2024 का साल भारत के विकलांग खिलाड़ियों के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। अपने शानदार प्रदर्शन से इन्होंने न केवल देश का नाम रोशन किया बल्कि समाज के सामने उदाहरण भी प्रस्तुत किया। पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत ने अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 29 पदक हासिल किए, जिसमें 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक शामिल थे। इन खिलाड़ियों ने यह साबित करके दिखा दिया कि विकलांगता ज़िंदगी को थोड़ा कठिन ज़रूर बना देती है। लेकिन अगर सही समय पर मदद और प्रोत्साहन मिले तो अपनी मेहनत से ये भी मनचाही सफलता हासिल कर सकते हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम कुछ ऐसी ही विकलांग शख़्सियतों के बारे में बात कर रहे हैं जिन्होंने 2024 का साल यादगार बना दिया।
1. अवनि लेखरा

पेरिस पैरालंपिक्स 2024 की 10 मी एयर राइफल शूटिंग स्पर्धा में जयपुर, राजस्थान की इस खिलाड़ी ने रिपब्लिक ऑफ कोरिया की ली युन री को पीछे छोड़ते हुए स्वर्ण पदक हासिल किया और पहले स्थान पर कब्ज़ा जमा लिया। इस प्रतियोगिता में इन्होंने टोक्यो पैरालंपिक का अपना ही पिछला टोक्यो पैरालंपिक डेब्यू का रिकॉर्ड तोड़ दिया और इस प्रकार लेखरा ने पैरालम्पिक खेलों में दो स्वर्ण पदक हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनने का गौरव हासिल किया। इसके साथ ही यह पहली बार था जब भारत ने पैरालंपिक खेलों में एक ही स्पर्धा में दो पोडियम स्थान हासिल किए। शूटर अवनि लेखरा और मोना अग्रवाल ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में एक साथ पदक हासिल कर कीर्तिमान रच दिया।
2. मोना अग्रवाल

पैरा एथलीट मोना अग्रवाल का जीवन इनकी जीवटता, संघर्ष और जिजीविषा का जीता जागता मिसाल है। पेरिस पैरालंपिक 2024 में 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग स्पर्धा में इन्होंने कांस्य पदक हासिल कर दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी। मात्र 9 महीने की उम्र से ही पोलियो से ग्रस्त होने के बावजूद उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। शूटिंग के अलावा वॉलीबॉल में भी इनकी गहरी रुचि है। पहली राष्ट्रीय सिटिंग वॉलीबॉल चैंपियनशिप में अपनी कप्तानी में इन्होंने राजस्थान टीम को स्वर्ण पदक दिलाया। सीकर, राजस्थान की रहने वाली अग्रवाल खेल के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रख रही हैं। फिलहाल ये मनोविज्ञान से स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल कर रही हैं।
3. सुमित अंतिल

भाला फेंक के दिग्गज खिलाड़ी सुमित अंतिल ने पैरालंपिक खेलों में अपना खिताब कायम रखने वाले पहले भारतीय पुरुष खिलाड़ी के तौर पर मिसाल कायम कर दिया। इन्होंने पुरुषों की भाला फेंक F-64 स्पर्धा में 70.59 मीटर की शानदार थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीतकर एक नया रिकॉर्ड बना दिया। 26 वर्षीय पैरा एथलीट ने प्रतियोगिता के दौरान तीन बार अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर इतिहास रच दिया। महज 17 साल की उम्र में एक दुर्घटना में अपने दोनों पैर खोने के बावजूद इन्होंने कभी हार नहीं मानी। भाला फेंक प्रतियोगिता में लगातार तीन बार विश्व रिकॉर्ड बनाकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
4. मरियप्पन थंगावेलु

पद्मश्री पुरस्कार विजेता मरियप्पन थंगावेलु पैरालंपिक में हाई जंपर हैं। 2024 के पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर इन्होंने अपनी सफलता की यात्रा में एक और कीर्तिमान स्थापित किया। 2016 के रियो डी जेनेरियो में आयोजित पैरालंपिक में स्वर्ण पदक, 2020 के टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले थंगावेलु एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक के साथ विश्व पैरा एथलेटिक्स में दोहरे पदक विजेता भी हैं। इसके अलावा इन्होंने एशियाई पैरा एथलेटिक्स में भी रजत पदक जीतने का गौरव हासिल किया है। तमिलनाडु के सेलम के साधारण परिवार में जन्मे थंगावेलु 5 साल की उम्र में दुर्घटना के शिकार हो गए जिसकी वजह से इन्हें अपना पैर गंवाना पड़ा। ज़िंदगी में आने वाली तमाम कठिनाइयों के बावजूद इन्होंने कभी हार नहीं मानी और इनकी काबिलियत की वजह से इन्हें अर्जुन पुरस्कार और मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
5. दीप्ति जीवनजी

पेरिस पैरालंपिक 2024 में महिलाओं की 400 मीटर टी-20 दौड़ प्रतियोगिता में कांस्य पदक के साथ दीप्ति जीवनजी पैरालंपिक पदक जीतने वाली पहली बौद्धिक रूप से विकलांग भारतीय एथलीट बन गईं। यह इन का एथलेटिक्स में छठा पदक था। तेलंगाना के एक छोटे से गांव की रहने वाली दीप्ति का शुरुआती जीवन चुनौतियों भरा था। यहां तक कि गांव वालों ने इनके माता-पिता पर इन्हें छोड़ देने का दबाव भी बनाया। लेकिन तमाम मुश्किलों में उनके माता-पिता हर समय उनके साथ खड़े रहे। इसके साथ ही दीप्ति के कोच एन रमेश का इन की सफलता में काफी योगदान रहा है जिन्होंने 15 वर्ष की उम्र में ही इनकी क्षमताओं को पहचाना और इन्हें ट्रेनिंग दी।
6. प्रीति पाल

