हम सोशल मीडिया युग में जी रहे हैं, जहां हर इंसान अपने जीवन के हर पहलू दूसरों के साथ साझा करने में खुश है। वास्तविक रूप से हम कितने सोशल है इस सवाल से परे डिजिटल सोशल होना हर इंसान ज़रूरी समझ रहा है। यही वजह कि हर इंसान निजी जीवन को अपडेट बनाकर पोस्ट कर रहा है। इंटरनेट पर चैट ग्रुप्स में गुड मॉर्निंग और न जाने हर तरह के अपडेट हमारी रोज की जिंदगी का हिस्सा बन गए है। फैमिली वाह्टऐप चैट्स ग्रुप में अनियमित फॉरवर्ड मैसेज भी इस डिजिटली सोशल लाइफ का हिस्सा है। साथ ही इन फैमिली ग्रुप्स में ‘सेक्सिस्ट जोक्स’ आते हैं। महिला विरोधी, सेक्सिस्ट जोक्स को मजाक बनाकर पेश करते रहते हैं।
परिवार और रिश्तेदारों के बने इन गुप्स में हँसी-मजाक, मनोरंजन के नाम पर जो जोक्स फॉरवर्ड किए जाते है उनमें महिलाओं को गोल्ड डिगर, पति को परेशान करने वाली, बॉडी शेमिंग या फिर महिलाओं को परिवार की इज़्ज़त, त्याग की मूरत जैसी रूढ़िवादी पूर्वाग्रहों की बातों को आगे बढ़ाया जाता है। ख़ासतौर पर परिवार के बड़े लोग इन विचारों को आगे बढ़ाने का काम करते हैं और अक्सर बाकी लोग उनकी सहमति में इमोजी शेयर करते हैं। अक्सर कई बार इस तरह के पोस्ट और जोक्स पर सवाल करने बाद मैंने परिवार के ग्रुप्स को म्यूट करना तक तय कर दिया था। इन्हें छोड़ना मतलब बहुत सारे सवालों के जवाब और बदतमीज का टैग मिलना होता है। हालांकि इंटरनेट पर इस विषय पर देखने से पता चला है कि बहुत से लोग है जो फैमिली गुप्स की ऐसी स्थिति में परिवार के ग्रुप्स को म्यूट करना चुनते हैं। सवाल यह है कि म्यूट करना यानी चुप्पी साधना क्या समाधान है।
26 वर्षीय कॉलेज में पढ़ने वाली आयुषी का कहना है, “ख़ासतौर पर जब फैमिली ग्रुप में एंटी वीमन जोक्स फॉर्वर्ड किया जाता है तो मैं अक्सर सवाल करती हूं तो इस वजह से मुझे बहुत विरोध का भी सामना करना पड़ता है। पांरपरिक सोच को चुनौती देने पर आपकी शेमिंग की जाती है।
यह सच है कि परिवार और रिश्तेदारों के बीच इन मुद्दों पर बात करना बहुत कठिन हो जाता है। परिवार में किसी बड़े से इन मुद्दों पर बात करना मतलब बड़ों से बहस करना, अपमान की श्रेणी में ला दिया जाता है। खासकर जब एक्सटेंड फैमिली यानी परिवार के दूर के रिश्ते इन ग्रुप्स का हिस्सा होता हो तो उनकी विचारधाराओं को नज़रअंदाज़ करना और साल में एक बार मिलने पर एक खुशहाल चेहरा बनाए रखना कहीं आसान लगता है। लेकिन सवाल यही उठता है कि निजी स्पेस में हम क्यों सेक्सिज़्म और लैंगिक पूर्वाग्रहों के बारे में बात करने से बचते है और इस तरह का बचाव कितना खतरनाक भी है। यह एक गंभीर समस्या है। चुप्पी साधना ऐसी मानसिकता को बढ़ावा देना है। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध, जैसे बलात्कार, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और दहेज हत्याएं, इसी सोच का नतीजा हैं।
