इतिहास प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले: भौतिक विज्ञानी जिन्होंने स्टेम में महिलाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया| #IndiaWomenInHistory

प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले: भौतिक विज्ञानी जिन्होंने स्टेम में महिलाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया| #IndiaWomenInHistory

रोहिणी गोडबोले कई वैज्ञानिक संगठनों की सदस्य थीं और वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विज्ञान के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज की। उनके योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले का नाम भारतीय वैज्ञानिकों की दुनिया में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज है। गोडबोले न केवल एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की भी एक सशक्त आवाज़ थीं। उनकी जीवनी, अनुसंधान में उपलब्धियां और सामाजिक काम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। भौतिकी के क्षेत्र में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई और उनका योगदान विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण में भी अहम है। हिग्स बोसोन और क्वांटम क्रोमोडायनामिक्स में अपने गहन इनसाइट्स के लिए जानी जाने वाली गोडबोले के काम ने भारत और वैश्विक स्तर पर उच्च-ऊर्जा भौतिकी के क्षेत्र को गहराई से आकार दिया है। एक भौतिक विज्ञानी के रूप में, उनका योगदान मानक मॉडल की हमारी समझ को आगे बढ़ाने और मौलिक कणों के गुणों और इंटरैक्शन पर गहन अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक था।  

रोहिणी गोडबोले का जन्म साल 1952 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। उनके परिवार ने शिक्षा को बहुत महत्त्व दिया और इसी कारण उनको भी शिक्षा की ओर प्रेरित किया। उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय के सर परशुरामभाऊ कॉलेज से भौतिकी, गणित और सांख्यिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे से विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने स्टोनी ब्रुक में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क से सैद्धांतिक कण भौतिकी में पीएचडी पूरी की और अपने शोध के जरिए भौतिकी के क्षेत्र में एक ठोस नींव रखी। प्रोफ़ेसर गोडबोले द वर्ल्ड अकादेमी ऑफ साइंसेस (TWAS) और भारत में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों की सक्रिय सदस्य थीं। TWAS की जेंडर एडवाइजरी कमेटी की अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने वैज्ञानिक क्षेत्र में मौजूद लैंगिक असमानताओं पर गहराई से ध्यान दिया। इस विषय पर उनकी समझ ने उन्हें लैंगिक असमानता के मूल कारणों का व्यावहारिक और बारीकी से विश्लेषण करने के लिए प्रेरित किया।

रोहिणी गोडबोले ने विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए भी अहम कार्य किया है। वे अक्सर भारतीय विज्ञान में लैंगिक असमानता के मुद्दों पर खुलकर बोलती थीं। उन्होंने कई मंचों पर इस बात पर ज़ोर दिया है कि विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।

जीवन और करिअर

तस्वीर साभार: Indian Express

गोडबोले साल 1979 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई में विजिटिंग फेलो के रूप में शामिल हुईं। साल 1982 से 1995 तक वह बॉम्बे विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में लेक्चरर और रीडर रहीं। 1995 में वह भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर के उच्च ऊर्जा भौतिकी केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में शामिल हुईं और जून 1998 से प्रोफेसर रहीं। अगले दो दशकों में, उन्होंने अपने क्षेत्र में अपना नाम बनाया। एक महत्वपूर्ण घटना (ड्रीस-गॉडबोले प्रभाव) की उनकी भविष्यवाणी ने नई पीढ़ी के कण कोलाइडर के डिजाइन में सहायता की। 31 जुलाई 2021 तक वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद, वह होनॉररी प्रोफेसर बन गईं।

शोध और उपलब्धियां

प्रोफेसर गोडबोले के अनुसंधान का क्षेत्र मूल रूप से हाई एनर्जी फिजिक्स रहा है। उन्होंने कण भौतिकी (Particle Physics) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध किए हैं और वे दुनिया भर में जाने-माने वैज्ञानिकों में से एक हैं। उनकी रुचि विशेष रूप से हिग्स बोसोन और सुपर सिंमेट्री जैसे विषयों में रही है। उनका योगदान न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी माना गया है। वे अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं का हिस्सा रही हैं और उनके शोध पत्र अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।

