आज अगर किसी माता-पिता से बच्चों की परवरिश के संबंध में बात करते है तो सबसे पहले उनकी एक सामान्य समस्या फोन के अतिरेक्त इस्तेमाल की आती है। माता-पिता बच्चों के ज्यादा समय फोन पर बिताने से न केवल चिंतित नज़र आते हैं बल्कि कुछ तो इस दिशा में कठोर फैसला तक लेते है। फोन पर गेम्स, रील्स और सोशल मीडिया की लत बच्चों में बढ़ती जा रही है। कम उम्र में बच्चों में सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल को लेकर हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने अपने देश में इसपर प्रतिबंध लगाने की मंजूरी दी।
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की संसद ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है। इस तरह का दुनिया के किसी देश में पहला कानून पारित किया है, जिससे टेक कंपनियों को सुरक्षा कड़ी करने की चेतावनी दी गई है। बच्चों के बीच सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल को रोकने की दिशा में दुनिया में एक ज़रूरी कदम देखा जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया की सीनेट (संसद) के साल के अंतिम सत्र के दिन सोशल मीडिया प्रतिबंध को मंजूरी दे दी। यह कदम कई महीनों की गहन सार्वजनिक बहस और एक त्वरित संसदीय प्रक्रिया के बाद उठाया गया। इस विधेयक को एक ही सप्ताह के भीतर पेश किया गया, बहस की गई और पारित किया गया।
नए कानून के तहत, टेक कंपनियों को नाबालिग उपयोगकर्ताओं को सोशल मीडिया सेवाओं तक पहुंचने से रोकने के लिए “उचित कदम” उठाने होंगे। रायटर्स में छपी जानकारी के अनुसार इस कानून के तहत इंस्टाग्राम, फेसबुक के मालिक मेटा (META.O), टिकटॉक और अन्य टेक दिग्गजों को यह सुनिश्चित करना होगा कि नाबालिग उपयोगकर्ता उनके प्लेटफॉर्म पर लॉग इन न करें, अन्यथा उन्हें लगभग 50 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (32 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस कानून को लागू करने के लिए जनवरी में परीक्षण प्रक्रिया शुरू होगी और प्रतिबंध एक साल बाद प्रभावी होगा।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ का कहना है कि यह कानून युवाओं को सोशल मीडिया से होने वाले “हानिकारक प्रभावों” से बचाने के लिए आवश्यक है और कई माता-पिता समूहों ने इसका समर्थन किया है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इस प्रतिबंध को लागू करने के तरीके और इसके गोपनीयता और सामाजिक जुड़ाव पर प्रभावों को लेकर सवालों के जवाब अभी तक स्पष्ट नहीं किए गए हैं।
सोशल मीडिया न्यूनतम आयु विधेयक ऑस्ट्रेलिया को उन सरकारों के लिए एक परीक्षण मामला है, जो सोशल मीडिया पर आयु प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बना चुकी हैं या बनाने की योजना कर रही हैं। यह कदम युवाओं पर सोशल मीडिया के मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच उठाया गया है। इससे पहले फ्रांस और अमेरिका के कुछ राज्यों सहित कई देशों ने नाबालिगों को माता-पिता की अनुमति के बिना सोशल मीडिया तक पहुंचने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून पारित किए हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई प्रतिबंध पूर्ण और सख्त है। हालांकि फ्लोरिडा में 14 साल से कम उम्र के बच्चों पर लगाया गया पूर्ण प्रतिबंध अदालत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति के आधार पर चुनौती का सामना कर रहा है।
लगभग अगले एक साल तक यह बैन प्रभावी नहीं होगा। लेकिन ऑस्ट्रेलिया इसे कैसे लागू कर पाएगा? यह स्पष्ट नहीं है और न ही आसान होगा। आज सोशल मीडिया युवाओं की जिंदगी का इतना अहम हिस्सा बन चुका है इससे दूरी बनाना यूजर्स के लिए मुश्किल और सरकार के लिए चुनौतिपूर्ण भी है। इसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं जिसमें प्रतिबंध को बच्चों की अभिव्यक्ति की आज़ादी को सीमित करने, हाशिये के समूहों के लिए उन्हें अलग-थलग कर देने और अपने समुदाय के लोगों से जुड़ने के उनके अवसरों को खत्म करने का सवाल भी है। साथ ही सोशल मीडिया साइट्स लोगों की उम्र को कैसे सत्यापित करेंगी? इस तरह के बहुत से सवाल भी है।
ऑस्ट्रेलिया की यह पहल कैसी है इसके बारे में तुरंत कुछ कहना संभव नहीं है। यह एक अच्छा कदम साबित होगा या ऐसा कदम भी साबित होगा जिसके अनचाहे परिणाम हो सकते हैं। इस प्रस्ताव की मंजूरी के बाद सोशल मीडिया कंपनियों की तरफ से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। मेटा के एक प्रवक्ता ने कहा कि फेसबुक ने ऑस्ट्रेलियाई कानून का सम्मान किया, लेकिन प्रक्रिया को लेकर हम चिंतित है। इस प्रक्रिया में कानून को जल्दबाजी में पारित किया गया, बिना सबूतों पर पूरी तरह विचार किए, उद्योग द्वारा पहले से उठाए गए आयु-उपयुक्त अनुभवों को सुनिश्चित करने के प्रयासों को समझे, और युवाओं की आवाज़ों को सुने बिना किया गया है। स्नैपचैट की ओर से भी ऑस्ट्रेलिया में कानूनों और नियमों का पालन करेगी, लेकिन उसने इस कानून को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं। कंपनियां सरकार के इस प्रतिबंध के प्रभाव को लेकर फिलहाल खुलकर बोलने में बचती नज़र आ रही है।
