखते हैं लेकिन यह मेरे लिए सामान्य नहीं था। मैंने अपने परिवार को कहा लेकिन जब लड़की की शादी में मुश्किल आ रही हो और नाम बदलने का सुझाव देकर समाधान निकल रहा हो तो वहां आपकी एक बात भी नहीं सुनी जाती है मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। ना मुझसे पूछा गया और न ही मेरे पास कोई विकल्प था।”

जब महाराष्ट्र, पुणे की रहने वाली त्रिशा ने आज से छह साल पहले अपनी शादी के बाद पति का नाम नहीं अपनाने का फैसला किया तो उन्हें अपने परिवार के लोगों में कई बातों को सुनना पड़ा। शादी के बाद उनके इस फैसले को हर कोई आसानी से मान नहीं पाया। त्रिशा का कहना है, “शादी के बाद आप वहीं होते है, आपकी शक्ल-सूरत सब वही होती है तो फिर नाम को क्यों बदलना है। अचानक से पति की पहचान से मेरी पहचान करनी शुरू कर दी जाती है। मेरी अपनी अलग पहचान है, मैं ऑफिस में काम करती हूं लेकिन मुझे लोगों का अचानक से मिसेज कहकर बुलाना कई बार बहुत अखरता है और अगर मैं इस पर किसी को टोक देती हूं अलग-अलग तरह की टीका-टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है।”

यह एक तथ्य है कि दुनियाभर में शादी के बाद अपना उपनाम बदलने के लिए बाध्य करने वाला कोई कानून नहीं है, यह दुनिया भर में एक सामाजिक परंपरा बन गई है। यूरोप, अमेरिका समेत हर जगह इस तरह की पितृसत्तात्मक रवायत देखने को मिलती है। बीबीसी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका में लगभग 70 फीसदी महिलाएं शादी के बाद पति का पारिवारिक नाम अपनाती हैं। 2016 में ब्रिटिश महिलाओं के किये गया एक सर्वेक्षण में 90 प्रतिशित ब्रिटिश महिलाओं ने यह चलन अपनाया है, जिनमें से 18 से 30 वर्ष की आयु की 85 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे अभी भी इस प्रथा का पालन करती हैं। दुनिया में लैंगिक समानता वाले देशों की सूची में शीर्ष देश नॉर्वे में इस तरह का चलन मौजूद है। पश्चिम हो या पूर्व दुनिया के बड़े हिस्से में शादी के बाद महिलाओं पर अपने पति के नाम को अपनाने का चलन एक मजबूत सांस्कृतिक आदर्श बना हुआ है।

 तस्वीर साभार: रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

द फॉर्चून में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ जिन लोगों ने अपना नाम बदलने का फैसला किया है या शायद अपने पेशेवर और कानूनी नामों को अलग कर लिया है उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता हैं। उदाहरण के लिए शिक्षाविदों में महिलाओं को अपने काम को अपने पहले और विवाहित नामों के बीच में संघर्ष करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप उनपर महत्वपूर्ण फंडिंग, अवसर या प्रमोशन खोने का खतरा बना रहता है। इसी तरह जिन पेशेवरों ने पिछले नाम के तहत प्रमाण या लाइसेंस प्राप्त किए हैं उन्हें अभ्यास जारी रखने के लिए कागजी कार्रवाई को तेज़ी से पूरा करना चाहिए।   

भारतीय समाज में ऐसे कई परिवार है जहां कानूनी रूप से तो नाम बदलने या उपनाम शामिल करने की प्रक्रिया नहीं की जाती है लेकिन घर-परिवार और रिश्तों के बीच शादी के बाद नाम महिला का नाम बदल दिया जाता है। मेरठ की रहने वाली मुस्कान या रेखा एक दिन में दोनों नामों से पुकारी जाती हैं। आज से 22 साल पहले शादी के समय उनका नाम रेखा से बदलकर ससुराल में मुस्कान रख दिया गया था। अपने अनुभव पर उनका कहना है, “शुरू में हालांकि मुझे अजीब लगा लेकिन धीरे-धीरे वे अपने नये नाम की आदि हो गई। शादी के लगभग 10 साल बाद मैंने अपने करियर पर ध्यान देना शुरू किया और आगे पढ़ने और नौकरी करने का फैसला लिया। आज जब मैं नौकरी पर होती हूं तो वहां मुझे डॉक्यूमेंट के नाम से पुकारा जाता है, घर-परिवार में होती हूं तो शादी के बाद दिए नाम से पुकारा जाता है। मेरे पिता के घर में मुझे प्यार से एक अलग नाम से पुकारा जाता है। मेरा छोटा बेटा बचपन में पूछा करता था कि मम्मा हर जगह जाकर आपके नाम क्यों बदल जाते हैं? आज मैं आधे दिन जब स्कूल में होती हूं तो एक नाम से पुकारी जाती हूं और घर पर आने पर दूसरे नाम से पुकारी जाती हूं। हालांकि मैंने इसपर कभी ज्यादा सोचा नहीं घर वालों को जो अच्छा लगता है मुझे भी सही लगता है।”

अमेरिका में लगभग 70 फीसदी महिलाएं शादी के बाद पति का पारिवारिक नाम अपनाती हैं। 2016 में ब्रिटिश महिलाओं के किये गया एक सर्वेक्षण में 90 प्रतिशित ब्रिटिश महिलाओं के लिए यह आंकड़ा लगभग 90 फीसदी है, जिनमें से 18 से 30 वर्ष की आयु की 85 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे अभी भी इस प्रथा का पालन करती हैं।

हमारे समाज में आम-घरेलू महिलाओं पर इस तरह की रवायत को कायम रखने का दबाव रहता है और उन्हें रीति-रिवाज और सबको खुश करने जैसे व्यवहार के तहत वे ऐसा करती नज़र आती हैं। इतना ही नहीं सार्वजनिक जीवन में किसी पद-प्रतिष्ठा को अपनाने वाली महिलाएं तक इस तरह के चलन को बनाए रखने का काम करती नज़र आती हैं। बॉलीवुड सिनेमा की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अभिनेत्रियां तक शादी के तुरंत बाद अपने अपने पति के उपनाम को शामिल करती नज़र आती हैं। शादी के बाद नाम बदलना या उपनाम लगाने का चलन पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बनाए रखना है जिसके अनुसार एक स्त्री का खुद का कोई अस्तित्व या पहचान नहीं होती है और उसकी अपने पिता या पति के नाम से ही पहचान होती है। दूसरा अच्छी महिला होने का दबाव यानी शादी के बाद अपने पति का नाम लगाना उसकी पहचान को अपनाना एक समर्पण का प्रतीक है और यह शादी के रिश्ते में बंधने का एक प्रमाण है। 

शादी के बाद नाम बदलने का चलन पूरी तरह से पितृसत्तात्मक परंपराओं के अस्तित्व से जुड़ा है। यह प्रथा पारंपरिक रूप से लैंगिक भूमिकाओं को बनाने पर जोर देती है। पुरुषों के वर्चस्व को स्थापित करने के लिए इस तरह के व्यवहार को समाज में बनाया गया है और आज भी इसे कायम रखा गया है। इस तरह के पांरपरिक मानदंडों को खत्म करना आवश्यक है। किसी पत्नी पर पति के उपनाम अपनाने का फैसला ना तो थोपा जाएं और एक पुरुष की तरह स्त्री के लिए भी शादी के रिश्ते में समानता लाने के लिए इस तरह की पितृसत्तात्मक परंपराओं को खत्म करना ज़रूरी है। 


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