तेज हँसती हो, ज्यादा बोलती हो। वेट लूस क्यों नहीं करती, ऐसे कपड़े क्यों पहने हैं, और न जाने कितनी ही ऐसी बातों के बीच मैं बढ़ी हुई। बचपन में बिहार के जिस क्षेत्र में मैं पली-बढ़ी, वहां लड़कियों के लिए नियम कुछ ऐसे ही थे कि वो संभालकर हंसे, बोले। बाहर न जाए और अगर जाए तो किसी के साथ जाए। छोटे जगह में रहने के फायदे कम और शायद नुकसान ज्यादा होते हैं। पर यही हमारा जीवन था। घर से स्कूल के बीच, दुर्गा पूजा में चमकीले सलवार-सूट और नए जूते मिल जाए, तो हमारे लिए ये बहुत बड़ी बात थी। किसी दोस्त के घर जाने की पर्मिशन मिल जाती थी, तो लगता था कि बहुत कुछ मिल गया। बात परिवार की करूँ, तो ‘घर’ मेरे लिए हजारों और लोगों, विशेषकर महिलाओं की ही तरह सुरक्षित जगह नहीं थी। मैं कक्षा तीन या चार में थी, जब मेरे साथ पहली बार यौन शोषण हुआ। घर में न ही किसी ने गुड टच, बैड टच सिखाया था, और न ही ऐसी कोई भी जरूरी दूसरी बातें।
जब मेरे से कुछ अधिक उम्र के लड़के ने मेरे साथ यौन शोषण किया, तो मुझे ही कटघरे में खड़ा किया गया। मेरी माँ को जब ये बात पता चली, तो उन्होंने मेरी बहुत पिटाई की। उस उम्र में शायद ही मुझे समझ आया होगा कि यौन शोषण क्या है, आखिर इसका विरोध क्यों करना है या कैसे करना है। लेकिन इस एक घटना ने मुझे ऐसे मामलों में काफी दब्बू बना दिया और जीवन में आगे के सालों में अनेकों बार मुझे यौन शोषण का सामना करना पड़ा। स्कूल में मैं काफी मुखर थी। अलग-अलग मुद्दों पर बहस करती और तमाम रूढ़िवादी तौर-तरीकों का हमेशा विरोध करती। इसका मूल कारण ये था कि अपने घर में मैं वामपंथी विचारधारा के इर्द-गिर्द बड़ी हुई थी। हालांकि नारीवाद या नारीवादी विचारधारा की समझ मुझे तब बिल्कुल नहीं थी। मेरे लिए ये मेरे अधिकार थे और ऐसे मुद्दों पर बोलना जरूरी था।
बात परिवार की करूँ, तो ‘घर’ मेरे लिए हजारों और लोगों, विशेषकर महिलाओं की ही तरह सुरक्षित जगह नहीं थी। मैं कक्षा तीन या चार में थी, जब मेरे साथ पहली बार यौन शोषण हुआ। घर में न ही किसी ने गुड टच, बैड टच सिखाया था, और न ही ऐसी कोई भी जरूरी दूसरी बातें।
हालांकि अपने दोस्तों में मैं मुखर थी, मैं अपने घर में घरेलू हिंसा का विरोध नहीं कर पाई। आज जब सालों पहले की बात सोचती हूं, तो समझ आता है कि कैसे मेरे विचार का कोई खास महत्व नहीं था। जीवन में इसके बाद विभिन्न समय पर हुए यौन हिंसा ने मेरे आत्मविश्वास को जरूर तोड़ा, लेकिन मेरे अंदर का जज़्बा कभी खत्म नहीं हुआ। मैंने समाज और घर के बनाए दायरों को चुनौती दी और खुद को उस माहौल से आज़ाद किया।
मेरा नारीवादी विचारधारा बताता है आई आम ईनफ
