अगर आपकी पैदाइश नब्बे के दशक में हुई होगी, तो आप पिंकी, बिल्लू, नागराज, डोगा, बाँकेलाल, सुपर कमांडो ध्रुव वग़ैरह के नाम से तो ज़रूर वाक़िफ़ होंगे। अगर मैं अपनी बात करूं, तो मैंने पहली कक्षा से ही अक्षरों को जोड़-जोड़कर इन कॉमिक्स को पढ़ना शुरू कर दिया था और इन्हीं कॉमिक्स की बदौलत मैं बहुत जल्दी पढ़ना सीख सकी थी। कॉमिक्स पढ़ने के पीछे कभी-कभी मुझे घर में डांट का भी सामना करना पड़ता था, लेकिन फिर भी इन्हें पढ़ने का उत्साह जस का तस रहता था।
उस दौर में जब स्मार्टफोन का आविष्कार भी नहीं हुआ था और टीवी पर भी बच्चों के मतलब के गिने-चुने कार्यक्रम ही आते थे, ये कॉमिक्स हमारे लिए कुछ दिलचस्प पढ़ने का ज़रिया हुआ करती थीं। कॉमिक्स से जुड़ी इन यादों के परे क्या आपने कभी इस पर ग़ौर किया कि किस तरह से ये कॉमिक्स अक्सर हमारे समाज में मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रहों का ही चित्रण करती थीं? उदाहरण के लिए क्या आपको चाचा चौधरी याद है और क्या आपको चाचा चौधरी की पत्नी बीनी का पात्र याद है? चाचा चौधरी की कॉमिक्स में बीनी बहुत कम नज़र आती है और जब नज़र आती भी है तो बाज़ार से सब्ज़ी लाते हुए, हाथ में बेलन लिए हुए या ऐसी ही अन्य जेंडर निर्धारित भूमिकाओं में नज़र आती है। यही नहीं बीनी को चाचा चौधरी के लिए सरदर्दी की वजह के तौर पर दिखाया गया है। यह उसी पितृसत्तावादी, भारतीय सोच को दर्शाता है, जिसके तहत स्त्रीद्वेषी जोक्स को मनोरंजन का साधन बना दिया जाता है।
कॉमिक्स के मुख्य पात्र अधिकतर पुरुष हैं
अगर पिंकी, चन्नी चाची, श्रीमती जी, ताई जी जैसे अन्य पात्रों को छोड़ दें तो बाकी सभी कॉमिक्स जैसे बिल्लू, चाचा चौधरी, मोटू-पतलू, रमन, नागराज, डोगा, बाँकेलाल, सुपरमैन आदि में मुख्य पात्र पुरुष ही हैं। इन पुरुष प्रधान पात्रों वाली कॉमिक्स में महिलाओं को मुख्य कॉमिक पात्र, जो कि पुरुष है, उनकी बहन, प्रेमिका जैसी सहायक भूमिकाओं में दिखाया गया है। कॉमिक्स की दुनिया के किरदारों में यह आम है जैसे कि सुपर कमांडो ध्रुव की बहन श्वेता उर्फ़ चण्डिका, नागराज की प्रेमिका विसर्पी, डोगा की प्रेमिका मोनिका, बिल्लू की प्रेमिका रोज़ी वग़ैरह। इसके अलावा कहीं-कहीं पुरुष पात्र इन महिला पात्रों को चाय-कॉफी का ऑर्डर देते हुए भी नज़र आते हैं। इस तरह महिलाओं को सीमित भूमिकाओं में दिखाया गया है।
इन कॉमिक्स में कुछ महिला पात्रों की सुंदरता का बखान भी मिलता है। सुंदर महिलाएं उन्हें ही दिखाया गया है जो दुबली-पतली हैं और जो पितृसत्ता के द्वारा बनाए तथाकथित सुंदरता के सामाजिक मानकों पर खरी उतरती हैं। जबकि मोटी महिलाओं को मज़ाक का पात्र बनाकर दिखाया गया है, जैसे कि चाचा चौधरी की पत्नी बीनी या फिर चन्नी चाची। चन्नी चाची का पात्र नकारात्मकता से भरा हुआ है, वह हमेशा अपने पति से डिमांड करती है, उससे लड़ती रहती है, कंजूस है और अपनी बात से मुकर जाती है। उनकी कुछ कॉमिक्स के शीर्षक ही अपने आप में लैंगिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, जैसे कि ‘चन्नी चाची का मोटापा’।
