नारीवाद और प्रत्येक वयक्ति के प्रति समान अधिकार के बारे मैं तब से सोचता आया हूं जब मुझे फेमिनिज़म के बारे में कुछ भी पता नहीं था। मुझे बचपन से लगता था कि महिला और पुरुष को बराबर होना चाहिए। एक आम मुस्लिम परिवार में बड़े होने के नाते मुझे भी उन्हीं रीति रिवाज को फॉलो करने की ही सीख दी जाती थी। लेकिन यह सवाल हमेशा मेरे मन में आता था कि मेरे परिवार में लड़कियों को घर से बाहर जाना हैं तो “घर का कोई मर्द” उनके साथ क्यों जाना चाहिए, मेरी कजिन 20 वर्ष की थी और में 12 वर्ष का लेकिन घर से बाहर जाना हैं तो मुझे अपनी बहन के साथ जाना ज़रूरी हैं, क्योंकि मैं “घर का मर्द” हूं। मुझे उसकी रक्षा करनी है। मेरे आसपास के माहौल में मैंने तमाम तरह के लैंगिक भेदभाव देखे हैं। मैं कई बार यह सवाल परिवार से पूछता था कि बहन अकेले घर से बाहर क्यों नहीं जा सकती है?, मुझे उसके साथ जाने कि आखिर ज़रूरत क्यों है? लेकिन मुझे इस सवाल का जवाब बचपन में तो नहीं मिला।
रूढ़िवादी सोच से पहला सामना
मैने कई लोगों को कहते सुना था कि पढ़-लिखने से इंसान अक्लमंद हो जाता हैं। क्या पढ़-लिख लेने से ही रूढ़िवाद को चुनौती दी जा सकती है? नहीं, क्योंकि बहुत से पढ़े-लिखे लोगों में ही अति-रूढ़िवादी विचार होते है। मैंने एक पारिवारिक आयोजन में हमारे दूर के रिश्तेदार जो काफी पढ़े–लिखे और धन से संपन्न थे, दूसरे रिश्तेदार से बात कर रहे थे तो सुना था, “अपने बेटे की शादी ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की से नहीं करनी चाहिए और पढ़ी-लिखी लड़की से शादी करना हो तो उसे नौकरी नहीं करने देनी चाहिए। घर चलाना तो लड़की का ही काम होता है, नौकरी करेगी तो घर कौन चलाएगा और बाहर काम करेगी तो गैर मर्दों से भी मेल–जोल होगा।” हालांकि मैने उनसे पूछ लिया था कि अगर दोनों बाहर जॉब करेंगे तो घर में दोगुनी आय आएगी, घर बेहतर चलेगा और जीवन स्तर में सुधार आएगा। इस बात पर वे काफी नाराज़ हुए और मुझे विदेशी सोच वाली पीढ़ी का कहकर कहा इसी सोच से समाज खराब हो रहा हैं।
नारीवाद ने मेरे जीवन पर खास प्रभाव डाला है। नारीवादी विचारधारा के ज़रिये मैंने खुद को कैसे वक्त के साथ बदलना हैं और समाज की रूढ़िवादी परंपराओं को आत्मविश्वास के साथ कैसे तर्क करना हैं और स्वयं के बारे में सोचना सिखाया हैं।
मेरे जीवन में नारीवाद का आगमन

“औरत आज़ादी मार्च” आंदोलन के बारे में पढ़कर मुझे पहली बार फेमिनिज़म के बारे में जानकारी मिली। “औरत आज़ादी मार्च” के बारे में पढ़ने के बाद इस्लाम के नारीवादी पहलू के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। मैने फेमिनिज़म के बारे में अधिक पढ़ाई की और इसी कड़ी में मुझे एडिप युकसेल जो एक तुर्की–अमेरिकी-कुर्दिश कार्यकर्ता, नारीवादी और कुरानवाद आंदोलन में प्रमुख व्यक्ति हैं, उनके लिखे रिफॉर्मिस्ट कुरान को पढ़ने के अवसर मिला। रिफॉर्मिस्ट कुरान आंदोलन के समर्थक धर्म में समानता की शिक्षाओं को उजागर करना और कुरान और पुनर्व्याख्या करके इस्लाम की पितृसत्तात्मक व्याख्याओं पर सवाल उठाने को प्रोत्साहित करना चाहते हैं।
नारीवाद ने मेरे जीवन पर खास प्रभाव डाला है। नारीवादी विचारधारा के ज़रिये मैंने खुद को कैसे वक्त के साथ बदलना हैं और समाज की रूढ़िवादी परंपराओं को आत्मविश्वास के साथ कैसे तर्क करना हैं और स्वयं के बारे में सोचना सिखाया हैं। सदियों से चली आ रही पुरुष प्रधान सोच पर जो महिलाओं को सिर्फ पुरुष प्रधान समाज में ही तसव्वुर करते है। उससे इतर एक नए समाज जो समानता की बात करता उसके बारे में जाना है। इस तरह के समाज की कल्पना भी की जा सकती है इसके बारे में सोचने को मिला। मेरे बचपन के सभी सवाल का जवाब मुझे नारीवाद और उसके ऊपर लिखी किताबों से मिला और मैंने खुद के बारे में जाना कि मेरा ऐसा सोचना कोई अलगाव नहीं है बल्कि यह समावेशी नारीवादी विचारधारा है।
