समाजकार्यस्थल महिलाओं के लिए असुरक्षा का माहौल करता है उनके ‘करियर’ को प्रभावित

महिलाओं के लिए असुरक्षा का माहौल करता है उनके ‘करियर’ को प्रभावित

स्टिग्मा ऑफ सेक्सुअल वॉयलेंस एंड वीमन्स डिसिजन टू वर्क के अनुसार महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ने के कारण उनकी नौकरियों में भागीदारी प्रभावित होती है। शहरी क्षेत्र में यौन हिंसा के मामले अधिक सामने आने पर यह महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने से रोकती है। 

26 वर्षीय ऋचा गणित विषय में पीएचडी कर रही हैं। वह अपने परिवार की पहली लड़की हैं जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है लेकिन यह बात जितनी आसान हमें यहां पढ़कर लग रही है उतनी नहीं है। ऋचा को पढ़ाई करने के सारे अवसर तय नियमों और शर्तों के आधार पर मिले हैं। यानी कि परिवार वालों ने यह तक तय किया था कि वह किस ट्यूटर के संरक्षण में अपनी पीएचडी का शोध कार्य करेंगी। उन्हें कहां नौकरी करनी है, किसे पढ़ाना है यह सब परिवार के पुरुषों के द्वारा तय किया गया। हमसे बातचीत करते हुए ऋचा का कहना है, “मैं जब स्कूल में थी तो मैंने तय कर लिया था कि मुझे हायर एजुकेशन हासिल करनी है। स्कूल से ही पढ़ाई में खूब मेहनत करती थी क्योंकि मुझे पता था नौकरी करना मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा इसलिए मैं हमेशा खुद को टॉप में लाने की कोशिश करती ताकि परिवार के लोगों को मेरी लगन दिखे। मेरे नौकरी करने की बात करना उन्हें मज़ाक लगता था ऐसे में अच्छा रिजल्ट ही एकमात्र ऑप्शन था जिसके दम पर मैं आगे बढ़ने की बात कह सकती थी।”

वह आगे कहती है, “मैं पढ़ाई में अव्वल आती हूं यह सबको अच्छा लगता है लेकिन बात जब नौकरी की आती है तो केवल सरकारी नौकरी को अकेला विकल्प के तौर पर मेरे सामने पेश किया जाता है। इसके अलावा मैं ट्यूशन तक घर में बच्चों को नहीं दे पाई। एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज से टीचिंग की जॉब ऑफर हुई उसको नकार दिया गया। हमेशा कहा जाता कि प्राइवेट नौकरियों का माहौल अच्छा नहीं होता है। सरकारी लगती है तो कर सकती हो वरना पढ़ ली हो यही ठीक है।” कई रिपोर्ट्स और अध्ययनों में यह बात स्पष्ट कही गई है कि कार्यस्थल पर सुरक्षा के अभाव के कारण यह महिलाओं की नौकरियों में स्थिति को प्रभावित करती है। सांइस डायरेक्ट में प्रकाशित पेपर स्टिग्मा ऑफ सेक्सुअल वॉयलेंस एंड वीमन्स डिसिजन टू वर्क के अनुसार महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ने के कारण उनकी नौकरियों में भागीदारी प्रभावित होती है। शहरी क्षेत्र में यौन हिंसा के मामले अधिक सामने आने पर यह महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने से रोकती है। 

ग्रेजुएशन के ठीक बाद एक मीडिया कंपनी में दिल्ली नौकरी करने गई मोनिका का कहना है, “कॉलेज कैंपस के द्वारा मुझे जहां नौकरी मिली थी वह कंपनी ठीक थी लेकिन मेट्रो से उतरकर उस तक पहुंचने का रास्ता बहुत असुरक्षित था जिस वजह से एक सप्ताह जाने के बाद मैंने वहां काम न करने का फैसला लिया था।”