चाचा चौधरी की पत्नी बीनी की तरह ही उन्हें भी अपने पति के लिए सरदर्दी की वजह बताया गया है और कई चुटकुले उनके और उनके पति की आपसी बातचीत पर केन्द्रित हैं। जैसे कि एक कहानी में चन्नी चाची अपने पति से पूछती हैं, “शादी के बाद पुरुष गंभीर क्यों हो जाते हैं?” इस पर उनके पति जवाब देते हैं, “जिसे उम्रकैद की सज़ा सुना दी जाए, क्या वह खुश नज़र आएगा?” एक अन्य कहानी में चन्नी चाची की दोस्त और उसके पति के बीच के झगड़े को कहानी का विषय बनाया गया है। इस क़िस्म की कहानियां इस पूर्वाग्रह को पोषित करती हैं कि पति और पत्नी के बीच का रिश्ता शान्ति से भरा नहीं होता, उसमें हमेशा नोंकझोंक ही होती रहती है। इतना ही नहीं इस नोंकझोंक की वजह पत्नी होती है। इसी तरह एक अन्य पात्र श्रीमती जी की कहानियां भी लैंगिक पूर्वाग्रहों से भरपूर हैं। उसे भी शॉपिंग की शौकीन, पति से नई-नई डिमांड करनेवाली महिला के तौर पर दिखाया गया है। इन सभी कॉमिक्स की महिला पात्र मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं।
जहां कई कॉमिक्स पुरुषों को खूब समझदार और बड़ी से बड़ी परेशानी को फटाफट सुलझा लेनेवाला दिखाती हैं, वहीं ऐसी कॉमिक्स जिनमें मुख्य पात्र कोई महिला है उसका चित्रण इसके विपरीत और नकारात्मक पहलुओं वाला किया गया है, जैसे कि पिंकी को ही ले लें, हर कोई उससे परेशान रहता है। इसी तरह चन्नी चाची और श्रीमती जी का किरदार भी नकारात्मक और मज़ाक का पात्र है। यही नहीं अधिकतर महिला पात्रों की दुनिया भी घर-परिवार, रिश्तेदारों, चंद दोस्तों तक ही सीमित दिखाई गई है। केवल कुछ महिला पात्रों को ही तेज़-तर्रार और समझदार दिखाया गया है, जैसे कि सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक में चण्डिका, उसकी कमांडो फोर्स की सदस्य रेणु, डोगा की कॉमिक में लोमड़ी।
वेशभूषा के स्तर पर लैंगिक पूर्वाग्रह
कॉमिक्स में अविवाहित लड़कियों को सलवार सूट में विवाहित महिला पात्रों को कुछेक मामलों को छोड़कर हमेशा साड़ी में ही दिखाया गया है, चाहे वे श्रीमती जी हों, या चन्नी चाची या फिर ताई जी। चाचा चौधरी की पत्नी बीनी भी हमेशा साड़ी में ही नज़र आती है। इसी तरह से बिल्लू की कॉमिक में भी बिल्लू की माँ अक्सर साड़ी में ही नज़र आती है। इससे विवाहित महिलाओं के लिए साड़ी को आदर्श पहचान मानने की रूढ़िवादी सोच का पोषण होता है।
मौजूदा समय में कॉमिक्स की घटती लोकप्रियता
भारत में डिश टीवी 2003 में आई और जल्द ही बहुत लोकप्रिय हो गई। बेशक टीवी पर आने वाले कार्टूनों ने और हाल-फिलहाल की बात करें तो स्मार्टफोन ने कॉमिक्स की जगह ले ली है। लेकिन तो भी कॉमिक्स का छपना अभी जारी है और उसके पाठक भी हैं। यह ज़रूर है कि मनोरंजन के अन्य साधनों में इज़ाफ़ा होने की वजह से कॉमिक्स के पाठकों की संख्या तेज़ी से घटी है। लेकिन यह दावा करना भी ग़लत होगा कि कॉमिक इंडस्ट्री पूरी तरह मर गई है क्योंकि अभी भी उसके पाठक हैं।
