जल ही जीवन है, जल के बिना एक सजीव अपने जिंदगी के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकता। एक आम इंसान खाने, पीने, नहाने, कपड़ा धोने, घर साफ करने, पेड़-पौधों को सही सलामत रखने या दूसरे कामों में पानी का इस्तेमाल करता है। भारत में प्रति व्यक्ति पानी की खपत 140 लीटर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक आम व्यक्ति को प्रतिदिन 100 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। पानी को बचाने की मुहीम दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन एक्टिविस्ट समय-समय पर करते रहे हैं। मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के अलग-अलग कोने में साफ पानी की कमी और नदियों के सूखने की समस्या देखी गई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तो तेजी से पिघल ही रहे हैं, लेकिन पेड़ों की कटाई, और उद्योगों के लगने के कारण आने वाले सालों में पानी को लेकर जंग छिड़ने की नौबत आ सकती है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बुतरस-घाली ने पानी की कमी को लेकर 32 साल पहले ही भविष्यवाणी की थी कि आने वाले दिनों में तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेकर हो सकता है। इसके साथ ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी पानी की समस्या पर कहा था कि ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है और कोई आश्चर्य नहीं है कि अगला विश्व युद्ध पानी के मसले पर हो। हमारे देश में महिलाओं को पानी की खपत से लेकर पानी जुटाने तक की जिम्मेदारी में हिस्सा लेना पड़ता हैं। भारत में महिलाओं को घर के कामकाज में इस्तेमाल करने वाले पानी के लिए खुद ही व्यवस्था करनी पड़ती है, भले ही वह पानी घर के ट्यूबवेल से भरना हो या गांव के कुएं से या फिर आसपास के किसी तालाब या झरने से।
पानी न होने की वजह से मेरी पढ़ाई नहीं हो पाती है। हर दिन तीनों टाइम मुझे 500-600 मीटर दूसरे के घर से अलग-अलग बर्तन, बोतल, प्लास्टिक के डब्बों में पानी भर कर लाना होता है। इससे समय की काफी बर्बादी होती है और थकान की वजह से पढ़ाई नहीं हो पाती है।
चुनाव के वक्त भी कोई काम नहीं होता
बिहार के आरा जिले के वार्ड नंबर 33 में रहने वाली दिव्या सिन्हा बीपीएससी शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। बीते कई सालों से पानी की समस्या से जूझ रही दिव्या बताती हैं, “पानी की समस्या मेरे घर बीते 4 सालों से हो रही है। मेरा घर काफी पहले बना है, ऐसे में बोरिंग नहीं लगा है। हर साल भीषण गर्मी के कारण पानी का लेवल नीचे चला जाता है। हमारे वार्ड में गिने-चुने दो-तीन घरों में ही नल-जल योजना की सुविधा पहुंची है। बीते दिनों चुनाव के बाद हमारे मोहल्ले में एक दिन काम हुआ था। लेकिन, फिर सब शांत पड़ गया है।”
500-600 मीटर दूर दूसरे के घर से लाना पड़ता है पानी
दिव्या आगे बताती हैं, “पानी न होने की वजह से मेरी पढ़ाई नहीं हो पाती है। हर दिन तीनों टाइम मुझे 500-600 मीटर दूसरे के घर से अलग-अलग बर्तन, बोतल, प्लास्टिक के डब्बों में पानी भर कर लाना होता है। इससे समय की काफी बर्बादी होती है और थकान की वजह से पढ़ाई नहीं हो पाती है। कई बार मैं और मेरी मां पानी लाने के दौरान गिरकर चोटिल भी हुए हैं।” यूनिसेफ के मुताबिक एक महिला या लड़की पानी लाने में करीब 200 मिलियन घंटे खर्च करती हैं। इतने ज्यादा घंटे खर्च करने की वजह से कई बार महिलाओं और लड़कियों के दूसरे काम पानी लाने के कारण छूट जाते हैं, जिसमें कई बार लड़कियों की पढ़ाई भी शामिल होती है।
कॉलेज जाने से पहले मुझे घर के लिए पानी की व्यवस्था आस-पास के घरों से करनी होती है। घर के काम के लिए पानी लाने में कई बार कॉलेज जाने में देर भी हो जाती है, जिसके कारण अबतक मैं 5 दिन कॉलेज अटेंड नहीं कर पाई हूँ।
आरा के मीरगंज में रहने वाली 19 वर्षीय सृष्टि की भी पानी की यही कहानी है। सृष्टि ने इस साल ही 12वीं पास कर ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया। कुछ दिनों से वह कॉलेज भी जा रही है। वह कहती है, “कॉलेज जाने से पहले मुझे घर के लिए पानी की व्यवस्था आस-पास के घरों से करनी होती है। घर के काम के लिए पानी लाने में कई बार कॉलेज जाने में देर भी हो जाती है, जिसके कारण अबतक मैं 5 दिन कॉलेज अटेंड नहीं कर पाई हूँ।” महाराजा कॉलेज से इंग्लिश ऑनर्स कर रही सृष्टि आगे बताती हैं, “मेरा परिवार बोरिंग लगाने में अक्षम है। इसी वजह से वह दूसरों के घर से पानी लाने को मजबूर है।”
घर के इस्तेमाल के पानी के लिए एक महिला या लड़की घंटों पैदल चलकर पानी भरती है और अपने सर, हाथ, कमर, पीठ, साइकिल, ठेला इत्यादि जिसपर भी हो सके, उसे लादकर घर लाती है। महिलाओं का संघर्ष पानी लाने के दौरान तब और बढ़ जाता है जब अनेक महिलाएं पानी लाने के दौरान अपने पीठ पर छोटे बच्चों को लादकर काम करती हैं। वहीं कई बार गर्भवती महिलाएं भी घर के इस्तेमाल के लिए उसी अवस्था में मीलों पैदल चलकर पानी ढोकर लाती हैं।
