इंटरसेक्शनलजेंडर महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी मानसिकता और यौन हिंसा को बढ़ावा देते प्रैंक वीडियो

महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी मानसिकता और यौन हिंसा को बढ़ावा देते प्रैंक वीडियो

इन वीडियोज़ का कॉन्टेंट ऐसा होता है जिसे देखकर आपको गुस्सा आना चाहिए आपको आपत्ति होनी चाहिए। लेकिन एक हंसी वाले म्यूजिक के ज़रिए उस बात को आसानी से प्रैंक के नाम पर टाल दिया जाता है।

सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में पिछले एक दशक में यूट्यूब, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर जुड़नेवाले लोगों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। हमें कोई छोटी सी चीज़ भी चाहिए होती है तो हम यूट्यूब पर उससे संबंधित वीडियो जरूर देखते हैं। यूट्यूब कई मायनों में हमारे लिए मददगार साबित हुआ है जिसका सबसे अच्छा उदाहरण उन लोगों के लिए है जो यूट्यूब से वीडियो देखकर या अन्य किसी वेबसाइट की मदद से पढ़ते हैं लेकिन जब किसी प्लैटफॅार्म पर इतनी बड़ी संख्या में लोग जुड़ते हैं तो हर तरह के वीडियो और कंटेंट हमारे सामने आते हैं। 

यूट्यूब और फेसबुक पर प्रैंक खासकर ‘गोल्ड डिगर प्रैंक’ के नाम से कई सारे वीडियो की भरमार है। ये वीडियो स्क्रिपटेड और अनस्क्रिपटेड दोनों होते हैं। ज्यादातर गोल्ड डिगर प्रैंक स्क्रिपटेड होते हैं लेकिन यह ज़रूरी नहींं कि वीडियो देखनेवाले को यह पता चगे। गोल्ड डिगर प्रैंक में अक्सर यही दिखाया जाता है कि लड़की अच्छी गाड़ी और आइफोन या महंगी चीज़ें देखकर कुछ भी करने को तैयार हो जाती है लेकिन बाद में लड़के उन्हें गोल्ड डिगर या उल्टा-सीधा बोलकर दुतकारते हुए चले जाते हैं। वहीं, दूसरी ओर अनस्क्रिपटेड प्रैंक वीडियो में किसी भी लड़की को कहीं भी कुछ भी बोल देना, हाथ लगा देना और बाद में कैमरा दिखा देना। सिर्फ इतना ही नहींं, इन वीडियोज़ में कई बार बात हैरेसमेंट तक पहुंच जाती है। इस तरह के प्रैंक वीडियो यूट्यूब पर हजारों की संख्या में हैं जिसे देखनेवालों की संख्या में कोई कमी नहींं है। इन वीडियोज़ को बकायदा लाखों-लाख लोग देखते हैं। इन वीडियोज़ का कॉन्टेंट ऐसा होता है जिसे देखकर आपको गुस्सा आना चाहिए आपको आपत्ति होनी चाहिए। लेकिन एक हंसी वाले म्यूजिक के ज़रिए उस बात को आसानी से प्रैंक के नाम पर टाल दिया जाता है।

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इस तरह के वीडियो के पीछे यह भी एक कारण है कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॅार्म पर कोई गेटकिपिंग नहीं है यानि कि कोई खास रोक-टोक नहीं है। आप यूट्यूब पर चैनल बनाकर पब्लिक डोमेन में वीडियो डाल सकते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन वीडियोज़ के अपने दर्शक हैं जिनके अनुसार इन्हें बनानेवाले प्रैंक वीडियोज़ में इस तरह का कंटेंट लाने लगते हैं ताकि इनके दर्शक को देखने में और ज्यादा ‘मजा’ आए। 90-95 फ़ीसद ऐसे प्रैंक वीडियोज़ के मामलों में बिना सहमति के गले लगना, किस करना या किसी को अचानक थप्पड़ मारना शामिल है।

पितृसत्तात्मक सोच से प्रेरित होते हैं गोल्ड डिगर प्रैंक वीडियोज़

बता दें कि गोल्ड डिगर शब्द का बड़े स्तर पर इस्तेमाल तब होने लगा जब साल 1919 में ब्रॉडवे के एक नाटक ‘द गोल्ड डिगर’ में इसका इस्तेमाल किया गया। इसमें एक ऐसी महिला दिखाई गई थी जो एक अमीर पति की तलाश में थी। इस नाटक को एवेरी हॉपवुड ने डायरेक्ट किया था। आज कल यूट्यूब पर पॉपूलर हो रहे इन वीडियोज़ के माध्यम से यह बताया जाता है कि लड़कियां ऐसी ही होती हैं। गौर करने पर पता चलेगा कि गोल्ड डिगर प्रैंक में दिखाई जाने वाली लड़कियां वेस्टर्न कपड़ों में ज्यादा होती हैं। यहां यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि छोटे कपड़े पहनने वाली लड़कियां, पार्क में घूमने वाली लड़कियां ‘लालची’ होती हैं या चरित्रहीन होती हैं। इसी का नतीजा है कि अगर कोई लड़की पार्क में घूम रही है, खासतौर पर तब जब वह किसी लड़के के साथ है तो लोगों की घूरती नज़रें उनका पीछा नहीं छोड़ती। इसके अलावा भी रोज़मर्रा के जीवन में लड़कियों के कपड़ों के आधार पर उनका चरित्र चित्रण करना कोई नई बात नहीं है। 

गौर करने पर पता चलेगा कि गोल्ड डिगर प्रैंक में हमेशा लड़कियों को वेस्टर्न कपड़ों में दिखाया जाया है। यहां यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि छोटे कपड़े पहनने वाली लड़कियां, पार्क में घूमने वाली लड़कियां ‘लालची’ होती हैं या चरित्रहीन होती हैं।

