इतिहास तंजौर बालासरस्वतीः मशहूर डांसर जिन्होंने विदेशों तक शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी| #IndianWomenInHistory

तंजौर बालासरस्वतीः मशहूर डांसर जिन्होंने विदेशों तक शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी| #IndianWomenInHistory

टी बालासरस्वती ने महज पांच साल की उम्र में ही भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लेने की शुरुआत की और दो साल बाद ही कांचीपुरम के अमनक्षी देवी मंदिर में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन अरंगेतराम किया। बालासरस्वती के इस नृत्य प्रदर्शन ने दर्शकों को चकित कर दिया था।

तंजौर बालासरस्वती 20वीं सदीं की मशहूर भरतनाट्यम नर्तकी और गायिका थीं। उन्हें टी. बालासरस्वती के नाम से जाना जाता था। भरतनाट्यम नृत्य शैली को जिस समय मंदिर के परिसरों में पारंपरिक रूप से निभाया जाता था। उस दौरा में टी. बालासरस्वती ने भरतनाट्यम नृत्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसके कारण उन्हें क्रांतिकारी नृतकी होने का दर्जा दिया गया था।

शुरुआती जीवन

13 मई1918 को टी बालासरस्वती का जन्म मद्रास में हुआ था। उनका परिवार संगीतकारों और नर्तकियों वंशावाशली से संबंधित था। वह 18वीं शताब्दी के तंजावुर दरबार में सेवा करने वाले वंशजो में से थी। टी बालासरस्वती का परिवार सात पीढ़ीयों से नर्तकी और गायन के काम से जुड़ा हुआ था। बालासरस्वती की दादी वीणा धन्नमल भी दशकों तक पारंपरिक देवदासी परंपरा को निभाती रही। धन्नमल खुद एक प्रसिद्ध वीणा वादक और गायिका थी। उनकी मां जयम्मल खुद एक गायिका थीं, जिन्होंने बालासरस्वती को संगीत प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके साथ ही कई समारोहों में वह बालासरस्वती की संगीतकार भी रही।

देवदासी परंपरा को छोड़ बालासरस्वती ने सार्वजनिक प्रदर्शनों की शुरुआत की, जिसके फलस्वरूप उन्हें विदेशों तक से नृत्य का न्योता मिला। 1961 में पहली बार वह विदेश में अपने नृत्य की प्रस्तुति करने गई।

टी. बालासरस्वती ने महज पांच साल की उम्र में ही भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लेने की शुरुआत की और दो साल बाद ही कांचीपुरम के अमनक्षी देवी मंदिर में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया। बालासरस्वती के इस नृत्य प्रदर्शन ने दर्शकों को चकित कर दिया था। धीरे-धीरे वह समय के साथ अपने नृत्य को और निखारती गई, जिसमें उनके भावनाओं और मनोदशाओं को भी दर्शाने वाले अभिनय में परिपक्वता आई।

भरतनाट्यम का विदेशों में किया मंचन

तस्वीर साभारः JPDI

बालासरस्वती के नृत्य से कई हस्तियां प्रभावित थी, प्रसिद्ध नर्तक उदय शंकर ने उन्हें रात्रि भोज पर बुलाया। इसके बाद उन्हें 1934 में कोलकाता में अखिल बंगाल संगीत सम्मेलन में प्रदर्शन करने का न्योता मिला। यहां रविंद्रनाथ टैगोर की मौजूदगी में उन्होंने जन गण मन पर नृत्य प्रस्तुति की। उनके नृत्य की प्रशंसा हर तरफ होने लगी। उस दौर में प्रेस ने भी बालासरस्वती को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी कला के बारे में खूब लिखा गया।

देवदासी परंपरा को छोड़ बालासरस्वती ने सार्वजनिक प्रदर्शनों की शुरुआत की, जिसके फलस्वरूप उन्हें विदेशों तक से नृत्य का न्योता मिला। 1961 में पहली बार वह विदेश में अपने नृत्य की प्रस्तुति करने गई। टोक्यो में ईस्ट वेस्ट म्यूजिक एनकाउंटर सम्मेलन में उन्होंने भरतनाट्यम कर विदेश में इस कला को पहुंचाया। इसके अगले साल बाद अमेरिका के प्रसिद्ध नर्तक ट्रेड शाॅन और रुथ सेंट डेनिस के निमंत्रण पर जैकब्स पिलो डांस फेस्टिवल में बालासरस्वती ने प्रस्तुति दी। फिर एक के एक बाद बड़े समारोह, मंचों पर अपनी कला की प्रस्तुति की। साल 1963 में उन्हें “द फेस्टिवल ऑफ आर्ट्स”, एडिनबर्ग में नृत्य करने का मौका मिला। यहां से बालासरस्वती को अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल हुई।

