दुनिया के विभिन्न देशों में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं, उनमें से ज़्यादातर के मूल में ग़ैरबराबरी और भेदभाव रहा है। इसी तरह जिस समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया गया, उन्होंने जब बगावत की तो अपनी एकजुटता के लिए कुछ खास प्रतीकों का प्रयोग किया। इस तरह के प्रतीकों में झंडे की अपनी ख़ास जगह है। विभिन्न आधारों पर बने संगठन अपनी एकजुटता को प्रदर्शित करने के लिए सदियों से इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं। हाल ही में एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए महत्त्वपूर्ण प्राइड मंथ का समापन हुआ, इसमें प्रतीक के तौर पर इंद्रधनुषी झंडा मौजूद रहा।
जून महीना इस समुदाय के लिए अपनी पहचान, लैंगिकता और यौनिकता को प्रदर्शित करने के लिए जाना जाता है। इस दौरान दुनिया भर में हो रहे विभिन्न प्राइड परेडों में इंद्रधनुषी झंडा हर जगह दिखता है। इंद्रधनुषी झंडे के रंग बाइनरी से इतर हटकर लैंगिक पहचान और यौनिक विविधता के प्रतीक के तौर पर देखे जाते हैं। यह झंडा विविधता, समावेशिता और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के गौरव का प्रतिनिधित्व करता है। झंडे में उपस्थित विभिन्न रंग न सिर्फ़ देखने में आकर्षक हैं बल्कि इनका प्रतीकात्मक महत्त्व भी है।
इंद्रधनुषी झंडे का इतिहास
1978 में अमेरिकी समलैंगिक कलाकार गिल्बर्ट बेकर ने सबसे पहले झंडे का डिजाइन तैयार किया था। बेकर को जाने माने समलैंगिक नेता हार्वे मिल्क ने सैन फ्रांसिस्को में गे फ्रीडम डे परेड के लिए एक प्रतीक के तौर पर इसे बनाने के लिए कहा था। बेकर ने इंद्रधनुष की प्राकृतिक सुंदरता और रंगों को विविधता और समावेशिता के प्रतीक के तौर पर अपने झंडे में जगह दी। सबसे पहले इस इंद्रधनुषी झंडे को गौरव के प्रतीक के तौर पर 25 जून 1978 को सैन फ्रांसिस्को के गे फ्रीडम डे परेड परेड में फहराया गया था।
बेकर का यह झंडा जूडी गारलैंड के गाने ओवर द रेनबो से प्रेरित माना जाता था, जबकि बेकर ने बताया कि यह इससे अधिक रोलिंग स्टोन और उनके गाने शी इज अ रेनबो से प्रेरित थे। ग़ौरतलब है कि गारलैंड पहले समलैंगिक आइकंस में से एक हैं। 1985 में बे एरिया रिपोर्टर में प्रकाशित एक लेख के अनुसार बेकर ने 60 के दशक के हिप्पी आंदोलनों के साथ जुड़ाव की वज़ह से इंद्रधनुषी रंग को चुना था। शुरुआत में इन झंडों को बेकर और उनके सहयोगियों द्वारा हाथ से रंगा और सिला गया था। बाद में धीरे-धीरे मशीनों का इस्तेमाल करके ये झंडे बनाए जाने लगे।
झंडे के विविध रंग और उनके मायने
मूल रूप से इस इंद्रधनुषी झंडे में आठ रंग थे, जिनमें से हर एक का अपना अलग महत्त्व है। इसमें गुलाबी रंग यौनिकता, लाल रंग जीवन, नारंगी रंग उपचार, पीला रंग सूरज की रोशनी, हरा रंग प्रकृति, फिरोजी रंग कला, नीला रंग सद्भावना और बैंगनी रंग आत्मा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। हालांकि गुलाबी रंग की अनुपलब्धता के कारण झंडे में से पहले गुलाबी रंग गायब हो गया, इसके बाद फिरोजी और नीले रंग को मिलाकर रॉयल ब्लू से बदल दिया गया। आजकल हर जगह एलजीबीटीक्यू+ समुदाय की एकजुटता और पहचान के तौर पर दिखाई देने वाला यह इंद्रधनुषी झंडा छह रंगों का होता है। झंडे का छह रंगों वाला यह संस्करण 1979 से अस्तित्व में आया जो अब तक लोकप्रिय बना हुआ है।
गौरव के प्रतीक के रूप में इंद्रधनुषी झंडा
1978 में इस झंडे का महत्त्व और मौजूदगी बढ़ने लगी, जब हार्वे मिल्क के नेतृत्व में समलैंगिक समुदाय के अधिकारों के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई। यह आंदोलन एलजीबीटीक्यू+ समुदाय की समानता और गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार की मांग को लेकर था। हालांकि इस आंदोलन के दौरान अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से पहले समलैंगिक मेयर और राजनेता मिल्क की हत्या कर दी गई। इसके बाद 1989 में इस इंद्रधनुषी झंडे की चर्चा अमेरिका में घर-घर में होने लगी जब जॉन स्टाउट ने अपने मकान मालिक पर मुकदमा दायर किया और जीत हासिल की। दरअसल उन्हें उनके मकान मालिक ने वेस्ट हॉलीवुड केलिफोर्निया स्थित उनके अपार्टमेंट की बालकनी से इस इंद्रधनुषी झंडे को फहराने पर रोक लगा दी थी।
एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए गौरव, एकजुटता, दृश्यता और विविधता के प्रतीक के तौर पर इंद्रधनुषी झंडे की लोकप्रियता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता 1994 में और तेजी से बढ़ी। 1994 में स्टोनवॉल दंगों की 25वीं सालगिरह थी। इस अवसर पर बेकर ने एक मील लंबा इंद्रधनुषी झंडा तैयार किया था। इसने पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान कायम की। जून 2004 में इस झंडे का प्रचार प्रसार ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचा जब एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के कुछ कार्यकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के कोरल द्वीप पर इंद्रधनुषी झंडा फहराया। इसके बाद जून 2015 में मैनहट्टन में मॉडर्न आर्ट गैलरी में इसे जोड़ा गया। 2015 में ही 26 जून को समलैंगिक विवाहों को वैध करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उपलक्ष्य में व्हाइट हाउस को इंद्रधनुषी झंडे के रंग से रोशन किया गया, इससे इसकी ख्याति दुनिया भर में फैल गई। मार्च 2016 में स्वीडन और डेनमार्क के लिए डाक सेवा द्वारा इंद्रधनुषी टिकट बनाए गए जो सीमाओं के पार एलजीबीटीक्यू+ समुदाय की विविधता और एकरूपता को प्रदर्शित करते थे।
क्या है प्रोग्रेस प्राइड फ्लैग?
