भारत में ट्रेन एक बड़ी संख्या में लोगों को न सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में मदद करता है, बल्कि ट्रेन अमूमन हमारे बचपन की यादें समेटता है। ट्रेन की यात्रा याद दिलाता है किसी ऐसे व्यक्ति की जिससे हम मिलना चाहते हैं, या पहली नौकरी या कॉलेज में दाखिले की, जहां पहुंचने के लिए हम पहली बार ट्रेन यात्रा करते हैं। लेकिन ट्रेन एक ऐसी जगह भी है, जहां सुरक्षा की भारी कमी है। खासकर महिलाओं और हाशिये के समुदाय के लिए ट्रेन यात्रा हमेशा सुरक्षित नहीं होती। लेकिन इसमें सच्चाई ये भी है कि हमारे देश में एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रति संवेदनशीलता इतनी कम है कि ट्रेन में अपनी पहचान के साथ यात्रा करना इनके लिए आसान नहीं। भारत में ट्रेन यात्रा के दौरान महिलाओं और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अनुभव एक समान नहीं होते। यह उनके व्यक्तिगत पहचान, सामाजिक परिवेश, और यात्रा की स्थिति पर निर्भर करता है।
क्या बताते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2021 में महिलाओं के खिलाफ़ ट्रेन यात्रा के दौरान 1,000 से अधिक अपराध दर्ज किए गए। साल 2020 में 236 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ़ यौन शोषण, बलात्कार और अन्य अपराधों की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। भारत में प्रतिदिन लगभग 23 मिलियन लोग ट्रेन से यात्रा करते हैं, जिनमें से लगभग 4.6 मिलियन महिलाएं होती हैं। राजधानी दिल्ली में 50 फीसद से अधिक महिलाओं ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट, विशेषकर ट्रेन में, यौन उत्पीड़न का सामना किया है। क्वीयर समुदाय और महिलाओं दोनों को ट्रेन यात्रा के दौरान यौन हिंसा, शोषण, अपमानजनक टिप्पणियां और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, ट्रेनों में दरवाजे और खिड़कियों का ठीक से बंद न होना, शौचालयों की साफ-सफाई की कमी, जैसी समस्याएं भी आम है, जिससे महिलाएं और क्वीयर समुदाय का प्रभवित होने की संभावना ज्यादा है। भारतीय रेल में सुरक्षा का अभाव भी एक बड़ा मुद्दा है।
बातचीत के दौरान जब मुझे असहज महसूस होने लगा, तो मैंने बात करना बंद कर दिया। कुछ समय बाद उस व्यक्ति ने बिना बताए मेरी तस्वीरें खींचनी शुरू कर दी। जब मैंने इसका विरोध किया, तो अन्य यात्रियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
कितना और क्यों मुश्किल है ट्रेन यात्रा
एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकारों के प्रति जागरूकता की भारी कमी है। खासकर, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ट्रेन टिकट बुक करते समय जेंडर पहचान करने वाली दस्तावेजों की कमी के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, क्वीयर समुदाय के लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर अपने रिश्तों को व्यक्त करने में भी असुविधा होती है। इससे ट्रेन यात्रा के दौरान उनके साथ असंवेदनशील, भेदभावपूर्ण और हिंसक व्यवहार होता है, जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 50 फीसद क्वीयर व्यक्तियों को सार्वजनिक स्थानों पर यात्रा करते समय भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। 2019 में, ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में बताया गया कि एलजीबीटीक्यू+ लोगों के प्रति पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियों में संवेदनशीलता की भारी कमी है, जो हिंसा के मामलों को गंभीरता से न लेने का एक मुख्य कारण है। बनारस की रहने वाली आँचल, जो जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा कर रही हैं, अपने ट्रेन यात्रा के अनुभव को फेमिनिज़म इन इंडिया से साझा करती हैं।
अगस्त के महीने में उन्होंने ट्रेन से अकेले यात्रा की। तत्काल टिकट ना मिलने के कारण उन्हें जनरल बोगी में बैठकर दिल्ली से बनारस जाना पड़ा। वह बताती हैं, “मेरे सामने बैठा एक व्यक्ति, जो उम्र में काफी बड़ा था, बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रहा था। बातचीत के दौरान जब मुझे असहज महसूस होने लगा, तो मैंने बात करना बंद कर दिया। कुछ समय बाद उस व्यक्ति ने बिना बताए मेरी तस्वीरें खींचनी शुरू कर दी। जब मैंने इसका विरोध किया, तो अन्य यात्रियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस घटना के बाद मैंने तुरंत इस घटना की जानकारी अपने एक मित्र को दी और उनसे कॉल पर जुड़ी रही। जब मैं बनारस स्टेशन पर उतरीं, तो वह व्यक्ति मेरा पीछा करने लगा। मैंने भीड़ में घुसकर खुद को सुरक्षित किया और घर चली गई। इस घटना के बाद मैं अकेले यात्रा करने से डरने लगी हूं और अब हमेशा किसी के साथ ही यात्रा करती हूं।”