टी. बालासरस्वती ने महज पांच साल की उम्र में ही भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लेने की शुरुआत की और दो साल बाद ही कांचीपुरम के अमनक्षी देवी मंदिर में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया। बालासरस्वती के इस नृत्य प्रदर्शन ने दर्शकों को चकित कर दिया था।

डायरेक्टर सत्यजीत रे ने 1976 में बालसरस्वती पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई। इस फिल्म को नैशनल सेंटर फॉर  परफॉर्मिंग आर्ट्स और तमिलनाडु सरकार ने मिलकर बनाया था। आधे घंटे की इस डॉक्यूमेंट्री में बालासरस्वती अपने बचपन की यादों को साझा करके बताती है “मैं हर सुबह 6:00 बजे उठ जाया करती थी, जिसके बाद सुबह 9:30 बजे तक गायकी का अभ्यास करती थी। इसके बाद 12:30 बजे तक अपने गुरु से नृत्य सीखने जाती थी। फिरवापस लौटकर मैं थोड़ा आराम करती या किताबें पढ़ती थी, इसके बाद फिर शाम 4:30 बजे से अपने अभ्यास में लग जाती थी।” निर्देशक सत्यजीत रे ने बताया कि कोलकाता में 1935 में 14 साल की उम्र में उन्होंने बालासरस्वती का एक नृत्य प्रदर्शन देखा था। उस बालासरस्वती 17 साल की था। इसके बाद सत्यजीत रे ने 1966 में बालासरस्वती पर डाक्यूमेंट्री बनाने की योजना बनाई। हालांकि फिल्म की शुरुआत 1976 तक शुरू नहीं हो सकी। सत्यजीत रे ने बालासरस्वती को उस दौर में सबसे महान भरतनाट्यम नृतकी बताया था।

तस्वीर साभारः JPDI

बाला सरस्वती के जीवन पर उनके दामाद डगलस एम. नाइट जूनियर ने “बालासरस्वती: उनकी कला और जीवन” नाम से किताब लिखी है। किताब में इस बात का जिक्र मिलता है कि वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। वह एक बेहतरीन भरतनाट्यम नृतकी के साथ एक बेहतरीन कर्नाटक गायिका भी थी। साल 1973 में टी बालासरस्वती को मद्रास में द म्यूज़िक एकेडमी से संगीत कला निधि (कर्नाटक संगीतकारों का नोबेल) की प्रतिष्ठित उपाधि मिली थी। यह उपाधि पाने वाली बालासरस्वती भरतनाट्यम की पहली नर्तकी थी। 1976 में बालासरस्वती को संगीत नाटक अकादमी की फेलोशिप से सम्मानित किया गया। साल 1957 में टी बालासरस्वती को पद्म भूषण और 1977 में भारत सरकार उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

दो दशकों तक भरतनाट्यम नृत्य को मंदिरों से बाहर प्रदर्शित करने के बाद 1940 से के दशक में बालासरस्वती के प्रदर्शनों में कमी देखी गई। कहा जाता है कि इस दौरान बालसरस्वती का स्वास्थ्य खराब होता गया, जिसके कारण वह नृत्य नहीं कर पाती थी। हालांकि नृत्य से रिटायरमेंट को लेकर एक बार बालासरस्वती ने कहा था कि जब उन्हें खुद महसूस होगा तब वह नृत्य करना छोड़ देंगी। अपने जीवन काल में उन्होंने कभी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया। वह अपनी परंपरा को प्राकृतिक और पुराने रास्ते से बिना विचलित हुए विश्व स्तर तक पहचान दिलाने में कामयाब रहीं। उस समय के कई अन्य बड़े संगीतकार बालासरस्वती के नृत्य प्रदर्शन को देखने आते थे। कई हिंदुस्तानी संगीतकार उनकी गायकी को सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे। बालासरस्वती ने अपनी कला को भारतीय और विदेशी छात्रों को भी पढ़ाया। महान क्रांतिकारी नृतकी टी बालासरस्वती ने 9 फरवरी 1984 को 65 साल में दुनिया को अलविदा कह दिया।

सोर्स:

  1. Live Mint
  2. Danceinteractive.jacobspillow.org 
  3. DNA

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