इंटरनेट पर सोशल मीडिया का बच्चों के बीच बढ़ता इस्तेमाल एक चिंता का विषय है। समय-समय पर सरकार, स्कूलों की तरफ से बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर भी बातें सामने आ रही है। ऑस्ट्रेलिया के इस कदम के बाद दुनिया भर के नेता और अभिभावक इस नीति पर करीब से नजर रख रहे हैं, क्योंकि कई लोग छोटे बच्चों को इंटरनेट के खतरनाक इस्तेमाल से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। कई बाल सुरक्षा विशेषज्ञ, अभिभावक, और यहां तक कि वे किशोर जो सोशल मीडिया पर आने के लिए इंतजार कर चुके हैं, ऑस्ट्रेलिया के इस कदम को एक सकारात्मक पहल मानते हैं। उनका कहना है कि बच्चों को इंतजार कराने के पर्याप्त कारण हैं।
बच्चों के बीच फोन के अधिक इस्तेमाल पर माता-पिता चिंतित
सोशल मीडिया प्रतिबंध पर बात करते हुए गाजियाबाद की निवासी वंशिका कहती हैं, “अगर वास्तव में यह हो सकता है तो एक माँ के रूप मैं इसे राहत भरा कदम देखती हूं। फोन का इस्तेमाल बच्चों के बीच एक बड़ी समस्या है। ऑनलाइन एजुकेशन, डिजिटल एजुकेशन ने इसे बढ़ाया है। हम बच्चों को पढ़ाई के लिए गैजेट दे रहे है लेकिन वे बच्चे है और शरारत करना, नई चीजें खोजना सामान्य है। इस तरह से फोन का इस्तेमाल उनके जीवन में बढ़ रहा है। अगर सोशल मीडिया की रेगुलेशन आती है तो ये मेरी नज़र में सही होगा। हमें बच्चों को इस लत से बचाने के लिए इस तरह के कदम उठाने होंगे।”
बच्चों तक सोशल मीडिया की पहुंच पर बोलते हुए रश्मि का कहना है, “मेरी बेटी कक्षा सात में पढ़ती है। उसके पास उसका कोई निजी फोन नहीं है लेकिन सोशल मीडिया पर उसका अकाउंट है। वह कभी-कभी रील्स बनाती है। बच्चों में फोन के इस्तेमाल को लेकर कई तरीके से सोचना चाहिए। हमारे छोटे शहर, गांव-देहात के बच्चों के पास उस तरह की जानकारी नहीं होती है जो बड़े शहरों के बच्चों के पास होती है। ऐसे में इंटरनेट के ज़रिए वे बहुत सी चीजें सीखते हैं। लेकिन मैं देखती हूं कुछ बच्चे इसी में लगे रहते है। कुछ बच्चे सोशल मीडिया के ज़रिए कई तरह की मुसीबत, अपराध तक में फंसे हैं। इस पहलू को भी देखना ज़रूरी है। आज-कल की स्थिति को देखकर कुछ कंट्रोल होना बहुत ज़रूरी है।”
बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन पर पिंकी का कहना है, “मेरी नज़र में यह बहुत ही ज़रूरी फैसला है। मेरे तीन बच्चे हैं। तीनों के पास अपना फोन है। यह गलत है लेकिन मेरे बस के बाहर है। कोविड के समय ऑनलाइन क्लास की वजह से सबको फोन दिलाया और आज वह उनके डेली रूटीन का ज़रूरी हिस्सा है जो कि नहीं होना चाहिए। फोन का बुरा असर बहुत से लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। आंखें खराब हो रही है, जिद बढ़ गई है। इंटरनेट पूरी तरह से बच्चों के लिए बैन हो तो मैं उसके भी समर्थन में हूं।”
दुनिया के अन्य देशों में इस दिशा में उठा जा चुके हैं कदम
बच्चों के बीच फोन या सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल को लेकर कई कदम उठाए जा चुके हैं। इंडिया एक्सप्रेस में छपी जानकारी के अनुसार यूरोप और ब्रिटेन में अभिभावकों ने 12 या 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्मार्टफोन न खरीदने का संकल्प लिया है। यह तरीका बिना सरकारी हस्तक्षेप के लगभग बिना किसी खर्च के काम करता है। दूसरी तरफ़ नॉर्वे 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। फ्रांस ने कुछ स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध का परीक्षण शुरू किया है। अमेरिका के कई राज्यों ने बच्चों के लिए सोशल मीडिया उपयोग पर कानून पारित किए हैं, लेकिन अदालत में अटके हुए हैं।
हर पहल, खासकर जो सामाजिक व्यवस्था को बदलने के लिए बनाई जाती है, अक्सर अनपेक्षित परिणामों का कारण बन सकती है। क्या यह कानून भी ऐसा ही कर सकता है? बच्चों को उन नेटवर्क्स से अलग करके, जिनमें वे भाग लेते हैं, वे क्या खो सकते हैं? प्रत्येक प्रतिबंध व्यापक सांस्कृतिक बदलाव का कारण बनते है इसलिए इसके हर तरह के असर पर सोचना बहुत ज़रूरी है। ऐसे बैन जहां उन माता-पिता के लिए राहत भरे है जो अपने बच्चों के बीच सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर चिंतित रहते है। वही दूसरी ओर हाशिये के समुदाय के लोगों के बच्चे जो इंटरनेट की बदौलत सीखकर आगे बढ़ रहे है, खुद की प्रतिभा को चमका रहे है उनके लिए संपर्क के अवसर को कम करने वाले हैं। इस बदलाव से हाशिये समुदायों को अलग-थलग करने और उनके सामाजिक संपर्क के अवसरों को कम करने का जोखिम है। अलग-अलग विशेषज्ञ इसको अलग नज़र से देख रहे हैं।