भारत में महिलाओं तक नौकरियों के मौकों तक पहुंच के बीच असुरक्षा एक बड़ी बाधा है। सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए वह कम वेतन और समाज द्वारा तय सुरक्षित करियर के विकल्प को वे अधिक तलाशती हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा, अपराध के माहौल के कारण महिलाओं का नौकरी छोड़ने का एक कारण तक बनता है। हिंसा, सार्वजनिक जगहों और कार्यस्थल पर असुरक्षा की वजह से नौकरियों में उनकी भागीदारी प्रभावित होती है। असुरक्षा एक बड़ा कारण है जिस वजह से देश में महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी कम है। समय के साथ कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़नी चाहिए लेकिन डेटा कुछ और हकीकत बयां करता है। ओआरएफ में प्रकाशित जानकारी के अनुसार साल 1955 में महिला श्रम बल भागीदारी की दर (फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट) 24.1 फीसदी दर्ज की गई थी जो साल 1972 में 33 प्रतिशत हो गई थी। हालांकि इसके बाद यह लगातार गिरती गई और 2017 में यह अपने न्यूनतम स्तर 23 प्रतिशत पर पहुंच गई। पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (2022-23) के आंकड़ों के अनुसार, एफएलएफपीआर 37 प्रतिशत है, जो पिछले सर्वेक्षण (2021-22) से 4.2 प्रतिशत अधिक है। श्रम बल में बड़े स्तर पर जेंडर गैप के मुख्य कारणों में रूढ़िवादी सामाजिक मानदंड, कम वेतन मिलने के साथ-साथ कार्यस्थल पर असुरक्षा, सार्वजनिक जगहों पर असुरक्षा महिलाओं की हिस्सेदारी को कम करने का कारण बनती है। 

तस्वीर साभारः Mint

घर से बाहर निकलकर काम करने पर महिलाओं को केवल अपनी लैंगिक पहचान की वजह से उन बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो पुरुषों के लिए कोई बाधा नहीं है। घर से दफ़्तर तक की दूरी ऐसी ही एक बाधा है जो महिलाओं के काम पर जाने की बीच समस्या है। ग्रेजुएशन के ठीक बाद एक मीडिया कंपनी में दिल्ली नौकरी करने गई मोनिका कहती हैं, “कॉलेज कैंपस के द्वारा मुझे जहां नौकरी मिली थी वह कंपनी ठीक थी लेकिन मेट्रो से उतरकर उस तक पहुंचने का रास्ता बहुत असुरक्षित था जिस वजह से एक सप्ताह जाने के बाद मैंने वहां काम न करने का फैसला लिया था। वहां तक पहुंचने का पैदल का रास्ता बिल्कुल सुनसान रहता था, रास्ते में बीच में कचरा रिसाइकलिंग का काम होता था। कचरों के ढ़ेर के बीच से मेरे लिए वहां से गुजरना बहुत मुश्किल होता था। काम पर जाने के उत्साह पर असुरक्षित रास्ते का डर मुझ पर हावी हो गया। इस वजह से मैंने नौकरी को छोड़ने का विकल्प चुना।” 

उत्तराखंड के हरिद्वार में औद्योगिक क्षेत्र में काम करने के अनुभव के बार में बताते हुए नेहा कहती हैं, “बीटेक के बाद जो मुझे पहली नौकरी मिली थी वह हर मायने में बहुत महत्वपूर्ण थी। लॉन लेकर पढ़ने के बाद मेरी पहली जिम्मेदारी थी कि मैं एजुकेशन लॉन को खत्म करूं लेकिन नौकरी करना तो जितना चुनौतीपूर्ण था उससे साथ ही घर से दूर रहना भी बहुत मुश्किल था। मेरी पहली कंपनी का वर्क एनवायरमेंट मेरी नज़र में बहुत सुरक्षित नहीं था। वहां पर मेल स्टॉफ की संख्या ज्यादा थी, पूरी कंपनी में हम तीन ही लड़कियां थी। मेरे लिए नौकरी बहुत ज़रूरी थी और बिना दूसरी जॉब सिक्योरिटी के मैं नौकरी नहीं छोड़ सकती थी। जब तक मुझे नई नौकरी नहीं मिली तब तक मैं बहुत परेशानी और चिंता में काम करती रही जिसका असर मेरे स्वास्थ्य पर भी पड़ना शुरू हो गया था।”