हाल के वर्षों में एक नए तरह का प्राइड फ्लैग सामने आया है इसे प्रोग्रेस प्राइड फ्लैग के नाम से जाना जाता है। 2018 में एक नॉन बाइनरी कलाकार डेनियल क्वासर ने प्राइड फ्लैग डिजाइन किया, जिसमें इंद्रधनुषी झंडे के बाईं ओर एक त्रिकोणीय संरचना को जोड़ा। इसमें काले, भूरे नीले, गुलाबी और सफेद रंगों की पट्टियों को जगह दी गई। इंद्रधनुषी झंडे का यह स्वरूप आंदोलन की व्यापकता और समावेशिता को उजागर करता है। हालांकि इसका प्रचार प्रसार अभी उतना नहीं हो पाया है कुछेक जगहों को छोड़ दें तो ज्यादातर अभी भी 6 रंगों वाला इंद्रधनुषी झंडा ही एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है।
वैश्विक महत्त्व
एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए एकजुटता और गौरव का प्रतीक इंद्रधनुषी झंडा दुनिया भर में प्रगतिशील समूह द्वारा सराहा और अपनाया जाने लगा। इसके अलावा पश्चिमी देशों से होते हुए एशियाई देशों तक इसने समुदाय के बीच में अपनी जगह बना ली। इसकी सार्वभौमिकता, जीवंतता और समावेशित ने भाषा और संस्कृतियों की बाधाओं से परे दुनिया भर के एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के व्यक्तियों को एकजुट करने का काम किया। दुनिया भर के क्वीयर कार्यकर्ता और उनके समर्थक इस इंद्रधनुषी झंडे के साथ अपनी लड़ाइयां लड़ने लगे।
समकालीन समाज में प्रासंगिकता
इंद्रधनुषी झंडा समकालीन समाज में एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए पूरे विश्व भर में एक सर्वमान्य प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। यह झंडा इनके अधिकारों और स्वीकृति के लिए विश्व भर में चल रहे संघर्षों को भी दर्शाता है। इंद्रधनुषी झंडे ने इस समुदाय को एक पहचान देने का काम किया है जिससे अब क्वीयर समुदाय की दृश्यता बढ़ी है और इसके साथ ही समाज में धीरे-धीरे जागरुकता भी आ रही है। फ्राइड मंथ जून, प्राइड परेड या अन्य महत्त्वपूर्ण अवसरों पर विभिन्न कंपनियां अपना लोगो इंद्रधनुषी बनाकर ख़ुद को एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अनुकूल दिखाने का भी प्रयास कर रही हैं। इसके साथ ही विभिन्न संस्थान विश्वविद्यालय और सार्वजनिक स्थान समावेशिता के प्रतीक के तौर पर इंद्रधनुषी रंगों का प्रयोग करने लगे हैं।
हालांकि इंद्रधनुषी झंडा क्वीयर समुदाय के लोगों की एकजुटता और समावेशिता का प्रतीक है और समाज में जागरुकता लाने का भी प्रयास कर रहा है। लेकिन इसके साथ ही आलोचकों का मानना है कि इंद्रधनुषी झंडे का बाज़ारीकरण इसके महत्त्व को कम कर सकता है, जिससे इस समुदाय के संघर्ष और ज़्यादा बढ़ने की आशंका है। इन चुनौतियों के बावजूद इस इंद्रधनुषी झंडे की प्रासंगिकता निरंतर बढ़ रही है। यह एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकारों के लिए प्रेरित करने और स्वतंत्रता, समानता जैसे मूलभूत मानवाधिकारों को प्राप्त करने तक सक्रियता बनाए रखने के लिए बेहद उपयोगी है।यह झंडा समुदाय के भीतर विविधता के साथ ही एकजुटता को बढ़ावा देने का काम भी करता है। सिर्फ़ जश्न मनाने के लिए नहीं बल्कि इसका उपयोग भेदभाव, हिंसा और ग़ैर-बराबरी को दूर करने के लिए किया जाना ज़्यादा ज़रूरी है।