सोशल मीडिया या फैमिली चैट ग्रुप्स में चलने वाले चुटकुले मनोरंजन के नज़रिये से पेश किये जाते है लेकिन ठहरकर देखने पर समझ में आता है सारे जोक्स महिलाओं की मजाक उड़ाने वाले, पत्नियों के ऊपर, लैंगिक भेदभाव वाले होते हैं। महिलाओं की तय भूमिका को दिखाते हैं। पत्नियां घर संवारती है और अक्सर शिकायत करती रहती है। पत्नी अपने मायके जाती है तो यह पति के लिए आजादी होती है जैसी बातों को मजाक बताया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार, ये चुटकुले अपमानजनक हास्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, यानी किसी सामाजिक समूह या उसके प्रतिनिधियों को नीचा दिखाकर मनोरंजन करने का प्रयास। हम में से अधिकांश इसे सेक्सिस्ट या रेसिस्ट कॉमेडी के रूप में जानते हैं। यह इस तरह है कि किसी हाशिए पर पड़े समूह को पंचलाइन बनाकर मज़ाकिया बनाने की कोशिश करता है।
अपमानजनक हास्य अपने स्वभाव में विरोधाभासी है; यह एक साथ दो परस्पर विरोधी संदेश देता है। पहला, यह किसी समूह को लक्षित करते हुए एक पूर्वाग्रही संदेश देता है। दूसरा, यह अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश देता है कि यह सब कोई दुश्मनी में नहीं कहा गया है यह केवल मजाक है। इस तरह का हास्य एक सामाजिक समूह के प्रति भेदभाव और आक्रामकता को सामान्य करने का काम करता है, जिससे इसे चुनौती देना और भी कठिन हो जाता है। आज के समय में महिला विरोधी संदेशों और चुटकुलों से लोगों के रिश्ते तक प्रभावित हो रहे हैं। जब भी कोई महिला घर में होने वाले दुर्व्यवहार की शिकायत करती है, तो अधिकतर मामलों में महिला को ही गलत ठहरा देते हैं। उसके चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं, उसके पति और ससुराल वालों के प्रति उसके धैर्य की परीक्षा ली जाती है। यह सब तब भी होता है, जब असल समस्या पुरुष या पति के गलत आचरण से जुड़ी होती है। इस तरह की सोच न केवल महिलाओं के अनुभवों को दबाती है बल्कि दुर्व्यवहार के चक्र को जारी रखती है।
इससे अलग महिलाओं से हमेशा उम्मीद की जाती है कि महिला चुप रहे। समाज में व्यवस्था के अनुसार खुद महिलाएं तक पुरुषों का बचाव करती है। इस तरह के विचारों को सोशल मीडिया के संदेशों और व्हाट्सएप ग्रुप्स पर फैले कैज़ुअल सेक्सिज़्म के जरिए और भी मज़बूत किया जाता है। इंटरनेट इस तरह से महिलाओं के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाने के बजाय, उनकी भूमिकाओं को और सीमित करने का काम करता है। इसलिए मजाक की आड़ में बात कहने वाले इन लोगों के ख़िलाफ़ बोलना ज़रूरी है।
“बोलना ही ज़रूरी है”
26 वर्षीय कॉलेज में पढ़ने वाली आयुषी का कहना है, “ख़ासतौर पर जब फैमिली ग्रुप में एंटी वीमन जोक्स फॉर्वर्ड किया जाता है तो मैं अक्सर सवाल करती हूं तो इस वजह से मुझे बहुत विरोध का भी सामना करना पड़ता है। पांरपरिक सोच को चुनौती देने पर आपकी शेमिंग की जाती है। अरे मजाक था, तुम तो हर बात सीरियस लेती हो, सारा मजा ही किरकिरा कर दिया जैसी बातें सुनने को मिलती है। मजाक की आड़ में वास्तव में यह उस व्यक्ति की सोच होती है और मैसेज के ज़रिये वह और लोगों को ऐसा सीखा रहे होते हैं। हमारे एक फैमिली ग्रुप में परिवार के स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी है। आज अगर वे ग्रुप में इस तरह की बातों पर सवाल देखते है, कि कोई इन्हें क्यों गलत बता रहा है तो ये प्रयास है कि वे समझे कि हमारे कुछ बड़े लोग मजाक के नाम पर भेदभाव और महिला विरोधी सोच को आगे नहीं बढ़ा सकते है।”