महिलाओं के प्रति योगदान

तस्वीर साभार: Frontline

रोहिणी गोडबोले ने विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए भी अहम कार्य किया है। वे अक्सर भारतीय विज्ञान में लैंगिक असमानता के मुद्दों पर खुलकर बोलती थीं। उन्होंने कई मंचों पर इस बात पर ज़ोर दिया है कि विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। इसके लिए वे छात्राओं और नए  महिला वैज्ञानिकों को प्रेरित करती रहीं। प्रोफेसर गोडबोले विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं की समस्याओं पर कार्यशालाएं आयोजित करती रहीं जिससे नई पीढ़ी के विद्यार्थी प्रेरित हो सकें। उन्होंने कई रिपोर्टों और सर्वेक्षणों का सह-लेखन किया, जिनसे पता चला कि देश में विज्ञान प्रयोगशालाओं और संस्थानों में जेंडर किस तरह से काम करता है। इनमें से सबसे महत्वाकांक्षी रिपोर्ट वह थी, जिसे उन्होंने अनीता कुरुप, मैत्रेयी आर. और कंथाराजू बी के साथ मिलकर लिखा था। यह विज्ञान में पीएचडी करने वाली 2,000 से अधिक महिलाओं के सर्वेक्षण से तैयार किया गया था। रिपोर्ट ने महिलाओं के विज्ञान के क्षेत्र को छोड़ने के कई कारणों पर प्रकाश डाला। वहीं, इस रिपोर्ट ने कुछ गलत धारणाओं को उजागर किया जो अधिकांश लोगों के मन में होता है।

उन्होंने ‘लिलावती’ की बेटियां’ नामक किताब का संपादन भी किया है। यह किताब देश की महिला वैज्ञानिकों की यात्रा को दिखाती है, जिसमें 100 से अधिक महिला वैज्ञानिकों की प्रेरणादायक कहानियां हैं।

साहित्यिक योगदान

रोहिणी गोडबोले ने अपने जीवन का एक हिस्सा साहित्यिक योगदान में भी दिया है। उनकी पुस्तकें और लेखन का काम विज्ञान को सरलता से सामने लाने और आम जनता  के बीच विज्ञान की लोकप्रियता बढ़ाने में सहायक रहे हैं। उन्होंने ‘लिलावती’ की बेटियां’ नामक किताब का संपादन भी किया है। यह किताब देश की महिला वैज्ञानिकों की यात्रा को दिखाती है, जिसमें 100 से अधिक महिला वैज्ञानिकों की प्रेरणादायक कहानियां हैं।

तस्वीर साभार: Frontline

गोडबोले महिला सशक्तिकरण के प्रति हमेशा समर्पित रही हैं। उनका मानना था कि विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की सफलता से समाज में उनकी स्थिति सशक्त हो सकती है। वे मानती थीं कि यदि महिलाओं को सही अवसर और समर्थन दिया जाए, तो वे किसी भी क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन कर सकती हैं। उनका कहना था कि विज्ञान जैसे क्षेत्र में महिलाओं के लिए समान अवसर प्रदान करना ही सच्चे अर्थों में महिला सशक्तिकरण है। वे इस बात की प्रबल समर्थक थीं कि महिलाएं विज्ञान में सफलता हासिल कर सकती हैं और समाज में एक सशक्त पहचान बना सकती हैं।

TWAS की जेंडर एडवाइजरी कमेटी की अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने वैज्ञानिक क्षेत्र में मौजूद लैंगिक असमानताओं पर गहराई से ध्यान दिया। इस विषय पर उनकी समझ ने उन्हें लैंगिक असमानता के मूल कारणों का व्यावहारिक और बारीकी से विश्लेषण करने के लिए प्रेरित किया।

अन्य प्रमुख योगदान

रोहिणी गोडबोले कई वैज्ञानिक संगठनों की सदस्य थीं और वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विज्ञान के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज की। उनके योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। साल 2019 में भारत सरकार ने उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया। उन्हें 2021 में आईआईटी कानपुर ने मानद डॉक्टरेट की उपाधि और 2009 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का सत्येंद्रनाथ बोस पदक दिया गया। उन्हें साल 2007 में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत की फेलोशिप (NASI) और साल 2009 में TWAS की विकासशील दुनिया के विज्ञान अकादमी की फेलोशिप मिली। उन्हें अगस्त 2015 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप का देवी पुरस्कार और फ्रांसीसी सरकार द्वारा ऑर्ड्रे नेशनल डू मेरिट से नवाज़ा गया।

प्रोफेसर गोडबोले का जीवन विज्ञान, समाज और महिला सशक्तिकरण की ओर प्रेरणादायक उदाहरण है। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम और लगन से एक ऐसे क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, जहां आज भी महिलाओं की संख्या कम है। उनका जीवन यह दिखाता है कि प्रतिभाशाली व्यक्ति अपनी लगन, समर्पण और मेहनत से किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।

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