कभी-कभी लोग मुझसे बातचीत करने में भी हिचकते हैं। कई बार ट्रेन में हुई हिंसा की मैंने शिकायत की। लेकिन अधिकारियों ने कभी मेरी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। इस कारण मैंने ट्रेन यात्रा को सीमित करने का फैसला किया है।
स्वच्छता का मुद्दा है महत्वपूर्ण
वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा रिया बताती हैं, “पीरियड्स के दौरान मुझे ट्रेन से यात्रा करनी पड़ी थी। पीसीओडी की समस्या के कारण मुझे इन दिनों विशेष देखभाल की जरूरत होती है। लेकिन, मजबूरी में मैंने ट्रेन का शौचालय उपयोग किया, जो बहुत गंदा था। इससे मुझे संक्रमण हो गया। ट्रेन यात्रा के दौरान शारीरिक शोषण और हिंसा के अलावा, स्वच्छता और स्वास्थ्य भी एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।” महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लिए ट्रेन यात्रा न केवल शारीरिक असुरक्षा, यौन हिंसा और भेदभाव का मुद्दा है, बल्कि आर्थिक असमानता भी इसमें शामिल है। एयर कन्डिशन (एसी) या रिजर्वेशन डिब्बों में यात्रा करना सुरक्षित माना जाता है, लेकिन यह सभी के लिए आर्थिक रूप से संभव नहीं होता। जनरल डिब्बों में यात्रा करने वाली महिलाओं और क्वीयर यात्रियों के लिए सुरक्षा एक बड़ी चिंता का विषय बन जाती है।
लैंगिकता के कारण यौन हिंसा का खतरा
एक प्रतिष्ठित संस्था में कोऑर्डिनेटर का काम कर रही सफीना, एक ट्रांसजेंडर महिला हैं। ट्रेन यात्रा के दौरान अपने भेदभावपूर्ण अनुभवों को साझा करते हुए वह बताती हैं, “मेरी लैंगिक पहचान के कारण सहयात्री मुझे देखकर असहज महसूस करते हैं, जिससे वह मैं भी असहज हो जाती हूं। कई बार लोग मेरी शारीरिक बनावट का मज़ाक उड़ाते हैं और कुछ पुरुष ने मुझसे अनैतिक संबंध बनाने का प्रयास भी किया। कभी-कभी लोग मुझसे बातचीत करने में भी हिचकते हैं। कई बार ट्रेन में हुई हिंसा की मैंने शिकायत की। लेकिन अधिकारियों ने कभी मेरी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। इस कारण मैंने ट्रेन यात्रा को सीमित करने का फैसला किया है।”
मेरी लैंगिक पहचान के कारण सहयात्री मुझे देखकर असहज महसूस करते हैं, जिससे वह मैं भी असहज हो जाती हूं। कई बार लोग मेरी शारीरिक बनावट का मज़ाक उड़ाते हैं और कुछ पुरुष ने मुझसे अनैतिक संबंध बनाने का प्रयास भी किया।
ट्रेन यात्रा में सुरक्षा के अभाव की प्रमुख चिंताएं
रेलवे द्वारा शुरू किया गया 24×7 सुरक्षा संबंधी मामलों के लिए हेल्पलाइन नंबर 182 एक सराहनीय पहल है। इस नंबर पर किसी भी लैंडलाइन या मोबाइल नंबर से कॉल किया जा सकता है। लेकिन इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। यात्री रेलवे सुरक्षा बल (RPF) टोल-फ्री नंबर 139 पर भी 24×7 सहायता लें। ट्रेनों में सीसीटीवी कैमरे भी मौजूद होते हैं, लेकिन अक्सर वे काम नहीं करते। इन्हें दुरुस्त करने की जरूरत है। इसके अलावा, साफ-सुथरी सीटें और शौचालय की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिए। रेलवे स्टेशनों पर स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं की भी आवश्यकता है।
महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लिए ट्रेन यात्रा के दौरान सुरक्षा का प्रश्न न केवल शारीरिक सुरक्षा तक सीमित है, बल्कि इसमें सामाजिक भेदभाव, यौन उत्पीड़न और स्वच्छता से जुड़ी समस्याएं भी शामिल हैं। इसके समाधान के लिए जरूरी है कि रेलवे प्रशासन के साथ साथ दूसरे यात्री खुद महिलाओं और क्वीयर यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के प्रति गंभीर हो। साथ ही, सरकार लोगों में जागरूकता बढ़ाकर उन्हें ट्रेन में सुरक्षित यात्रा के उपायों के बारे में जानकारी दें। सरकार और रेलवे अधिकारियों को मिलकर इस दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे, ताकि ट्रेन यात्रा हर किसी के लिए सुरक्षित और सहज बन सके।