‘मजाक’ कहने की आड़ महिलाओं के अधिकारों और समानता की गंभीर चर्चा को हल्के में लेने का एक तरीका बन जाता है। इस तरह की बातों को साझा करना या उचित ठहराना एक ऐसी सोच को बढ़ाता है जो असमानता पर टिकी है जिसमें लिंग, वर्ग, जाति, धर्म के आधार पर लोगों की मजाक उड़ाई जाती है। इस तरह की सोच असंवेदनशीलता, दुश्मनी, गुस्सा और विद्रोह जैसे भावों को बढ़ाती है। सोशल मीडिया के इस दौर में आज परिवार के बड़े ही अपने बच्चों को यह सिखाते हैं। असंवेदनशील व्यवहार करना स्वीकार्य है इसको व्यवहारिक बना रहे हैं। इस तरह, यह विषाक्तता पीढ़ियों तक जारी की जा रही है जिसके निजी और सामाजिक दोनों स्तर पर गलत परिणाम है।
व्हाट्सएप का इस्तेमाल तर्क को कमजोर करना
द डायलॉगबॉक्स.कॉम में छपी जानकारी के अनुसार व्हाट्सएप एक टेक्नो-यूटोपियन डिजिटल लिविंग रूम की तरह दिखता है। यह समाज और राज्य के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित और सुदृढ़ करता है। फैमिली व्हाट्सएप ग्रुप्स में प्रसारित होने वाले आख्यान धीरे-धीरे व्यक्तियों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए तैयार करते हैं, जो बाद में सार्वजनिक क्षेत्र में बहुमत वाला दृष्टिकोण बन जाते हैं। केवल परिवार के सदस्यों के साथ व्हाट्सएप ग्रुप में होने वाली मामूली बातचीत राज्य की शक्ति के भीतर एक उपकरण बन जाती हैं। इस तरह, व्हाट्सएप एक ऐसा महत्वपूर्ण माध्यम बन जाता है जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सीमित करता है। ऐसी प्रक्रियाएं जो सभी लिंगों के लोगों से समान रूप से जुड़ती हैं। यह माध्यम न केवल निजी बातचीत के ताने-बाने को आकार देता है बल्कि उसे व्यापक सामाजिक आख्यानों से जोड़ता है। नतीजतन, यह न केवल राजनीतिक प्राथमिकताओं को प्रभावित करता है बल्कि सामाजिक पूर्वाग्रहों को भी बढ़ावा देता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों की हानि होती है।
चैट ग्रुप में सेक्सिस्ट व्यवहार को पहचानने के बाद क्या किया जाए?
यह वास्तविकता है कि अपने ही परिवार के लोगों के ख़िलाफ़ खड़ा होना एक मुश्किल काम है। पारिवारिक रिश्तों में आपको सामाजिक चेतना लाने के लिए ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ता है। मिसोजिनी, लैंगिक भेदभाव या किसी भी तरह के भेदभाव को खत्म करने के लिए उस सोच को चोट पहुंचाना ज़रूरी है। सेक्सिट बातों पर बोलकर कर, सवाल करके, चर्चा करके ही सामने वाले को बताया जा सकता है कि आप गलत व्यवहार कर रहे हैं। निजी स्पेस में बोलना, हमारी मौजूदगी होना और सवाल करना इस तरह की सोच को परोसने वाले लोगों को अहसहज करने का काम करती है इसलिए मिसोजिनी जोक्स पर चुप रहना और फैमिली ग्रुप में बड़े है, परिवार वाले है समझकर ठहना बिल्कुल उचित नही हैं। विचार रखना, सोचने के लिए मजबूर करना ही बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह पीढ़ियों से चले आ रहे इन चक्रों को तोड़ने का भी साधन बन सकता है। इससे एक ऐसा परिवारिक वातावरण सुनिश्चित किया जा सकता है जो सभी के लिए सुरक्षित और समान हो।