स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य परिवार में यौन स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात करना एक चुनौती के समान क्यों है?

परिवार में यौन स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात करना एक चुनौती के समान क्यों है?

माता-पिता द्वारा यौन स्वास्थ्य पर बात न करने के कई कारण होते हैं। ये कारण अक्सर सांस्कृतिक, सामाजिक, और व्यक्तिगत धारणाओं से जुड़े होते हैं। कई माता-पिता का यह मानना होता है कि अगर बच्चों को कम उम्र से ही यौन स्वास्थ्य के बार में बता दिया जाए तो वे, यौन गतिविधियों में शामिल हो सकते है।

“अरे चुप करो, कितनी बेशर्म लड़की हो तुम”, जब मैंने पहली बार कक्षा 10 में अपनी टीचर के सामने पीरीयड शब्द का इस्तेमाल किया, तो टीचर ने मुझे इस पर काफी गुस्सा किया था। उस दिन मैं समझ नहीं पाई थी कि आखिर टीचर ने ऐसा क्यों बोला? इसके बाद कही न कही मुझे यह लगने लग गया था कि पीरीयड, यौन स्वास्थ्य या फिर सेक्स जैसे शब्दों का प्रयोग करना उचित नहीं होता है। इस पर हम सबसे सामने बात नहीं कर सकते है। लेकिन यौन स्वास्थ्य के बारे में चर्चा करना कितना जरूरी है, बढ़ती उम्र के साथ समझ आने लगा। ये अनुभव मुझे निराश करने वाला था क्योंकि इस तरह की सोच ने हमारे समाज ने मजबूती से पैठ जमाई हुई है। हम 21वीं सदी में रह रहे हैं, तमाम तकनीक, विज्ञान से अपनी जीवन को आसान बना रहे है लेकिन जब बात यौन स्वास्थ्य की आती है तो रूढ़िवाद हम पर हावी हो जाता है। 

शर्म को महत्व देकर चुपके से यौन स्वास्थ संबंध विषयों कभी इक्का-दुक्का हिम्मत बनाकर बात करते हैं। भारतीय परिवारों में तो बच्चों के लिए यौन स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी देना पूरी तरह से वर्जित है। बच्चों के सामने इस तरह की बातें करना अश्लीलता से जोड़ दिया जाता है। इसमें भी बात जब महिलाओं के यौन स्वास्थ्य की आती है तो उसके बारे में तो बिल्कुल भी ज़िक्र नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि पीरीयड्स होने वाले लोगों की समस्याओं या इस विषय़ से जुड़े जानकारी, अनुभवों को आज भी परिवारों में बात नहीं की जा सकती है। इससे अलग धार्मिक रूढ़िवाद भी पीरियड्स को लेकर हमारे समाज में स्थापित है। 

उत्तराखंड में स्थित काशीपुर शहर में रहने वाली 35 वर्षीय लता का कहना है, “मेरे पति सेक्स के दौरान कंडोम का प्रयोग नहीं करना चाहते, जिस कारण मुझे पिल्स की मदद से दो बार अपनी प्रेंगनेसी रोकनी पड़ी। इतना ही नहीं मुझे अपने पति को यह सब बताने में डर लगता है, मैंने उन्हे अभी तक कुछ नहीं बताया है।

यौन स्वास्थ्य और पीरीअड जैसे मुद्दे काफी ज़रूरी है। इन विषयों को लेकर एक लड़की और महिला का जागरूकर होना तो बहुत ज़रूरी है। वहीं हमारे समाज में जब भी कोई लड़की बड़ी हो रही होती है तो उसे यह सिखाया जाता है कि उसे संस्कारी बनना है, उसी के ऊपर घर वालों की इज्जत है, उसे कोई ऐसे बात नहीं बोलनी है जिससे घर वालों कि बदनामी हो। अपनी समस्याओं को केवल अपनी माँ या फिर घर की किसी महिला से ही साझा करना है। हम सभी ने अधिकतर अपने घरों में यह देखा होगा कि जब भी बहन या माँ को पीरीयड्स हो रहे होते हैं, तो उन्हें चुपचाप पैड्स लेकर जाने पड़ते है और अगर गलती से घर के किसी बच्चे ने कुछ पूछ लिया तो उनसे कहा जाता है कि “गर्ल्स प्रॉब्लम” है। कुछ नहीं तुम फालतू की बातों पर कम ध्यान दिया करो। पीरियड्स के लिए हैप्पी बर्ड-डे, लो हू, डाउन हूं जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है। अभी भी अधिकतर घरों में ‘पीरीयड्स’ शब्द का इस्तेमाल खुले आम नहीं करा जाता है बातचीत तो बहुत दूर की बात है। 

