इंटरसेक्शनलजेंडर क्यों पब्लिक स्पेस में महिलाओं की मौजूदगी के लिए ज़रूरी है मुफ्त बस यात्रा से जुड़ी योजनाएं

क्यों पब्लिक स्पेस में महिलाओं की मौजूदगी के लिए ज़रूरी है मुफ्त बस यात्रा से जुड़ी योजनाएं

जब भी कभी कोई सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कोई भी इस तरह का फैसला लेती है तो नारीवाद के विरोधी इन फैसलों के खिलाफ खड़े नज़र आते हैं। उनके अनुसार महिलाओं के लिए ऐसी योजनाएं ज़रूरी नहीं हैं जबकि असल में इसी तरह के फैसले महिला सशक्तिकरण में बेहद अहम अहम भूमिका निभा सकते हैं।

कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा राज्य के पांच प्रमुख चुनावी वादों में से एक वादा था कि वे सरकारी बसों में महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए मुफ्त बस यात्रा को लागू करने करेंगे। कर्नाटक सरकार ने हाल ही में ‘शक्ति’ योजना शुरू की है, जो महिलाओं और ट्रांस व्यक्तियों को राज्य सरकार की बसों में मुफ्त यात्रा करने की अनुमति देती है। इस योजना के शुरू होने के बाद से ही इसे लेकर एक मिली-जुली प्रतिक्रिया आई। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इसको लेकर खुशी जताई है तो वहीं कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की।

इस योजना के लागू होते ही एक तस्वीर वायरल हो गई। इसमें एक महिला बस में चढ़ते समय बस की सीढ़ियों को प्रणाम करती नज़र आई थी। इस तस्वीर ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।  इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक  बाद में महिला की पहचान 70 वर्षीय निंगव्वा शिगाडी के रूप में की गई। निंगव्वा शिगाडी से जब ऐसा करने के पीछे का कारण पुछा तो उन्होंने उत्साहित होते हुए बताया, “इससे पहले, मुझे कहीं जाने के लिए बच्चों से अनुमति और पैसे लेने पड़ते थे। लेकिन अब, मुफ्त बस यात्रा के साथ, मुझे अब उन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इससे मुझे सचमुच खुशी हुई है।

लेकिन इस फैसले के विरोध में वही टिप्पणियां सामने आईं जो अक्सर जेंडर के आधार पर मिलनेवाली सुविधाओं और योजनाओं को लेकर अक्सर हमारे सामने आती हैं। एक ट्विटर यूज़र लावण्या अपने टिकट की तस्वीरें शेयर कीं। उनके इस ट्वीट को लेकर लोगों ने उन पर ‘मुफ़्तखोरी’ का आरोप लगाना शुरू कर दिया। इस एक ट्वीट के लिए उन्हें अपने जेंडर के आधार पर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा।

जब भी कभी कोई सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कोई भी इस तरह का फैसला लेती है तो नारीवाद के विरोधी इन फैसलों के खिलाफ खड़े नज़र आते हैं। उनके अनुसार महिलाओं के लिए ऐसी योजनाएं ज़रूरी नहीं हैं जबकि असल में इसी तरह के फैसले महिला सशक्तिकरण में बेहद अहम अहम भूमिका निभा सकते हैं। इससे पहले भी दिल्ली सरकार ने DTC की बसों में महिलाओं के लिए दिल्ली में फ्री बस सर्विस योजना  शुरू की थी। यह योजना महिलाओं के बीच बहुत अधिक मशहूर हुई और महिलाएं  इस योजना का फायदा भी उठा रही हैं। परिवहन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, साल 2019 में इस योजना के लॉन्च होने के बाद से, महिला पैसेंजर्स की संख्या में 10 फीसद की बढ़त देखी गई थी। बस के अलावा दिल्ली में मेट्रो का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। दिल्ली मेट्रो में रोज़ाना 33% महिला यात्री यात्रा करती हैं। दिल्ली की बसों में भी आंकड़ा लगभग इसी के आस-पास ही है।

मुफ्त राइड और पब्लिस स्पेस में महिलाओं की मौजूदगी

ऐतिहासिक रूप से, औरतें पब्लिक स्पेस में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने से अधिक वंचित रही है। महिलाओं के सपनों और आकांक्षाओं को बोतलबंद कर दिया गया है। महिलाओं को अभी भी पुरुषों के साथ समान अवसर उपलब्ध नहीं हैं। सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं की मौजूदगी पुरुषों की तुलना में कम रहती है। लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर आनंद और सांत्वना मिलती है। सामाजिक मेलजोल को प्रोत्साहित करने वाले सार्वजनिक पार्कों से लेकर शारीरिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनानेवाले मनोरंजन मैदानों से लेकर सड़कों, सैरगाहों और समुद्रतटों तक, ये स्थान हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जब भी कभी कोई सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कोई भी इस तरह का फैसला लेती है तो नारीवाद के विरोधी इन फैसलों के खिलाफ खड़े नज़र आते हैं। उनके अनुसार महिलाओं के लिए ऐसी योजनाएं ज़रूरी नहीं हैं जबकि असल में इसी तरह के फैसले महिला सशक्तिकरण में बेहद अहम अहम भूमिका निभा सकते हैं।