आपने अपने बचपन में जिन कॉमिक्स को पढ़ा था अब न सिर्फ़ उनका रूप–रंग बदल गया है, बल्कि उनका दाम भी काफ़ी बढ़ गया है। अगर कुछ नहीं बदला है तो कॉमिक्स के चरित्र। इन पात्रों के रूप-रंग में ज़रूर बदलाव किए गए हैं, जो मुख्य तौर पर चित्रकार बदलने की वजह से हुआ है। बिल्लू और पिंकी अब बड़े हो गए हैं। नागराज, ध्रुव आदि के चित्रों और कहानियों के विषय में भी कुछ बदलाव आए हैं। लेकिन किस्सा वहीं का वहीं रहता है। अभी भी इन कॉमिक्स के मुख्य पात्र पुरुष ही हैं। इसके अलावा कुछ और समस्याजनक पहलू भी हैं। उदाहरण के लिए बिल्लू की कॉमिक में बिल्लू की एक दोस्त हुआ करती थी, जोज़ी। अब जो कॉमिक्स आ रही हैं उनमें बिल्लू का चित्रण 18 वर्षीय किशोर के तौर पर किया गया है और अब रोज़ी उसकी गर्लफ्रेंड है। रोज़ी के पात्र में किया गया यह रूपान्तरण उसी घिसी-पिटी मानसिकता को बढ़ावा देता है कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते।
भले ही वर्तमान दौर में इन कॉमिक्स की लोकप्रियता कुछ कम हो गई हो, लेकिन जो बीत गया हमें उस पर भी विचार करने की ज़रूरत है। नई कॉमिक्स पुरानी कॉमिक्स में मौजूद रूढ़ियों को ही पोषित न करें इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। किसी भी पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर प्रकाशित की जाने वाली सामग्रियों में कोशिश तो यही होनी चाहिए कि वह एक बराबरी वाले समाज के निर्माण में, आलोचनात्मक चिंतन को बढ़ावा देने में पाठक की मदद करे। ऐसा कहते समय मैं यह नहीं कह रही कि कॉमिक्स में हँसी-मज़ाक की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, बेशक होनी चाहिए। लेकिन मज़ाक के लिए स्त्री-पुरुष संबंधों, बॉडी शेमिंग से परे नए विषय सोचने की ज़रूरत है। हम जो पढ़ते हैं उसके आधार पर हमारी सोच बनती है, इसलिए इन बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।
नए ज़माने की कॉमिक्स की कुछ अच्छी बातें
वर्तमान में छप रही कॉमिक्स कुछ ज़रूरी मुद्दों को शामिल करने की कोशिश कर रही हैं इसे एक सकारात्मक पहल माना जाना चाहिए, हालांकि ऐसी कॉमिक्स की संख्या अभी कम ही है। उदाहरण के लिए हाल ही में चाचा चौधरी की एक नई कॉमिक आई है। इसका नाम है ‘चाचा चौधरी और मासिक धर्म की शिक्षा’। इसी तरह चाचा चौधरी की ही एक और कॉमिक में वे बिल्लू को मतदाता कैसे बनते हैं और इसका महत्त्व बताते हैं। इस कॉमिक का नाम ‘चाचा चौधरी और चुनावी दंगल’ है। इसी कॉमिक की एक कहानी निर्वाचन आयोग द्वारा ट्रांसजेंडर को मतदान के बारे में जागरूक करने के लिए एक ट्रांस महिला को आइकन चुने जाने पर भी है। तो अब समावेशित की दिशा में थोड़ी बहुत पहलें हो रही हैं।
भविष्य में कॉमिक्स में और भी कुछ सकारात्मक बदलाव होंगे और इनमें ऐसे महत्त्वपूर्ण विषयों को कवर करने की कोशिश की जाएगी, जो एक बराबरी वाले समाज के निर्माण में योगदान दें। हम उम्मीद करते हैं कि चाचा चौधरी की पत्नी बीनी की पहचान मात्र बेलन से जोड़कर और चाचा चौधरी की पत्नी के रूप न देखी जाए और उसे एक नई पहचान दी जाए। हम यह ही उम्मीद करते हैं कि कॉमिक्स में अलग-अलग वर्गीय, जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि की महिला पात्रों को प्रमुख भूमिकाओं में शामिल करने पर भी गंभीरता से विचार किया जाएगा।