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन
हमारे देश में केंद्र से राज्य स्तर तक गांव-गांव में पानी पहुंचाने की योजना चलाई गई है। केंद्र सरकार द्वारा जल जीवन मिशन की शुरुआत साल 2019 में हुई थी। इस योजना को साल 2024 तक पूरा किया जाना है, जिसके अंतर्गत कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन दिया जाना है। केंद्र सरकार के इस योजना से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी आपूर्ति करना उद्देश्य है। योजना के आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक अबतक 14,93,19,302 ग्रामीण घरों में योजना पहुंच चुकी है।
केंद्र के अलावा बिहार में भी राज्य सरकार अलग से जल जीवन मिशन के अंतर्गत हर घर नल का जल पहुंचाने की योजना चला रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महत्वाकांक्षी नल जल योजना की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक बिहार के शहरी क्षेत्र में साल 2019-20 तक सभी 3,370 वार्डों में काम शुरू हो चुका है और 3,008 वार्डों में काम पूरा हो चुका है। इसके तहत अबतक बिहार के शहरों के 14.03 लाख घरों को कवर किया जा चुका है।
बात बिहार में हर घर नल जल योजना की
बिहार सरकार की ऐसी योजना की सच्चाई सिर्फ आरा में नहीं बल्कि राजधानी पटना में भी मौजूद है। बिहार की राजधानी को सभी सुविधाओं से लैस माना जाता है। लेकिन इसी के बीच सरकार की पानी पहुंचाने की योजना यहां असफल हो रही है। पटना हाईकोर्ट के पीछे बसे आर ब्लॉक बस्ती में 250 से ज़्यादा घर हैं। लेकिन बिहार सरकार की हर घर नल का जल योजना आज तक यहां नहीं पहुंच सकी है। आज भी यहां की महिलाएं घंटों पानी भरने में अपना समय बर्बाद कर रही हैं। आर ब्लॉक के बढ़ई टोला की रहने वाली सदफ़ परवीन के घर में न तो सरकार की हर घर नल का जल योजना पहुंच सकी है और ना शौचायल का निर्माण हुआ है।
मेरे घर में नल न होने के कारण मुझे दूसरे के घर से पानी लाना पड़ता है। बर्तन और कपड़ा धोने से लेकर नहाने और शौचालय जाने के लिए भी मुझे दूसरे के घर जाना पड़ता है। जिनके घर से मैं पानी लाती हूं वो अपने घर के कपड़े भी मुझसे धुलवाती हैं।
पानी और शौचालय के लिए दूसरे पर निर्भर सदफ़ बताती हैं, “मेरे घर में नल न होने के कारण मुझे दूसरे के घर से पानी लाना पड़ता है। बर्तन और कपड़ा धोने से लेकर नहाने और शौचालय जाने के लिए भी मुझे दूसरे के घर जाना पड़ता है। जिनके घर से मैं पानी लाती हूं वो अपने घर के कपड़े भी मुझसे धुलवाती हैं। वे लोग कहती हैं तुम हमारे घर के पानी से इतना काम करती हो तो मेरे कपड़े धो ही सकती हो। मजबूरी में मुझे उनका कपड़ा धोना पड़ता है।”
वार्ड 21 की वार्ड पार्षद श्वेता रंजन आर ब्लॉक में पानी की समस्या पर बात करते हुए कहती हैं, “यह योजना पिछले चरण में आई थी। मेरा यह पहला चरण है। मुझसे पहले जिन लोगों पर योजना की ज़िम्मेवारी थी उन्होंने इसे पूरा नहीं किया है। कमला नेहरु नगर के कुछ ही घरों में पानी का पाइप बिछाया गया था जिसे मैंने इसबार पूरा किया गया है। अब आर ब्लॉक में भी योजना पहुंचाने के लिए हमलोग प्रयास करेंगे।” इन दो महत्वाकांक्षी योजनाओं के युद्धस्तर पर चलाए जाने के बावजूद, बिहार में लड़कियां और महिलाएं घंटों पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर है।
हमारे वार्ड में गिने-चुने दो-तीन घरों में ही नल-जल योजना की सुविधा पहुंची है। बीते दिनों चुनाव के बाद हमारे मोहल्ले में एक दिन काम हुआ था। लेकिन, फिर सब शांत पड़ गया है।
21वीं सदी में जहां महिलाएं अंतरिक्ष में जा रही हैं, वहीं हमारे देश की ग्रामीण और शहरी महिलाएं घर की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मीलों पैदल चल रही हैं। यह समस्या न केवल महिलाओं की शारीरिक और मानसिक थकान का कारण बनती है, बल्कि उनके स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति पर भी गहरा असर डालती है। महिलाओं के पानी लाने के बोझ को कम करने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठन को मिलकर और तेजी से काम करना होगा। जल संग्रहण और प्रबंधन के बेहतर तरीकों को अपनाकर इस समस्या का समाधान खोजा जा सकता है। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में जल आपूर्ति की सुविधाओं को बढ़ाकर महिलाओं को इस कठिनाई से मुक्त किया जा सकता है। पानी लाने के बोझ को कम करने के लिए लैंगिक और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है ताकि जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान हो।