इंटरसेक्शनलजेंडर लैंगिक समानता की राह में कैसे रूकावट है कॉन्फिडेंस क्लचर

लैंगिक समानता की राह में कैसे रूकावट है कॉन्फिडेंस क्लचर

कॉन्फिडेंस कल्चर एक शक्तिशाली आकर्षण है जो समाज में व्यवस्थित रूप से महिलाओं, हाशिये के समुदाय के लोगों, अल्पसंख्यकों को कम महत्व देता है। यह ऐसा जाहिर करता है कि आत्मविश्वास होना हर समस्या का समाधान है। महिलाओं के लिए जाहिर किया जाता है उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है।

‘बी कॉन्फिडेंट’, ‘आत्मविश्वासी बनो’, ‘आत्मविश्वास से लबरेज छवि’, आत्मविश्वास का होना हमारे समय की एक बहुत बड़ी ज़रूरत बना दी गई है। यह कहने में कोई अतिरेक नहीं है हम आत्मविश्वास के स्वर्ण युग में रह रहे हैं। बाजार से आत्मविश्वासी बनने का आदेश हमें दिये जा रहा है। ब्यूटी प्रोडक्ट्स की कंपनियों हमें अपने शरीर से प्यार करने के लिए कह रही है जैसे वे चाहते हैं। उन्होंने इसे आत्मविश्वास से जोड़कर पेश किया है। छोटी से छोटी चीज को आत्मविश्वास से जोड़कर विज्ञापनों में लाया जा रहा है। महिलाओं को ख़ासतौर पर बार-बार खुद पर विश्वास करने के लिए कहा जाता है जबकि लैंगिक, वर्ग और नस्लीय भेदभाव बढ़ता जा रहा है। महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी होती है, या हमें यह भरोसा दिलाया जाता है कि हमारे पास आत्मविश्वास है। पूंजीवादी पुरुष व्यवस्था ने इस तरह से महिलाओं को आत्मविश्वासी बनाने के लिए एक पूरा कल्चर बनाया है।

आखिर कॉन्फिडेंस क्लचर है क्या?

कॉन्फिडेंस कल्चर एक शक्तिशाली आकर्षण है जो समाज में व्यवस्थित रूप से महिलाओं, हाशिये के समुदाय के लोगों, अल्पसंख्यकों को कम महत्व देता है। यह ऐसा जाहिर करता है कि आत्मविश्वास होना हर समस्या का समाधान है। महिलाओं के लिए जाहिर किया जाता है उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। इस संस्कृति के चलते विज्ञापनों, सेल्फ हेल्प किताबों, संगीत और अन्य मीडिया के माध्यम से महिलाओं को यह संदेश भेजा जा रहा है कि उनकी सभी समस्याओं का समाधान अधिक आत्मविश्वासी होना है।    

कॉन्फिडेंस कल्चर के केंद्र में यह तर्क है कि महिलाओं की समस्याएं केवल उनकी अपनी कमियों का परिणाम हैं। कॉन्फिडेंस कल्चर के अनुसार, महिलाओं को व्यक्तिगत कमियों और विशेष रूप से आत्मविश्वास की कमी के कारण पीछे रखा जाता है। नतीजतन, उन्हें खुद को ठीक करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, न कि दुनिया को सुधारने के लिए। समाजशास्त्री शानी ओर्गड और रॉसलिंड गिल का कॉन्फिडेंस कल्चर पर तर्क है कि इसका महत्व न केवल अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है, बल्कि आत्मविश्वास का इस्तेमाल बड़े, अधिक जटिल प्रणालीगत और संस्थागत समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए किया गया है। जबकि हम आत्मविश्वास की चिंता करते हैं, वे तर्कपूर्ण रूप से कहते हैं कि हम इस बारे में चिंता नहीं करते कि कंपनियां कैसे इस तरह से संगठित हैं जो हमें हाशिये पर रखती हैं, और आत्मविश्वास के बारे में सलाह आर्थिक और सांस्कृतिक बाधाओं के लिए महिलाओं को दोषी ठहराने का एक रूप बन जाती है। महिलाओं से खुद को बदलने के लिए कहना कहीं आसान है, बजाय इसके कि हमारे कंपनियों और समाज में प्रणालीगत असमानताओं को संबोधित किया जाए। भले ही कुछ लोग इसे आत्मविश्वास की कमी (कॉनफिडेंस गैप) कहते हैं, यह उन प्रणालीगत बाधाओं का लक्षण है जो महिलाओं को पीछे रखती हैं।

इस संस्कृति के तहत आत्मविश्वास की आवश्यकता को इतना सामान्य समझ बन गई है कि इसे तर्क-बहस से परे प्रस्तुत किया जाता है। इतना ही नहीं इसे एक नारीवादी हस्तक्षेप की तरह प्रस्तुत किया जाता है और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए स्पष्ट उद्देश्य के तौर पर तय किया जाता है।