नारीवाद के कारण मुझमे एक आत्मविश्वास आया हैस जिससे समाज के कई ऐसे पहलुओं को तर्क करने की समझ आई जिससे जीवन में चल रहे संघर्षों की चिंता से अब खुद को तकलीफ देना बंद कर दिया हैं और मानसिक शांति पर ही ज्यादा ध्यान देता हूं।
नारीवाद को समझने में विजुअल माध्यम बने सहायक
मैंने उस समय तक पारिवारिक समारोह में जाना ही बंद कर दिया क्योंकि मेरे विचार और रिश्तेदारों के विचारों में उत्तर-दक्षिण का फर्क था। पढ़ाई और फिल्मों के ज़रिये गंभीर आर्ट को समझने की कोशिश की। कला के माध्यम से चीजों को देखने और समझने के इसी क्रम में मैने कई नारीवादी फिल्में और सीरीज़ देखी। क्वींस गेंबिट, एमिली इन पेरिस, वीरे दी वेडिंग, डियर जिंदगी, रिवरडेल, मेरी कॉम, स्ट्रांग गर्ल बांग–सुन, पीरियड: एंड ऑफ साइलेंस, सेल्फ मेड: लाइफ ऑफ मैडम सी के वॉकर, बिरयानी (मलयालम), द नोशन आदि कई विजुअल माध्यमों से नारीवाद को समझने का और सीखने का अवसर मिला। कला और किताबों के माध्यम से मैंने विविधता, अनुभव, पहचान, ज्ञान और हाशिए पर मौजूद समुदाय का सम्मान करना और सभी लिंगों को उनके पूर्ण अधिकारों का एहसास कराने के लिए सशक्त बनाने का प्रयास करने के बारे में जाना।
नारीवाद और मेरे रिश्तों को देखने का नया नज़रिया

नारीवादी सोच की वजह से मेरे रिश्ते को देखने का नज़रिया काफी हद तक बदल गया। मैं और मेरे पार्टनर का किसी भी विषय पर निर्णय लेने, अवैतनिक काम-खाना बनाना, सफाई करना, बिलों का भुगतान करना, इत्यादि पर बातचीत की जाती है और सहमति बनती है, ना कि केवल मान ली जाती है। अब हम अवैतनिक काम को निष्पक्ष रूप से और लैंगिक भूमिकाओं के बजाय इस आधार पर काम को विभाजित करते हैं कि हम किसमें अच्छे हैं और हमें क्या करना पसंद है, जिससे हमें भविष्य में रिश्तों में बहुत अधिक नाराजगी ना हो। हम संसाधनों को समान शर्तों पर साझा करने के सिद्धांत को फॉलो करते है, इससे हमारा रिश्ता और समझ अधिक बढ़ी है।
नारीवाद केवल मेरे लिए एक राजनीतिक विचारधारा नहीं थी, एक निजी आज़ादी की सोच थी जिसने मेरे सेल्फ–ग्रोथ को एक माध्यम दिया। कई बार लगता था कि इस विचारधारा के साथ मेरे जो उस समय दोस्त थे, मुझे स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने मैने नारीवादी विचारों को सुना और मुझे अपनी बात रखने और उस बात को उन्होंने समझने का पूरा प्रयास भी किया। मेरे दोस्तों के ग्रुप में अलग–अलग विचारधारा हैं और हम सभी आपस में उसका सम्मान करते हैं।
“औरत आज़ादी मार्च” के बारे में पढ़ने के बाद इस्लाम के नारीवादी पहलू के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। मैने फेमिनिज़म के बारे में अधिक पढ़ाई की और इसी कड़ी में मुझे एडिप युकसेल जो एक तुर्की-अमेरिकी-कुर्दिश कार्यकर्ता, नारीवादी और कुरानवाद आंदोलन में प्रमुख व्यक्ति हैं, उनके लिखे रिफॉर्मिस्ट कुरान को पढ़ने के अवसर मिला।
जीवन के संघर्षों से लड़ने का नारीवादी नज़रिया
बचपन से युवावस्था तक एक बात अभी तक नहीं बदली हैं, वो है मेरे जीवन में संघर्ष एक सुखी परिवार जो कभी लड़ता–झगड़ता न हो, एक आरामदायक जीवन जिसमें कोई चिंता ना हो सिर्फ सफर बनकर रह गया हैं, मंजिल नहीं बन पा रहा हैं। नारीवाद के कारण मुझमे एक आत्मविश्वास आया हैस जिससे समाज के कई ऐसे पहलुओं को तर्क करने की समझ आई जिससे जीवन में चल रहे संघर्षों की चिंता से अब खुद को तकलीफ देना बंद कर दिया हैं और मानसिक शांति पर ही ज्यादा ध्यान देता हूं। नारीवाद “सभी के लिए समान अवसर और सभी के बौद्धिक, आर्थिक और भौतिक विकास के लिए एक ज़रूरी सोच है”, जिसे भारत के राजनीतिक पृष्ठभूमि और आम जन तक पहुंचाना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि नारीवादी विचारधारा समाज में सबसे अधिक हाशिए पर मौजूद लोगों के लिए और उनके साथ खड़े होने की बात करती है। जिससे उन समुदायों को भी समाज में आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा और सभी लोगों को समान अवसर मिलेगा तो इस देश में आर्थिक और बौद्धिक वृद्धि होगी जिससे हर इंसान के जीवन स्तर में सुधार आएगा।