दलित छात्र की घंडे से पानी पीने पर पिटाई, दलित युवक की चप्पल पहनकर सड़क पर चलने से मनाही, दलित दूल्हे की घोड़े पर बैठने पर किया मना, दलित महिला का बलात्कार, दलित व्यक्ति के मूंछ रखने पर ठाकुरों ने की उसकी पिटाई, जातिगत उत्पीड़न की ख़बरें लगातार हमारे सामने आती है। साथ ही भारत के तथाकथित ब्राह्मणवादी समाज की एक वास्तविकता यह भी है कि यहां जातिगत हिंसा के मामले बड़ी संख्या में सामने भी नहीं आते हैं। राजनीति, समाजिक ताना-बाना अधिकतर मामलों पर हावी हो जाता है। इसी का परिणाम है कि जातीय गर्व और सत्ता के मद में डूबा एक व्यक्ति सड़क पर बैठे एक आदिवासी व्यक्ति के मुंह पर पेशाब करता है। भारतीय लोकतांत्रिक देश में ब्राह्मणवादी व्यवस्था के चलते लोगों को उनकी जातिगत पहचान की वजह से हिंसा, भेदभाव, अपमान और मौत तक का सामना करना पड़ता है। आज़ादी के 75 वर्ष से अधिक समय होने के बाद भी दलितों का संघर्ष जारी है। हर साल दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाओं का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है।
हाल ही में भारत सरकार के द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2022 में अनुसूचित जातियों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न, हिंसा के सबसे अधिक मामले 13 राज्यों से दर्ज किए गए। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश में ऐसे अपराधों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत भारत सरकार के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के ख़िलाफ़ अत्याचारों के अधिक मामले 13 राज्यों में हुए। इन राज्यों में साल 2022 में सभी मामलों का 98.91 फीसदी दर्ज किया गया। एससी ऐक्ट के लिए तहत 2022 में दर्ज 51,656 मामलों में से उत्तर प्रदेश में 12.287 मामलों में 23.78 फीसदी हिस्सा था। इसके बाद राजस्थान में 8,651 (16.75%), मध्य प्रदेश में 7,732 (14.97%) घटनाएं दर्ज हुई।
दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा के ज्यादा केस 13 राज्यों में
द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अन्य राज्यों में दलितों के ख़िलाफ़ होने वाले उत्पीड़न और हिंसा के मामलों की संख्या बिहार में 6,799 (13.16%), उड़ीसा में 3,576 (6,93%) और महाराष्ट्र में 2,706 (5.24%) मामलें सामने आए हैं। इन छह राज्यों में कुल मामलों के 81 फीसदी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडियन पैनल कोड के साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अनुसूचित जातियों के लोगों के ख़िलाफ़ अत्याचार के अपराधों से जुड़े कुल मामलों में से 97.7 फीसदी (51,656) 13 राज्यों में दर्ज किए गए। ठीक इसी तरह अनुसूचित जनजाति के ख़िलाफ़ अत्याचार के अधिकांश मामले 13 राज्यों में हुए थे।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एसटी ऐक्ट के तहत 9,735 मामलों में से मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 2,979 (30.61%) मामले दर्ज किए गए। राजस्थान में 2,498 (25.66%) मामलों की संख्या दूसरे स्थान पर है और इसके बाद ओडिशा में 773 (7.94%) मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में 691 और आंध प्रदेश में 499 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट में आगे ऐक्ट के तहत जांच और चार्ज शीट के आंकड़ों की जानकारी भी सामने रखी गई है। एससी ऐक्ट से जुड़े मामलों में 60.38 फीसदी मामलों में आरोप-पत्र (चार्जशीट) दाखिए किए गए जबकि 14.78 फीसदी मामलों में झूठे दावों या सबूतों की कमी जैसे कारणों से अंतिम रिपोर्ट दी गई। साल 2022 के अंत तक इस तरह के मामलों में 17,166 मामलों की जांच लंबित थी।
एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज मामलों में सजा की दर में कमी
वहीं एसटी ऐक्ट से जुड़े मामलों में 63.32 फीसदी में आरोप पत्र दाखिल किए गए जबकि 14.71 फीसदी मामलों में अंतिम रिपोर्ट दी गई। एसटी ऐक्ट के तहत अत्याचार से जुड़े 2,702 मामले समीक्षा अवधि (पीरियड अंडर रिव्यू) में अभी भी जांच के दायरे में थे। रिपोर्ट में उजागर किए गए सबसे चिंताजनक बात यह समाने आई है कि ऐक्ट के तहत दर्ज मामलों में सजा की दर में कमी हुई है। साल 2022 में सजा दर 32.4 दर्ज की गई है जो 2020 में 39.2 फीसदी दर्ज की गई थी। साथ ही रिपोर्ट में कानून के तहत मामलों को संभालने के लिए स्थापित विशेष अदालतों की संख्या की कमी की बात को भी सामने रखा है। 14 राज्यों के 498 जिलों में केवल 194 मामलों में सुनवाई जल्दी करने के लिए विशेष अदालतें स्थापित की गई। इतना ही नहीं रिपोर्ट में एससी-एसटी ऐक्ट के तहत अत्याचार से ग्रस्त जिलों भी पहचान की गई है जिनमें से केवल 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ऐसे जिलों की घोषणा की है। बाकी ने कहा है कि ऐसे मामलों से जुड़ा कोई विशिष्ट जिला नहीं है।
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले दर्ज
दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के सबसे अधिक मामले वालो राज्यों में उत्तर प्रदेश एक है लेकिन उसने कहा है कि राज्य में अत्याचार की आशंका वाले किसी भी क्षेत्र की पहचान नहीं की गई है। रिपोर्ट में जाति आधारित हिंसा की घटनाओं को खत्म करने और हाशिये के समुदायों को मजबूत सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिलों में तय हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर दिया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छ्त्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और पुडुचेरी में एससी-एसटी प्रोटेक्शन सेल स्थापित किए गए हैं। इससे अलग पांच राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के ख़िलाफ़ अपराधों की शिकायतों के पंजीकरण के लिए विशेष पुलिस स्टेशन स्थापित किए हैं।
भारत में दलितों की सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 मौजूद है। इसके तहत एससी और एसटी समुदाय के लोगों ख़िलाफ़ किए गए अपराधों का निपटारा किया जाता है। लेकिन तमाम अध्ययनों और रिपोर्ट में इस बात को भी कहा गया है कि बड़ी संख्या में इस तरह के मामले सामने भी नहीं आते हैं। दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। स्कॉल.इन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 से 2021 में इस तरह के 1.8 लाख मामले दर्ज किए गए थे। दलित महिलाओं को उनकी जातिगत पहचान के वजह से अधिक लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। दलित महिलाएं दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़ित समुदयों में से एक हैं। भारत सरकार के डेटा के अनुसार दलित महिलाओं को अधिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। भारत के समाजिक ढांचे में ब्राह्मणवादी व्यवस्था के दलितों को हाशिये पर रखा जाता है। तथाकथित ऊंची जातियों के लोग उनके जीवन को अपनी इच्छा के मुताबिक़ नियंत्रित करके उनके अधिकारों का हनन करते हैं। गाँव हो या शहर हर जगह तथाकथित ऊंजी जातियों के लोगों ने इस तरह के व्यवहार को बनाया हुआ है। वे दलित लोगों के श्रम को इस्तेमाल करने का अपना अधिकार मानते है साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में मिले उनके अधिकारों का शोषण करते हैं।