यौन स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात क्यों नहीं कर सकते

यौन स्वास्थ्य हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण का अभिन्न यंग है, लेकिन फिर भी माता-पिता अपने बच्चों के साथ यौन स्वास्थ्य पर चर्चा नहीं करते है। कई परिवारों में यौन स्वास्थ्य पर चर्चा को वर्जित माना जाता है, जिससे ना केवल गलतफहमियां पैदा होती हैं बल्कि स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में रहने वाली दीपा देवी, घर में अकेली महिला होने के कारण अपनी समस्याओं को किसी के साथ साझा नहीं कर पाती। एक बार पीरीयड्स में कपड़ा इस्तेमाल करने कि वजह से उन्हें इंफेक्शन की दिक्कत हुई। इस पर जब उनसे पूछा गया कि आप कपड़े की जगह पैड्स का इस्तेमाल क्यों नहीं करती? तो उनका कहना था, “घर में सिर्फ पति ओर दो बेटे रहते हैं, मुझे उनसे पैड्स मंगवाने में शर्म आती है और में खुद अकेले दुकान नहीं जा सकती हूँ। इस वजह से कपड़े की इस्तेमाल करना ही पड़ता है।”

तस्वीर साभारः Medfeminiswiya

माता-पिता को बिना किसी असहजता के बच्चों के साथ बैठकर यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करने में सहज महसूस करना चाहिए। जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो उनके मन में यौन स्वास्थ्य से जुड़े काफी सारे सवाल आते हैं। ऐसे में माता-पिता की पहली जिम्मेदारी होती है कि वे अपने बच्चों को जागरूक करें लेकिन हमारी भारतीय समाज में माता-पिता अपने बच्चों से इस तरह की बातें करना से बचते है। बचपन में उनसे पूछे गए सवालों पर नज़रे छिपाते है। उत्तराखंड राज्य के काशीपुर शहर में रहने वाली एक 13 साल विनती (बदला हुआ नाम) को जब पहली बार पीरीयड्स हुए तो उसने अपने पिता के साथ उस बात को साझा नहीं किया। जब उससे पूछा गया कि आखिर उसने अपने पिता को इस बारे में क्यों नहीं बताया? तो उसका कहना था कि उसे उसकी मम्मी ने किसी को भी बताने को मना किया है। 

माता-पिता द्वारा यौन स्वास्थ्य पर बात न करने के कई कारण होते हैं। ये कारण अक्सर सांस्कृतिक, सामाजिक, और व्यक्तिगत धारणाओं से जुड़े होते हैं। कई माता-पिता का यह मानना होता है कि अगर बच्चों को कम उम्र से ही यौन स्वास्थ्य के बार में बता दिया जाए तो वे, यौन गतिविधियों में शामिल हो सकते है। कई माता-पिता पुराने विचारों से प्रभावित होते हैं और उन्हें लगता है कि यौन स्वास्थ्य पर बात करना बच्चों के “मासूमियत” को खत्म कर सकता है। उत्तराखंड के काशीपुर शहर में रहने वाली गौरी की 13 साल की बच्ची है। बच्चों के साथ यौन स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात कैसे हो इस विषय के सवाल पर जवाब देते हुए उनका कहना है, “अगर मैंने इस उम्र से ही अपनी बेटी के साथ यौन स्वास्थ्य के बारे में चर्चा करना शुरू कर दिया तो, वो बिगड़ जाएगी और ऐसा भी हो सकता है कि वो जिज्ञासा के कारण किसी यौन गतिविधि में शामिल हो जाए। उसे बड़ा होने दो फिर वो खुद ही सब कुछ जान जाएगी। बच्चों के साथ इस तरह की बात करना अश्लीलता है।” 

महिलाओं के यौन स्वास्थ्य को अनदेखा किया जाता है

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के लिए यौन स्वास्थ्य बहुत ही जटिल विषय है। सामाजिक बाध्यता, शर्म, आर्थिक निर्भरता की वजह से उनके यौन स्वास्थ्य के मुद्दों को हमेशा ताक पर रखा जाता है। उत्तराखंड में स्थित काशीपुर शहर में रहने वाली 35 वर्षीय लता का कहना है, “मेरे पति सेक्स के दौरान कंडोम का प्रयोग नहीं करना चाहते, जिस कारण मुझे पिल्स की मदद से दो बार अपनी प्रेंगनेसी रोकनी पड़ी। इतना ही नहीं मुझे अपने पति को यह सब बताने में डर लगता है, मैंने उन्हे अभी तक कुछ नहीं बताया है। वहीं डॉक्टर का कहना है कि अगर बार-बार ऐसी स्थिति आई तो इसका मेरे पूरे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।”

यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड (यूएनएफ़पीए) की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 68 देशों में 44 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों को अपने यौन स्वास्थ्य, सेक्स और प्रेग्नन्सी से संबंधित निर्णय लेने का हक नहीं है। दुनिया भर में लगभग आधी प्रेग्नन्सी अनपेक्षित होती हैं। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा कहती है, “बहुत सी महिलाओं को अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं है, जिसमें बच्चे पैदा करने का अधिकार भी शामिल है। वे यह तय नहीं कर पातीं कि वे कब और कितने बच्चे चाहती हैं।” 

यौन स्वास्थ्य पर खुलकर बात ना करने के कारण

तस्वीर साभारः civilrights.org

यौन स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा ना होना एक बहुत बड़ा कारण है। गाँव हो या शहर इस विषय पर शिक्षा का स्तर काफी कम होता है। लोग यौन स्वास्थ्य के महत्व को समझ पाने में असमर्थ होते हैं। रूढ़िवाद के कारण यौन स्वास्थ्य से जुड़ी बातों को अश्लीलता समझते हैं। वहीं ख़ासतौर पर महिलाओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए यौन स्वास्थ्य के विषय़ पर जागरूक होना बहुत ज़रूरी है। यौन स्वास्थ्य से संबंधित विषयों के बारे में कम जानकारी की वजह है कि महाराष्ट्र के ठाणे में एक 30 वर्षीय भाई अपनी 12 साल की बहन के कपड़ों पर जब खून के दाग देखता है तो उसके प्रेम संबंध होने के संदेह में उसकी हत्या कर देता है। उसकी बहन को पहली बार पीरियड्स हुए थे। लेकिन जानकारी न होने के कारण शर्म के मुद्दे को हावी करके नाबालिग लड़की की हत्या उसका भाई ही कर देता है। 

अज्ञानता के साथ-साथ समाज में महिलाओं के यौन स्वास्थ्य पर बात करना अक्सर शर्मिंदगी और संकोच का कारण बनता है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण भारत में एक 12 वर्षीय स्कूल की छात्रा ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसकी शिक्षिका ने पीरीअड के दौरान लगे खून के धब्बों को लेकर सबके सामने उसका अपमान किया और कक्षा से बाहर खड़ा कर दिया। महिलाओं को बचपन से ही यह सीख दी जाती है कि यौन स्वास्थ्य और शरीर से जुड़ी बातों पर चर्चा करना उचित नहीं है। इसका परिणाम यह होता है कि जब लड़की बड़ी होती है तो वह अपनी परेशानियां किसी के साथ भी साझा नहीं कर पाती। 

उत्तराखंड के काशीपुर शहर में रहने वाली गौरी की 13 साल की बच्ची है। बच्चों के साथ यौन स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात कैसे हो इस विषय के सवाल पर जवाब देते हुए उनका कहना है, “अगर मैंने इस उम्र से ही अपनी बेटी के साथ यौन स्वास्थ्य के बारे में चर्चा करना शुरू कर दिया तो, वो बिगड़ जाएगी और ऐसा भी हो सकता है कि वो जिज्ञासा के कारण किसी यौन गतिविधि में शामिल हो जाए।

पारिवारिक संवाद की कमी

भारतीय परिवारों में अक्सर ऐसा माहौल होता है कि, बच्चों और माता-पिता के बीच खुल कर संवाद नहीं हो पाता, जिस कारण यौन स्वास्थ्य के बारे में बात करना और मुश्किल हो जाता है। माता-पिता खुद यौन स्वास्थ्य जैसे विषय पर बात करने से संकोच करते हैं, इसलिए बच्चे भी उनसे बात नहीं कर पाते। इसके परिणामस्वरूप बच्चों में यौन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी रहती है और वे अपने स्वास्थ्य के साथ लापरवाही कर बैठते हैं। यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करना एक महत्वपूर्ण और आवश्यक विषय है, खासकर महिलाओं के लिए। समाज में इसे एक टैबू मानने के बजाय, हमें इसे एक सामान्य चर्चा का विषय बना देना चाहिए। समाज में बदलाव तभी आएगा जब हम इसकी महतवत्ता को समझेंगे और अपने सोच को बदलेंगे। अब समय आ गया है, जब हम अपनी सोच को बदले और यौन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को  बढ़ाए। 


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