इन सबके बीच, जब मैंने एक अलग करियर- पत्रकारिता चुना, तो यह कदम सिर्फ एक पेशे का चयन नहीं था। यह मेरे लिए एक नए जीवन की शुरुआत थी। लेकिन पारिवारिक कारणों से कामकाजी जीवन में भी काफी उतार-चढ़ाव रहे और एक समय पर मुझे मीडिया का रास्ता छोड़ना भी पड़ा। लेकिन आज मैं एक समावेशी नारीवादी मीडिया संस्थान में काम कर रही हूं और साल दर साल सीखने, पढ़ने और सीखा-सिखाया हुआ नकारने के बाद, मैं अपने अधिकारों के लिए अधिक जागरूक और मुखर हो पाई हूं। मेरे मीडिया में वापस लौटने का निर्णय मेरे लिए मेरी आवाज़ को एक नया मंच देने जैसा था। मैंने उन सभी रूढ़िवादी नियमों और मानदंडों को ताक पर रखने की कोशिश की, जो बचपन से सिखाया गया था। मैं जो जी चाहता, उसे पहनती और जो भी मुझे अच्छा लगता है, उसे करने की कोशिश करती हूं। हालांकि ये छोटी सी खुशी आसान नहीं थी। आज भी इंपोस्टर सिन्ड्रोम मुझे विश्वास नहीं करने देता है कि मैं भी कुछ मुकाम हासिल कर सकती हूं। लेकिन, मेरा नारीवादी विचारधारा मुझे बताता है कि आई आम ईनफ।
आज मैं एक समावेशी नारीवादी मीडिया संस्थान में काम कर रही हूं और साल दर साल सीखने, पढ़ने और सीखा-सिखाया हुआ नकारने के बाद, मैं अपने अधिकारों के लिए अधिक जागरूक और मुखर हो पाई हूं। मेरे मीडिया में वापस लौटने का निर्णय मेरे लिए मेरी आवाज़ को एक नया मंच देने जैसा था।
खुद को पाने में नारीवाद का योगदान
जिन जगहों और जिस माहौल में मैं बड़ी हुई, वहां हालांकि घरों में सुविधाओं की इतनी कमी नहीं थी, जितनी आज़ादी और समानता की। रूढ़िवादी विचारधारा से बाहर निकलने में न सिर्फ नारीवाद ने मेरी मदद की, बल्कि मेरे जीवन को ढांचा देने में भी ये मददगार रहा। चाहे टाक्सिक रिश्ते का खत्म होना हो, खराब डेटिंग अनुभव, माता-पिता के बाद अपने ही रिश्तेदारों से दूरी बनाने की जरूरत या कामकाजी जीवन में रुकावट, नारीवाद ने हमेशा मेरा साथ दिया। इस यात्रा के दौरान, मैंने कई लोगों को खोया। उन रिश्तों की कमी ने मुझे महसूस कराया कि इससे आगे भी दुनिया है और वो बेहतर हो सकती है। यही वह समय था जब काम के माध्यम से मैंने अपने समुदाय की ताकत को समझा। मेरी मुलाकात ऐसी महिलाओं और लोगों से हुई, जहां मेरे विचार क्रांतिकारी नहीं, ‘सामान्य’ थे। ये मेरे परिवार और सबसे करीबी लोगों से इतर वो दुनिया है, जहां मैं सिर्फ एक नाम नहीं थी। मेरे काम ने मुझे वो खुशी और मान्यता दी जो पितृसत्तातमक दुनिया ने कभी नहीं दी थी।
मेरा नारीवादी समूह ने जब दी मुझे मान्यता
महिलाओं का वह दायरा, जिसने मुझे न केवल सहारा दिया बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी किया, उनके लिए मैं हमेशा शुक्रगुजार रहूँगी। उनके साथ ने मुझे सिखाया कि दुख को सिर्फ सहना ही नहीं, बल्कि उसे बदलकर ताकत में बदलना भी संभव है। मेरे समुदाय ने मुझे वह प्यार और स्वीकृति दी, जिसकी तलाश मुझे सालों से थी। जिन लोगों के रूढ़िवादी और दकियानूसी बातों से मैं अक्सर चिढ़ती या गुस्सा करती थी और घंटों बहस करती, आज ऐसे लोगों और जगहों से दूर रहने और दूर जाने का हुनर भी मुझे नारीवाद ने सिखाया है। मेरी उम्र में अक्सर महिलाओं की न सिर्फ शादी बल्कि बच्चे भी हो जाते हैं। भारतीय समाज इस उम्र में शादी न हो, तो सिर्फ दबाव ही नहीं डालता, बल्कि महिला को महसूस कराता है कि वो जीवन में बहुत महत्वपूर्ण और कीमती चीज़ छोड़ रही है। लेकिन, प्रतिष्ठित नारीवादी महिलाओं से मुझे प्रेरणा मिलती है। इसलिए, मुझे महज शादी के न होने से कोई कमी या शिकायत नहीं है।