महिलाओं के किस तरह से करता है प्रभावित

कॉन्फिडेंस कल्चर के तहत महिलाओं की हर समस्याओं का समाधान आत्मविश्वास बताया जाता है। कार्यस्थल पर असमानता, बॉडी इमेज की समस्या, पालन-पोषण की समस्या, निजी रिश्तों में संबंधों में कमी जैसी हर स्थिति के लिए आत्मविश्वास को समाधान की तरह पेश किया जाता है। महिलाओं को कार्यस्थल पर आत्मविश्वासी बनने के लिए कहा जाता है, पफेक्ट ब्यूटी स्टैडंर्ड के अनुसार आपकी बॉडी नहीं है तो आप आत्मविश्वास की कमी है, इतना ही नहीं पालन-पोषण में समस्या है तो माताओं को आत्मविश्वासी बनाना है ताकि वे आत्मविश्वासी बच्चे को बड़ा कर सकें। इस संस्कृति के तहत आत्मविश्वास की आवश्यकता को इतना सामान्य समझ बन गई है कि इसे तर्क-बहस से परे प्रस्तुत किया जाता है। इतना ही नहीं इसे एक नारीवादी हस्तक्षेप की तरह प्रस्तुत किया जाता है और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए स्पष्ट उद्देश्य के तौर पर तय किया जाता है।  

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

यह उन संरचनात्मक असमानताओं को उजागर करने से दूर करते हैं जो वास्तव में महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं का कारण हैं। आत्मविश्वास को कई क्षेत्रों के व्यापक मुद्दों के समाधान के तौर पर पेश किया जाता है। यह संस्कृति सामाजिक असमानता को आंतरिक बाधाओं और व्यक्तिगत कमियों के संदर्भ में प्रस्तुत करती है। उदाहरण के लिए कोविड महामारी का महिलाओं पर कई स्तर पर असर पड़ा है। उन्हें अधिक बेरोजगारी, भुगतान किए गए काम में कमी, जेंडर पे गैप का सामना करना पड़ा है। इसके जवाब में कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए कॉन्फिडेंस ट्रेनिंग कोर्स की सलाह पेशकश की है जबकि महिलाओं में बेरोजगारी, जेंडर पे गैप का समाधान खुद को कम आकना नहीं है। 

कॉन्फिडेंस कल्चर इस तरह से सरकार, संगठन, कॉरपोरेशन और सिस्टम को जवाबदेही से बचाता है। वह महिलाओं और हाशिये के समुदाय के लोगों को सवाल करने के बजाय उन्हें ही घेरने का काम करता है। और पूरी तरह से सिस्टम की खामियों पर चुप्पी साधकर खुद में बदलाव करने को कहता है। यह तंत्र को जवाबदेही से दूर करता है। यह अन्याय को व्यक्तिगत शर्तों में प्रस्तुत करता है जिसमें लैंगिक असमानता के लिए संस्थागत विफलताओं के बजाय महिलाओ में कथित कमियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।  

कॉपोर्शनों के लिए कैसे यह एक वरदान है

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलटिकल साइंस में प्रकाशित लेख में प्रोफेसर शानी ओर्गड और कॉन्फिडेंस कल्चर किताब की लेखिका का कहना है कि इस नवउदारवादी नारीवादी को कॉर्पोरेशनों के द्वारा बढ़ावा दिया गया है। आत्मविश्वास संस्कृति सामूहिक समस्याओं के लिए व्यक्ति समाधान को अनिवार्य करती है और इंटरसेक्शन पहचान के महत्व को सतही बना देता है। जिसकी वजह से महिला-केंद्रित विज्ञापन अभियानों में सेल्फ हेल्फ, सेल्फ लव और सेल्फ इम्प्रूवमेंट के विज्ञापनों और अभियानों के संदेश के ज़रिये सामाजिक असमानताओं को नकारते हुए उन्हें बढ़ाते हैं।   

कॉन्फिडेंस कल्चर इस तरह से सरकार, संगठन, कॉरपोरेशन और सिस्टम को जवाबदेही से बचाता है। वह महिलाओं और हाशिये के समुदाय के लोगों को सवाल करने के बजाय उन्हें ही घेरने का काम करता है। और पूरी तरह से सिस्टम की खामियों पर चुप्पी साधकर खुद में बदलाव करने को कहता है।

कॉन्फिडेंस कल्चर सामाजिक समस्याओं की जिम्मेदारी और दोष को व्यक्तिगत महिलाओं के कंधों पर डालती है। यह तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को आत्मविश्वास और सेल्फ ऐप्स के द्वारा सही करने पर जोर देता है। इस तरह के ऐप्स विशेष रूप से महिलाओं को लक्षित करते हैं। जिनके बाजार ने बूम किया है। कई रिपोर्टों ने सेल्फ केयर ऐप्स की वृद्धि को महामारी के सबसे बड़े स्वास्थ्य और उपभोक्ता रुझानों में से एक के रूप में पहचाना है, जो मुख्य रूप से महिलाओं और मिलेनियल्स द्वारा प्रेरित है।

लैंगिक असमानता की गहरी जड़ों को समाज से हटाने के लिए हमें समस्याओं के समाधान और भेदभाव वाली रूढ़िवादी प्रथाओं को खत्म करना होगा। सेल्फ केयर और सेल्फ लव को बाजार और पूंजीवाद की सरंचना को समझना होगा। हमें महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सामाजिक स्थिति को बदलने के लिए असमानता को जड़ से खत्म करना होगा। सेल्फ केयर और सेल्फ को अपना केवल वहां तक आवश्यक है जहां तक बाजार और पूजीवादी व्यवस्था न हावी अन्यथा यह एक तरह से नीतिगत अव्यवस्थाओं से ध्यान हटाने वाला ही है। साथ ही निजी और और मनोवैज्ञानिक कॉन्फिडेंस कल्चर के बजाय हमें सामाजिक संरचनाओं और नीतियों में निवेश करना चाहिए जो महिलाओं की सुरक्षा, भलाई और शक्ति को समर्थन, सुनिश्चित और सुदृढ़ करें।


स्रोतः

  1. LSE
  2. The Conversation.com
  3. Forbes
  4. theatlantic.com

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