  

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ऐसे वीडियोज़ में हमेशा दिखाया जाता है कि महिलाएं अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए पुरुषों पर निर्भर होती हैं। यूट्यूब पर ऐसे हज़ारों वीडियोज़ उपलब्ध हैं जिसमें यह एक लड़की को यही दिखाने की कोशिश की जाती है कि वह अपनी सुख-सुविधा के लिए, अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए पुरुषों पर निर्भर होती है। साथ ही यह भी दर्शाया जाता है कि एक लड़की एक लड़के के साथ रिश्ते में उसकी आर्थिक हैसियत देखकर जाती है। इन वीडियोज़ में बड़ी चालाकी से पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिला और पुरुषों के बीच मौजूद आर्थिक गैरबराबरी की खाई को ढकने की कोशिश की जाती है। गोल्ड डिगर शब्द और इससे जुड़े कंटेंट की लोकप्रियता यह सुबूत नहीं देती कि कई महिलाएं पुरुषों के साथ सिर्फ आर्थिक वजहों से रिश्ते बना रही थी। लेकिन महिलाओं और पुरुषों के बीच की आर्थिक और ढांचागत गैर-बराबरी यह ज़रूर बताती है कि इस शब्द को हमेशा ही इस पितृसत्तात्मक समाज में स्त्रियों से जोड़कर क्यों देखा गया।

यौन हिंसा को बढ़ावा देते प्रैंक वीडियो

प्रैंक वीडियो के कई सारे उदाहरण हैं जो काफी चर्चा में रहें। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार फरवरी 2021 में मुबंई सिटी साइबर पुलिस ने सार्वजनिक स्थानों पर कथित रूप से अश्लील वीडियो बनाने के आरोप में तीन यूटयूर्ब्स को गिरफ्तार किया था। ये लोग वीडियो बनाने के नाम पर कथित रूप से लड़कियों को फंसाते थे। पैसे की पेशकश करते थे लेकिन शूटिंग के दौरान वे लड़कियों को पब्लिक में गलत तरीके से छूते। लड़कियों की शिकायत के आधार तीनों को गिरफ्तार किया गया था। आरोपी मुकेश और उसके दो सहयोगी 17 से ज्यादा यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज चला रहे थे। साथ ही इन चैनल और पेज को देखनेवालों की संख्या 20 मिलियन से अधिक है। 

इन वीडियोज़ का कॉन्टेंट ऐसा होता है जिसे देखकर आपको गुस्सा आना चाहिए आपको आपत्ति होनी चाहिए। लेकिन एक हंसी वाले म्यूजिक के ज़रिए उस बात को आसानी से प्रैंक के नाम पर टाल दिया जाता है।

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इस तरह के प्रैंक वीडियो उसी तरह से लोगों की मानसिकता पर प्रभाव डाल रहे हैं जैसी बॉलीवुड की फिल्में डालती आई हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि बॉलीवुड फिल्मों में लड़कियों को परेशान किया जाता है, स्टॉक किया जाता है और लोग उसे हंसी में टाल देते हैं या उसे हीरो का ‘प्यार’ बताते हुए हंस देते हैं। फिल्मों में हीरो द्वारा लड़की का पीछा करना या उसे परेशान करना प्यार माना जाता है। हालांकि ऐसा होता नहीं है। फिल्मों ने हमारे दैनिक जीवन पर कितना प्रभाव डाला है इस बात को नज़अंदाज़ नहीं किया जा सकता। एनसीबीआई के अनुसार रुस में किए गए शोध के मुताबिक साक्षरता और समझ के आधार पर फिल्मों का प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक पड़ता है।

आज भी ऐसे कई सारे वीडियोज़ यूट्यूब पर हैं जिसमें प्रैंक के नाम कैसा भी कॉन्टेंट परोसा जा रहा है। इसी तरह का एक चैनल है ‘एवीआर प्रैंक टीवी’ जिसे विनय ठाकुर नाम का एक प्रैंकस्टर्स चलाता है जिनके फिलहाल 6.39 मिलियन सब्सक्राइबर्स है। इनके एक किसिंग प्रैंक वीडियो के 109 मिलियन व्यूज हैं। इसके अलावा भी इनके कई सारे वीडियोज़ हैं जिनके काफी व्यूज हैं। इस तरह के कई प्रैंक केस हैं जो क्राइम के मद्देनजर हैं जिसमें विशेष रूप से लड़कियों के साथ बुरा बर्ताव शामिल है। इन सब के लिए हम कहीं ना कहीं यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स की नीतियां भी जिम्मेदार हैं जो इस तरह के भद्दे वीडियोज़ से लड़कियों की छवि को खराब करते हैं।

इसके अलावा ज़रूरत है कि अगर आप इस तरह की स्थिति का सामना करती हैं तो आपको तुरंत शिकायत दर्ज करवानी चाहिए। ऐसे मामलों में स्त्री अशिष्ट रुपण( प्रतिशेध) अधिनियम, 1986 (Indecent Representation of Women (Prohibition) Act ) के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। प्रैंक के माध्यम से इस तरह का व्यवहार एक अपराध है। अगर कोई प्रैंक के नाम पर आपका हैरसमेंट करता है तो इन धाराओं के तहत मामला दर्ज करवाया जा सकता है। कभी भी इस तरह की परिस्थिति को हंसी-मज़ाक में ना टालें। अगर आपको परेशानी होती हैं तो तुरंत इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराएं और बताएं कि प्रैंक के नाम पर ऐसा व्यवहार कतई सही नहीं है।

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तस्वीर साभार : YouTube

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