आज भी इंपोस्टर सिन्ड्रोम मुझे विश्वास नहीं करने देता है कि मैं भी कुछ मुकाम हासिल कर सकती हूं। लेकिन, मेरा नारीवादी विचारधारा मुझे बताता है कि आई आम ईनफ।
आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और अपनी सीमाओं को समझने की सीख
नारीवाद ने मुझे सिखाया कि मेरी कहानी सिर्फ मेरी नहीं है। यह उन सभी आवाज़ों का हिस्सा है, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। इस विचारधारा ने मुझे आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और अपनी सीमाओं को समझने की सीख दी। यह स्वीकार करना कि मैं ‘पर्याप्त’ नहीं हूं और यह बिल्कुल ठीक है, मेरे लिए सबसे बड़ा सबक रहा। समाज ने हमेशा हमें ‘संपूर्ण’ होने का दबाव दिया है। लेकिन मैंने महसूस किया कि मेरी खामियां ही मुझे इंसान बनाती हैं। यह खुशी तब और बढ़ जाती है जब मैं अन्य महिलाओं की कहानियों को सुनती हूं, उनके संघर्षों और उनकी जीतों को देखती हूं। हर कहानी एक नए अध्याय की तरह होती है, जो न सिर्फ मुझे प्रेरित करती है, बल्कि एकजुटता का एहसास भी कराती है।
चाहे टाक्सिक रिश्ते का खत्म होना हो, खराब डेटिंग अनुभव, माता-पिता के बाद अपने ही रिश्तेदारों से दूरी बनाने की जरूरत या कामकाजी जीवन में रुकावट, नारीवाद ने हमेशा मेरा साथ दिया। इस यात्रा के दौरान, मैंने कई लोगों को खोया। उन रिश्तों की कमी ने मुझे महसूस कराया कि इससे आगे भी दुनिया है और वो बेहतर हो सकती है।
मेरी नारीवादी यात्रा ने मुझे आत्मदेखभाल और सीमाओं के महत्व को समझाया। यह जानना कि कब ‘न’ कहना है, और अपनी एनर्जी को बचाना है, खुद से प्यार करने का सबसे बड़ा कदम है। मेरी खुशी अब उन छोटी-छोटी बातों में है। जैसे अपने विचारों को व्यक्त करना, अपने नारीवादी समुदाय के लोगों के साथ समय बिताना और अपने अंदर की आवाज़ को सुनना। यह खुशी मेरे अंदर की उस ताकत से आती है, जिसने संघर्षों के बावजूद मुझे उठने और आगे बढ़ने का साहस दिया। यह खुशी मेरे उस यकीन से आती है कि हम सब, खासकर महिलाएं, एक-दूसरे के लिए प्रेरणा बन सकते हैं और हम काफी हैं। मेरा फेमिनिस्ट जॉय सिर्फ मेरा नहीं है। यह उन सभी लोगों के लिए है, जिन्होंने खुद को अपने मुश्किल स्थिति से ऊपर उठाया और खुद की एक नई पहचान बनाई। आज मैं यह कह सकती हूं कि मेरी खामियां, मेरी सीमाएं, और मेरा आत्मसम्मान, सब मिलकर मुझे सम्पूर्ण बनाते हैं और ये सीखने-सिखाने का सिलसिला हमेशा जारी रहेगा।