हालांकि, सार्वजनिक स्थानों पर करीब से नज़र डालने पर एक चिंताजनक पैटर्न का पता चलता है: महिलाओं और लड़कियों की संख्या इन जगहों पर पुरुषों की तुलना में कम पाई जाती है। जबकि सार्वजनिक स्थानों को आमतौर पर जेंडर न्यूट्रल जगह के रूप में देखा जाना चाहिए जो सभी के लिए खुला और स्वतंत्र हो। ऐसे में ये योजनाएं महिलाओं की पब्लिक स्पेस में मौजूदगी को बढ़ावा देती हैं। इसे सिर्फ हमें उन्हें उनके जेंडर के आधार पर मिलनेवाली सुविधा तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए

महिलाओं को सशक्त बनाने, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर अधिक अधिकार देने के लिए एक बेहद ज़रूरी कदम है। महिलाओं के कार्यबल में शामिल होने में एक बड़ी बाधा यह है कि महिलाओं की पैसों तक पहुंच इतनी सीमित है कि उन्हें अक्सर सार्वजनिक परिवहन अत्यधिक महंगा लगता है। यह उनकी गतिशीलता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करता है और इसलिए सार्वजनिक स्थानों पर उनकी संख्या सीमित करता है। हमारी सामाजिक संरचना इतनी असंतुलित है कि बात अगर दिल्ली जैसे महानगर की करें तो यहां भी शहर के कार्यबल में केवल 14.5%   महिलाएं शामिल हैं।

शहरी और ग्रामीण दोनों परिवेशों में सार्वजनिक स्थानों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यौन उत्पीड़न और यौन हिंसा के अन्य रूप, दुनियाभर के हर देश में महिलाओं और लड़कियों के लिए रोजमर्रा की घटना हैं। । यह वास्तविकता महिलाओं और लड़कियों की आवाजाही की स्वतंत्रता को कम करती है। इससे स्कूल, काम और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। यह आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुंच और सांस्कृतिक और मनोरंजक गतिविधियों के उनके आनंद को सीमित करता है, और उनके स्वास्थ्य और कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

मुफ्त बस सर्विस के ज़रिये सार्वजनिक परिवहन तक महिलाओं की पहुंच में सुधार भी उन्हें सुरक्षित बनाएगा। दुनियाभर में बड़े पैमाने पर महिलाएं घरों से बाहर निकलने से इसलिए बचती हैं क्योंकि वे घरों से बाहर सुरक्षित नहीं हैं। इस तरह की योजना महिलाओं को सुरक्षा की भावना देती है, क्योंकि मुफ्त योजना  के कारण बड़ी संख्या में महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट का विकल्प चुनेंगी। कामकाजी महिलाएं  प्राइवेट ट्रांसपोर्ट की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जाना अधिक पसंद करती हैं।

शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पानी जैसी सेवाएं मुफ़्त होने के कारण हमारे नागरिक सामूहिक रूप से हर साल जो हजारों करोड़ रुपये बचाते हैं, वह मूल रूप वह राशि है जो अर्थव्यवस्था में वापस प्रवाहित होता है। इसने शहर के लिए अधिक आर्थिक मूल्य पैदा किया है। महिलाओं द्वारा यात्रा पर की गई बचत से उन्हें घर चलाने में मदद मिलेगी। खासकर आर्थिक मंदी के इस समय में उन्हें अन्य खर्चों के लिए जगह मिलेगी। बढ़ी हुई क्रय शक्ति पूरे समाज को समृद्धि की राह पर ले जाने की क्षमता रखती है।

महिलाओं को सशक्त बनाने, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर अधिक अधिकार देने के लिए एक बेहद ज़रूरी कदम है। महिलाओं के कार्यबल में शामिल होने में एक बड़ी बाधा यह है कि महिलाओं की पैसों तक पहुंच इतनी सीमित है कि उन्हें अक्सर सार्वजनिक परिवहन अत्यधिक महंगा लगता है। यह उनकी गतिशीलता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करता है

पीएलएफएस डेटा से पता चलता है कि अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश गरीब महिलाएं या तो अपने घर से या उन क्षेत्रों में काम करना चुनती हैं जो उनके घरों के करीब हैं। बहुत कम महिलाएं दूर-दराज के स्थान पर काम करना पसंद करती हैं क्योंकि उन्हें अपने भुगतान वाले काम और अवैतनिक घरेलू जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों में बड़ी गिरावट को देखते हुए, राज्य सरकारों द्वारा महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन को मुफ्त करने का प्रस्तावित निर्णय निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य नीतिगत निर्णय है।

सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं और लड़कियों के लिए अधिक समावेशी बनाने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण कदम सार्वजनिक स्थान व्यवहार में महिलाओं को मुख्यधारा में लाना, सुरक्षित, स्वच्छ, अधिक समावेशी और अधिक टिकाऊ स्थान बनाना है। महिलाओं के लिए मुफ्त योजना बनाना महिला सशक्तिकरण के लिए एक बहतरीन क़दम है। केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए इस तरह के क़दम उठाने आवश्यक हैं। आलोचकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि महिलाओं ने बाहरी परिवेश में आने के लिए एक लम्बी लड़ाई लड़ी है। इस तरह की योजना  उनका संवैधानिक अधिकार है और साथ ही उनका मानवाधिकार भी।


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