तस्वीर साभारः IGC

कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल, कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए सुरक्षा निश्चित करना बहुत ज़रूरी है। कामकाजी महिलाओं को ऑफिस पहुंचने के रास्ते के बीच असुरक्षा की भावना, कैब की सुविधा न देने की वजह से वे पीछे रह जाती है। भारत में आज भी बड़े स्तर पर कंपनियां अपनी महिला कर्मचारियों के दफ़्तर से घर और घर से दफ़्तर तक की सुरक्षित यात्रा को बनाने पर विचार तक नहीं करती है। लेट शिफ्ट खत्म होना और रात में घर तक पहुंचने की बाधा पर बोलते हुए मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाली विनीता कहती हैं, “कॉलेज के बाद हमें जालंधर में एक अख़बार में नौकरी का ऑफर मिला। पहली बार हम वहां इंटरव्यू देने गए, ऑफिस का माहौल देखा, वहां महिला कर्मचारियों की संख्या देखी सब सही लगा। दूसरी बार जब ज्वाइनिंग की प्रक्रिया के लिए वहां पहुंचे तो काम के समय और शिफ्ट को लेकर बातें क्लीयर की गई। अख़बारों में शाम के समय काम डेस्क पर ज्यादा होता है, ऐसे यह मुमकिन था कि 11बजे से ऊपर समय होना लाज़िमी है। जब हमने ऑफिस के सामने कैब सुविधा के बारे में बोला तो हमें कहा गया कि आप स्कूटी ले लीजिएगा, हमारी तरफ़ से आपको कोई सुविधा नहीं मिलेगी। साथ ही यह भी कहा गया कि यह सिटी सेफ है कोई दिक्कत की बात नहीं है। इस तरह कंपनी की तरफ से हमारी सुरक्षा को कोई प्राथमिकता नहीं दी गई।”

हिंसा, महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध का माहौल महिलाओं को श्रम बाजार में पीछे धकेलता है जिस वजह से महिलाएं आर्थिक रूप से किसी अन्य पर निर्भर रहती है। इसका असर न केवल महिलाओं पर पड़ता है बल्कि यह सीधे तौर पर देश की आर्थिक प्रगति से भी जुड़ा है।

भारत में सार्वजनिक जगहों और परिवहन में महिलाओं को हिंसा का सामना करना पड़ता है। वर्ल्ड बैंक में छपी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महानगरीय क्षेत्रों में किए गए एक ऑनलाइन सर्वे में यह पाया गया कि सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने वाली लगभग 56 प्रतिशत महिलाओं ने यौन उत्पीड़न का सामना करने की बात कही। 2020 में छपे पेपर के अनुसार गुजराज और बैंगलोर की महिलाओं ने यह बात मानी है कि जब वे पब्लिक बसों में यात्रा करती हैं तो चिंता महसूस करती है। दैनिक काम से लेकर नौकरी करने तक की दूरी तय करने के बीच असुरक्षा, चिंता होना लैंगिक असमानता है जिसका असर अलग-अलग क्षेत्रों पर पड़ता है। बीते कुछ वर्षों में कई रिसर्च पेपर में इस बात की जांच की है कि लैंगिक हिंसा शहरी महिलाओं की वर्कफोर्स में भागीदारी दर को प्रभावित करती है। 

अगर एक महिला रोजगार में है तो उसके लिए हर स्तर पर सुविधाओं को मुहैया कराना होगा। हिंसा, महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध का माहौल महिलाओं को श्रम बाजार में पीछे धकेलता है जिस वजह से महिलाएं आर्थिक रूप से किसी अन्य पर निर्भर रहती है। इसका असर न केवल महिलाओं पर पड़ता है बल्कि यह सीधे तौर पर देश की आर्थिक प्रगति से भी जुड़ा है। महिलाओं के लिए असुरक्षित माहौल हर स्तर पर पूरे समाज को प्रभावित करता है। नौकरियों और आर्थिक प्रगति के लिए श्रम बल में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। हर स्तर पर उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी और सबसे पहले महिलाओं के ख़िलाफ़ लैंगिक आधार पर होने वाली हिंसा के माहौल को जड़ से खत्म करना होगा। 


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