एक ही पैरालंपिक स्पर्धा में दो पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला ट्रैक एंड फील्ड एथलीट प्रीति पाल ने पेरिस पैरालंपिक में अपने असाधारण प्रदर्शन से दुनिया भर में चर्चा बटोरी। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्मी प्रीति के पैर जन्म से ही कमज़ोर थे, जिस वजह से इनके पैदा होने के 6 दिन बाद ही प्लास्टर लगाना पड़ा। बचपन से ही शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की समस्याओं से घिरी रहने वाली प्रीति ने जब 17 साल की उम्र में सोशल मीडिया पर पैरालंपिक खेलों के बारे में जाना, तब इनका इस तरफ रुझान हो गया और पैरालंपिक एथलीट फातिमा खातून से मुलाक़ात ने इनकी ज़िंदगी की दिशा तय कर दी। इस प्रकार 2018 के स्टेट पैरा एथलेटिक्स से इनके खेल जीवन की शुरुआत हुई, जो पेरिस पैरालिम्पिक 2024 में मेडल जीतने तक प्रेरणादायक रहा।
7. शीतल देवी

पेरिस पैरालंपिक 2024 में तीरंदाजी में कांस्य पदक हासिल करके शीतल देवी ने भारत की सबसे कम उम्र की पैरालंपिक पदक विजेता होने का गौरव हासिल किया है। 10 जनवरी 2007 को जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में जन्मी शीतल देवी ने महज 17 साल की उम्र में यह कारनामा करके दुनिया को हैरत में डाल दिया। ये पैदा होने के साथ ही फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ जन्मजात विकार से ग्रसित हैं जिसकी वजह से शरीर के अंगों के विकास में बाधा आती है। इससे पहले शीतल ने चेक रिपब्लिक में विश्व तीरंदाजी पैरा चैंपियनशिप 2023 में ओपन महिला कंपाउंड तीरंदाजी स्पर्धा में रजत पदक जीता था। इसके साथ ही ये पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली महिला आर्मलेस तीरंदाज थीं। शीतल पैरों से तीरंदाजी करने वाले महान पैरा एथलीट स्टुट्जमैन से काफ़ी प्रभावित थीं, जिस वजह से इन्होंने इस क्षेत्र में आने का फैसला किया।
8. हरविंदर सिंह

तीरंदाजी में भारत का पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पैरा एथलीट हरविंदर सिंह पैरा एथलीट तीरंदाजी में जाना माना नाम बन चुके हैं। 2020 के टोक्यो पैरालंपिक में भी इन्होंने पुरुष एकल तीरंदाजी में कांस्य पदक हासिल किया था। इसके अलावा 2018 के जकार्ता पैरा एथलेटिक्स और 2022 के पैरा एथलेटिक्स की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भी इन्होंने पदक जीतकर अपनी क्षमता का लोहा मनवाया। 25 फरवरी 1991 को कैथल, हरियाणा में जन्मे हरविंदर सिंह ने अपना जीवन पूरी तरह से खेलों को समर्पित कर दिया है।
9. धरमबीर

पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत को एफ-21 की श्रेणी में क्लब थ्रो की स्पर्धा में स्वर्ण पदक दिलाने वाले धरमबीर ने दुनिया भर देश का नाम रोशन कर दिया। हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले धरमबीर का बचपन में नहर में गोता लगाते समय चट्टानों से टकराकर कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। बचपन से ही खेलों में रुचि रखने वाले धरमबीर को पैरा एथलीट अमित कुमार सरोहा का मार्गदर्शन मिला तो इन्होंने भी जी तोड़ मेहनत की। इसका नतीजा यह हुआ कि 2018 के एशियाई पर एथलेटिक्स में इन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए रजत पदक हासिल किया। इसके साथ ही इन्होंने 2022 के पैरा एथलेटिक्स में एक बार फिर से रजत पदक पर अपनी दावेदारी कायम की। इनका जीवन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।
10. डॉक्टर केतना एल मेहता

डॉक्टर, लेखक, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर केतना एल मेहता की अपनी शारीरिक विकलांगता ने इन्हें विकलांगों के प्रति और अधिक संवेदनशील बना दिया। इसके बाद डॉक्टर मेहता ने रीढ़ की हड्डी के चोटों से ग्रसित लोगों के जीवन की बेहतरी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। ग़ौरतलब है कि 1995 में पैराग्लाइडिंग करते समय हुई दुर्घटना के दौरान उनकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई। इसके बाद लंबे समय तक इनका काम प्रभावित रहा और इन्होंने महसूस किया कि ऐसे लोगों के लिए कुछ करना चाहिए। इसी मकसद से 2001 में इन्होंने नीना फाउंडेशन की स्थापना की। डॉ मेहता के इन्हीं योगदानों को देखते हुए इन्हें कैविनकेयर एबिलिटी स्पेशल रिकॉग्निशन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।
नोटः यह सूची अपनेआप में संपूर्ण नहीं हैं। ऐसे कई काबिल विकलांग व्यक्ति हमारे देश में मौजूद हैं जो लगातार अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं।