इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ क्वीयर डेटिंग ऐप ग्रिंडर का अवैध इस्तेमाल और उससे जुड़ी चुनौतियां

क्वीयर डेटिंग ऐप ग्रिंडर का अवैध इस्तेमाल और उससे जुड़ी चुनौतियां

ग्रिंडर और इस तरह के दूसरे अन्य डेटिंग ऐप्स के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ विशेष उपाय अपनाए जा सकते हैं। इसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है। सबसे पहले सरकारी और नियामक संस्थाओं को विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने की आवश्यकता है।

आज के डिजिटल युग में लोगों से जुड़ने के लिए बहुत सारे नए विकल्प उपलब्ध हो गए हैं। सोशल मीडिया के साथ ही नए-नए तरीके के डेटिंग ऐप्स ने लोगों से जुड़ने, दोस्ती करने और रिश्ते बनाने के लिए असीमित संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। खास तौर पर एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लिए डेटिंग ऐप्स की काफ़ी उपयोगिता है। आज भी हमारे समाज में जहां नॉन बाइनरी और क्वीयर समुदाय के लिए ख़ुद को खुलकर व्यक्त करना एक चुनौती है, वहां इन डेटिंग ऐप्स ने समुदाय को एक दूसरे से जोड़ने की दिशा में क्रांति ला दी है। लेकिन जिस तरह विज्ञान और तकनीक का अन्य मामलों में दुरुपयोग सामने आया है उसी तरह डेटिंग ऐप्स भी इससे अछूते नहीं है। 

क्या है ग्रिंडर ऐप मामला?

हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने अपने एक फैसले में सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स के दुरुपयोग से जुड़ी आशंकाएं व्यक्त की हैं। महाराजा बनाम पुलिस निरीक्षक के इस केस में आरोपी महाराजा को ग्रिंडर नामक डेटिंग ऐप का इस्तेमाल कर यौन उत्पीड़न और लूट का कथित दोषी पाया गया है। हालांकि हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ग्रिंडर ऐप इसलिए संदिग्ध नहीं है कि यह एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लिए बनाया गया है बल्कि इसलिए शंका के घेरे में है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य अश्लील और यौन गतिविधियों को संरक्षित करना है। 

एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लिए ख़ास तौर पर बना ग्रिंडर ऐप 2009 में लॉन्च हुआ था। हालांकि लॉन्च के समय यह ऐप ‘गे’ पुरुषों के लिए बनाया गया था लेकिन धीरे-धीरे इससे क्वीयर समुदाय जुड़ता गया। यह आईओएस और एंड्रॉयड दोनों पर उपलब्ध है। इसके मुफ़्त और प्रीमियम दोनों संस्करण उपयोगकर्ताओं के लिए मौजूद हैं। इसके अपडेटेड वर्जन को ‘ग्रिंडर एक्स्ट्रा’ और ‘ग्रिंडर अनलिमिटेड’ के नाम से जाना जाता है। यह ऐप जीपीएस पर आधारित है जो इसके उपयोगकर्ताओं को उनके लोकेशन के आसपास समान यौन अभिरुचि वाले लोगों से जोड़ने में मदद करता है। यह ऐप एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लोगों को एक प्लेटफ़ॉर्म देता है जिससे उन्हें समान विचारधारा और रुचि वाले साथी या दोस्त से जुड़ने का मौका मिले।

इस तरह के डेटिंग ऐप का मकसद क्वीयर समुदाय को एक सुरक्षित और निजी स्थान देना है, जहां वे बिना किसी सामाजिक डर के अपने लिए साथी की तलाश कर सकें और अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन जी सकें।

ग्रिंडर ऐप का अवैध इस्तेमाल 

इस तरह के डेटिंग ऐप का मकसद क्वीयर समुदाय को एक सुरक्षित और निजी स्थान देना है, जहां वे बिना किसी सामाजिक डर के अपने लिए साथी की तलाश कर सकें और अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन जी सकें। लेकिन कुछ असामाजिक तत्त्व अपने निजी स्वार्थों के लिए इसका ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐप के जरिए यौन शोषण, ब्लैकमेलिंग, ठगी, लूट जैसे जघन्य अपराध सामने आ रहे हैं। ऐप पर फर्ज़ी प्रोफाइल बनाकर लोगों से उनकी निजी जानकारियां इकट्ठा कर ब्लैकमेल करना अत्यंत गंभीर समस्या है। अक्सर अराजक तत्वों के द्वारा भावनात्मक और आर्थिक शोषण की बात सामने आती रहती है। कई बार ऐप पर विषम लिंगी व्यक्तियों (पुरुष) द्वारा डेटिंग के बहाने एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लोगों पर शारीरिक हमले और हिंसा की घटनाएं भी देखी गई हैं। इन सब वजहों से क्वीयर समुदाय को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। एक तो सामाजिक भेदभाव के डर से ये अपनी पहचान भी सार्वजनिक नहीं कर पाते, ऊपर से ऐसी घटनाएं होने पर वे क़ानूनी मदद लेने से भी हिचकिचाते हैं।

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

ग्रिंडर की शर्तों के अनुसार ऐप के इस्तेमाल की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए, लेकिन लचीले नियमों की वजह से बहुत बार कम उम्र के व्यक्ति अकाउंट बना लेते हैं। नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 14 से 17 वर्ष की आयु के किशोरों ने यौन साथी खोजने के लिए ग्रिंडर ऐप का इस्तेमाल किया। इस तरह वयस्कों के लिए बनाया गया यह ऐप नाबालिग लोगों के लिए बहुत बार ख़तरनाक साबित होता है। इनके साथ यौन शोषण, हिंसा और लूट की घटनाएं आसानी से की जा सकती है।  

बिहार के खगड़िया की रहने वाली हर्षा (बदला हुआ नाम) ने डेटिंग ऐप्स से जुड़ा अपना अनुभव बताते हुए कहा “क्वीयर समुदाय के लोगों के लिए डेटिंग ऐप्स उपयोगी माध्यम साबित हो सकते हैं, लेकिन फर्ज़ी प्रोफ़ाइल्स की भरमार के बीच वास्तविक साथी ढूंढना चुनौतीपूर्ण है। मेरे लिए ऐप के अनुभव मिले-जुले रहे, यहां कुछ दोस्त भी बने जिनसे बाद में भी सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क बना रहा। लेकिन डेटिंग ऐप पर जितना समय बिताया ज़्यादातर डर और आशंकाओं के बीच बीता।”

सर्वाइवर पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

ग्रिंडर ऐप के दुरुपयोग से होने वाले शोषण का सर्वाइवरों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखा गया है। इसमें एंजायटी, डिप्रेएशन और पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) सबसे प्रमुख है। यौन शोषण का सामना करने वाले मामलों में व्यक्ति लंबे समय तक स्वस्थ संबंध बनाने में असमर्थ रह सकते है। वह अपने काम पर फ़ोकस नहीं कर पाता, जिसकी वजह से पढ़ाई, कॅरियर, परिवार या जीवन के दूसरे क्षेत्रों में पीछे रह जाता है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसि के एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वाइवर युवा डर और अविश्वास के कारण मदद लेने में हिचकिचाते हैं इसलिए सर्वाइवर के लिए सुरक्षित और सहज माहौल बनाना बहुत ज़रूरी है, जिससे वे अपने अनुभव खुलकर साझा कर सकें।

दिल्ली की रहने वाली एक स्कूल शिक्षिका सोना (बदला हुआ नाम) एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। डेटिंग ऐप से जुड़ा अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया, “सामाजिक भेदभाव की वजह से मैंने अपनी पार्टनर की तलाश के लिए एक डेटिंग ऐप का इस्तेमाल किया और वहां जाकर मुझे पता चला कि बहुत सारे हेट्रो पुरुष महिलाओं के नाम से फर्ज़ी प्रोफाइल बनाकर क्वीयर महिलाओं का उत्पीड़न करते हैं। इससे मुझे बेहद निराशा हुई और मैंने डेटिंग ऐप के इस्तेमाल से तौबा कर लिया।”

सुरक्षा के उपाय और संभावनाएं 

ग्रिंडर और इस तरह के दूसरे अन्य डेटिंग ऐप्स के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ विशेष उपाय अपनाए जा सकते हैं। इसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है। सबसे पहले सरकारी और नियामक संस्थाओं को विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने की आवश्यकता है। इसके लिए निश्चित समयावधि के अंदर क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करने और दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित किया जाना अनिवार्य है। इसके अलावा ग्रिंडर समेत दूसरे डेटिंग ऐप्स को अपने उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा और निजता सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। संदिग्ध व्यवहार का पता लगाने और उसे रोकने के लिए ऐप को तकनीकी रूप से और अधिक सक्षम बनाया जाना चाहिए। 

सोना (बदला हुआ नाम) एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। डेटिंग ऐप से जुड़ा अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया, “सामाजिक भेदभाव की वजह से मैंने अपनी पार्टनर की तलाश के लिए एक डेटिंग ऐप का इस्तेमाल किया और वहां जाकर मुझे पता चला कि बहुत सारे हेट्रो पुरुष महिलाओं के नाम से फर्ज़ी प्रोफाइल बनाकर क्वीयर महिलाओं का उत्पीड़न करते हैं।”

ग्रिंडर जैसे डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते समय कुछ सावधानियां बरत कर भी संभावित ख़तरों से कुछ हद तक बचा जा सकता है। ऐप पर किसी भी व्यक्ति से मिलने के पहले उसके प्रोफ़ाइल को सावधानीपूर्वक चेक करना चाहिए। अपनी निजी जानकारी जैसे फ़ोन नंबर, घर का पता या बैंक खातों की जानकारी इत्यादि साझा करने से पहले पूरी तरह से सुनिश्चित करना चाहिए कि यह जानकारी किसके पास जा रही है। शुरुआत में किसी से मिलने के लिए सार्वजनिक स्थानों का चुनाव करना चाहिए, जिससे किसी भी ख़तरनाक स्थिति से बचा जा सके। इसके अलावा कोई भी अप्रिय स्थिति आने पर रिपोर्टिंग करना बेहद ज़रूरी है, जिससे सही समय पर उचित कार्रवाई की जा सके।

इसके अलावा एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय को सामाजिक मान्यता और स्वीकृति दिए जाने की ज़रूरत है जिससे इन्हें अपनी पहचान छुपाने की ज़रूरत न पड़े। साथ ही किसी भी तरह की घटना होने पर उसे साझा कर सकें और ज़रूरत पड़ने पर क़ानूनी सलाह और सहायता ले सकें। इसके अलावा बड़े स्तर पर जागरुकता फैलाने की भी ज़रूरत है। इसके लिए किशोरों, युवाओं, माता-पिता और शिक्षकों को डेटिंग ऐप और उनके जोख़िम तथा संभावित ख़तरों के बारे में जानकारी देना और बातचीत को प्रोत्साहित करना भी एक अच्छा क़दम साबित हो सकता है। एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय को न सिर्फ ऑनलाइन बल्कि समाज में भी समान अधिकार और सुरक्षा मिलनी चाहिए इसके लिए तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक सभी स्तरों पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।


स्रोतः

  1. Cseinstitute.o
  2. wgbh.org
  3. University of Hertfordshire Research Archive

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