समाजकैंपस पटना यूनिवर्सिटी में हिंसा का असर और शैक्षिक माहौल में लगातार गिरावट

पटना यूनिवर्सिटी में हिंसा का असर और शैक्षिक माहौल में लगातार गिरावट

कैंपस के अंदर हिंसा होने के मुख्य कारण हॉस्टल में रहने वालों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। कई बार अलग-अलग हॉस्टल अपना दबदबा कायम करने के लिए हिंसा को चुनते हैं। अमूमन यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले विद्यार्थी न तो लाइब्रेरी जाते हैं और न ही किसी नैतिक गतिविधियों में शामिल होते हैं, जिसकी वजह से विद्यार्थियों के पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ता है।

स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बच्चों का सपना होता है आगे की पढ़ाई जिसके लिए किसी अच्छे कॉलेज-यूनिवर्सिटी में लोग दाखिला लेते हैं। स्कूल में एक सीमित वातावरण के बाद कॉलेज और विश्वविद्यालय की पढ़ाई से बच्चों की सोच ज्यादा विकसित होती है। कॉलेज कैंपस को सीखने के लिए अच्छी जगह मानी जाती है। लेकिन जब कैंपस में हिंसात्मक या असुरक्षित माहौल हो जाता है, तो बुनियादी शिक्षा से बच्चे दूर होने लगते हैं। असुरक्षित माहौल के कारण कोई भी छात्र कॉलेज में पढ़ने जाने से परहेज करता है। पटना यूनिवर्सिटी, जिसे बिहार का ईस्ट का ऑक्सफोर्ड भी कहा जाता है, अपने 107 साल के इतिहास में एक अहम स्थान रखता है।

1917 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने कई महान नेताओं और विद्वानों को शिक्षा दी है। जयप्रकाश नारायण और जेपी नड्डा जैसे प्रमुख नाम यहां से उभरे हैं। इस यूनिवर्सिटी में स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान समय तक जन आंदोलनों का प्रभाव रहा है। लेकिन आज वही यूनिवर्सिटी हिंसा और अस्थिरता का केंद्र बन गई है। एक समय जिस यूनिवर्सिटी कैंपस में देश को आजाद करने के लिए मांग उठती थी, उसी कैंपस में आज राजनीतिक पार्टियों का वर्चस्व और दलों के नाम पर हिंसा होती नज़र आती है।

मुझे कई बार कॉलेज में हुई हिंसा की घटनाओं से डर लगता है, जिसके कारण मैं थोड़े शोर-शराबे से भी सहम जाती हूं। मैं बहुत इंट्रोवर्ट हूं इसलिए भी थोड़ा डर लगा रहता है। अगर मुझे कैंपस में हिंसा की खबर मिलती है, तो मैं तुरंत घर जाना चाहती हूं, क्योंकि कॉलेज में विद्यार्थियों की सिक्योरिटी बड़ा मुद्दा है।”

कैंपस में हिंसा की घटनाएं

पटना यूनिवर्सिटी की छात्रा रिया बताती हैं, “बीते साल अक्टूबर में नवरात्रि को लेकर पटना के मिलर ग्राउंड स्कूल में डांडिया का आयोजन हुआ था। डांडिया को पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नेता ने आयोजित कराया था। डांडिया नाइट में स्टेज पर चढ़ने को लेकर दो गुटों के बीच में विवाद हुआ और ग्राउंड में हंगामा मचने के बाद, हम सभी वहां से निकल गए थे। लेकिन पूरे यूनिवर्सिटी में यह खबर फैल गई थी कि डांडिया नाइट में हंगामा और मारपीट हुई थी। कैंपस में असुरक्षित माहौल होने के कारण कई बार लड़कियों को क्लास आने में परेशानी होती है। मुझे कई बार कॉलेज में हुई हिंसा की घटनाओं से डर लगता है, जिसके कारण मैं थोड़े शोर-शराबे से भी सहम जाती हूं। मैं बहुत इंट्रोवर्ट हूं इसलिए भी थोड़ा डर लगा रहता है। अगर मुझे कैंपस में हिंसा की खबर मिलती है, तो मैं तुरंत घर जाना चाहती हूं, क्योंकि  कॉलेज में विद्यार्थियों की सिक्योरिटी बड़ा मुद्दा है।”

तस्वीर साभार: The New Indian Express

असल में ये हिंसात्मक घटनाएं एकाएक शुरू हुई। साल 2000 के बाद राजनीति में सक्रिय विद्यार्थियों का गढ़ कॉलेज कैंपस बनता गया। पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नेता कुमार दिव्यम कैंपस के हिंसात्मक वातावरण को लेकर बताते हैं, “पिछले 6-7 सालों में हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई है। यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी पढ़ाई के साथ राजनीति में भी पैर जमाने का प्रयास करते हैं और कैंपस में दबंग बने रहने की मंशा से छिटपुट गैंग बनाते हैं।” 6 महीने पहले दिसंबर में भी पटना कॉलेज कैंपस के अंदर बमबारी की भी घटना हुई थी। इस घटना के बाद हॉस्टल को लगभग एक महीने तक बंद कर दिया गया था।

साल 2022 में हॉस्टल के छात्रों से मेरी डिपार्टमेंट की लड़ाई हुई थी। हॉस्टल के छात्रों ने क्लास में घुसकर मारपीट की, जिससे मेरे दोस्त को गंभीर चोटें भी आई थी और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। इस घटना के बाद क्लास सस्पेंड होने के कारण हमारी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा और मेरे परीक्षा के नंबर अच्छे भी नहीं आए थे।

कैंपस में असुरक्षित माहौल को लेकर पूजा सिंह बताती हैं, “करीब 2 साल पहले मैं पटना यूनिवर्सिटी के दरभंगा हाउस के हिंदी विभाग में एमजेएमसी की क्लास में बैठी हुई थी। क्लास के दौरान बाहर से जोर की आवाज आई। ऐसा लगा मानो कहीं गोली चली हो। हमारे प्रोफ़ेसर ने बाहर जाकर देखा तो कुछ लड़के दरभंगा हाउस के पीछे के दरवाजे से गंगा घाट की ओर भाग रहे थे। पूछने पर मालूम चला कि गोली चली है। किसी भी अनहोनी को रोकने के लिए हमारी क्लास को तुरंत सस्पेंड कर दिया गया। अपने मास्टर्स डिग्री के दौरान मैंने ऐसी कई घटनाएं यूनिवर्सिटी कैंपस में सुनी थी, जिसमें सबसे ज्यादा ऐसी घटनाएं पटना कॉलेज में होती थी।” इस घटना का उनपर और पढ़ाई पर एक नकारात्मक असर डाला।

हिंसक घटनाओं का छात्रों पर प्रभाव

कैंपस के अंदर हिंसा होने के मुख्य कारण हॉस्टल में रहने वालों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। कई बार अलग-अलग हॉस्टल अपना दबदबा कायम करने के लिए हिंसा को चुनते हैं। अमूमन यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले विद्यार्थी न तो लाइब्रेरी जाते हैं और न ही किसी नैतिक गतिविधियों में शामिल होते हैं, जिसकी वजह से विद्यार्थियों के पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ता है। इन सबके कारण यूनिवर्सिटी में भारी अकादमिक गिरावट भी दर्ज की गई है। पटना कॉलेज के बीसीए सेमेस्टर 3 के छात्र प्रवीण (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “मारपीट की घटनाओं के बाद मैं मानसिक तौर पर कॉलेज जाने के लिए तैयार नहीं हो पाता हूं। दिसंबर की घटना के बाद मैं एक हफ्ते के लिए डर से घर चला गया था।”

तस्वीर साभार: Prokerala

वहीं पटना कॉलेज से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर चुके विवेक (बदला हुआ नाम) कुमार बताते हैं, “साल 2022 में हॉस्टल के छात्रों से मेरी डिपार्टमेंट की लड़ाई हुई थी। हॉस्टल के छात्रों ने क्लास में घुसकर मारपीट की, जिससे मेरे दोस्त को गंभीर चोटें भी आई थी और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। इस घटना के बाद क्लास सस्पेंड होने के कारण हमारी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा और मेरे परीक्षा के नंबर अच्छे भी नहीं आए थे।”

करीब 2 साल पहले मैं पटना यूनिवर्सिटी के दरभंगा हाउस के हिंदी विभाग में एमजेएमसी की क्लास में बैठी हुई थी। क्लास के दौरान बाहर से जोर की आवाज आई। ऐसा लगा मानो कहीं गोली चली हो। हमारे प्रोफ़ेसर ने बाहर जाकर देखा तो कुछ लड़के दरभंगा हाउस के पीछे के दरवाजे से गंगा घाट की ओर भाग रहे थे।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी स्मृति सिंह कहती हैं, “पटना यूनिवर्सिटी के कैंपस में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या कम और राजनीतिक गुटों की ज्यादा होती है। कैंपस में हिंसा की घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि यूनिवर्सिटी और कॉलेज कैंपस में प्रवेश और निकास के लिए सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता है। कैंपस की बाउंड्री कई तरफ से खुली हुई है, जिसमें गंगा घाट भी शामिल है। बाहरी लोग भी कैंपस में घुसकर हिंसा करते हैं और गंगा घाट के रास्ते भाग जाते हैं।”

कैंपस के माहौल में महिलाओं का राजनीति में भागीदारी

स्मृति खुद सक्रिय राजनीति में हैं। लेकिन, कैंपस में होती राजनीति में लड़कियों की कम भागीदारी पर सहमति जताती हैं। अमूमन बिहार में राजनीति का मतलब गलत रास्ता भी माना जाता है और मौजूदा समय में कैंपस के हालात भी ठीक नहीं हैं। इस कारण लड़कियों को सही और समर्थक राजनीतिक माहौल नहीं मिल पाता और उनका प्रतिनिधित्व न के बराबर देखा जाता है। इन तमाम हिंसात्मक माहौल के बावजूद राज्य के अलग-अलग जिलों से पटना यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने वालों की लंबी लाइन रहती है। इसकी एक बड़ी वजह है दूसरे यूनिवर्सिटी की तुलना में पटना यूनिवर्सिटी का सेशन समय पर खत्म होना। यह दर्शाता है कि शिक्षा की चाहत छात्रों में बरकरार है।

तस्वीर साभार: Free Press Journal

पटना विश्वविद्यालय का असुरक्षा का माहौल न केवल विद्यार्थियों के सुरक्षा पर प्रश्न उठाता है, बल्कि उनके शैक्षिक जीवन को भी दांव पर लगाता है। जो विद्यार्थी बिहार छोड़कर बाहर जाने में समर्थ नहीं हैं, उनके लिए राज्य के कैंपसों में ऐसी अराजकता भारी पड़ती है। इन  सबके बावजूद, विद्यार्थियों की शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता और यूनिवर्सिटी का इतिहास उन्हें यहां पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। पटना विश्वविद्यालय में हो रही हिंसा ने शिक्षा और शैक्षिक वातावरण पर गंभीर प्रभाव डाला है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और संबंधित प्राधिकरण इस समस्या को गंभीरता से लें और आवश्यक कदम उठाएं।

विद्यार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित शिक्षा वातावरण प्रदान करना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए सभी संबंधित पक्षों के बीच संवाद और सहयोग बढ़ाना, नियमों का सख्ती से पालन करना और सुरक्षा उपायों को मजबूत करना आवश्यक है। पटना विश्वविद्यालय को एक बार फिर से एक समृद्ध और सुरक्षित शैक्षिक संस्था के रूप में स्थापित करने के लिए यह कदम जरूरी है। जरूरत है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लें और विद्यार्थियों के लिए सुरक्षित और सकारात्मक शैक्षिक माहौल प्रदान करें।

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